सोमवार, 10 सितंबर 2018

Adi Kailsh Yatra - Fifth Day ( Om Parvat to Nabi Village )

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नाभीढांग , कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्रियों के ठहरने का भारत में अंतिम "स्टॉप" है जहाँ से आगे यात्री लगभग नौ किलोमीटर दूर लिपुलेख दर्रा पार कर तिब्बत में प्रवेश कर जाते हैं। नाभीढांग पर कोई स्थाई निवासी नहीं है और न आईटीबीपी का स्थाई कैंप है। यहां यात्रा के समय में ITBP अपना कैंप बना लेती है और उनके साथ ही गुंजी के कुछ लोग भी आ जाते हैं और अपना "होटल " खोल लेते हैं। नाभीढांग में KMVN का गेस्ट हाउस भी है और फ़ोन की लैंडलाइन सुविधा भी उपलब्ध है हालाँकि कॉल रेट 6 रूपये प्रति मिनट है लेकिन सुविधा मिल रही है अपने घर बात करने की , ये ज्यादा मायने रखता है !


हम कल शाम को पांच बजे के आसपास नाभीढांग पहुँच गए थे और सीधे अशोक सिंह गुंज्याल के "दिव्यांश " छान में पहुँच गए। चार -पांच छान और भी हैं यानि रुकने -खाने की कोई दिक्कत नहीं। कोठारी जी , KMVN के रेस्ट हाउस में रुके थे क्यूंकि उन्हें "इंग्लिश टॉयलेट " की जरुरत पड़ती है। हरजिंदर तेज चलने वालों में और सबसे पहले पहुँचने वालों में हैं इसलिए जब तक मैं और जोशी जी पहुंचे , हरजिंदर भाई ठिकाना तलाश चुके थे और ठिकाना मात्र 150 Rs प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाब से था। इतना सस्ता और कहीं संभव है ? लेकिन चाय अलग होगी , मैगी अलग होगी। कोई नहीं , वो भी यहाँ कुछ कमाने के लिए ही बैठे हैं। गर्मागर्म चाय पीने के बाद भी अभी लग रहा था कि अभी आसपास की जगहों को देखने का पर्याप्त है तो निकल चले अपना कैमरा उठाये। यहां एक सीमा से आगे नहीं जा सकते और वो सीमा मंदिर के आसपास ही खत्म हो जाती है। मंदिर न ज्यादा बड़ा है न ज्यादा खूबसूरत लेकिन इसके बनने की कहानी रोचक है। एक बार कोई मंत्री जी हेलीकाप्टर से परिवार सहित मर्यादा भंग करते हुए ओम पर्वत के ऊपर से निकल रहे थे , हालाँकि पायलट ने उन्हें बताया था कि ओम पर्वत के बिल्कुल ऊपर से जाना सुरक्षित नहीं है क्यूंकि ऐसा करना धार्मिक मान्यता के भी विरुद्ध होगा और ओम पर्वत से निकलने वाली किरणें भी हेलीकाप्टर को नुक्सान पहुंचा सकती हैं लेकिन मंत्री जी को धुन सवार थी कि ओम पर्वत के बिल्कुल ऊपर से ही जाना है और जैसे ही वो ओम पर्वत के बिल्कुल ऊपर पहुंचे , हेलीकॉप्टर लड़खड़ाने लगा और नीचे गिर गया। सौभाग्य से मंत्री जी और उनका परिवार तो बच गया लेकिन हेलीकॉप्टर तहस -नहस हो गया। खुद के और परिवार के जिन्दा बच जाने का एहसान उन्होंने भगवान का मंदिर उसी जगह बनाकर उतारा जिस जगह उनका हेलीकाप्टर गिरा था। उस हेलीकाप्टर को भी आप उसी स्थिति में पड़ा हुआ यहां देख सकते हैं और हमारी तरह इस पर चढ़कर खूब फोटो खींच सकते हैं।

खाना खाने अशोक सिंह गुंज्याल के किचन में ही बैठ गए और बातें चलने लगीं। दोनों पति -पत्नी हंसमुख और मेहनती हैं जिनका बेटा दिव्यांश भी इन्हीं के साथ यहीं इस ऊंचाई पर रहता है। ये वो ऊंचाई है जहां अच्छे अच्छे तुर्रमखां आने से डरते हैं और बहुत से ऑक्सीजन की कमी की वजह से घरों से ही नहीं निकलते , यहां 4550 मीटर की ऊंचाई पर दिव्यांश अकेला ही बालक है और हर यात्री के साथ -साथ वहां पोस्टेड हर ITBP जवान का लाडला है। उसे देखकर ऐसा लगा जैसे हर जवान उसमें अपने बच्चों की शक्ल तलाश रहा हो , मुझे भी उस बच्चे को और उसकी शैतानियों को देखकर अपने दोनों बच्चों की याद आ गई थी। लेकिन इसकी शैतानियां मेरे बच्चों की शैतानियों से ज्यादा , बहुत ज्यादा थीं और शायद हिम्मत भी। हम जहाँ एक -एक पैर गिन गिन के उठाते वहीँ ये बच्चा दिव्यांश , बार -बार अपना रिक्शा नीचे से ऊपर ले जाता और वहां से खूब तेज स्पीड में नीचे लेकर आता। न थकान न जोश में कमी। बचपन की पूरी मस्ती। अशोक जी की पत्नी बहुत हसमुख और अच्छी महिला हैं , खाना बहुत टेस्टी बनाती हैं। मूल रूप से नेपाल की रहने वाली क्रांति खूब अच्छी हिंदी बोलती हैं और समझती हैं और उन्होंने दुकान में जरूरत का लगभग हर सामान लगाया हुआ है। फ़ोन और कैमरा चार्जिंग की सुविधा अभी तक हर जगह मिली है और यहां भी उपलब्ध है।

