शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

प्रेमिकाएं और डाक टिकट

अपनी पुरानी  डायरी में से आपके लिए कुछ हाज़िर कर रहा हूँ ! आशा है आपको पसंद आएगा !

ये प्रेमिकाएं बड़ी विकट  होती हैं
बिल्कुल  डाक टिकट होती हैं
क्योंकि जब ये सन्निकट होती हैं
तो आदमी की नीयत में थोडा सा इजाफा हो जाता है !
मगर जब ये चिपक जाती हैं तो
आदमी बिलकुल लिफाफा हो जाता है !!

सम्बन्धों के पानी से
या भावनाओं की गोंद से चिपकी हुई
जब ये साथ चल पड़ती हैं तो
अपने आप में हिस्ट्री बन जाती हैं !
जिंदगी के डाक खाने में उस लिफ़ाफ़े की
रजिस्ट्री बन जाती हैं  !!

यूँ इनके साथ होने पर
लिफ़ाफ़े का अपना एक रंग होता है !
मगर जब ये नहीं होती हैं तो
लिफाफा बेरंग होता है !!

मेरी आप लोगों से विनती है , अरदास है , रिक्वेस्ट है
कि आप अपनी जिंदगी के लिफ़ाफ़े पर
किसी भी मूल्य का , किसी भी साइज़ या आकार का
डाक टिकट चिपकाइए ! मगर
ज़रा सलीके से लगाइये !!

कहीं ऐसा न हो इससे कहीं कोई
दुर्घटना घट  जाए !
और कोई आपके लिफ़ाफ़े का डाक टिकट छुडाने लगे तो
कहीं लिफाफा ही न फट जाए  !!

बुधवार, 10 दिसंबर 2014

बोलो श्री बांके बिहारी लाल की जय

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सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||


भगवान श्री कृष्णा को समर्पित न जाने कितने मंदिर अलग अलग नामों से वृन्दावन में स्थित हैं ! अनगिनत उतने ही जितनी भगवन की लीलाएं ! उनमें से ही कुछ मंदिरों के दर्शन करते हैं , आइये ! फोटो देखए हैं :


​वृन्दावन में प्रेम मंदिर के पास स्थित एक और मंदिर में लगी भगवान श्री गणेश की मूर्ति

​वृन्दावन में प्रेम मंदिर के पास स्थित एक और मंदिर में लगी भगवान श्री बजरंगबली  की मूर्ति ​



​कालीदह मंदिर

​कालीदह मंदिर

​कालीदह मंदिर ​में बरगद का बहुत पुराना  वृक्ष

​कालीदह मंदिर ​में बरगद का बहुत पुराना  वृक्ष
​वृन्दावन की पुरानी गालियां ऐसी ही वीरान और जीर्ण शीर्ण हैं
​वृन्दावन की पुरानी गालियां ऐसी ही वीरान और जीर्ण शीर्ण हैं
​मदन मोहन मंदिर 



 



बुधवार, 3 दिसंबर 2014

ऐसी दीवानगी देखी है कहीं ?


इस दुनिया में किसी ने कहा है कि दो तरह के लोग होते हैं, एक वो जो जिंदगी भर एक ही काम करते रहते हैं और दूसरे वो जो एक ही जिंदगी में बहुत सारे काम कर जाते हैं ! के . सुधाकर इनमें से दूसरे तरह के लोगों में शामिल हो सकते हैं जिन्होंने अपने जुनून और लगन से एक ऐसा संसार तैयार कर दिया जिसे देखकर दुनिया वाह वाह कर उठती है ! जी हाँ , संसार ! लोगों का नहीं ! कारों का संसार ! लोगों का संसार तो वैसे ही ओवरलोड हो चुका है , इसे और ओवर लोड करने में हम हर रोज़ लगे पड़े हैं ! भारत के हैदराबाद में सुधा कार्स  (Sudha cars ) के नाम से स्थित कारों का ये संसार बरबस ही मन मोह लेता है और मन में कोतुहल पैदा करता है कि क्या ये सब इंसान कर सकता है ? लेकिन ये सब एक इंसान ने ही कर दिखाया है ! इंसान क्या नहीं कर सकता ? बस फुर्सत तो मिले ! सुधा कार्स विश्व का इस तरह का पहला और एकमात्र म्यूजियम है !

