बुधवार, 29 जनवरी 2020

Srikhand Yatra : Thachadu to Kunsa

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श्रीखण्ड महादेव यात्रा : थाचड़ू से कुन्सा तक
यात्रा दिनांक : 16 जुलाई 2019
कल हम थाचडू से थोड़ा नीचे ही रुक गए थे तो थाचडू की 'असलियत " नहीं जान पाए। सुबह करीब सात बजे भी बिस्तर में से निकलने का मन नहीं कर रहा था , भयंकर ठण्ड बार -बार कह रही थी -पड़ा रह रजाई में मुंह ढक के। अनिल बाबू तो जिओ के सिग्नल बगल में दबाये मोबाइल में खटर -पटर किये जा रहे थे और मैं भूखा सा तड़प रहा था। उस वक्त वोडाफोन से बेकार चीज इस दुनियां -जहान में शायद मुझे कोई नजर नहीं आ रही थी। आखिर जिओ के नेटवर्क की थोड़ी सी भीख मांगी और टाइम पास किया। ये हकीकत बात है कि साथ में एग्जाम देने वाला जब पास हो जाता है और हम फेल , तो ऐसा लगता है स्साला..... ये भी फेल हो जाता तो इज्जत बची रहती ! डाटा का भी लफड़ा ऐसा ही है , अगर किसी का नहीं चल रहा तो कोई दिक्कत नहीं और अगर ग्रुप में किसी एक का डाटा चल रहा है तो उसके नेटवर्क से प्यार और अपने नेटवर्क से नफरत सी होने लगती है। उसे ऐसे देखते हैं जैसे वो मंगल गृह का प्राणी कोई विचित्र डिवाइस लेकर घूम रहा है और हम उसके पीछे -पीछे दुम हिलाते हुए , जीभ लपलपाते हुए घूम रहे हों - ए बाबा ! थोड़ा सा हॉटस्पॉट दे दे रे बाबा ! भगवान के नाम पे थोड़ी देर के लिए अपना हॉटस्पॉट ऑन कर दे रे बाबा !! तू आज हॉटस्पॉट देगा तो भगवान गाजियाबाद पहुँचते ही तेरे नंबर पर विशेष ऑफर देगा रे बाबा।


थाचडू लगातार चढ़ाई के कारण विख्यात (कुख्यात ) है। एक -एक पाँव गिन गिन के बढ़ाना पड़ता है और अगर वजन इधर उधर हुआ तो मामला खतरनाक हो सकता है। थाचडू पर सैकड़ों टैण्ट लगे हुए दिखेंगे आपको और यहाँ तक के रास्ते में भी आपको खाने और रहने की कोई परेशानी नहीं। थाचडू पहुँचते -पहुँचते करीब बारह बज चुके थे। यहाँ दाल -चावल और चाय का भण्डारा लगा है। पानी इतना ठंडा है कि हाथ लगाने की हिम्मत नहीं लेकिन अपनी प्लेट धोकर रखनी पड़ेगी। अब इतना तो करना पड़ेगा। काली घाटी यहाँ से करीब चार किलोमीटर आगे है और आगे भी भयंकर चढ़ाई है , लगातार चढ़ते जाना है। बराटी नाला से लेकर काली घाटी तक का जो रास्ता है करीब 8 -9 किलोमीटर का , इसे डण्डा चढ़ाई कहा जाता है। आदमी की सांस तो सांस , पसलियां तक पानी मांगने लगती हैं लेकिन कुछ लोग न जाने किस मिटटी के बने होते हैं जो इस यात्रा को 10 -10 बार कर चुके हैं और अब ग्यारहवीं बार करने आये हैं। दुनियां की सबसे कठिन यात्राओं में शामिल श्रीखंड की यात्रा 11 वीं बार , दम है ! जोश है ! श्रृद्धा है या जूनून है ? लेकिन इन सबके बीच कुछ और भी है इस यात्रा में। गांजा है , सिगरेट हैं और शायद हर तरह का नशा है और ये नशा करने का एक बहाना भी है -भोले का प्रसाद है ! बाबा ! बस बम बम भोले कहते जाओ और गांजा खींचते जाओ। गलत परंपरा बनाई हुई है। हालाँकि किसी को इससे दिक्कत नहीं लेकिन गलत को गलत कहने में बुराई नहीं होनी चाहिए।

