बुधवार, 2 जुलाई 2025

Amarnath Yatra 2022: Day 4 From Panchtarani to Holy Cave to Baltal

अमरनाथ यात्रा  2022 


पंचतरणी में सुबह के सूरज की किरणें अपनी आभा बिखेर रही थीं जिनसे न केवल ये जग... ये विश्व प्रकाश पाता है .. इंसान भी जीवित रह पाता है मगर ! यहां से मतलब कि पंचतरणी से मुश्किल से छह किलोमीटर दूर बैठे जग के तारणहार भगवान भोलेनाथ का दर्शन इस जीवन को धन्य कर देता है ! जीवन का मूल्य बता देता है और जीवन को सार्थक बना देता है भगवान भोलेनाथ का दर्शन !

                 

सुबह करीब 7 बजे नाश्ता करके मैं अपनी आगे की यात्रा पर निकल चुका था। ये वाला हिस्सा या कहें आज का दिन बहुत रोमांचक लग रहा था , पेट में खुडख़ुडी सी होने लगती थी जब भी मैं कुछ देर के लिए बैठता था और इस दिन के लिए, आगे की यात्रा के लिए कल्पना करता था ! शरीर में झुरझुरी उठती और ये झुरझुरी पेट में खुडख़ुडी कर देती थी ! मेरे साथ ऐसा होता है, मैं चीजों की कल्पना कर के बहुत रोमांचित हो उठता हूँ, बहुत उत्सुक हो जाता हूँ ! आप हँसेंगे मेरी बात पर मगर मैं नया अंडरवियर / नया बनियान पहनते हुए भी उतना ही खुश होता हूँ जितना नई शर्ट या नई पेंट पहनकर खुश होता हूँ ! उम्र ही बढ़ी है, दिल अभी भी बच्चा है जी ! 

                 

असली में तो इस यात्रा की परीक्षा आज होनी थी। निकलते ही लगभग चढ़ाई शुरू हो गई थी पंचतरणी से। लगातार चढ़ाई चढ़ते जाना था इस पार्ट में। तीन -तीन लेयर एक साथ थीं ! आप दूसरे और तीसरे पायदान पर चलते हुए श्रद्धालुओं को देखते हुए चल रहे होते हैं।  अभी ब्रश नहीं किया था मैंने , एक जगह नदी के किनारे ब्रश भी किया और मुंह -हाथ भी धोए ! ये पंचतरणी नदी ही है और इसी नदी  के नाम पर इस जगह का भी और इस वैली का भी नाम पंचतरणी पड़ा है ! 

                 

पंचतरणी आपको ऐसा ही लग रहा होगा पढ़कर कि एक सामान्य सी जगह होगी ! जैसी और पहाड़ी जगहें  होती हैं पंचतरणी भी ऐसी ही जगह होगी मगर नहीं ! पंचतरणी सनातन परंपरा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ये।  वास्तव में ये जो पंचतरणी नदी यहाँ बह रही है इसका जल पांच अलग -अलग ग्लेशियरों से आ रहा है और फिर ये सभी छोटी -छोटी जलधाराएं मिलकर पंचतरणी नदी का  निर्माण करती हैं।  ये पांच ग्लेशियर - 1 . सिंध 2 . लिद्दर 3 . शेषनाग 4 . विषव और 5 . पहलगाम ! ये पाँचों जल धाराएं सनातन परंपरा के पांच तत्वों को व्यक्त करती हैं ! पांच तत्व जिनके विषय में शायद आप भी  जानते ही होंगे अगर नहीं जानते हैं तो लिखता हूँ आपके लिए ! ये पांच तत्व हैं - पृथ्वी , आकाश , अग्नि , जल और वायु ! ये वो पांच  तत्व हैं जिनके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं होता ! 

               

ब्रश करके आगे बढ़ गए ! धीरे -धीरे चढ़ाई फिर शुरू हो गई थी और एक जगह पहाड़ के ऊपर मात्र दो व्यक्ति निकल सकें , बस इतनी सी जगह दिखी ! एक तरह का Gate जैसा बना है मगर अच्छी बात ये है कि प्रशासन ने रेलिंग लगाईं हुई है सुरक्षा के लिए ! इस जगह से नीच कलकल बहती पंचतरणी और आसपास का सुन्दर नजारा दिखता है।  थोड़ी देर के लिए यहाँ ठहर सकते हैं , साँसों को संतुलित कर सकते हैं , प्रकृति के सुन्दर दृश्यों का अवलोकन कर सकते हैं ! 

