बुधवार, 4 मार्च 2020

Chaturbhuj Mandir : Gwalior

चतुर्भुज मंदिर : ग्वालियर

Date of Journey : 03 Dec.2019 

इस यात्रा को शुरू से पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक कर सकते हैं।

जैन साब की गज्जक ने उदर को आनंद प्रदान कर दिया और अब ग्वालियर फोर्ट देखने को हल्के-हल्के कदमों से बढ़ चले। गूजरी महल से थोड़ी ऊंचाई पर है ग्वालियर फोर्ट इसलिए मुझे जैन साब की तेज तेज धड़कनें सुनाई पड़ रही थीं। मैंने उन्हें बिना बताये अपनी चाल धीमी कर दी। आज मेरे गाइड , मेरे मित्र ग्वालियर के कण कण से वाकिफ श्री शरद कुमार जैन जी रहेंगे। धन्यवाद जैन साब , साथ रहने और ग्वालियर से परिचित कराने के लिए !

अभी धीरे -धीरे ग्वालियर फोर्ट काम्प्लेक्स में ही मौजूद चतुर्भुज मंदिर की तरफ पहुँच रहे हैं। गूजरी महल से चतुर्भुज मंदिर के लिए ठीक सी चढ़ाई चढ़नी पड़ रही है करीब 20 -25 मीटर की ऊंचाई तो होगी ही और शायद इसीलिए ज्यादातर लोग इस रास्ते से नहीं आते। पानी की बोतल भी खत्म होने को है। चतुर्भुज मंदिर बहुत छोटा सा मंदिर है , अगर ये यहां नहीं होता और एक महत्वपूर्ण तथ्य इसके साथ न जुड़ा होता तो ये एक गुमनाम मंदिर में सुमार किया जाता। वो महत्वपूर्ण तथ्य क्या है ? पढ़ेंगे इस बारे में !

ग्वालियर किले की मजबूत , सुदृढ़ , रंगीन और खूबसूरत दीवारों से नजर हटके अगर कहीं रूकती है तो वो है चतुर्भुज मंदिर जिसे कभी चट्टान काटकर बनाया गया था लेकिन मंदिर की खासियत इसकी बनावट या खूबसूरती नहीं बल्कि इसके अंदर की दीवारें हैं जो एक ऐसा "तथ्य" समाहित किये हुए हैं जिस पर भारत गर्व का अनुभव करता है। सभी को पता है कि स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो के धर्म सम्मलेन में सन 1893 में जीरो को आधार बनाकर एक ओजस्वी , ऐतिहासिक और लंबा भाषण दिया था जिसे आज भी बहुत याद किया जाता है। बहुत सम्मान की द्रष्टि से भी देखा जाता है। ये जीरो ही है जिसने चतुर्भुज मंदिर को इतना विशिष्ट बना दिया और विश्व के लिए धरोहर के रूप में एक स्थान पा लिया। कार्बन डेटिंग विधि के माध्यम से ये पक्का हुआ है कि चतुर्भुज मंदिर की अंदर की दीवारों पर बना जीरो , विश्वभर में सबसे प्राचीन जीरो है। इसके अलावा वियतनाम और पाकिस्तान के पेशावर में भी इस तरह की आकृतियां पाई गयी हैं जिन पर जीरो की आकृति बनी हुई है।

एकबार मुंबई से "आयरन लेडी " के नाम से विख्यात अल्पा दगली जी का फ़ोन आया था। उन्हें कुछ जानना था जीरो के ही विषय में क्यूंकि उनका बेटा रक्षित दगली इस फील्ड में कुछ काम कर रहा था। रक्षित से अभी तक मिला नहीं हूँ मैं लेकिन 13 -14 साल के बच्चे के कारनामे सुनकर -पढ़कर इतना भरोसा होने लगा है कि एक शानदार स्कॉलर भारत का भविष्य तैयार कर रहा है। तो जी अल्पा दगली को तो पता नहीं मैं क्या बता पाया लेकिन मैंने बहुत कुछ पढ़ लिया इस चक्कर में। और ये भी एक कारण रहा ग्वालियर के चतुर्भुज मंदिर तक की राह तक पहुँचने का। धन्यवाद अल्पा !!