थाचडू से निकलते -निकलते टैण्ट दिखने बंद हो गए हैं और एक आसान पगडण्डी जैसा रास्ता बना है। धीरे -धीरे चलते हुए हाइट बढ़ती जाती है लेकिन इस एक किलोमीटर में ज्यादा महसूस नहीं होता। सिंघगाड़ , जहाँ से ये ट्रेक शुरू होता है वो सिंघगाड़ समुद्र तल से 2014 मीटर की ऊंचाई पर जबकि थाचडू करीब 3450 की ऊंचाई पर। ये 1400 मीटर की ऊंचाई थाचडू से पहले तीन किलोमीटर में ज्यादा बढ़ती है। और थाचडू से काली घाटी की दूरी भले चार किलोमीटर हो लेकिन हाइट , 3450 मीटर से बढ़कर 3900 मीटर पहुँच जाती है। लगभग हर किलोमीटर में 100 मीटर चढ़ाई चढ़नी होती है और सिर्फ चढ़ाई ही नहीं , उतराई भी है। और एक बार ऊंचाई से नीचे जाओ , फिर उसी ऊंचाई पर चढ़ो तो कैसा महसूस होता होगा शरीर को और मन को ? बात सिर्फ हाइट की होती तो कोई दिक्कत नहीं होती , हांफ -हांफ कर आदमी चलता जाता है और लालच भी रहता है कि लौटते हुए तो उतराई मिलेगी लेकिन जब लगातार चढ़ाई -उतराई , चढ़ाई -उतराई मिलती है तब ज्यादा हालत ख़राब होती है। काली घाटी करीब 3900 मीटर पर है। मैं इससे पहले इससे कहीं ज्यादा हाइट पर जा भी चुका हूँ कई बार और रात भी गुजार चुका हूँ इसलिए हाइट यहाँ ज्यादा दुखी नहीं कर रही थी , दुखी कर रही थी हर 100 -200 मीटर के बाद की उतराई। रही सही कसर बारिश ने पूरी कर दी। काली घाटी पहुँचने से करीब आधा किलोमीटर पहले इतनी तेज और भारी बारिश ने घेर लिए कि कदम को अपना हमसफ़र अगला कदम देखने के लाले पड़ गए। ऐसे में सारे रेन सूट और सारे पोंचो रद्दी लगने लगते हैं। भला हो उनका जिन्होंने यहां टैण्ट लगाया हुआ है। जगह तो मिल गयी लेकिन चारों तरफ हुए एकदम अँधेरे ने थोड़ा डराया भी। खाली बैठी बहु नॉन में हाथ - चाय पी लेते हैं और यहाँ चाय 25 रूपये की हो चली है। एक प्लेट दाल -चावल सौ रूपये के हैं और 10 रूपये वाला पार्ले G का बिस्कुट का पैकेट , 30 रूपये का हो गया है।

काली घाटी , बहुत ही मनमोहक और सुन्दर जगह। हल्की हल्की बारिश में भी मन हो रहा था कि खुले में कुछ देर बैठकर यहीं धूनी रमाई जाए लेकिन सब अपने हिसाब से नहीं होता है न ! इस जगह को काली टॉप भी कहते हैं और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो भीमद्वारी तक के रास्ते में ये सबसे ऊँचा स्थान है इसीलिए शायद इसे टॉप नाम दिया गया है। अब यहां से कुछ दूर फिर से टैण्ट दिखने लगे हैं। काली टॉप में एक मंदिर है बिना छत के और पास में ही तीन- चार टैण्ट भी हैं। यकीन मानिये जब आप यहाँ पहुँचते हैं और चारों तरफ देखते हैं तब आप मन ही मन इतना खुश हो जाते हैं -ऐसी किस्मत तो नहीं थी मेरी कि मैं इतना खूबसूरत नजारा इस जन्म में ही देख पाऊंगा। सुन्दर , हरियाली और बर्फ से भरी पहाड़ियां। ईश्वरीय आनंद। इससे सुन्दर स्वर्ग नहीं होता होगा !