               

मैं लगभग 10 बजे संगम पहुँच गया था।  यानि अभी आज मुश्किल से तीन किलोमीटर ही चल के आया होऊंगा पंचतरणी कैंप से निकलकर। खैर आज समय ही समय है मेरे पास तो आराम से चलते रहेंगे।  संगम बड़ी सुन्दर और बड़ी पवित्र जगह है ! यहाँ पंचतरणी और अमरावती नदी का संगम है ! अमरावती , चिनाब की शाखा है जो अमरनाथ ग्लेशियर से निकलती है।  अमरनाथ ग्लेशियर कोई एक ग्लेशियर नहीं है बल्कि पवित्र अमरनाथ गुफा के आसपास के ग्लेशियर ही अमरनाथ ग्लेशियर कहे जाते हैं।  संगम से यानि यहाँ से अब पवित्र गुफा तीन किलोमीटर और रह गई है मगर मुझे रास्ता उतना कठिन नहीं लग रहा अब।  सर के ऊपर लगातार हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट चालू है , मुझे बिलकुल भी डिस्टर्बेंस नहीं बल्कि आनंद आ रहा है इतना पास हेलीकॉप्टरों को देखते हुए मैं भी आगे बढ़ता जा रहा हूँ ! जय बाबा बर्फानी !! 
 
                

रास्ता चलते हुए ऐसा लग रहा है भीड़ और बढ़ गई है ! खच्चर -पालकी और बढ़ गए हैं ! मैं सही कह रहा हूँ क्यूंकि हेलीकॉप्टरों से पंचतरणी में उतर के लोग खच्चर /पालकी में आ रहे हैं।  मतलब पीछे जो संगम निकला है वो सिर्फ नदियों का ही संगम नहीं है वहां बालटाल और पहलगाम दोनों तरफ से हेलीकॉप्टर से आने वाले  और पहलगाम की तरफ से पैदल आने वालों का संगम है।  भीड़ बढ़नी ही थी।  चलो भाई धीरे धीरे चलते चलो ! 

               

रास्ता टर्न लेकर एकदम 100 डिग्री के आसपास मुड़ गया और जहाँ कुछ मिनट पहले कुछ नहीं दिख रहा था अब एक पूरी बस्ती दिख रही थी।  पवित्र गुफा से आती जलधारा जिसे शायद अमरगंगा कहते हैं , उसके दोनों तरफ हजारों टेंट लगे हैं।  दुकानें लगी हैं ! अरे ! अब तो उधर भी एक रास्ता दिख रहा है ! ये शायद वही रास्ता है जो बालटाल को जाता है ! यहाँ , यानि इधर  की तुलना में उधर कम लोग दिख रहे हैं।  एक जगह बैठ गया ! नदी के थोड़ा ऊपर की ओर बाउंड्री बनाई हुई है , उसी पर बैठ गया ! चश्मा लगाया हुआ धुप से बचने के लिए मगर यहीं छूट गया ! 150 रुपया का भारी नुकसान हो गया यार ! 

                 

मैंने संगम में स्नान नहीं किया था और यहाँ नदी में भी स्नान लायक पानी नहीं दिख रहा था इसलिए एक जगह 50 रूपये में गरम पानी की बाल्टी लेकर बढ़िया स्नान कर लिया ! प्रसाद भी वहीँ से ले लिया और बैग भी अपना वहीँ छोड़ दिया।  पॉकेट में मोबाइल था सिर्फ मगर जैसे ही गुफा के पास वाले रास्ते पर पहुंचा , मोबाइल अंदर नहीं ले जा सकते !! 

मोबाइल फ़ोन रख के आया 20 रूपये में ! जो नियम है उसको मानना ही चाहिए ! 

सामने भग्वान आशुतोष की पवित्र गुफा है ! मुझे मात्र 100 मीटर दूर और मैं भावविहल होकर मन में अनेकों कल्पनाएं करने लगा हूँ ! मुझे कितने दिन लग गए यहाँ तक आने में , कितने सालों का इंतज़ार आज पूर्ण होगा ! जय भग्वान भोलेनाथ ! तुम्हारी सदा जय जयकार रहे ! 

               

मैं पवित्र गुफा की सीढ़ियां चढ़ते हुए एकटक बाबा बर्फानी की पवित्र शिवलिंग की आकृति को निहारता जा रहा हूँ और फिर जब कोई कहता है वो देखो -सफ़ेद कबूतर ! वो देखो उधर -सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा ! जैसे इन शब्दों को सुनकर मैं स्वयं में विलीन हो गया हूँ ! मैं धन्य हो गया हूँ सामने की बर्फ की आकृति देखकर ! बाबा तुम भी न क्या क्या रूप धार लेते हो अपने भक्तों का मन  मोह लेने को ! अत्यंत सुन्दर  रूप है बाबा का।  अभी पूर्ण है क्यूंकि हम पहले ही दिन  यात्रा के लिए चल पड़े थे।  बराबर में कुछ लोग कह रहे हैं कि जो छोटी छोटी आकृतियां हैं वो गणेश जी और कार्तिकेय का अंश है , उनका रूप हैं ! अदभुत है बाबा ! प्रसाद चढ़ा भी दिया और प्रसाद ले भी लिया।  कुछ ही मिनट के दर्शन में ऐसा एहसास हुआ जैसे जग जीत लिए हो जैसे जीवन को पूर्णता मिल गई हो जैसे सब पा लिया हो !  

