शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

Hedakhan Temple : Ranikhet

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ना चाहें तो आप यहां क्लिक कर सकते हैं !

आशियाना पार्क , रानीखेत के बच्चों के लिए बहुत ही शानदार पिकनिक स्पॉट होगा , लेकिन उस समय शाम के साढ़े पांच या छह बजे कोई भी बच्चा उधर नही दिखाई दिया , बस दो बच्चे , वो भी ​दूसरे शहर के , उस पार्क की शोभा बढ़ा रहे थे , या ये कहा जाए कि वो दो बच्चे ही पार्क को "पार्क' बनाये हुए थे और ये दो बच्चे थे , हर्षित और पाई ! हाहाहा !

ये जगह शहर के निचले वाले हिस्से में है और हमारा होटल ऊपर वाले हिस्से में था , ऐसे कुछ अजीब सा लग रहा है कहने में ! ऐसे कहता हूँ , आशियाना पार्क रानीखेत के सरकारी बस स्टैंड की तरफ है और हमारा होटल प्राइवेट बस स्टैंड की तरफ था ! अब ठीक है ! तो अब हमें हल्की सी चढ़ाई चढ़ते हुए अपने होटल तक पहुंचना है , लेकिन थकान की वजह से ये हल्की सी चढ़ाई ही भारी लग रही थी !!


चाय पीते हैं बढ़िया सी ! काली मिर्च और लोंग , अदरक डाल के ! बना दे भाई दो चाय ! खाना अपने होटल में ही खा लेंगे ! सात बजे तक हम वापस होटल के अपने कमरे के कम्बल में घुस चुके थे , आठ बजे खाने का बुलावा आया तो ठण्ड के मारे हिम्मत नही हो रही थी , बाहर निकलने की ! भूख तो लगी है , चलते हैं !

इस ट्रिप में एक बहुत बड़ी गड़बड़ हुई थी ! मैं सोच रहा था कि ठण्ड ज्यादा नही होगी इसलिए अपनी बहुत हल्की सी हाफ जैकेट लेकर गया था और लता ( मेरी पत्नी ) ने बस गर्म सूट लिए थे , या ये कहूँ कि मैंने ही फ़ोर्स किया था कि बस इतना ही ले चल , काहे को वज़न बढ़ाना ? बच्चों के भी सर्दी के हलके कपडे ही लिए थे लेकिन जब ठण्ड का एहसास हुआ तो मुझे बच्चों के लिए , अपने लिए और वाइफ के लिए फिर से गर्म कपडे लेने पड़ गए और मेरा बजट बहुत ऊपर पहुँच गया ! खैर कपडे ही हैं , काम ही आएंगे !

अगली सुबह यानि 3 नवम्बर का हमारा प्रोग्राम सबसे पहले UPAT गोल्फ कोर्स जाने का था ! आठ बजे तो बिस्तर में से मुंह निकल पाया , वो भी लता का , मेरा मुंह बिस्तर में से हमेशा ही लता के बाद निकलता है और मेरे बाद दोनों बच्चों का ! ऐसे करते करते 9 बज गए ! नहाने का कोई मतलब नही इस ठण्ड में , मुंह हाथ चुपड़ लिए और बालों में कंघी मार ली , बन गए बाबू जी !!

अब फिर से नीचे जाना पड़ेगा , वो ही सरकारी बस स्टैंड पर ! वहीँ मजखाली जाने के लिए जीप मिलती हैं और वो जीप ही गोल्फ कोर्स पर उतार देती हैं , या फिर आप अपनी गाडी बुक करके ले जाओ , 250 -300 रूपये में ! शेयर्ड जीप में इधर से 15 रूपये प्रति सवारी लगी और उधर से 10 रूपये प्रति सवारी में ही आ गए , यानि upat गोल्फ कोर्स तक जाने आने के लगे कुल 50 रूपये , तो क्यों 250 रूपये खर्च करे जाएँ ? कोई पागल कुत्ते ने काटा है ?
बढ़िया -शानदार रास्ता बना हुआ है और आगे जाकर ये रास्ता द्वाराहाट होते हुए कर्णप्रयाग को चला जाता है , सीधे हाथ पर मजखाली के लिए एक सिंगल रोड निकल जाती है ! पूरे रास्ते कुमायूं रेजिमेंट का कोई न कोई प्रतिष्ठान बना हुआ है ! अच्छा लगता है ! हम उम्मीद कर रहे थे कि गोल्फ कोर्स में कोई न कोई तो गोल्फ खेलते हुए मिल ही जाएगा , लेकिन यहां तो कोई नही खेल रहा , हाँ गाय जरूर चर रही हैं और एक दो बच्चे अपनी माँ-बाप के साथ बैडमिंटन खेल रहे हैं ! बच्चे भी मस्ती मारने लगे , चीड़ के लंबे लंबे पेड़ों से घिरा ये गोल्फ कोर्स वास्तव में बहुत खूबसूरत लगता है ! त्रिशूल पीक के कुछ फोटू यहां से भी खेंच लिए और चल दिए वापस ! एक दो घंटे की बच्चों की मौजमस्ती का पूरा मामला है यहां ! पूरे फील्ड में घूमते रहो , लोटपोट होते रहो ! कौन सा बच्चों को कपडे धोने हैं , उनकी माँ जिंदाबाद !! माँ जिंदाबाद थी , जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगी !!