काली घाटी से निकलते हैं तो एकदम से उतराई मिलती है और फिर चढ़ाई। जब चढ़ाई पर पहुँचते हैं तो दो रास्ते नजर आते हैं एक सीधा और एक दाएं हाथ की तरफ कुछ कठिन। दाएं हाथ वाला रास्ता कुछ छोटा भी है लेकिन उस पर नीचे उतरते हुए ढलान ज्यादा दिख रहा था , रिस्क नहीं लेना इतना। सामने वाले रास्ते से ही चलेंगे। इस रास्ते से उतरे तो एक और भंडारा मिल गया। चाय पीकर चलेंगे। झरना , छोटी छोटी water streams और जगह -जगह बर्फ ! कुदरत की इस मनमोहक तस्वीर को आँखों में बसाते हुए तो चल ही रहे हैं , गोल आँखों में हमेशा के लिए कैद करना भी मत भूलिए। ये गोल और लम्बी आँखें ही आपको याद दिलाएंगी कि आपने दुनियां की सबसे कठिन यात्रा को करने की कोशिश की थी। ये गोल आँखें ही आपकी यादों को सुरक्षित रखेंगी और आपको समय -समय पर गुदगुदाएंगी। ये गोल आँखें , कैमरे की आँखें बोलती नहीं , इशारा भी नहीं करतीं लेकिन हमारी भावनाओं को कैद कर लेती हैं। मैंने भी अपनी गोल , लंबी आँखें हाथ में लेकर कुछ जगहों को कैद करने की कोशिश की थी। एक छोटे से ग्लेशियर की फोटो खींच रहा था , यात्रा को पूर्ण रहे भाईसाब बोल पड़े - अरे ! अभी क्या है ? अभी तो बड़े ग्लेशियर दिखाई देंगे भीमद्वारी से आगे ! बैटरी बचा के चलो कैमरे की ! सही कह रहे थे शायद वो - मैदान में बेटी बचाओ -बेटी पढ़ाओ और ट्रैकिंग में -बैटरी बचाओ -बैटरी बढ़ाओ !! हाहाहा

कुन्सा पहुँच गए हैं। अभी यहां से भीमद्वारी करीब 2 -3 किलोमीटर और आगे है लेकिन लौटते हुए लोगों की तरफ से अच्छी खबरें नहीं आ रही हैं। शाम के साढ़े तीन -चार बजे होंगे अभी और हम आराम से भीमद्वारी पहुँच सकते हैं लेकिन लौटते हुए लोगों के चेहरे बुझे हुए से और उदास से हैं। आगे नहीं जाने दिया गया उन्हें ! क्या हुआ ? क्या हुआ ? कल श्रीखंड टॉप पर बर्फीला तूफ़ान आ गया और कई लोगों की मौत हो गयी ! यात्रा रोक दी है प्रशासन ने। ओह ! अब हमारे लिए हर लौटता हुआ व्यक्ति "आजतक का रिपोर्टर " बना हुआ था। हम जैसे सैकड़ों लोग जो कुन्सा के प्रवेश पर ही थे , उसे घेर कर खड़े हो जाते और वहां की खबर लेते। ऐसा इंटरव्यू में होता है ! जब कोई कैंडिडेट इंटरव्यू देकर बाहर निकलता है तो उससे हजार सवाल पूछने होते हैं उन्हें जो इंटरव्यू के लिए बैठे इंतज़ार कर रहे होते हैं। क्या -क्या पूछ रहे हैं वो ? हुआ ? आपका हुआ ? टेक्निकल कैसा पूछ रहे हैं ? बोर्ड में कितने लोग हैं ? सैलरी का क्या है ? पैकेज का कुछ बता रहे हैं ? अलाना -फलाना। वो बेचारा वैसे ही परेशान होकर इंटरव्यू से निकलता है और बाहर आकर लोग उसकी ऐसी तैसी करने को तैयार बैठे होते हैं ऐसे ही यहाँ था -कुन्सा में ! कितने लोगों की मौत हुई है ? क्या हुआ था ? कहाँ के थे ? कोई घायल भी हुआ है ? अब पका -पकाया आदमी , जो बिलकुल श्रीखण्ड के पास से बिना दर्शन किये लौटा हो वो ? उनमें से कोई कहता -चार मौत हुई हैं , कोई दो तो कोई तेरह ! कोई कोई तो ये भी कि पूरा जत्था गायब है ! रात लोगों ने खुले आसमान में बर्फ में ही गुजारी ! जो भी था लेकिन भयावह था और दुःख देने वाला था। कुन्सा पहुँच ही चुके थे , लाइन से रास्ते के दोनों तरफ टैण्ट लगे थे। हम इस उम्मीद में आगे बढ़ते रहे कि शायद आगे पहुँच सकें , भीमद्वारी तक पहुँच जाएँ लेकिन जब आखरी टैण्ट पार करके आगे बढे तो पुलिस वालों ने आगे बढ़ने से रोक दिया। यात्रा बंद है ! कितने दिन ? नहीं मालुम ! कब खुलेगी ? नहीं मालूम !