इसे स्थापित करने वाले सुधाकर को नए नए डिजाईन के कार बनाने का शौक लगभग बचपन से ही हो गया था ! लगभग 14 वर्ष की उम्र में सुधाकर ने एक बाइसिकल डिजाईन करी और उसके अगले साल ही इजी राइडर बाइक डिजाईन करी ! सुधाकर ने लगभग 150 विभिन्न प्रकार की कार डिजाईन करी हैं जैसे “गो कार्ट्स ” , Dune Buggies’, ‘Wacky Cars, like Brinjal Car, Camera Car, Cricket Ball Car, Shivling Car, Cup & Saucer Car, Helmet Car, Computer Car, Double Bed Car, Football Car. उनकी डिजाईन की हुई गाड़ियाँ आपको हैदराबाद की सडकों पर भी पर्यटकों को घुमाती हुयी दिख जाएँगी !

सुधाकर के इस शौक ने उन्हें उन्हें ट्राई साइकिल बनाने के लिए भी प्रेरित किया और उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी ट्राई साइकिल बनाई जिसके लिए उन्हें गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में जगह दी गयी !

अपने काम के प्रति गर्व और सम्मान का अनुभव करने वाले सुधाकर ने बाइक की भी बहुत डिजाईन प्रस्तुत किये हैं और ये कोई प्रोटो टाइप नहीं हैं बल्कि और वाहनों के जैसे बाकायदा सड़क पर चले हैं ! उन्होंने मात्र 13 इंच ऊंची एक मोटर बाइक डिजाईन की है जो करीब 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ती है ! है न अजूबा ? ओह ! ये अजूबा और अजूबों का निर्माण करने वाला सुधाकर अपनी एक साइकिल के लिए भी जाना जाता है जो केवल 6 इंच ऊंची है और भारत की सबसे छोटी साइकिल है ! सुधाकर ने करीब 30 मोटर बाइक डिजाईन किये हैं और उन्हें अलग अलग नाम दिए हैं ! सामाजिक कार्यों में गहरी रूचि रखने वाले सुधाकर ने AIDS के प्रति जागरूकता बढाने के लिए कंडोम बाइक डिजाईन की है और वो आगे मिनी कंडोम बाइक रेसिंग प्रतियोगिता करने के इच्छुक नज़र आते हैं !

सुधाकर ने 2003 में भारतीय क्रिकेट टीम को शुभकामनाएं देने के लिए क्रिकेट बॉल के आकर की एक कार डिजाईन करी थी जिसके टेप पर क्रिकेट विश्व कप के विषय में लिखा गया था ! इसी तरह 2006 के फूटबाल विश्व कप के लिए सुधाकर ने फूटबाल की बाल के आकार की कार डिजाईन करी थी !
विश्व की जिस सबसे बड़ी ट्राई को साइकिल बनाने के लिए सुधाकर को गिनीज़ बुक में जगह दी गयी है वो 41 फुट और 7 इंच ऊँची है ! इस लगभग 3 टन वज़न की ट्राई साइकिल के पहियों का व्यास 17 फुट का है और इसकी लम्बाई 37 फुट 4 इंच के करीब है ! इस ट्राई साइकिल को बनाने में सुधाकर को करीब 3 साल का समय लगा !

अपने भविष्य के काम के विषय में बात करने पर सुधाकर बताते हैं कि उनकी योजना FOUNTAIN PEN BIKE”, “BASKET BALL CAR”, “TENNIS BALL CAR”, “ LADIES HAND BAG CAR”, “STILLETTO CAR”, “LIPSTICK BIKE”, “PRESSURE COOKER CAR”, “SOFA CAR”, “ BOOK CAR”, “MOBILE PHONE CAR” बनाने पर ध्यान केन्द्रित करने की है !
तो कैसा लगा आपको कारों का ये अजीब कारवाँ ? बताइयेगा जरूर ! और हाँ ! अब ये कहना भी बंद कर दीजिये कि जो अच्छा करते हैं वो सिर्फ अंग्रेज़ ही करते हैं ! हौसला रखिये तो अपने यहाँ भी प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं !


जय हिन्द !


