गुरुवार, 11 जून 2015

Travelling with Mr.Yamraaj in Delhi Metro -II

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अब क्या परेशानी है महाराज ? ये बस आपको सीधे इंद्रप्रस्थ उतार देगी। नही पुत्र ! हमने पांडवों का महल नही देखा कृपया तुम हमें पांडवों के महल तक पहुंचा दोगे तो हम वहां से किसी से सहायता लेकर वापस स्वर्ग चले जाएंगे। हमारी अनुपस्थिति में पता नही वहां के सब लोग कितने परेशान और दुखी हो रहे होंगे। पुत्र कृपया हमारी मदद करिये पुत्र। स्वर्ग जाना है आपको -तो किसी भी गाडी के नीचे आ जाओ सीधा स्वर्ग का ही टिकेट काट देगा तुम्हारा। अब झल्लाहट होने लगी थी। एक तो इतनी गर्मी और ऊपर से ये। पांडवों के महल पहुंचा दूँ ? पांडवों को इस दुनिया से गए हुए हजारों साल गुजर गए महाशय, आप कौन हैं ? क्या है ? कहाँ से आये हैं , कहाँ जाएंगे ? कुछ ढंग से बताओ तो कुछ मदद भी करूँ। नीम्बू पानी पी लेते हैं। उसने भी साथ ही पिया। पैसे मुझे ही देने पड़े दारुणिये के।


बताऊंगा ! सब बताऊंगा विस्तार से किन्तु पहले इस गर्मी से मुझे बचाओ। तुमने कपडे ही इतने ज्यादा और अजीब से पहन रखे हैं , इनसे गर्मी नही तो क्या ठंडक मिलेगी। कार्टून लग रहे हो पूरे और तुम्हारे साथ मैं भी पागलों की तरह इस गर्मी में मर रहा हूँ। नही वत्स ! अगर हम ये कपडे उतार देंगे तो हम यमराज कैसे रहेंगे। यमराज है तो मौसम को ठंडा करवा दे , लोग गर्मी से हायतौबा किये हुए हैं , यमराज हैं !! मैं मन ही मन उसे बुरा भला कह रहा था लेकिन पता नही उसने कैसे समझ लिया ? पुत्र ये इंद्र देव का काम है हमारा नही। तो तुम्हारा क्या काम है ? हमारा काम है -प्राणियों के प्राण को सुरक्षित पृथ्वी से स्वर्ग तक लेकर जाना। पुत्र गर्मी से बचाओ !!


चलो चलते हैं। अब मुझे मजा आने लगा था उस बहरूपिये से बात करने में। दरियागंज से किताबें फिर कभी भी मिल जाएंगी लेकिन ऐसा मजेदार आदमी नही मिल पायेगा। चलो पांडवों के नगर इंद्रप्रस्थ चलते हैं लेकिन वहां महल वगैरह तो नही हैं। मैं "यमराज " को लेकर मेट्रो स्टेशन पहुँच गया। कम से कम धूप और गर्मी से तो बचेंगे। मेरे पास तो मेट्रो का कार्ड था भाईसाब के लिए एक टिकट ले लिया। बहुत ज्यादा परेशानी नही हुई। बस एंट्री गेट पर कुछ सुरक्षा कर्मियों ने टोंट कस दिया। भारतीय रेल और मेट्रो में यही अंतर होता है। मेट्रो में घुसते ही आदमी समझदार हो जाता है , न कहीं  थूकेगा, न बीड़ी पियेगा , न गुटका खायेगा और भारतीय रेल में वहीँ खायेगा , वहीँ   थूकेगा और बच्चे को सूसू लगी तो वहीँ करवाएगा। सीट मिल गयी दोनों को ही। अब बताओ जी आप अपने बारे में ? मैंने ही शुरू कर दिया वार्तालाप। आप बता रहे थे -आप यमराज हैं ? हाँ , वो तो में हूँ। तो यहां पृथ्वी लोक पर कैसे ? बड़ी लम्बी कथा है पुत्र - वास्तव में हमें और चित्रगुप्त को पृथ्वी लोक में जासूसी के लिए भेजा गया था कि जाओ और ये पता करो कि अब वहां लोग अब अपनी मौत से कम और दुसरे कारणों से ज्यादा क्यों मर रहे हैं ? इसके लिए हम दोनों पृथ्वी पर आये और एक दिन , रात्रि के समय एक बड़े से कक्ष में घुस गए , वहां देखा तो अप्सराएं नृत्य कर रही हैं। हम देखते रहे लेकिन जब सुबह हुई तो हमने चित्रगुप्त को अपने पास नही पाया और उन्हें ढूंढते हुए शंकर जी की नगरी काशी होते हुए यहां तक आ पहुंचे हैं। बहुत मुश्किल में हैं हम। सोचा था कि पांडवों की नगरी जाएंगे तो वहां कोई न कोई भला व्यक्ति मिल जाएगा और हम उसी रास्ते से स्वर्ग चले जाएंगे जिस रास्ते से युद्धिष्ठर गए थे।