अब फिर से वहीँ चलते हैं यानि चतुर्भुज मंदिर और जीरो पर ही बात कर लेते हैं। हम जब वहां पहुंचे तो मंदिर के छोटे से दरवाज़े का ताला लगा हुआ था और ताला खोलेगा कौन ? कोई होगा तो खोलेगा ! कोई था ही नहीं इसलिए बाहर से जो दिखा , जितना दिखा वो देख लिया ! और दिखा क्या -बस कुछ मूर्तियां ! लेकिन हम कुछ और भी देखना चाहते थे। हम इस मंदिर की अंदर की दीवारें देखना चाहते थे जिनमें जीरो की आकृति अंकित है। नहीं देख पाए !! इसलिए किसी और जगह से फोटो लेनी पड़ेगी !!

सवाल उठा सकते हैं आप कि यहां जीरो क्यों लिखा गया ? क्या उद्देश्य रहा होगा ! कुछ अभिलेख ऐसा कहते हैं कि यहां 187 हस्त गुणा 270 हस्त का एक बाग़ बनाया गया था (एक हस्त मतलब 1.5 फ़ीट ) ! इस गार्डन से प्रतिदिन 50 फूलों के हार इस मंदिर में उपयोग किये जाते थे। इन दोनों 270 और 50 संख्याओं में आखिरी digit जीरो आता है। लोगों का मानना है की जीरो की उपयोगिता इस मंदिर में उल्लिखित इस स्टेटमेंट से पहले से थी। संभव है ! किन्तु लिखित रूप में सबसे पुराना अभिलेख यही है इसलिए माना जाता है कि यही सबसे पुराना जीरो सिद्धांत का epigraphical evidence है।

भारत में ही जीरो की उत्पत्ति का एक बड़ा कारण ये भी माना जा सकता है कि यहां जीरो अर्थात शून्य की परिकल्पना हिन्दू धर्म से पूर्ण रूप से संबंधित रही है। शून्य में देखना ! शुन्य में समाना ! शून्य हो जाना जैसे मुहावरे कहीं न कहीं इस परिकल्पना को सत्य सिद्ध करते हैं कि भारत की "निर्वाण (Nothingness ) " की प्रक्रिया जीरो के प्रयोग पहले भारत में ही शुरू हुए होंगे। भारतीय संत और ज्ञानी , एक निश्चित आयु के बाद निर्वाण ले लिया करते थे अर्थात अपने आपको शून्य मान लिया करते थे। भौतिक रूप से अनुपस्थित !!

मंदिर और उसके आसपास के खूब सारे फोटो लेकर अब ग्वालियर के फोर्ट की तरफ निकल रहे हैं। ग्वालियर फोर्ट जिसे मान मंदिर भी कहते है , बेहद खूबसूरत जगह दिखाई दे रही है। बाकी तो अंदर जाकर ही पता चलेगा ........


हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में Sign Board लगे हैं जीरो के

ग्वालियर ऐसा दीखता है चतुर्भुज मंदिर से




चतुर्भुज मंदिर : छोटा सा ही है
इसमें जीरो (0) ढूंढिए : pc : gwaliorzoo2-kRID--621x414@LiveMint
0 - दिखा​ आपको? pc : zero-httpswww.smithsonianmag.com


ग्वालियर के शानदार फोर्ट की पहली झलक




जल्दी ही फिर मिलेंगे:

5 टिप्‍पणियां:

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

रोचक। मैं जब ग्वालियर के किले पहुँचा था तो इस मंदिर का कोई ज्ञान नहीं था। उधर पहली बार ही इस मंदिर के विषय में पता चला और एक सुखद आश्चर्य मुझे हुआ। रोचक है आपकी यात्रा। अगले भाग का इन्तजार रहेगा।

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

बढ़िया जानकारी । हालांकि खुद ग्वालियर के लोग भी इस तथ्य से अनजान है । बधाई हो योगी जी

Pranita ने कहा…

Every where construction of Jain temple is historical and beautiful.

magiceye ने कहा…

Beautifully captured!

Jyotirmoy Sarkar ने कहा…

Very nice captures, informative indeed, did not know the scientific attachment with this temple.