सिगरेट बाइक
स्वयं डिज़ाइन की हुई बाइसिकल
ब्रिंजल ( बैंगन ) कार
बॉल कार
शू बाइक
टेनिस बॉल कार
क्रिकेट बैट कार
दुनिया की सबसे बड़ी ट्राई साइकिल और प्रशस्ति पत्र
हेलमेट कार


 जल्दी ही मिलते हैं फिर से : सभी मान्यवरों को राम राम

बुधवार, 26 नवंबर 2014

भारत में ममी

जब भी ममी की बात चलती है हमारा दिमाग स्वतः ही मिश्र यानि इजिप्ट की तरफ घूम जाता है ! लेकिन भारत में भी ममी मिलती हैं और खूबसूरत और अचम्भे वाली बात ये है कि इन ममियों को किसी ने भी तैयार नहीं किया है जैसा कि मिश्र में होता रहा है !

ममी की अगर परिभाषा दी जाए तो कहा जा सकता है कि ममी किसी मृत व्यक्ति या जानवर के शरीर को सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रखने की एक कला है ! कृत्रिम रूप से ममी , किसी विशेष केमिकल से बनाई जाती हैं जबकि प्राकृतिक ममी बहुत ज्यादा सर्द या बहुत कम आद्रता के कारण भी बन जाती हैं ! कृत्रिम रूप से बनाई गयी सबसे पहली ममी चिली देश की कैमरोंस घाटी की चिंचोरो ममियों में एक बच्चे की ममी है जो लगभग 5050 BCE की है जबकि प्राकृतिक रूप से सबसे पुरानी ममी एक मानव सिर की है जो लगभग 6000 वर्ष पुरानी है ! ये ममी 1936 में साउथ अमेरिका में प्राप्त हुई ! जानवरों की ममियां बनाने का भी रिवाज़ पुराने समय में रहा है ! लगभग 10 लाख से भी ज्यादा जानवरों की ममियां मिश्र में मिली हैं जिनमें से अधिकांश बिल्लियों की हैं ! इससे ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मिश्र में घर घर में ममी बनाने की कला का ज्ञान था !
तुतेनख़ामेन की ममी अब तक की सबसे प्रसिद्द ममी कही जाती है और सबसे बेहतर भी ! अंग्रेजी का ममी शब्द मध्यकालीन लैटिन शब्द मूमिया से लिया गया है फिर ये परिष्कृत होकर फ़ारसी शब्द मोम में जा मिला और अंत में ममी हो गया ! ममी का पहला वैज्ञानिक परीक्षण 1901 में हुआ और पहला एक्सरे सं 1903 में किया गया ! तब से इस दिशा में बहुत प्रगति हुई है और अब ये भी बताया जा सकता है कि ममी की मरते समय उम्र कितनी थी और उसकी मौत कैसे हुई होगी !

यूँ ममी पूरी दुनिया में हर महाद्वीप में मिलती हैं लेकिन सबसे ज्यादा प्रसिद्द मिश्र की हैं लेकिन हमें बात करनी है भारत में पाई गयी ममियों के विषय में ! भारत के खूबसूरत राज्य हिमाचल प्रदेश के ग्यु गाँव में लगभग 550 वर्ष पुरानी प्राकृतिक ममी है जो 45 वर्षीय सांगा तेनज़िन नाम के एक तिब्बती बौद्ध भिक्षु की बताई जाती है ! ग्यु गाँव हिमाचल के लाहौल स्पीति में लगभग 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है जो शिमला से लगभग 350 किलोमीटर की दूरी पर भारत -तिब्बत सीमा पर स्थित है ! ऐसा कहा जाता है कि 1975 में आये भूकम्प से इस गाँव के आठों स्तूप तहस नहस हो गए और उनमें से एक स्तूप से ये ममी निकल आई ! इस ममी पर कोई भी केमिकल नहीं लगाया गया है यानी ये प्राकृतिक रूप से सुरक्षित ममी है जो शायद ज्यादा ठण्ड की वज़ह से सुरक्षित रह पाई ! ये ममी ध्यान की मुद्रा में है ! आश्चर्य की बात ये भी है कि इस ममी के सर पर बाल भी हैं !