आँखों में आंसू निकल आये उनके। मैं भी दुखी हो गया। लेकिन महाराज अब न तो पांडव हैं इस धरती पर और न पांडवों जैसे लोग। ऐसा नही है पुत्र ! हर युग में पांडवों जैसे लोग होते हैं और युद्धिष्ठर जैसे सच्चे लोग भी। लेकिन हमारी आँखें उन्हें नही देख पातीं क्योंकि तुम्हें दुर्योधन जैसे लोगों को देखने की आदत हो गयी है। 


अच्छा महाराज मान लिया आप यमराज हो , एक बात तो बताओ कि इस दुनियाँ में करोड़ों लोग हैं , अरबों प्राणी हैं। तुम्हें कैसे पता चलता है कि कब किसको अपने पास बुलाना है ? और इतना काम तुम अकेले कैसे कर लेते हो ? और वो भी भैंसा पर बैठकर ? एयरक्राफ्ट ले लो एक,  तेज़ी और आसानी से काम हो जाएगा ! 


नही पुत्र ! मेरा भैंसा तुम्हारे यहां के जेट प्लेन से भी ज्यादा की स्पीड में चलता है , सुपर सोनिक स्पीड में और वाइट पेट्रोल भी नही पीता। जहां तक काम की बात है तो हमारे यहां और भी स्टाफ है लेकिन जैसे तुम्हारे यहां कंपनी के CEO या VP को ही सब लोग जानते हैं दुसरे स्टाफ को नही। ऐसे ही आप सब लोग सिर्फ मुझे या चित्रगुप्त को ही जानते हो। बाकी के स्टाफ को नही। और पता करने की जरुरत ही नही रहती किसी के बारे में। जब हम किसी को यहां धरती पर भेजते हैं नया जन्म देकर तब ही उसकी वैलिडिटी फिक्स कर देते हैं और जैसे ही उसकी वैलिडिटी ख़त्म होती है हमारे सुपर कंप्यूटर में उसकी डिटेल ब्लिंक करने लग जाती है और हमारे लोग उसे अपने पास बुला लेते हैं।


इतने में इंद्रप्रस्थ आ गया। बाहर निकले तो वही तेज धूप। एक कोल्ड्रिंक ले ली। अरे वत्स तुम मदिरा पान करते हो ? अरे महाराज ये मदिरा नही है -ठंडा पेय पदार्थ है !! तूफानी ठंडा , पियो , पी के देखो। अति स्वादिष्ट। थोड़े से और दिलवा दो -स्वर्ग लेकर जाएंगे और वहां बताएँगे कि पृथ्वी पर बहुत स्वादिष्ट और एकदम ठण्डा पेय मिलता है। बाप का माल है ले जाओगे ? लेकिन ले जाओ ! दो बोत्तल बड़ी वाली दिलवा दी। पृथ्वीलोक का गिफ्ट !!


महाराज अब बताओ , यहां कौन से "महल " में जाना है ? और हाँ , ऐसे ही किसी के महल में मत घुस जाना , कोई मारेगा बहुत। उन्होंने कई लोगों से पूछ लिया कि भैया इधर पांडवों का महल कौन सा है ? कहीं होता तो कोई बताता !! वो दुखी होकर कुछ सोचने लगे और इतने में ही मेरा फोन बजने लगा -बीवी का फोन था ! और सवाल वो ही - कहाँ हो ? मैंने कहा यमराज के साथ !! वो बेचारी रोने लगी ! तुम तो भले चंगे यहां से किताब लेने दरियागंज गए थे , यमराज के पास कैसे पहुँच गए ? मैंने बस इतना कह के फोन काट दिया - मैं ठीक हूँ और जिन्दा हूँ। रो मत। सब बता दूंगा घर आके। और उधर वो भाईसाब फोन को ऐसे देख रहे थे जैसे पहले कभी नही देखा हो !! ये क्या है ? फोन है !! क्या करते हैं इससे ? बात कर सकते हैं किसी से भी ? किसी से भी ? हाँ , किसी से भी !! मेरा एक एजेंट हैं यहां -उसका पृथ्वी का नंबर याद है मुझे , मेरी बात हो जायेगी उससे ? नंबर बताओ ? मैं खुद चाहता था कि उनका कोई केयर टेकर मिल जाए तो मेरा पीछा छूटे। बात हो गयी !


दो मिनट के अंदर ही कोई  सूट बूट वाला आदमी (सूट बूट वाली सरकार नही ) मेरे सामने था। यमराज फूट फूट कर उसके गले लग कर बहुत रोये और अपनी पूरी कहानी बताई। उसी ने बताया कि चित्रगुप्त सही सलामत स्वर्ग वापस पहुँच गए हैं। यमराज मेरी तरफ देखकर बोले -पुत्र अब हमें जाना होगा। हमें सही रास्ता मिल गया है। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। वो गले लग गए मेरे और रोने लगे। उनका आदमी मेरे पास आया और बोला -सर ने बताया आपके विषय में। भले आज पांडव नही हैं धरती पर किन्तु पांडवों जैसे लोग अब भी हैं। यमराज ने मेरे माथे पर अपना हाथ रखा और बोले कोई वरदान माँगना हो तो मांग लो !! मैंने सोचा क्या मांगू ? बस प्रभु यही वरदान दे दो कि जब तक जियूं ख़ुशी से जियूं और मेरे हाथ से किसी का बुरा न हो !!

तथास्तु !!




इतिश्री !!

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