हालाँकि नाश्ता खा के ही निकले थे रानीखेत से लेकिन अब भूख भी लगी है ! चलते हैं वापस ! अब हेड़ाखान मंदिर चलेंगे , और फिर एक गड़बड़ हुई , अब फिर हमें नीचे से ऊपर की तरफ आना पड़ेगा ! क्योंकि हेड़ाखान मंदिर के लिए जीप प्राइवटे बस स्टैंड से मिलती हैं ! चलते हैं पैदल पैदल , क्या कर सकते हैं ? यहां न तो ऑटो रिक्शा मिलेगा न साइकिल रिक्शा ! पैरों को ही मसक्कत करनी पड़ेगी ! चल मेरे भाई !!

पास में ही है हेड़ाखान मंदिर , मुश्किल से 6 -7 किलोमीटर दूर होगा रानीखेत से ! हेड़ाखान मंदिर जिस गांव में है उस गाँव का नाम अजीब सा है "चिड़िया नौला " ! ये चिड़िया नाला रहा होगा शायद जो बदलते बदलते चिड़िया नौला हो गया होगा ! और चिड़िया नाला भी क्यों रहा होगा ? शायद कोई नाला होगा और उस नाले के आसपास कुछ पेड़ रहे होंगे जिन पर चिड़िया चहचहाती होंगी , तो अगर किसी को वो जगह बतानी होती होगी तो कह देता होगा -चिड़िया वाला नाला और लो जी हो गया चिड़िया नाला या चिड़िया नौला !! वैसे भारत में जगहों के नाम भी ऐसे ही मिल जाते हैं , गन्दा नाला , चौड़ा नाला , गधा पाड़ा , टेढ़ी बघिया , तिरछी कुटिया ! हेड़ाखान मंदिर के लिए प्राइवेट बस स्टैंड से जीप मिल जाती हैं , जहां जीप आपको उतारेगी उसके पास ही हेड़ाखान मंदिर है !

गाँव से एकदम बाहर जरूर है लेकिन अच्छा बना है , इस मंदिर के बिल्कुल सामने कुमायूं विकास निगम का गेस्ट हाउस भी है , शायद "हिमाद्री " के नाम से है ! मंदिर के बाहर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया का ATM भी है , जो  बढ़िया हालात में है ! मंदिर तो जैसा है , वो है ही लेकिन मंदिर के पास वाले बंगले बहुत ही शानदार हैं ! ये मंदिर बाबा हेड़ाखान को समर्पित है जो यहीं के रहने वाले थे और अपनी युवा अवस्था में घोर तप किया था ! ज्यादा मुझे नही मालूम उनके बारे में ! आपको पता चले तो शेयर करियेगा , और हाँ अब फोटू खेंचते हैं फिर निकलते हैं , सामने ही रेस्टोरेंट सा कुछ है , खाएंगे पियेंगे ! पियेंगे मतलब चाय पियेंगे ! दो चार आसपास अंग्रेज़ लोग भी दिखाई दे रहे हैं , दो पुरुष दो महिला ! मतलब उन लोगों को भी बाबा हेड़ाखान में रूचि है ? या सिम्पली प्रकृति का आनंद लेने के लिए घूम रहे हैं ? चलो जी चलते हैं , कल फिर आपसे मुलाकात होगी !! तब तक राम राम !!




