बुधवार, 9 सितंबर 2020

Train Journey from Bhopal to Ujjain


भोपाल से उज्जैन पैसेंजर ट्रेन यात्रा 
 06 December 2019 

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मुश्किल सफर था।  साढ़े आठ बजे की ट्रेन रात 12 के भी बाद आई।  विदिशा उतरने का प्लान था और फिर वहां से साँची स्तूप के साथ -साथ दूसरी जगहों तक जाने का भी सोचा था।  ट्रेन चार घंटे लेट थी , तो ये सोचकर कि विदिशा भी चार घंटे लेट पहुंचेगी यानि साढ़े नौ बजे के आसपास, हम लम्बी चादर तानकर सो गए ! हमारे यहाँ एक कहावत है -जो सोवेगौ वो खोवैगौ !! खो ही गया मैं ! सुबह आँख खुली तो टाइम तो साढ़े सात का ही हुआ था लेकिन ट्रेन भोपाल के आउटर पर खड़ी थी।  पता नहीं ट्रेन के ड्राइवर ने कौन सी भांग पी ली थी रात जो इतना तेज खींच लाया ट्रेन को।  विदिशा धरा रह गया मेरा और धरी रह गयीं आज की सारी प्लानिंग।  टिकट भी विदिशा तक का ही था मेरे पास। गया बेटा -अब पकड़ा जाएगा तू !! भोपाल बड़ा स्टेशन है और बहुत से काले कोट इधर -उधर घूमते रहते हैं, तेरा बचना इम्पॉसिबल है ! बोले तो -असंभव  !!  यूपी वाला ठुमका लगाया , न न यूपी वाला दिमाग लगाया और आउटर पर उतर लिए। कुछ देर तक धीरे -धीरे रेलवे लाइन के सहारे चलते रहे और फिर किसी बस्ती में पहुँच गए।  कोई टेम्पो आया और मैं भी बैठ गया उसमें।  बराबर में एक मोहतरमा बैठी थीं , उनके परफ्यूम ने होश बिगाड़ दिए लेकिन तुरंत ही अपने आपको कण्ट्रोल में लाया।  मैडम स्कूल टीचर लग रही थीं। वो इतनी महक रही थीं और मुझमें से सड़े टमाटर सी गंध आ रही होगी उन्हें इसलिए मुझसे थोड़ी और दूरी बना ली :)  


भोपाल रेलवे स्टेशन के बाहर पहुंचने पर कुछ राहत की सांस ली।  पेनल्टी से बच गए।  अब चाय पिएंगे , नहाएंगे और फिर उज्जैन की तरफ मुंह करके खड़े हो जाएंगे।  जो ट्रेन आएगी सीटी बजाती हुई , उसी में चढ़ जाना है।  Ujjain , The city of Mahakal is calling me ! GDS is calling me !! अरे यार ! ये भोपाल वाले बस इतनी सी चाय पीते हैं क्या ? बहुत ही छोटा कप मिला चाय का प्लेटफार्म पर ! दो घूँट मारे और चाय खत्म , फिर एक और ली .. फिर एक और ली ! तीन कप चाय पीने के बाद कुछ लगा पेट को और बोला -हाँ ! मालिक , अब ज़रा कुछ संतुष्टि मिली !! मेरा पेट भी मेरे साथ ही रहता है ज्यादातर.. . यात्रा में भी ... भावनाओं में भी।  ये मेरी बात मान लेता है और मैं इसकी .. लेकिन आजकल ये अपने साइज से कुछ बड़ा हो गया है ज्यादा खा खा के।  

भयंकर !! मोबाइल नेट ऑन करते ही न्यूज़ फ़्लैश हुई -हैदराबाद में बलात्कार के चारों आरोपियों का एनकाउंटर ! दुःख नहीं प्रसन्नता हुई मुझे तो।  आपकी सोच आप जानें लेकिन अभी ट्रेन आ गई है कोई , निकलता हूँ !  