इसके अलावा एक ममी गोवा में भी मिलती है ! ये ममी संत फ्राँसिस ज़ेवियर की है ! फ्रांसिस ज़ेवियर एक मिशनरी थे ! चीन जाते समय 2 दिसम्बर 1552 को इनकी मृत्यु हो गयी ! पहले इनके मृत शरीर को पुर्तगाल ले जाया गया और फिर दो साल बाद फिर से गोवा भेजा गया ! कुछ लोग मानते हैं कि ये ममी वास्तव में श्रीलंका के एक बौद्ध भिक्षु की है लेकिन उनके इस दावे को लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं ! संत फ्रांसिस ज़ेवियर की ममी को भी प्राकृतिक बताया जाता है , ये ममी गोवा के बैसिलिका ऑफ़ बोम जीसस नाम के चर्च में रखी हुई है ! ये चर्च गोवा और भारत के सबसे पुराने चर्चों में माना जाता है ! संत फ्रांसिस ज़ेवियर की ममी को हर दस वर्ष बाद आम लोगों के देखने के लिए प्रदर्शित किया जाता है , पिछली बार इसे सन 2004 में खोला गया था और इस बार ये नवम्बर 2014 में आम लोगों के दर्शनार्थ रखी गयी है जिसको देखने बहुत से ईसाई और अन्य लोग आते हैं !


आइये इण्टरनेट से संकलित किये गए फोटो देखते हैं :


हिमाचल के ग्यु गाँव में मिली ममी

संत ज़ेवियर की ममी का बॉक्स
मिश्र में प्राप्त एक सुरक्षित ममी





​गोवा का बैसिलिका ऑफ़ बोम जीसस चर्च


​गोवा का बैसिलिका ऑफ़ बोम जीसस चर्च




​गोवा का बैसिलिका ऑफ़ बोम जीसस चर्च

शनिवार, 22 नवंबर 2014

गोवर्धन -मथुरा


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मथुरा -वृन्दावन-गोवेर्धन ऐसे कई बार गया होऊंगा लेकिन कभी धार्मिक रूप से पूजा करने नहीं गया था ! कभी एक बार रिश्तेदारी में मथुरा गया तो वहां उन्होंने पत्नी को आशीर्वाद दे दिया पुत्रवती भवः ! और ये भी कह दिया कि जब पुत्र पैदा हो जाए तो गोवेर्धन मंदिर में 5 किलो दूध चढ़ा देना ! भगवन की असीम अनुकम्पा हुई कि प्रथम संतान के रूप पुत्र प्राप्ति हुई ! लेकिन गोवर्धन में दूध नहीं चढ़ा पाया आखिर 5 साल के लम्बे इंतज़ार के बाद अवसर प्राप्त हुआ गोवेर्धन जाने का ! उत्तर भारत में दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है जिसमें लोग घरों में गोबर का गोवर्धन बनाते हैं और दूध से उसकी पूजा करते हैं ! गोवर्धन पूजा , भगवान कृष्ण द्वारा उठाये गए गोवर्धन पर्वत के प्रतीक के रूप में करी जाती है ! किस्सा कुछ इस तरह से है कि इन्द्र ने जब किसी बात पर गुस्सा होकर बारिश करनी शुरू कर दी तो मथुरा के आसपास के इलाकों में बहुत पानी भर गया और सब त्राहि त्राहि करने लगे , इन्द्र से सबने प्रार्थना करी कि अब बारिश रोक दो किन्तु इन्द्र ने बात नहीं मानी तो भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा लिया और सब ब्रजवासियों उसके नीचे शरण दी ! आखिर में इन्द्र को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी ! मैं भी उसी ब्रज का निवासी हूँ लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए गाज़ियाबाद में रहता हूँ !