भारतीय सेना में शामिल होने के लिए बहुत मेहनत चाहिए , तैयारी चल रही है

नए रंगरूट की तरह "कैप " उछाल कर जश्न मनाया जा रहा है
एक सैनिक को पहाड़ भी चढ़ने होते हैं
प्रैक्टिस चल रही है , फुल ऑन
भारतीय सेना के जवान को स्मार्ट भी होना चाहिए ! गर्ल फ्रैंड भी तो बनानी है:)






ये पहाड़ छू लेने की चाहत है
कुछ विशेष लगा ?
हेड़ाखान मंदिर का प्रवेश द्धार













हेड़ाखान मंदिर से दिखाई देती ' त्रिशूल ' चोटी
हमारे यहां इसे ' कनेर ' बोलते हैं

ये हाइड्रेंजिया का फूल है , ऐसा कुछ फेसबुक मित्रों ने बताया

पेड़ पर भले धूल जमी हो लेकिन , कीनो तो साफ़ हैं

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

ताक धिना धिन ताके से.......Part- I

मित्र लोगो , राम राम !!


दोस्तों , जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था तब इसके विषय में बहुत कुछ नही जानता था लेकिन कुछ मेरे शब्दों ने और ज्यादातर आपके समर्थन ने , आपकी हौसलाफजाई ने ब्लॉगिंग में जो रूचि पैदा की है वो शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है ! आपका प्यार , आपका समर्थन , आपका सहयोग ही है जो हमेशा कुछ नया , कुछ बेहतर करने को प्रेरित करता रहा है ! दैनिक जागरण में "पॉलीटिकल " पोस्ट लिखते लिखते और वहां "प्रथम पुरस्कार " प्राप्त करने के बाद जब "यात्रा वृतांत " शुरू किया तो आशा नही थी कि इस बड़े से यूनिवर्स में अपनी भी कोई जगह होगी , लेकिन लगभग तीन वर्षों के बाद कुछ संतोषजनक परिणाम प्राप्त होने लगे हैं !

यात्रा वृतांत जारी रहेंगे , लेकिन इसके साथ ही साथ अब से हिंदी , उर्दू साहित्य के कुछ लोगों की रचनाओं का अनुवाद यहां तक लाने का प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है , आपका सहयोग और समर्थन मिलता रहेगा !!

तो आइये आज ज़नाब  "अब्दुल वाहिद सिंधी " की एक उर्दू किताब " ताक धिना धिन ताके से " का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करना शुरू करता हूँ , साथ चलते रहिएगा !!

ताक धिना धिन ताके से 
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एक बुढ़िया थी
उस का नाम "मामा कुंवर " था
वो अकेली थी
उसका और कोई तो था नहीं
बस एक बकरी थी
वो उसे प्यार से रखती थी
और खूब खिलाती पिलाती थी
वो बहुत मोटी थी
वो बहुत दूध देती थी
मामा कुंवर सुबह , शाम उसका दूध निकालती
कुछ दूध सुबह को पीती
और कुछ दूध शाम को पीती
और बाकी जो बचता वो पडोसी बच्चों को पिलाती !!


मामा कुंवर की आदत थी
जब वो बच्चों को देखती तो उन्हें हंसाने के लिए ताली बजाकर चिल्लाती :

ताक धिना धिन ताके से 
मामा कुंवर मर गई फ़ाक़े से !!

छोटे बच्चे मामा कुंवर से प्यार करते
मामा कुंवर भी उन से प्यार करती
ख़ुद भी हंसती
और दूसरों को भी हंसाती
छोटे बच्चे मामा कुंवर को देख कर बोलते :

ताक धिना धिन ताके से
मामा कुंवर मर गई फ़ाक़े से !!



एक दिन मामा कुंवर ने एक लड़के से कहा -
बेटे ! बेटे !! सुनो मेरी बात
आज तुम मेरी बकरी चराने जाओ
मैं तुम्हें अपनी बकरी का मीठा दूध पिलाऊंगी
मैं तुम्हें पैसे भी दूँगी
तुम जानो बकरी ज़रा सी शरारती है
कभी कभी जंगल में भाग जाती है
कभी कभी पहाड़ पर भी चढ़ जाती है
उसे दूर न जाने देना
उसे पहाड़ पर न चढ़ने देना
ये बातें समझाकर मामा कुंवर ने ताली बजाई
और ज़ोर से चिल्लाई :

ताक धिना धिन ताके से
मामा कुंवर मर गई फ़ाक़े से !!