भोपाल से निकले तो संत हिरदाराम नगर नाम का कोई स्टेशन आया।  छोटा सा है और शायद नया बना है।  जल्दी ही सीहोर आ गया।  भोपाल से करीब 40 किलोमीटर दूर होगा सीहोर और पता है इस जगह का नाम कब से सुन रहा हूँ मैं ? करीब 30 साल से ! नहीं नहीं मेरा पहला जन्म नहीं हुआ था सीहोर में (और हुआ भी हो तो क्या पता :)) ... मेरी बड़ी बहन के ससुर जी यहाँ मास्टर जी हुआ करते थे किसी जूनियर हाई स्कूल में , तब से इस जगह का नाम मेरे दिमाग में अपना कब्जा जमाये हुए है।  अवैध कब्जा है लेकिन।  सीहोर मालवा क्षेत्र की विंध्याचल रेंज में बसा एक छोटा सा , सोतडू सा शहर लगा मुझे तो लेकिन लोग लिखते हैं कि यहाँ शैव्य , वैष्णव , नाथ और जैन सम्प्रदाय के साधकों ने अनन्य और अदभुत ज्ञान पाया है ।  अब कैसा भी हो सीहोर लेकिन इतिहास का एक अहम् हिस्सा रहा है ये शहर और विशेषकर तब जब यहाँ राजा चन्द्रगुप्त का  शासन था।  आगे चलते हैं , बाय बाय सीहोर ! फिर मिलेंगे 


अगला स्टेशन कालापीपल था।  ट्रेन कुछ देर रुकी भी रही यहाँ , शायद ड्राइवर चाहता होगा कि मैं कालापीपल देख आऊं लेकिन मुझे कहीं नहीं दिखा कालापीपल !! आपको दिखे तो मुझे जरूर बताना !! 


शुजालपुर पहुँच गए।  शुजालपुर खुद कोई जिला नहीं है बल्कि शाजापुर जिले का एक टाउन है।  शुजालपुर के राणोगंज में ग्वालियर राजघराने के  संस्थापक राणोजी राव शिंदे (सिंधिया ) की छतरी है जहाँ उनकी 1745 ईस्वी में मृत्यु हुई थी।  वहां जाना नहीं हो पाया क्योंकि आज उज्जैन पहुंचना ही है मुझे। ... 


अकोदिया , कालीसिंध और बेरछा स्टेशन निकल गए।  बेरछा निकलते ही लैंडस्केप एकदम से बदला हुआ सा लगा। हरे भरे खेत तो थे ही , दूर तक wind Mills दिखाई दे रही थीं।  एक दो या दस बीस नहीं , सैकड़ों की तादाद में मौजूद wind Mills भारत के नए कदमों की तरफ इशारा कर रही थीं।  मुझे wind मिल देखकर बहुत आनंद मिलता है।  ये Non Conventional Energy Resources के बहुत बड़े माध्यम हैं।  wind Mills का ये शो बेरछा से शुरू होकर मुझे देवास तक दीखता रहा और मुझे अंदर तक प्रफुल्लित करता रहा।  





 मक्सी जंक्शन आ गया भाई लोगो , जिसे उतरना है उतर जाओ।  ट्रेन बदलनी है तो बदल लो मगर हम तो इसी से जाएंगे।  मक्सी देखने में तो किसी जंक्शन सा नहीं लगा।  एक ट्रेन खड़ी थी वहां बस।  छोटा ही है स्टेशन।



                       जिसने भी ये सीढ़ियां बनाई होंगी , उसे भारत रत्न के लिए नामित किया जाना चाहिए😄😄
            
 रणायल जसम्या स्टेशन है अगला।  लो जी आ पहुंचे देवास। देवास , सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में खूब पढ़ा था कभी बचपन में।  क्यों पढ़ा था ? इसलिए पढ़ा था कि यहाँ भारत सकरकार की नोट छपने की फैक्ट्री है।  खुश हुए न आप ? मैं भी बहुत खुश होता था लेकिन फिर बाद में समझ आया कि हमें पैसे छापने नहीं  कमाने पड़ते हैं।   अब बस प्लेटफार्म बदल के उस तरफ से उज्जैन की ट्रेन पकड़नी है।  जो भी आएगी चढ़ जाना है ...








जय महाकाल !!