दीपावली के दिन मैं खुर्जा में था ! अगले दिन गोवर्धन पूजा थी और मुझे लगा कि इससे बेहतर अवसर दूध चढ़ाने के लिए और कोई नहीं हो सकता ! अगली सुबह कभी भी सात बजे से पहले न जागने वाला प्राणी चार बजे जाग भी गया और पांच बजे बस भी पकड़ ली अलीगढ की , फिर अलीगढ से मथुरा ! पौने आठ बजे यमुना पार लक्ष्मी नगर पर था ! आजकल बस ज्यादातर लक्ष्मी नगर तक ही जाती हैं , पल बन रहा है आगे और लक्ष्मी नगर से आगे बस स्टैंड तक कम से कम एक घंटा लग जाता है इसलिए सब लक्ष्मी नगर पर ही उत्तर जाते हैं फिर ऑटो से जाते हैं ! अपने रिश्तेदार को पहले ही सूचित कर दिया था , उनको साथ लेकर करीब 9 बजे नए बस स्टैंड से गोवर्धन के लिए बस पकड़ी। यहां ये बताना सार्थक होगा कि मथुरा में दो बस स्टैंड हैं , एक नया एक पुराना ! पुराने बस स्टैंड से अलीगढ , हाथरस , जयपुर की बस मिलती हैं और नए से दिल्ली , फरीदाबाद , आगरा , गुडगाँव , वृन्दावन , गोवर्धन की बस मिलती हैं ! साढ़े दस के आसपास हम लाइन में थे ! बड़ी लम्बी लाइन थी दूध चढाने वालों की ! सब के हाथ में प्लास्टिक का गिलास दिखाई दे रहा था। मैंने भी दूध की केन अपने कंधे पर रखी और लग गया लाइन में ! मंदिर का प्रवेश द्वार बहुत छोटा है इसलिए द्वार पर और भी ज्यादा भीड़ हो जाती है ! और अंदर भीड़ जैसे सारा पुण्य आज ही ले लेना चाहती हो ! लाइन में लगा हुआ था कि किसी ने पीछे से धक्का दे दिया और मैं सीधा उस कुण्ड में पहुँच गया जिसमें दूध चढ़ाया जाता है ! कुण्ड शायद गलत शब्द होगा , असल में एक इर्रेगुलर पत्थर है ऊँचा सा , जिसके चारों तरफ गोलाई में छोटी सी बाउंड्री बानी है , मुझे किसी ने उसी बौंडरी में धकेल दिया और अवसर देखकर मैंने भी केन से दूध चढ़ाना शुरू कर दिया ! मैं बिलकुल ऊपर से दूध चढ़ा रहा था जैसे ही पुजारी का ध्यान मेरी तरफ गया उसने हाथ मार के केन नीचे कर दी कि नीचे से चढ़ा ! मैंने भीड़ में , इतने बेहतर तरीके से दूध चढ़ा पाने की कल्पना भी नहीं करी थी , भला हो मुझे धक्का देने वाले का। का एक नुक्सान भी मुझे झेलना पड़ा , पीछे वालों को कुछ दिखाई तो दे नहीं रहा होगा , वो अपना हाथ लंबा करके दूध चढ़ाते जा रहे थे और वो दूध गोवर्धन मंदिर की शिला तक तो नहीं बल्कि मेरी पीठ पर या मेरे सिर पर गिरा जा रहा था और इसका परिणाम ये हुआ कि जब मैं मंदिर से बाहर निकला तो पूरा भीगा हुआ था ! मैंने भी दुग्ध स्नान कर लिया ! हाहाहा !

मथुरा से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर मथुरा -डीग मार्ग पर पड़ने वाला गोवर्धन अपनी 21 किलोमीटर की परिक्रमा के लिए विख्यात है ! गुरु पूर्णिमा के दिन गोवर्धन पर्वत की हजारों लोग परिक्रमा करते हैं , गुरु पूर्णिमा को मुंडिया पूनों भी कहते हैं। गोवर्धन में दानघाटी मंदिर , मुखारबिंद , मानसी गंगा , हरिदेव मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं !

गोवर्धन से वृन्दावन और वहां से वापस आकर कृष्ण जन्मभूमि के दर्शन किये और फिर वापस गाज़ियाबाद लौटने का सोचा ! लेकिन जन्मभूमि से लौटते लौटते रात हो गयी और फिर सुबह 5 बजे चलने वाली emu ट्रेन से ही गाज़ियाबाद लौट पाया ! वृन्दावन के विषय में पहले लिख चुका हूँ पिछली पोस्ट में !


आइये फोटो देखते हैं :



पीछे भीड़ का नजारा

दानघाटी मंदिर में श्री जी की मूर्ति
दानघाटी मंदिर


दानघाटी मंदिर











दानघाटी मंदिर

गोवर्धन पर्वत के कुछ अंश
गोवर्धन पर्वत के कुछ अंश


गोवर्धन में हरिदेव मंदिर
श्री हरिदेव जी
गोवर्धन में हरिदेव मंदिर

मानसी गंगा मंदिर
और ये विश्वविख्यात श्री कृष्णा जन्मभूमि
और ये विश्वविख्यात श्री कृष्णा जन्मभूमि
और ये विश्वविख्यात श्री कृष्णा जन्मभूमि

                                              
मथुरा वृन्दावन की यात्रा लेकर अभी एक बार और मिलेंगे यहीं , आइयेगा जरूर यात्रा जारी है