               

दर्शन करने के पश्चात नीचे आ गया था।  एक तरह का बाजार सजा था दोनों तरफ।  कुछ खाया जाए पहले ! अभी करीब दोपहर का एक बज रहा होगा और मैंने सुबह से कुछ खाया नहीं था।  यही सोचा था कि पहले भगवान भोलेनाथ के दर्शन करूँगा तभी कुछ खाऊंगा आज ! अब मन की / वर्षों की इच्छा पूरी हुई तो कुछ खाया जाए ! 

अब रास्ता बदल गया था , रूट भी बदल गया था ! अब पहलगाम से आकर बालटाल वाले रास्ते पर था जिससे दोनों रास्ते देख सकें ! कुछ ही दूर चला होऊंगा , एक जगह रास्ते पर थोड़ी भीड़ सी थी ! पता लगा यहां पहाड़ में ही काली मैया की मूर्ति विराजमान है ! न न किसी ने बनवाई नहीं है बल्कि खुद से ही है ! बहुत ही आकर्षक मूर्ति लगी ! आगे बढ़ने का समय है और अच्छी बात ये है की अब उतरना है तो पैर खुद से ही तेज तेज चल रहे हैं।  

                                        

भयंकर धूल है इस रास्ते में ! रास्ता भी उतना चौड़ा नहीं है जितना पहलगाम वाला है और इस रास्ते में उतने भण्डारे / लंगर भी नहीं हैं इसलिए जहाँ जो मिल जाए खाते रहिये।  यहाँ तक कि अगर आपका पानी ख़त्म हो गया है तो संभव है आपको पानी खरीदना भी पड़ जाए ! अगर आप मेरी तरह पहली बार अमरनाथ यात्रा में जा रहे हैं तो पहलगाम वाला रास्ता ही चुनियेगा जाने के लिए ! 

               

एक जगह रास्ता टूट गया था जिससे खच्चर उसमें गिर गया ! बालटाल पहुँचते -पहुँचते पता लगा उस खच्चर की मौत हो गई ! कितने ही खच्चर इस रास्ते पर ऐसे ही दम तोड़ देते हैं ! मालिक भी दुखी और परिवार भी दुखी ! 

               

अँधेरा होने में समय था मगर बालटाल भी अब ज्यादा दूर नहीं था।  लगभग एक किलोमीटर पहले एक अच्छा सा भण्डारा मिला , भीड़ भी अच्छी थी और इंतेज़ाम भी अच्छा था तो जूते निकाल के बैठ गया।  उधर यूपी का या शायद पंजाब का कोई नेता आया हुआ था , उसके चेले चपाटों ने मस्त माहौल बनाया हुआ था।  बहुत सारे फल लेकर आये हुए थे वो लोग और भर भर झोली बांटे जा रहे थे।  

                

अब बालटाल पहुंचे ! बसें खडी थीं कई सारी ! ये बालटाल बेस कैंप था ! थोड़ी दूर चलने के बाद ई रिक्शा मिल गया ! अब याद नहीं कितना पैसा लिया था उसने ! यहाँ जूते धोने वाले लोग दिखे।  उन्हें मालुम रहा होगा कि इस रास्ते में बहुत धूल उड़ती है तो जूते खराब होंगे ही , उन्होंने अपना रोजगार ढूंढ लिया इसी में ! भगवान उनको तरक्की देवें !

                
 
                 

अभी और आगे जाना है , वहीँ रुकने की व्यवस्था मिलेगी।  दोमेल ((DOMAIL) बोलते हैं उस जगह को।  खूब सारे लंगर / भंडारे और खूब सारे टैंट ! पहले खा लिया जाए कुछ ! और जब खाने के लिए एक भण्डारे में घुस ही रहा था राहुल और संतोष मिल गए।  वही दोनों देहरादून वाले जो मुझे शेषनाग लेक पर मिले थे ! बोले -भैया ! कहाँ रुके हो ? मैंने कहा -अभी कहाँ ? अभी तो मैं आया हूँ ! फिर सभी ने साथ खाना खाया और एक ही टैंट में रुक गए ! शायद 200 रूपये प्रति बिस्तर ! 

                 

                 

                 

सुबह निकल चले सोनमर्ग और फिर श्रीनगर के लिए ! कल की बात अगली पोस्ट में तब तक खूब खुश रहिये मस्त रहिये और जोर से बोलिये ! 

                 


                 

                 

       

       

      

    

  

 






जय बाबा बर्फानी !
भूखे को अन्न प्यासे को पानी !!