मंगलवार, 14 जून 2016

Dhamek Stup( धमेक स्तूप) : Sarnath

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सारनाथ की इस यात्रा में जितना आनंद आना चाहिए था वो गर्मी की वजह से नहीं आ पाया लेकिन फिर भी इसका एक फायदा भी हुआ ! भीड़ भाड़ नहीं थी और अकेला सा सर पर अंगोछा बांध के घूमता रहा ! मूलगंध कुटीर से श्रीलंका का एक मंदिर था वो देखा फिर वहां से निकलकर आगे बढ़ा तो धमेक स्तूप दिखाई पड़ने लगा , रास्ते में एक जालीदार गेट दिखा तो सोचा यहीं से शॉर्ट मार लेता हूँ लेकिन अंदर बैठे दो लोगों ने पूछ ही लिया - कहाँ ? मैंने ऊँगली लम्बी करके कहा वहां !! बोला  भाई जी ये जैन मंदिर का रास्ता है और आगे बंद है ! आगे वाले गेट से जाना पड़ेगा ! चल दिए ! और अगले गेट पर पहुँच गए , सीधा घुसा चला गया ! पीछे से आवाज आई - रुको ! रुको ! मैंने मुड़ के देखा -वो मुझे ही बुला रहा था ! बोला -आपका टिकट ? मैंने बोला कौन सा टिकट ? ओह ! 20 रूपये का टिकट लेना पड़ता है यहाँ ! 






सारनाथ का वर्तमान नाम संस्कृत शब्द "सारंगनाथ " से लिया गया है जिसका मतलब होता है " लॉर्ड ऑफ़ डियर " ! इसके पीछे एक कहानी निहित है जिसमें भगवान बोधिसत्व को पूर्व जन्म में हिरन कहा गया है जिन्होंने अपना जीवन शिकारी राजा को हिरनी (Doe ) की जान बचाने के लिए समर्पित कर दिया था ! और ऐसा कहा जाता है कि बाद में उसी राजा ने ये डियर पार्क बनवाया ! हालाँकि मैं इस पार्क को नहीं देख पाया ! 


गौतम बुद्ध से सम्बंधित तीन जगहें बहुत प्रसिद्ध और बहुत पवित्र हैं जिनमें से मैं दो जगह बोधगया और सारनाथ जा चूका हूँ ! लुम्बिनी अभी शेष रह गया है , देखते हैं कब नंबर आएगा ! 


सारनाथ के इतिहास की कुछ बात कर लेते हैं ! गौतम बुद्ध बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के लगभग पांच सप्ताह के बाद सारनाथ पहुंचे थे ! सारनाथ मतलब इसीपतना जाने का प्रयोजन ये था कि उन्हें अपनी शक्तियों से ये आभास हो गया था कि उनके पुराने पांच साथी बहुत तेजी से उनके ज्ञान को , उनके प्रवचन को सीख लेंगे ! एक बहुत बेहतरीन प्रसंग आता है गौतम बुद्ध की इस यात्रा में ! गौतम बुद्ध जब बोधगया से सारनाथ जा रहे थे तो उन्हें गंगा नदी को पार करना था , लेकिन उनके पास मल्लाह को देने के लिए पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने हवा में उड़कर नदी को पार किया , ये जितना अभूतपूर्व था उतना ही इसका असर राजा बिम्बिसार पर भी हुआ और उन्होंने तपस्वियों / सन्यासियों के लिए नदी पार करने के लिए लगने वाला किराया बंद कर दिया ! सारनाथ पहुंचकर गौतम बुद्ध ने उन पाँचों शिष्यों को ज्ञान दिया और फिर वहीँ "संघ " की स्थापना हुई ! भगवान् बुद्ध ने पूर्णमासी ( Full Moon day ) के दिन जो धर्मोपदेश दिया उसे Dhammacakkappavattana Sutta.कहा जाता है ! ऐसा कहा जाता है कि भगवान् बुद्ध ने अपना बरसात वाला समय भी यहीं सारनाथ में "मुलगन्धकुटी " में गुजारा था ! 



Dhamek Stupa : 

स्तूप के विषय में मुझे बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन इतना पता है कि शायद ये किसी तपस्वी की याद में या उसकी समाधी की तरह बनाए जाते थे ! धमेक स्तूप करीब 500 ईस्वी पूर्व (CE ) का बना हुआ है , जिसकी शुरुआत सम्राट अशोक ने की थी ! इसके पास ही अशोक पिलर भी है ! इस स्तूप की ऊंचाई करीब 43. 6 मीटर और व्यास 28 मीटर का है ! कहते हैं ऐसी नींव अशोक ने खुद राखी थी और इसके ऊपर की बनावट (Carvings ) बाद के गुप्त वंश के शासकों की देन है ! इस बनावटों में पक्षी , जानवर और मानव को दिखाया गया है , हालाँकि बहुत कुछ खत्म भी हो रहा है ! ऐसा कहा जाता है कि इस स्तूप की ऊंचाई को अलग अलग समय पर छह बार बढ़ाया गया है लेकिन फिर भी इसका ऊपर का हिस्सा अधूरा रह गया !

इस पोस्ट के बाद आपको भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की गयी खुदाई और उसमें मिले अवशेषों को दिखाने , उनके विषय में बात करने के लिए ले चलूँगा ! आप इस पोस्ट को पढ़िए तब तक मैं 10 जून से 22 जून तक सतोपंथ -स्वर्गारोहिणी की यात्रा संपन्न करके आता हूँ !! जल्दी ही मिलेंगे ! 


बोलो जय बद्री विशाल !!

























Carvings of Dhamek Stupas 



Carvings of Dhamek Stupas 

Carvings of Dhamek Stupas 








ये मैं देख ही नहीं पाया ! ये अशोक का स्तम्भ है ( Ashoka Pillar ) है
                                                        

ये फोटो नेट से उठाई गयी है


                                                                                                              

                                                                                                                                                      आगे भी जारी रहेगा :

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