कोई रास्ता नहीं था न आगे बढ़ने का न सोचने का। वहीँ अपना लाव लश्कर पटक दिया एक टैण्ट में और चाय लेकर बाहर बैठ गए हर उदास और खिन्न चेहरे को लौटते हुए देखते रहे। कहानियां मिलती रहीं लेकिन आखिर पुलिस और रेस्क्यू टीम के कुछ लोग दो डेड बॉडी और तीन घायलों को लेकर उधर से आये तो दुःख के साथ सही खबर भी आई। दो लोगों की मौत हुई है और छह घायल हुए हैं जिनमें से तीन गंभीर रूप से घायल हैं। खबर टीवी चैनलों तक आ पहुंची थी और ऐसे में स्वाभाविक है मेरे घर वाले / घरवाली परेशान होते , अनिल बाबू का जिओ नंबर काम आ गया और कुशलता का समाचार पहुंचा दिया। अपनी जान से हाथ धोने वालों में एक 70 वर्षीय महारष्ट्रीयन थे और एक उनके ही साथ थे। बाकी मैं नहीं जानता। उनकी इस उम्र में भी इस यात्रा पर आने की हिम्मत को प्रणाम !! जिंदगी .....जी भर के जी उन्होंने !!

हमारे पास इंतज़ार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। चाय पियो , किताब पढ़ो और कम्बल में पड़े रहो। बस इतना ही काम था हमें ! अब अगले दिन हमें बस अपने मित्र नरेश जी सहगल का इंतज़ार था जो हमसे आगे इस यात्रा पर निकले थे। वो करीब 11 बजे आये और उन्होंने आते ही कहा -नहीं ! योगी भाई ! आज भी यात्रा खुलने का कोई चांस नहीं और शायद कल भी न खुल सके। ये निराश करने वाला था हमें लेकिन -होई है वही जो राम रचि राखा !!

हम भी लौट चले एक दुःख , निराशा और थके कदमों से। पैर अब भी मना कर रहे थे वापस लौटने से लेकिन मन ने कहा -लौट ही चलते हैं ! लौटते हुए उस दिन फिर से थाचडू से नीचे तक उतर आये। वहीँ रुके जहां दो दिन पहले रुके थे और हमारे जैसे सैकड़ों थे जो वापस लौट रहे थे , इस विश्वास के साथ कि फिर कभी जरूर हमें श्रीखण्ड महादेव की यात्रा करने का अवसर मिलेगा और हम यात्रा को बिना किसी विघ्न और बाधा के संपन्न कर सकेंगे। जय श्रीखंड महादेव।




