सोमवार, 31 अगस्त 2020

Jain Temple in Deogarh (Lalitpur) : देवगढ़ का जैन मंदिर 

 दशावतार मंदिर में ज्यादा देर नहीं लगी। ऑटो वाला बाहर ही इंतज़ार कर रहा था मेरा।  बाहर आया , पानी की बोतल भरी और फिर से बैठ गया ऑटो में , चलो भाई ! जैन मंदिर चलते हैं।  दशावतार मंदिर से 1 -1.5 किलोमीटर और आगे होगा जैन मंदिर।  दोनों तरफ जबरदस्त हरियाली , घना जंगल और दूर से सुनाई पड़ती बेतवा नदी की आवाज। बहुत ही शांत और रमणीय स्थल। रहने -खाने की कोई सुविधा नहीं है।  यहाँ तक कि चाय पीने तक के लिए कोई दुकान वगैरह नहीं है।  एकदम गाँव है और अगर आप इस विचार को लेकर जा रहे हैं कि वहां कुछ ऐसा मिलेगा भी तो ऐसा मत सोचिये।  प्रकृति के अद्भुत रूप और मंदिर के सिवाय कुछ नहीं हैं वहां , हाँ ! पानी मिल जायेगा !  


मैं अंदर गया तो तीन -चार लड़के इधर -उधर टहलते हुए दिखे।  मैं समझ गया कि कर्मचारी ही होंगे , नहीं तो कोई इतना दूर क्यों आएगा ? हाँ , मेरे जैसा पागल होगा तो वो कहीं भी चला जाएगा !! मंदिर बहुत प्राचीन लगा देखने से और उतना ही स्वच्छ भी।  खूब फोटो खींचे , वीडियो बनाया और अब चल भैया वापस जाखलौन ! जाखलौन से ललितपुर !!ये जो जैन मंदिर हैं वो 8वीं या 9वीं शताब्दी के हैं। यह मंदिर किले के अन्दर और बाहर स्थित हैं। यह भव्य मंदिर खुदाई के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है और प्राचीन भारत के स्मारकों की श्रेष्ठता को दर्शाता है। मंदिर के दीवार पर सुन्दर भित्तिशिल्प बने हैं जो जैन कला और संस्कृति को दर्शाता है। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बने हैं। संग्राहालय के सर्वेक्षण से पता चला है है कि 31 जैन मंदिर का अर्थ निकाला गया है। यह सारे मंदिर इस जगह पर बने हिन्दू मंदिरों के बाद बने हैं। उस समय के अनुसार जब यह बने थे इनको दो समय काल में बांटा गया है: शुरूआती मध्यकालीन काल और मध्यकालीन काल। 


ललितपुर लौटकर उसी होटल में खाना खाया लेकिन  इस बार जबरदस्ती पैसे दिए उन्हें।  5 दिसंबर थी 2019 की।  खाना खाके मैं सामने ही दिख रहे ललितपुर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में पहुँच गया।  मेरी ट्रेन का निर्धारित समय साढ़े आठ बजे का था , हालाँकि वो आई 12 बजे के बाद ।  लेकिन इस दरम्यान मेरी हालत खराब रही और क्या क्या झेलना पड़ा वो बताता हूँ।  5 दिसंबर था और हल्की हल्की ठंड थी।  स्वेटर डाल के बैग को कंधे के नीचे लगाया और आराम करने लगा। ....... थका हुआ शरीर था , कब आँख लग गई ! पता ही नहीं चला ! पता तब चला जब छह सात पोलिसकर्मी मुझे जगा रहे थे :) मेरा बैग चेक हुआ , एक -एक सामान चेक हुआ।  पूरी पूछताछ हुई।  जाते -जाते हड़का के गए।  छह बजे होंगे उस वक्त।  बैग लटकाया और बाहर निकल आया।  चाय पी और आमलेट खाने लगा।  पुलिस का दस्ता चला आ रहा था रोड पर ! आमलेट वाले ने डर के अपना ठेला पीछे की तरफ सरका लिया।  मैंने ऐवें ही पूछ लिया -तू क्यों डर गया ? अरे कल 6 दिसंबर है उस चक्कर में ज्यादा ही पुलिस की चहलपहल है।  मेरा माथा ठनका !! अरे हाँ !! कल विजय दिवस है और कुछ के लिए काला दिवस।  अब असली बात समझ आई लेकिन तब तक सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला दे चुका था लेकिन कुछ लोगों की चुल्लु हमेशा हिलोरें मारती रहती है।  अभी खतरा टला नहीं , उधर का तो टल गया मेरा नहीं टला ! मैं फिर से उसी प्रतीक्षालय में , उसी सीट पर आकर बैठ गया।  आधा घंटा बैठा होऊंगा और फिर बैग छोड़ के इधर -उधर घूमने लगा।  इस इधर -उधर में खाली पड़े प्लेटफार्म पर जाकर आती जाती ट्रेनों को देखता रहा , बच्चे की तरह।  और उधर -मेरा बैग फिर से चेक हो रहा था किसी मेटल डिटेक्टर से।  बैग में पावर बैंक , कैमरा , छोटा चाक़ू , चैन जाने क्या क्या था और मेटल डिटेक्टर कांय -कांय किये जा रहा था।  जोर -जोर की आवाज आ रही थी -किसका बैग है ये ? बताओ किसका बैग है ये ? और हम मजे से प्लेटफार्म पर ट्रेन गिन रहे थे।  आवाज सुनकर प्रतीक्षालय की तरफ लौटा तो देखा -मेरा ही बैग है !! और इस बार पुलिस के साथ -साथ ब्लैक यूनिफार्म वाले चार कमांडो भी हैं।  और तो और वो पोलिस अफसर भी साथ हैं जो कुछ घंटे पहले ही मुझे हड़का के गए थे।  अब लग गई लंका !! 

