गुरुवार, 12 मई 2022

Kakbhushundi Trek Uttarakhand Blog : Day 5 From Shila Samudra to Kagbhushundi to Bramghat

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आज एक बुरे दिन के बाद की सुबह थी , एक आशा भरी सुबह थी उत्साह उतना नहीं रह गया था लेकिन जाना तो था ही और ये उत्साह भी थ्री इडियट के रस्तोगी के मोटर की तरह धीरे धीरे गति पकड़ रहा था।  नाश्ता कर के करीब 8 बजे , सामने दिख रहे green spot की तरफ चढ़ना शुरू कर चुके थे।  कुछ मित्र कल यहाँ तक पहुँच चुके थे और उन्हें यहाँ एक पीले रंग का झण्डा सा दिखाई दिया था वो वास्तव में कोई झण्डा नहीं बल्कि पीले रंग की प्लास्टिक की एक छोटी बोरी (हमारे यहाँ बोरा बोलते हैं ) थी जिसे संकेत के रूप में यहाँ टांग दिया था।  जिसने भी ये किया होगा वो बहुत भला इंसान रहा होगा जिसने दूसरे लोगों का ख्याल रखा हम लेकिन इस झंडे के दूर से ही ऊपर की तरफ चढ़ते गए क्यूंकि सीधा चढ़ना थोड़ा मुश्किल जरूर था लेकिन रास्ता छोटा था और अभी सुबह थी, एनर्जी बनी हुई थी तो झंडे के पास वाला रास्ता न लेकर सीधा चढ़ना तय किया। झण्डे के पास से जाने के लिए हमें अर्ध वृताकार (Semi Circle) रास्ता लेना पड़ता और अभी हम उसके बीच से गुजर रहे थे।  सामने ग्रीन स्पॉट पर पहुंचकर ऊंचाई से उस जगह को आखिरी बार देखा जहाँ हम रात रुके थे तो आँखें थोड़ी सी नम हुईं , कल रात बहुत बुरी गुजरी लेकिन अंततः गुजर गई।  ध्यान रखिये , इस रास्ते पर भी कोई डांवर रोड नहीं बनी है बल्कि पूरा रास्ता बड़े बड़े पत्थरों से भरा हुआ है।  

 
 
 
जैसे ही आप इस ग्रीन स्पॉट के दूसरी तरफ उतरते हैं आपको इधर-उधर उगे हुए सैकड़ों या शायद हजारों ब्रह्मकमल के फूल दिखाई  देने लगेंगे। लगभग दो घण्टे चलने के बाद एक ग्लेशियर दिखा देने लगेगा, आप इसे स्किप नहीं कर सकते। करना भी चाहेंगे तो आपको कम से कम चार-पांच घण्टे एक्स्ट्रा चलना पड़ सकता है और रास्ता भी उधर कोई आसान ही होगा, ऐसा सोचना भी मुश्किल था इसलिए बेहतर था कि थोड़ा रिस्क लेकर ग्लेशियर को ही पार किया जाए।  लेकिन ट्रैकिंग इतनी ही आसान होती तो फिर मजा ही क्या रहता इसमें ! ग्लेशियर की तरफ कदम बढ़ाते हुए चल ही रहे थे कि बारिश शुरू हो गई।  डॉक्टर साब (अजय त्यागी जी ) ने पहला कदम रखा , फिर सुशील भाई और उनके बाद त्रिपाठी जी , मुझे सबसे पीछे ही चलना था।  एक-एक कदम गिन गिनकर चलते हुए अंततः हमने ग्लेशियर क्रॉस कर ही दिया और सामने था - 5000 मीटर ऊंचा कांकुल पास(Kankul Pass) ! ये इस ट्रेक का सबसे ऊँचा पॉइंट था और हमारे लिए एक उपलब्धि। हमारे कुछ मित्र तथा गाइड और पॉर्टर पहले ही वहां पहुँच चुके थे। हमारे पहुँचते ही एक "सेलिब्रेशन" शुरू हुआ यहाँ , इस पॉइंट तक , highest point तक पहुँचने का जश्न मनाया और जश्न कैसे मनाया ? सिगरेट का एक एक लम्बा कश लेकर हमने अपनी इस उपलब्धि को celebrate किया।  लगभग आधा घण्टा यहाँ बिताकर अब धीरे-धीरे नीचे उतरने की बारी थी
 