लड़के ने बकरी की रस्सी खोली
बकरी " म्हें म्हें " करती लड़के के पीछे हो ली
लड़का एक जंगल में पहुंचा ...................................


 
जारी रहेगी:
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تاک دنادن تاکے سے

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ایک بڑھیا تھی

اس کا نام ماما قمور تھا

وہ اکیلی تھی

اس کا اور کوئ تو تھا نہیں

بس ایک بکری تھی

وہ اسے پیار سے رکھتی تھی

اور خوب کھلاتی پلاتی تھی
وہ بہت موٹی تھی

وہ بہت دودھ دتی تھی

ماما قمور صبح ،شام اس کا دودہ نکلتی

کچھ دودہ صبح کو پیتی

اور کچھ دودہ شام کو پیتی

اور باقی جو بچتا وہ پڑوسی بچوں کو پلاتی

ماما قمور کی عادت تھی .

جب وہ بکچوں کو دیکھتی تو انہیں ہنسانے کے لیے تالی بجا کر چللاتی

تاک دنادن تاکے سے

ماما قمور مر گی فاقے سے


چھوٹے بچے ماما قمور سے پیار کرتے

ماما قمور بھی ان سے پیار کرتی

خود بھی ہستی

اور دوسروں کو بھی ہساتی

چھوٹے بچّھ ماما قمور کو دیکھ کر بولتے

تاک دنادن تاکے سے
ماما قمور مر گی فاقے سے


ایک دن ماما قمور نے ایک لڑکے سے کہا -

بیٹے ! بیٹے !! سنو میری بات .

آج تم میری بکری چرانے جاؤ .

میں تمھیں اپنی بکری کا میٹھا دودھ پلونگی .

میں تمھیں پیسے بھی دونگی .

تم جانو بکری زرا شرارتی ہے

کبھی کبھی جنگل میں بھاگ جاتی ہے

کبھی کبھی پھد پر بھی چڑھ جاتی ہے

اسے دور نہ جانے دینا اسے پھڈ پر نہ چڑھنے دینا .یہ باتیں سمجھا کر ماما قمور نے تالی بجائی

اور زور سے چللائی

تاک دنادن تاکے سے
ماما قمور مر گی فاقے سے



لڑکے نے بکری کی رسسی کھولی

بکری "میں میں " کرتی لڑکے کے پیچھے ہو لی .
لڑکا ایک جنگل میں پہنچا ......................................................


جاری رہیگا:
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मंगलवार, 15 नवंबर 2016

Ashiyana Park : Ranikhet

​​इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये  !

हम वो कलम नहीं हैं जो बिक जाती हों दरबारों में
हम शब्दों की दीप- शिखा हैं अंधियारे चौबारों में
हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं
डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाले हैं


आप ये सोच रहे होंगे आज मैं यात्रा वृतांत लिख रहा हूँ या " डॉ हरिओम पंवार " की रचनाओं को उठाकर चिपका रहा हूँ ! ऐसा कुछ नहीं है ! चौबटिया गार्डन देख लेने के बाद हमारा इरादा भालू डैम तक जाने का था ! भालू डैम का रास्ता चौबटिया के गेट से ही शुरू हो जाता है और घने जंगलों से होकर गुजरता है ! यहां से मतलब चौबटिया से भालू डैम करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर होगा लेकिन मुश्किल से आधा रास्ता तय किया होगा कि पाई ने अपने हथियार डाल दिए और बैठ गया , पापा - अब नही चल सकता ! हालाँकि बड़ा बेटा हर्षित आगे जाने को तैयार था लेकिन ऐसे बहुत मुश्किल हो जाता तो वापस लौटना पड़ा ! और वापस थोड़ी देर चौबटिया में इधर उधर घूमते रहे ! रानीखेत के चौबटिया गार्डन से निकलने के बाद अब हमारा उद्देश्य "कुमाऊं रेजिमेंट " का म्यूजियम देखने जाना था ! मैं आपको बता चुका हूँ कि मुझे और मेरे दोनों बेटों को भारतीय सेना और भारतीय सेना की वर्दी बहुत प्रभावित करती है और उसे पहनने का सपना मेरा तो पूरा नही हुआ लेकिन बच्चों के दिल में ये सपना अभी बना हुआ है , भगवान् ने चाहा तो उनका सपना जरूर पूरा होगा !