भयंकर डांट पड़ी !! गनीमत रही कि सुताई नहीं हुई।  कैमरा चेक किया , फोटो चेक किये ! फ़ोन चेक किया , कांटेक्ट चेक किये और Recent Calls चेक किये।  आधार कार्ड चेक हुआ , whats app की चैट चेक हुई।  मुझे लगा -आज गया मैं अंदर ! Recent calls में Home मिला। किसका नंबर है ये -मेरी वाइफ का है !! OK !! कॉल करो और फ़ोन को स्पीकर पर लगाओ !! बात हुई , वो संतुष्ट हुए और एक बढ़िया सी डोज़ देके चले गए।  

झांसी -इटारसी पैसेंजर ट्रेन 12 बजे के बाद ही आई।  करीब पांच घंटे लेट और मैं चल दिया विदिशा लेकिन नींद का कच्चा आदमी , विदिशा की टिकट लेकर भोपाल पहुँच गया बिना टिकट ही।  बाकी बातें अगले ब्लॉग में ..... 

 









































यहाँ नहीं जा पाया मैं
यहाँ नहीं जा पाया मैं 




भगवान महावीर सेंचुरी है ये दोनों तरफ 

                                           लौट के बुद्धू घर को .......न न ललितपुर स्टेशन आये :) 

 

शनिवार, 1 अगस्त 2020

Dashavatara Temple, Deogarh (Lalitpur)-UP

दशावतार मंदिर , देवगढ़ (ललितपुर ) 
यात्रा दिनांक : 05 दिसंबर 2019



सुबह का समय था और घड़ी की सुइयां धीरे धीरे 10 बजने की तरफ बढ़ रही थीं जब ललितपुर जैसे छोटे से रेलवे स्टेशन से बाहर निकल रहा था। बड़े बड़े विक्रम टेम्पो तितर -बितर होकर आड़े -तिरछे जहाँ -तहाँ खड़े हुए थे। और तो और जो बाहर आने -जाने का रास्ता था उसके सामने भी टैंपो खड़े थे। मैं तो जैसे -तैसे निकल गया लेकिन महिलाओं को , विशेषकर मोटी सी महिलाओं को बहुत परेशान होते हुए देख रहा था। न पुलिस और न ट्रैफिक का कोई नियम -कानून ! भूख लगने लगी थी तो रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर दोनों तरफ कई होटल बने हुए दिख गए और हम एक में जा बैठे। बैग भारी था। आखिर आठ दिन के लिए कपड़े थे और ठण्ड के मौसम की वजह से कुछ गर्म कपड़े भी ....तो बैग फुल हो गया था और भारी भी। इसे और आगे "ढोना " नहीं चाहता था। नाश्ता करने के बाद उसी होटल वाले से पूछा -भैया बैग यहाँ छोड़ दें क्या ? भैया से पूछ लेना ! भैया ? जी। .. होटल मालिक ! आने वाले होंगे ! जब तक भइया आएं -तुम एक कप चाय और दो कचौड़ी और खिला दो ! उसके साथ सब्जी और दही ने स्वाद को और बढ़ा दिया !


भैया आये तो उनसे भी यही सवाल -बैग यहाँ छोड़ के जा सकता हूँ ? मुझे देवगढ़ जाना है ! आप कहाँ से आये हैं ? जी -गाजियाबाद से !

आप सुबह आये होते तो छह बजे यहाँ से एक बस जाती है , उससे चले जाते। आप जैन हैं ? नहीं , मैं जैन नहीं हूँ ! गाजियाबाद में कहाँ से है ? जी ---शास्त्री नगर से ! कौन से ब्लॉक से ? H ब्लॉक से !! H ब्लॉक से ... आप फलां जैन को जानते हैं ? हाँ जी जानता हूँ !! उनकी स्पोर्ट्स के सामान की दुकान है ! फिर और बातें हुईं। .. बैग वहीँ रखा ! नाश्ते के कितने पैसे हुए ? कुछ नहीं !! आपको पैसे नहीं देने हैं और हाँ , जब लौट के आएंगे देवगढ़ से तो आपको खाना भी यहीं खाना है !!  इस रिश्ते को क्या नाम दूँ ?

