गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

Sas-Bahu Mandir : Gwalior

इस यात्रा को शुरू से पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक कर सकते हैं।


Date of Journey : 03 Dec.2019 


ग्वालियर को जी भर के देखने के लिए एक दिन पर्याप्त नहीं है लेकिन हाँ , कुछ जगहों पर विशेष फोकस और कम महत्व वाली जगहों पर पाला -छूने की ट्रिक अपनाने से संभवतः आप ग्वालियर के सभी स्थानों को घूम सकते हैं। मेरी ग्वालियर घूमने की भूख शांत नहीं हुई है , हाँ ! कुछ संतुष्टि जरूर मिली है। अभी मैं सिर्फ जैन मुनियों की मूर्तियों को फिर से , मन भर के देखने के लिए जाना चाहता हूँ। फिर से जाना चाहता हूँ श्योपुर वाली ट्रेन से यात्रा करने के लिए फिर से एक दिन जाना चाहता हूँ। फिर से जाना चाहता हूँ कचौड़ी और पोहा खाने के लिए। इसके अलावा ऐसा कुछ नहीं रहा जो मैं देखना चाहता था लेकिन देख नहीं पाया ! बहुत ही व्यस्त और बहुत ही मस्त दिन रहा 03 दिसंबर 2019 मेरे लिए। पहले शरद जैन जी , फिर विकास नारायण श्रीवास्तव और शाम होते -होते रितेश गुप्ता जी से मुलाकात ने इस दिन को विशिष्ट और यादगार बना दिया था।



बंदी छोड़ गुरूद्वारे से निकलकर एक-एक कप चाय के लिए मैं और शरद जी एक टपरी पर थे जब रितेश जी का पता चला कि वो भी फोर्ट काम्प्लेक्स में ही मौजूद हैं। हालाँकि इतना मालुम था कि वो आगरा से ग्वालियर आये हुए हैं किसी शादी समारोह में। इतने बड़े ब्लॉगर से मुलाक़ात का लालच कैसे छोड़ पाते हम ? आखिर उन्हें सासबहू मंदिर के प्रांगण में पकड़ ही लिया उनकी धर्मपत्नी जी के साथ। सास-बहु मंदिर का ग्वालियर ही क्या भारत में ही कहीं होना गले से नीचे नहीं उतरता ! जिस देश में सास ने बहु को दहेज़ के लिए जिन्दा जलाया हो ! कभी बेटी का दर्जा न दिया हो ! उस देश में सास -बहु का मंदिर होना , उनके प्रेम को तो नहीं व्यक्त कर सकता ? हाँ अब व्यवस्थाएं , मान्यताएं। सोच और मानसिकताएं बदली हैं लेकिन ये मंदिर आज के नहीं हैं। ये 11 वीं शताब्दी के हैं। 

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सास-बहु , सहस्त्रबाहु मंदिर या हरिसदनम मंदिर एक ही मंदिर के नाम हैं। नहीं -नहीं एक नहीं ये दो मंदिर हैं जो राजा महिपाल ने 11 वीं शताब्दी में बनवाये हैं। हाँ ये कहानी सच लगती है कि इनमें से एक मंदिर राजा की महारानी ने बनवाया जो विष्णु भक्त थीं और इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की। इस मंदिर को सहस्त्रबाहु (Thousand Arms ) मंदिर कहा गया। ये मंदिर दूसरे वाले मंदिर से कुछ बड़ा भी है। आखिर सास ने बनवाया था तो बड़ा होना भीचहिये था क्यूंकि सास , हमेशा ही बहु से कद और पद में बड़ी होती है। दूसरा मंदिर कुछ छोटा है जिसे महाराजा महिपाल की पुत्रवधु ने बनवाया जो शिवभक्त कही जाती थीं। हालाँकि मंदिर देखने पर लगता है कि मंदिर की दीवारें विष्णु , शिव , ब्रह्मा , सरस्वती और अन्य देवी -देवताओं की सुन्दर प्रतिमाओं से सुसज्जित हैं । मंदिर की दीवारों पर वैष्णव , शैव और शक्ति से सम्बंधित विभिन्न प्रतिमाओं और उनसे सम्बंधित परम्पराओं को बहुत ही सुन्दर रूप में उकेरा गया है। इन मंदिरों में भगवान विष्णु को पदमनाभन के रूप में विराजमान किया गया है जो इस क्षेत्र के जैन और हिन्दू मंदिरों की विशेषता कही जाती है। भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित विभिन्न लीलाओं को भी दीवारों पर बने चित्रों-प्रतिमाओं के माध्यम से व्यक्त किया गया है। 

ग्वालियर फोर्ट के अंदर जाते समय आपको एक टिकट लेना पड़ता है। सास-बहू मंदिर के लिए अलग से टिकट नहीं लगता बल्कि उसका टिकट भी इस फोर्ट वाले टिकट में ही शामिल रहता है। बड़े मंदिर में (जिसे सास मंदिर भी कहते हैं ) जब आप अंदर पहुँचते हैं तो इस को कई बार विध्वंस किये जाने के लक्षण आपको साफतौर पर दिखाई देते हैं। दुःख होता है और गुस्सा भी आता है। बाहर से जरूर मंदिर को पुराना रूप देने की बेहतर कोशिश हुई है लेकिन अंदर उनके आतंक और उनकी बेशर्मी के सबूत आसानी से देखने को मिलेंगे। 

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अगर आप कभी ग्वालियर जाते हैं और अगर आपके पास समय की परेशानी नहीं है तो सास-बहु मंदिर देखने के लिए शाम यानी अँधेरा होने से पहले का समय चुनिए। उस वक्त आपको ये मंदिर और भी खूबसूरत लगेंगे।

तो अभी जैन मूर्तियां देखने चलेंगे और फिर उसके बाद तेली मंदिर जाएंगे। बने रहिये साथ-साथ.......


सासबहू मंदिर का बड़ा मंदिर , जिसे सास मंदिर भी कहा जाता है 
प्रवेश द्वार की सुंदरता देखिये 




11 वीं शताब्दी में इतना महीन और महान काम.... गज़ब है 


सासबहू मंदिर का छोटा मंदिर जिसे बहु मंदिर कह सकते हैं 





फिर मिलेंगे जल्दी ही ........

3 टिप्‍पणियां:

Jyotirmoy Sarkar ने कहा…

This is wonderful,honestly did not know about it, never heard, thanks for the details.
Enjoyed this virtual tour with these beautiful captures.

Ritesh Gupta ने कहा…

बढ़िया योगी जी .... आप जैसे बड़े ब्लॉगर से उस मुलाकात मेरे लिये सौभाग्य की बात थी, सच मे पहली बार मिले पर लगा ही नही की पहली बार मिले है ।
सास बहू का मन्दिर हमे भी अच्छा लगा , और अच्छा लगता यदि ये आबाद होता , जिससे इसका सही से रखाब हो पाता । पर किले पर हुए आक्रमण ने सब नष्ट किया ।
अच्छा लगा ब्लॉग और चित्र

shayarikabox ने कहा…

Nice