 
 
 

 
 
कांकुल पास  (Kankul Pass)

 कांकुल पास पर कुछ पत्थरों को एक के ऊपर एक लगा के कभी कोई झण्डी लगाई गई होगी लेकिन अब वहां पत्थर तो हैं झण्डी नहीं बची।  हाँ , एक पत्थर पर 2015 जरूर लिखा है। कांकुल पास पर बर्फ नहीं थी लेकिन उतरते वक्त ढलान अच्छा खासा था।  पहाड़ पर सिर्फ चढ़ना ही कठिन नहीं होता, उतरना भी उतना ही खतरनाक और परेशानी भरा होता है। मुश्किल से 15-20 मिनट ही उतरे होंगे कि आगे-आगे चल रहे पंकज भाई (पंकज मेहता जी) को एक विचित्र पुष्प दिखाई दिया जो पत्थरों के बीच छोटा सा, खरगोश के बच्चे जैसा छुपा हुआ था।  एकदम श्वेत , रुई जैसा जिस पर ब्राउन कलर के तंतु लगे हैं। अहा  ! अलौकिक, अद्भुत और दुर्लभ पुष्प जो सिर्फ हिमालय की ऊंचाइयों में ही पाया जाता है लगभग 4200 मीटर की ऊंचाई के बाद। हम सौभाग्यशाली हैं इस मामले में , हमें आज इस पुष्प के दर्शन का लाभ मिल गया। इसे फेन कमल बोलते हैं .....नहीं-हम तोड़ेंगे नहीं इसे ! उखाड़ेंगे भी नहीं।  ये जहाँ हैं वहीँ रहेगा और आगे आने वाले मित्रों को भी यूँ ही दर्शन देता रहेगा।  प्राकृतिक है , प्राकृतिक अवस्था में ही रहेगा !!  इस वक्त करीब दोपहर के 12 बजे थे। 

यहाँ अब आपको थोड़ी दूर तक रास्ता दिखाई देता है। पत्थरों को मिलाकर, सही तरीके से रखकर एक निशान बनाने की कोशिश की है जिससे लोग रास्ता भटकें।  दो घण्टे के आसपास तक यूँ ही पत्थरों के ऊपर चलते रहे। कांकुल पास से उतरने के बाद कोई भी पहाड़ पर नहीं चढ़ना पड़ा था, हाँ पत्थरों के बीच से लगातार चलते रहे। लगभग ढाई बजा होगा जब हमें दूर से पवित्र काकभुशुण्डि ताल के दर्शन हुए। बारिश अपने आने की सूचना प्रेषित कर रही थी मगर इस बूंदाबांदी में एक खुशखबरी आई कि यहाँ बीएसएनएल और जिओ के सिग्नल आ रहे हैं।  बहुत अच्छी तो नहीं लेकिन हाँ , कट कट के बात हो जा रही थी। मैंने भी पॉर्टर के फ़ोन से घर बच्चों से बात कर अपनी कुशलता और यहाँ पहुँचने की सुचना उन्हें दे दी।  बात करते हुए थोड़ा मैं भी भावुक हो गया और बच्चे भी क्यूंकि ये मेरा एक सपना था और इतनी मुश्किलों के बाद जब आपका सपना पूरा होता है तो भावुक हो जाना स्वाभाविक है।  ट्रैकिंग मेरे लिए सिर्फ घुमक्कड़ी नहीं , मेरा जीवन है। 
 
 
कभी त्रिकोण तो कभी पांच कौण ! अलग तरह की शेप है काकभुशुण्डि लेक की।  लेकिन लम्बी है और जल एकदम हरीतिमा लिए हुए। आखिरी बिंदु से फोटो और वीडियो लेते हुए इसके बराबर  से चलते हुए हमें वहां पहुंचना था जहाँ पवित्र झण्डियां लगी हुई थीं।  ऊपर की तरफ एक छोटा सा मंदिर बना है और उसके पास खिले हुए थे सैकड़ों ब्रह्मकमल।  हम ब्रह्मकमल के मोहपांश में फंस गए और फोटो खींचते रहे /वीडियो बनाते रहे और इतने में इन्द्र देवता की नींद टूटी ! झड़ झड़ बारिश होने लगी थी।  हमें बारिश से तो कोई परेशानी नहीं थी लेकिन बस इतना हुआ कि हम इस पवित्र कुण्ड में स्नान करना चाहते थे , नहीं कर पाए।  मैं अब तक जहाँ गया हूँ -चाहे सतोपंथ ताल हो , नन्दीकुंड हो , आदि कैलाश में पार्वती कुण्ड हो , मैं स्नान जरूर करता हूँ लेकिन यहाँ बारिश ने हमें इस स्नान से वंचित कर दिया।    
  