ललितपुर से देवगढ़ करीब 30 किलोमीटर तो होगा ही और ऑटो वाले का 500 रुपया माँगना गलत भी नहीं था लेकिन 500 रुपया मेरे लिए ठीक नहीं था। इतना महंगा ट्रिप नहीं बनाता मैं अपना। करीब आधा घंटे बाद यानी साढ़े ग्यारह के आसपास बस आई जो केवल जाखलौन तक जायेगी। कुछ तो आगे बढ़ेंगे ही। जाखलौन से बस 10 किलोमीटर के आसपास ही रह जायेगा देवगढ़। वैसे एक और बात है -अगर थोड़ा होमवर्क करता पहले तो जिस ट्रेन से ललितपुर आया था उसका एक हिस्सा टीकमगढ़ जाता है और दूसरा होस्सा बीना की तरफ जाता है। बीना वाले ही रूट पर ललितपुर से अगला स्टेशन जाखलौन ही है लेकिन ये सुविधा आपको तभी मिलेगी जब आप मेरी तरह पैसेंजर ट्रेन से यात्रा कर रहे होंगे अन्यथा तो आपको ललितपुर ही उतरना पड़ेगा। और हाँ , ललितपुर स्टेशन भी बहुत बड़ा स्टेशन नहीं है और न बहुत ज्यादा ट्रेन यहाँ रूकती हैं।


जाखलौन पहुँच चुका हूँ। नमक लगा खीरा अच्छा लगता है , दो खीरे खाने में बुराई नहीं है और इतनी देर में एक ऑटो भी तय कर लिया 200 रूपये में। हालाँकि मैं चाहता था कोई बाइक वाला मिल जाए जो मुझे देवगढ़ के दर्शन करा लाये। होई है वही .........जो राम रची राखा !! 


गजमोक्ष का दर्शन

 दशावतार मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर है जिसे 6th Century में बनाया गया था। ऐसे कहा जाता है कि इसे गुप्तकाल में बनाया गया था। बेतवा नदी की रमणीक घाटी में स्थित ये मंदिर आज के मंदिरों जैसा भव्य भले न हो लेकिन बहुत ही प्राचीन जरूर है। इतने पुराने मंदिरों में से बचे कुछ गिने -चुने मंदिरों में से एक दशावतार मंदिर की एक विशेषता इसका इतना प्राचीन होना भी है। मंदिर हालाँकि विष्णु जी को समर्पित है किन्तु आप यहाँ शिव , पार्वती , कार्तिकेय के साथ -साथ इसके मुख्य प्रवेश द्वार पर गंगा -यमुना की मूर्तियां भी देख सकते हैं। अच्छी बात ये है कि अब इस मंदिर को ASI ने अपने संरक्षण में ले रखा है जिससे कुछ और सुधार होने की गुंजाइश तो बढ़ती ही है। दशावतार का शाब्दिक अर्थ है -विष्णु जी के दस अवतार जो यहाँ परिलक्षित किये गए थे लेकिन इनमें से कुछ अवतार की मूर्तियां अब "मिसिंग " हैं।


दशावतार मन्दिर का शिखर अधिक ऊँचा नहीं है, वरन् इसमें क्रमिक घुमाव बनाए गए हैं। इस समय शिखर के निचले भाग की गोलाई ही शेष है, किन्तु इससे पूर्ण शिखर का आभास मिल जाता है। शिखर के आधार के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ की सपाट छत थी, जिसके किनारे पर बड़ी व छोटी चैत्य खिड़कियाँ थीं, जैसा कि महाबलीपुरम के रथों के किनारों पर हैं।



मुख्य मंदिर एक बड़े प्लेटफार्म पर बना है और आधार प्लेटफार्म आयताकार दीखता है। मंदिर लगभग इसके मध्य में स्थित है और मंदिर की तीन दीवारें एक से एक बेहतरीन , दुर्लभ विष्णु अवतार की मूर्तियां से और अन्य मूर्तियां से भी शोभायमान कर दी गयी हैं। मुख्य द्वार के दोनों तरफ गंगा -यमुना सहित अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां सजाई हुई हैं। आप जब इसे देखेंगे तो स्वतः ही कहेंगे -वाओ ! क्या खूबसूरत मूर्तिकला है ! अद्भुत !!

विष्णुजी , शेषनाग की छाया में विश्राम लेते हुए






ये​ मुख्य प्रवेशद्वार है













आज इतना ही। अब आगे चलेंगे एक और खूबसूरत जगह देखने यहीं देवगढ़ में ही .....

इस जगह का एक वीडियो भी बनाया था। आप चाहें तो देख सकते हैं: https://www.youtube.com/watch?v=mIXLGVyI7Ng