कुमाऊं रेजिमेंट का म्यूजियम तीन बजे से शाम 5 बजे तक खुलता है और इस वक्त तीन बजकर 20 मिनट हो रहे थे , और यहां से जीप मिलने में भी पता नही कितनी देर लग जाए , हम चौबटिया से निकल आये और रोड पर आकर जीप का इंतज़ार करने लगे ! कुछ ही देर में जीप आ गयी , वो असल में किसी की निजी गाडी थी जो रानीखेत जा रही थी , हम भी लटक लिए ! बस उससे एक अनुरोध किया कि भाई झूला देवी मंदिर पर थोड़ा सा रोक के चलना , बस दर्शन करके चले चलेंगे ! मंदिर बहुत खूबसूरत बना है लेकिन हमने बस बाहर से ही एक फोटो ली और माता जी के आगे सर झुकाकर नमन किया और चल दिए ! 

रास्ता इतना मनभावन है कि बस मन करता है यहीं घूमते रहो , लेकिन कुछ तो मजबूरियां रही होंगी , कोई यूँ ही बेवफा नही होता , वाला हाल ! जीप वाले ने हमें नर सिंह स्टेडियम के सामने उतार दिया और बस सामने ही "कुमायूं रेजिमेंट " म्यूजियम है ! एक नए से रंगरूट से हाथ मिलाया , मैंने भी और बच्चों ने भी , ये बहुत ख़ुशी वाला पल था विशेषकर मेरे छोटे बेटे "पाई " के लिए ! म्यूजियम में थोड़ा अलग हिसाब था , वो ग्रुप में एंट्री दे रहे थे तो थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा ! तीस रूपये का टिकेट है लेकिन सब कुछ , मतलब फ़ोन , कैमरा , बैग सब काउंटर पर ही जमा करना होता है ! आप अंदर फोटो खींच ही नही सकते ! 

अब भी रोज कहर के बादल फटते हैं झोपड़ियों पर
कोई संसद बहस नहीं करती भूखी अंतड़ियों पर
अब भी महलों के पहरे हैं पगडण्डी की साँसों पर
शोकसभाएं कहाँ हुई हैं मजदूरों की लाशों पर
जब तक बंद तिजोरी में मेहनतकश की आजादी है
तब तक हम हर सिंहासन को अपराधी बतलायेंगे
बाग़ी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे


इस म्यूजियम में कुमायूं रेजिमेंट के रणबांकुरों की वीरगाथा दिखाई गयी है , उन महान सैनिकों का इतिहास बताया गया है जो इस रेजिमेंट से निकलकर भारतीय सेना के सर्वोच्च पदों और सर्वोच्च पुरस्कारों को पाने के हकदार बने ! कुमायूं रेजिमेंट आज़ादी से पहले की रेजिमेंट है जो अंग्रेजों ने बनाई थी और इसीलिए कुमायूं रेजिमेंट का पराक्रम द्वितीय विश्व युद्ध में भी देखने को मिला ! ये तो आपको पता ही होगा कि कुमायूं रेजिमेंट का मुख्यालय रानीखेत में ही है ! एक घण्टा आराम से लग जाएगा अगर आप इस अच्छी तरह से देखेंगे तो , बाद में वहां के केयर टेकर कम गाइड ने फिर एक राउंड लगवाया और कुछ अनजान बातों को बताया ! बाहर आकर टैंक के फोटो लेने की अनुमति मिल गयी ! पूरा कैंट इलाका है तो फोटो लेने की बिल्कुल भी इजाजत नही है ! पास में ही मनकामेश्वर मंदिर और एक गुरुद्वारा है , लेकिन हम नही जा पाए ! पैदल पैदल चलते चलते अब हम आशियाना पार्क पहुँच रहे थे जो रानीखेत जैसे छोटे शहर में बच्चों के लिए मस्ती करने की एक शानदार जगह है ! ये जगह रानीखेत के निचले हिस्से में है , तो हमें यहां के बाद होटल जाने के लिए कुछ चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी !!


फोटो देखते जाइये , कल फिर मिलेंगे !















थोड़ा कसरत हो जाए
ये कौन सा फल है ?


whats app के मैसेज देख लूँ
चौबटिया वापस लौट आये













एप्पल नही सही , पेड़ तो है मस्ती करने को

पता नही क्या है ये ?

झूला देवी मंदिर , बस बाहर से फोटो लिया और शीश झुकाया

कुमायूं रेजिमेंट के बाहर
शाम हो रही है और त्रिशूल चोटी अपना रंग बदल रही है














मिलते हैं जल्दी ही :