 
        अंजुली भर के अर्घ्य दिया और पूजा संपन्न की। अगरबत्ती थोड़ी दूरी पर जलाई जिससे इस पवित्र और सुन्दर लेक के जल में कोई अशुद्धि न मिलने पाए।  कुलवंत भाई और त्रिपाठी जी ने भी खूब फोटो खिचवाए।  त्रिपाठी जी यहाँ एक रात रुकना चाहते थे लेकिन हम पहले ही एक दिन की देरी से चल रहे थे और आज अभी आगे बढ़ने का समय भी था तो थोड़ी डिस्कशन के बाद आगे कहीं टैण्ट लगना तय हुआ।  क्षमा चाहता हूँ त्रिपाठी जी ! 

हम अपने डेस्टिनेशन पर पहुँच चुके थे।  एक सपना पूरा हो रहा था जिसके लिए राजीव कुमार जी ने जिज्ञासा पैदा की और पंकज मेहता, हरजिंदर सिंह जैसे मित्रों ने उसे पंख लगाए।  हम सब सकुशल, सुरक्षित काकभुशुण्डि ताल पहुँच चुके थे ! मन आल्हादित था , आत्मा तृप्त थी , पैर कीर्तन करने लगे थे ...होठों पर शिव शिव का उच्चारण था और आसमान में बादल हमारे यहाँ पहुँचने की ख़ुशी में ...हमारे साथ खुलकर हमारे साथ गुनगुना रहे थे ..जाप कर रहे थे
ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय 
 
काकभुशुण्डि ताल से ऊपर की तरफ चढ़ना भयंकर कठिन था।  सीधे चढ़ाई , नीचे नाला और पत्थर और पहाड़ी की चढ़ाई में फिसलन ! बहुत डर लगा मुझे यहाँ क्यूंकि अगर हाथ छूट जाता तो जिंदगी का ही साथ छूट जाता।  
ज्यादातर लोग यहाँ आकर फिर जिस रास्ते से हम यहाँ पहुंचे उसी रास्ते से वापस लौट आते हैं।  मनीष भाई (मनीष नेगी ) का वीडियो भी यहीं तक का था।  हमारी असली परीक्षा अब शुरू होनी थी।  परीक्षा इसलिए क्यूंकि हमें इसी रास्ते पर वापस नहीं लौटना था बल्कि पूरा सर्किट कम्पलीट करते हुए पैंका गाँव (विष्णुप्रयाग) की तरफ से उतरना था।  इस रास्ते का न कोई वीडियो उपलब्ध था न कोई ब्लॉग किसी भाषा में।  असली रोमांच, असली डर , असली परीक्षा अब शुरू हो रही थी।  कोई अंदाजा नहीं था हमें कि रास्ता कैसा है , कितना कठिन है लेकिन जब भगवान आशुतोष ने हमें यहाँ तक पहुंचा दिया तो भरोसा था कि आगे भी सकुशल पहुँच जाएंगे।  

 
दूसरी दिशा में ऊपर जाने पर पत्थरों को जोड़कर और पहाड़ काटकर पगडण्डी बनी हुई दिखने लगी।  इसका मतलब लोग इस रास्ते से भी आते जाते तो हैं पैंका गाँव वाले लेकिन उन्होंने कोई वीडियो अपलोड नहीं किया है।  काकभुशुण्डि ताल से लौटते हुए मुश्किल से आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि भरापूरा ब्रह्मकमल का जंगल मिल गया।  अब तक का सबसे घना ब्रह्मकमल का जंगल जैसे किसी ने बड़े करीने से सजाए हों , एक एक ब्रह्मकमल अपने नैसर्गिक रूप में हमें हमारे यहाँ तक पहुँचने की न केवल बधाई दे रहा है, हमारा अभिनन्दन करना चाहता है।  हम भी खुश हैं , हमसे ज्यादा ये ब्रह्मकमल खुश हैं ! ये हर्षित हैं और आज का दिन इनके लिए भी बहुत बड़ा दिन है कि कोई है जो इन्हें देखने , इनकी शोभा की प्रशंसा करने वाला कोई तो आया है।  स्त्री अगर श्रृंगार करे और श्रृंगार की तारीफ करने वाला कोई न हो तो उसका श्रृंगार करना व्यर्थ चला जाता है बिलकुल उसी तरह आज ब्रह्मकाल की सुंदरता की तारीफ हमारे मन से स्वतः स्फुटित हो रही है।  