 भण्डारा @ थाचडू





चल चला चल...... मुसाफिर चल चला चल

काली घाटी मंदिर .....बिना छत का ही है


ये सुन्दर घाटियां ही तो मुझे खींच ले आती हैं




















लौट आये..... थाचडू पर हैं फिर से
बाबा डिजिटल होने के चक्कर में हैं



आ .....अब लौट चलें


आ.... अब लौट चलें

फिर मिलेंगे : दसवेदानियां

शनिवार, 25 जनवरी 2020

Gujari Mahal : Gwalior

गूजरी महल : ग्वालियर
Date of Journey : 03 Dec.2019 

मौसम भी दिलखुश हो , Leave Account में छह CL बची हों और जेब थोड़ा सा भारी हो😋  तो किसी भी यात्रा पर निकलने में बुराई नहीं है। ऐसे में बस आपको घरवाली को समझाना होता है और अगर सही तरह से समझाया जाए तो समझ भी जाती हैं। ये यात्रा कुछ अलग थी। अलग दूसरे अर्थों में - जहाँ तक संभव होगा पैसेंजर ट्रेन से यात्रा करूँगा , ऐसी जगहें देखूंगा जो बहुत ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हैं लेकिन खूबसूरत हैं , भारत की महान संस्कृति और विरासत को परिलक्षित करती हैं। ऐसी जगहें जो भले पर्यटन मानचित्र पर न हों लेकिन इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हैं। 


दो दिसंबर की रात ठण्ड से कपकंपा रही थी मुझे लेकिन ये वो रात थी जिसने मुझे फिर से कई सालों बाद भारत का सही चित्र दोबारा दिखाया था। दिल्ली के हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन से दक्षिण एक्सप्रेस पकड़कर मैं करीब ढाई -तीन बजे आगरा कैंट स्टेशन पहुँच गया था। आज की पैसेंजर यात्रा आगरा से ही शुरू करनी थी क्यूंकि दिल्ली से आगरा तक की पैसेंजर ट्रेन की यात्रा पिछले वर्ष कर चुका हूँ और अब आगे बढ़ने की तैयारी थी। आज की मंजिल ग्वालियर पहुँचने तक थी जिसके लिए आगरा -झांसी पैसेंजर ट्रेन का इंतज़ार करना था। अभी करीब तीन घंटे इंतज़ार करना था क्योंकि झांसी पैसेंजर ट्रेन का समय सुबह 6 बजे का है आगरा से खुलने का। कॉफ़ी ने थोड़ा गर्मी का एहसास कराया तो स्टेशन से बाहर निकल आया। स्टेशन के आसपास माहौल हमेशा ही जाग्रत (Live ) रहता है , चाहे रात के दस बजे हों या सुबह के दो बजे हों। हर जगह पैक , हर बेंच फुल। टिकट विण्डो के आसपास का पूरा स्पेस फुल था। सब सोये थे -कुछ अपनी ट्रेन के इंतज़ार में , कुछ का यही ठिकाना होता है रात का। पता नहीं ये तस्वीर कब बदलेगी ? बदलेगी भी या नहीं !! 

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समय के साथ ट्रेन भी सरकती रही और धौलपुर , मुरैना होते हुए नौ बजते बजते मैं ग्वालियर के अपने पहले गंतव्य की धरती पर उतर चुका था। पिछले कुछ वर्षों में रेलवे में बहुत कुछ बदला है और इसी का एक हिस्सा है स्टेशन के बाहर "Deluxe Toilets" का होना। एकदम साफ़ -सुथरे और कई सुविधाओं से आपके जीवन और आपकी पॉकेट को आराम देते हैं ये टॉयलेट्स। नहाना है , फ्रेश होना है ? बैग रखना है ? सबकुछ इनके यहाँ मौजूद है - बस थोड़ा ज्यादा खर्च करना पड़ेगा आपको। कितना ज्यादा ? कुछ साल पहले आप बदबूदार टॉयलेट्स का उपयोग करने के लिए आप पांच रुपया खर्च करते थे लेकिन अब एकदम साफ़ सुथरे टॉयलेट्स को उपयोग करने के लिए 10 रुपया खर्च करते हैं ! क्या बुरा है जी ? तो जी हम भी नहाधोकर , बाबूजी बन गए और कैमरा और पावर बैंक लेकर ग्वालियर घूमने निकल चले। सुना है ग्वालियर की कचौड़ी बहुत स्वादिष्ट होती हैं ! तो कचौड़ी with चाय उदरस्थ कर ली जाए फिर अपने मित्र ग्वालियर निवासी विकास नारायण श्रीवास्तव और शरद कुमार जैन जी को सूचित किया जाएगा। आप भी कभी जब ग्वालियर जाने का मन बनाएं तो वहां कचौड़ी और पोहे का स्वाद लेना मत भूलना हालाँकि मुझे अब भी लगता है कि मेरे होम टाउन अलीगढ जैसी कचौड़ी शायद ही कहीं मिलती हो ! जबरदस्त होती है अलीगढ की कचौड़ी और पोहा ! जो पोहा मेरी बड़ी बहन के हाथ का या इंदौर में !! 


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 पैदल -पैदल रानी लक्ष्मी बाई की समाधि की तरफ बढ़ चला। यहां बैठना ग्वालियर के स्थानीय लोगों का प्रिय टाइम पास फार्मूला है और लव बर्ड्स के लिए एकांत मिलने का उचित और मुफ्त ठिकाना। यहीं पास में ही गोपाचल पर्वत का बोर्ड लगा है लेकिन अंदर एक बगीचा सा ही दिखा। चौकीदार ने बताया कि आगे जाकर बगीचा है और एक जैन मंदिर है। असली गोपाचल पर्वत ग्वालियर किले के पास है। इस किले को मान मंदिर भी कहते हैं। चलेंगे वहां भी !! लो जी घूमते - घामते फूल मैदान पहुँच गए। फूल मैदान का नाम बहुत सुना करता था क्योंकि ग्वालियर की ज्यादातर रैलियां पहले इसी मैदान में हुआ करती थीं। फूल मैदान में फूल के नाम पर बस कुछ गेंदा , कुछ गुलाब के ही फूल दिखे। इतनी फूल तो हमारे आसपास के पार्कों में दिख जाते हैं , शायद इससे भी ज्यादा !! यहां से गूजरी महल के लिए ऑटो पकड़ते हैं और चलते हैं। 



Rani Lakshmi Bai Samadhi

Narrow Gauge track . Yes ! Narrow Gauge track still exist in Gwalior

गूजरी महल , राजा मान सिंह ने 15 वीं शताब्दी में अपनी प्रिय पत्नी मृगनयनी के लिए बनवाया था जो आज एक म्यूजियम के रूप में ज्यादा प्रचलित है। शायद 25 रूपये का टिकट लगा था यहां अंदर जाने के लिए। अंदर गया तो वहां फोटो लेने लगा। फोटो लेते हुए देखकर पहले एक महिला कर्मचारी आई और फिर एक पुरुष कर्मचारी - टिकट है आपके पास ? हाँ -है न ! ये देखो !! अरे ये नहीं कैमरे का टिकट ? कैमरे का अलग से टिकट थोड़े ही लगता है यहाँ ? नहीं ! लगता है !! आप बिना टिकट के फोटो नहीं ले सकते !! मैं भड़क गया !! ऐसा है भाई ये लो अपना टिकट और मुझे मेरे पैसे वापस करो ! मुझे नहीं देखना यहां कुछ भी ! इतने में तीन चार पुलिस वाले भी पहुँच गए ! मामला रफा -दफा हुआ और खूब सारे फोटो खींचे बिना कोई अलग से टिकट लिए हुए। आप भी कैमरे का टिकट मत लेना क्योंकि कैमरे का अलग से कोई टिकट नहीं है ! ये लोग शायद अपना जुगाड़ बनाते हैं ऐसे डर दिखा के ! 25 या 30 रूपये का टिकट है और उसी में सब शामिल है !! आज बस इतना ही......




















This is our art work on the tiles !! So why appraise only the art work of Tajmahal ?







शरद कुमार जैन जी भी पहुँच गए थे जब तक गूजरी महल देखा।  सर आपकी गज़क बहुत स्वादिष्ट थी !! धन्यवाद आपका