 
अब हम बरमाई पास की तरफ चल रहे हैं।  सितम्बर का महीना है और वनस्पति अपने यौवन के रंग बिखेर रही है।  अद्भुत और अविश्वसनीय खूबसूरती देख पा रहा हूँ मैं प्रकृति की।  इतना सुन्दर लैंडस्केप है , मैं बैठा रहता हूँ और सब आँखों से ओझल हो जाते हैं।  हर तरह के रंग हैं इस प्रकृति की अनमोल चादर में।  मैं फूलों को नहीं पहचानता , उनका नाम नहीं जानता लेकिन प्रकृति से बात करने के लिए उसे किसी सम्बोधन की जरुरत थोड़े ही होती है ? बस आँखों से आँखों की भाषा पढ़नी आनी चाहिए हमें। अब तक इतना सुन्दर प्राकृतिक सौंदर्य कभी नहीं देखा , श्रीखण्ड में भी नहीं।  

 
 
अधिकांश रास्ता उतराई वाला है। बीच में एक बहुत ऊंचाई से आती वाटर स्ट्रीम को पार करना थोड़ा कठिन रहा बाकी रास्ता आसान ही था।  कई प्रकार के फूलों से परिचय प्राप्त करने की कोशिश की लेकिन वो काँटा मार के भाग गए! पांच बजने को थे या शायद उससे भी ज्यादा। ऊपर से खुले-बड़े मैदान में बैठे हुए मित्रगण और अपने टैण्ट दिखाई देने लगे थे।  आज का ठिकाना यही था हम बंजारों का -ब्रह्मघाट ! यही था उस जगह का नाम जहाँ हमने अपने टैण्ट लगाए उस दिन।  

 
 सात नहीं बजे होंगे अभी शाम के लेकिन ठण्ड भयंकर थी।  हम में से कुछ टैंट में घुसे थे , कुछ चाय पी रहे थे किचन टैंट के पास और डॉक्टर साब इधर-उधर टहल रहे थे।  आए तो हाथ धोए और हाथ धोने के बाद जब पानी छिटकाया तो उनकी ऊँगली में पड़ी सोने की रिंग भी छिटक गई लेकिन ये बात उन्हें 15 -20 मिनट बाद पता चली।  अब अँधेरे में टोर्च लगा लगा के -रिंग खोजो अभियान शुरू हुआ।  रिंग मिलना जरुरी था क्यूंकि एक तो वो बहुत महँगी और दूसरी नीलम जी ( डॉक्टर साब की मिसेस ) की दी हुई रिंग थी वो ! इतनी ठण्ड में आदमी कितना पसीना-पसीना हो सकता है ये देखने का था उस वक्त।  हम तो सोचते थे हम ही बीबी से डरते हैं यहाँ तो डॉक्टर लोग भी खौफ खाए हुए थे !! थोड़ी सर्चिंग , थोड़ी मेहनत से आखिरकार रिंग मिल गई नहीं ।  भगवान का बहुत-बहुत धन्यवाद ! 
 
 
और धन्यवाद आप सभी  मित्रों का !

फिर मिलेंगे अगले दिन का वृतांत लेकर 





 

3 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

खूबसूरत चित्रों के साथ लाजवाब काक्भुसंडी की यात्रा ...
रोचक दिलचस्प ...

CEA Aviation ने कहा…

CEA Aviation is seeing an fantastic new improvement in India, with unrivalled understudy and educator enlistments, to the element that the first-rate pilot making ready in India is presently supplying best pilot training in delhi
Inside the limits of our area,CEA Aviation has laid out joins with a collection of air transportation relationships to guarantee that understudies approach confounding work environments and get paintings to assist with wishes for dumbfounding well known information.

Sujatha Sathya ने कहा…

Lovely trek.
What a beautiful green lake. Liked the fan flower part where you said wont pluck it but will leave it for the next traveller.