आज 16 जून है और साल 2018 चल रहा है। हम यहाँ नाभीढांग में हैं ओम पर्वत के दर्शन करने आये हैं और इस वक़्त हम तीन लोग , मैं , हरजिंदर सिंह और भरत जोशी जी , अशोक सिंह गुंज्याल के छान में इस इंतज़ार में रजाइयों में सिकुड़े पड़े हैं कि ओम पर्वत के ऊपर से बादल हटें तो हमें दर्शन का सौभाग्य मिल सके लेकिन आज शायद सूर्य देवता हमसे नाराज हैं। और हमसे ही क्या , नाभीढांग आये हुए आदि कैलाश के अन्य यात्रियों और कैलाश मानसरोवर यात्रियों से भी नाराज हैं इसीलिए आज पूरा दिन नजर नहीं आये। पूरा दिन बस रजाई में पड़े -पड़े ही गुजारना पड़ा। यहां आये हैं और ओम पर्वत के दर्शन के बिना वापस चले जाएँ ये संभव नहीं , हालाँकि मौसम विभाग ने 14 जून से 18 जून तक भारी बारिश की भविष्यवाणी की थी पूरे उत्तराखंड में लेकिन बारिश तो नहीं हुई हाँ आज बादल जरूर रहे। थोड़े से बादल हटते तो दूर नाग पर्वत के थोड़े से दर्शन हो जाते तो कभी पास में ही स्थित त्रिशूल पर्वत के दर्शन हो जाते। ये त्रिशूल पर्वत अलग है जिस पर त्रिशूल की शेप जैसी उभर आती है। इस दरम्यान कोठारी जी भी हमारे ही "आश्रम " में आ गए और उनके आने का बड़ा फायदा ये हुआ कि ताश के नए गेम "नाभि " का आविष्कार हो गया। ये गेम कुछ और था लेकिन इसके दूसरे रूप को हमने विकसित किया और यहां नाभीढांग में विकसित हुआ इसलिए कोठारी जी ने इसका नामकरण " नाभि " कर दिया और जैसा कि होता आया है , मैं ही इस गेम को हारा। बार -बार -लगातार ! लेकिन खेलने में जो मजा आया वो हार -जीत से ज्यादा था।

आज का दिन बस ताश खेलकर ही गुजरा। कभी -कभी समय ऐसे भी गुजरना चाहिए - न कोई मंजिल हो न कोई लक्ष्य हो -न कोई जिम्मेदारी हो -न कोई काम हो। बस खाओ पियो और पड़े रहो :) अजगर की तरह। शाम हुई तो कुछ और लोग हमारी वाली "खोली " में घुस आये। ये घोड़े -खच्चर वाले लोग थे जिन्होंने आते ही "चकती " निकाल ली और चकती खत्म करते -करते पहले उनमें कुछ तू -तू मैं -मैं हुई और फिर जो उन्होंने गढ़वाली या कुमायूंनी या नेपाली कोई गाना गाया। भाषा समझ नहीं आई लेकिन उनका जोश , उनके सुर ने दिल खुश कर दिया। रूमसेला ... रूमसेला .......ओ रूमसेला ऐसे कुछ बोल थे उनके। जिसमें रूमसेला का मतलब उन्होंने भगवान विष्णु बताया और ये गाना भगवान विष्णु को ही समर्पित था। जहां तक मेरा ब्लॉग पहुंचे तो प्लीज कोई बताइयेगा इस गाने के बारे में।

आज 17 जून है और हमें यहाँ नाभीढांग में दूसरा दिन है। सुबह अच्छी है लेकिन अभी भी सूरज पूरी तरह से बाहर नहीं आया। हम तो नल्ले हैं पड़े रहेंगे लेकिन आदि कैलाश के जो यात्री KMVN से आये हैं उन्हें आज वापस लौटना होगा और कैलाश मानसरोवर यात्री भी शायद सुबह चीन की तरफ प्रस्थान कर गए थे। भारी मन से हम उन्हें बिना ॐ पर्वत के दर्शन करते हुए जाकर देखते रहे लेकिन वो क्या कर सकते थे ? जाना ही था उन्हें वापस नीचे लेकिन हमारे पास अभी कुछ समय और बाकी था। हालाँकि हमें भी ओम पर्वत के बहुत अच्छे और स्पष्ट दर्शन नहीं हो पाए लेकिन ॐ का नीचे का हिस्सा कुछ दिखने लगा था और फिर बादल आ गए , इस बार और गहरे बादल थे जो उम्मीदों को तोड़ रहे थे। अब और ज्यादा यहाँ रुक पाना संभव नहीं था हमारे लिए तो चल पड़े राही अगली मंजिल की तरफ। और आज की मंजिल वापस गुंजी भी हो सकती है , नबी गाँव भी। कोई लक्ष्य तय नहीं किया था बस इतना था कि आज जहाँ तक पहुँच पाएं , पहुँच जाएंगे।

नाभीढांग से वापसी में उतराई थी और ज्यादा फोटो भी नहीं खींचने थे इसलिए कालापानी से नाभीढांग तक जाते हुए जहाँ हमें करीब छह घण्टे लगे थे उतरने में मुश्किल से तीन घण्टे लगे होंगे और जैसे ही हम कालापानी पहुँचने को थे सामने से आर्मी का ट्रक आता हुआ दिख गया जो यहां कालापानी से लौटकर जाएगा , ट्रक देखकर मेरी और हरजिंदर की चलने की स्पीड खुद ब खुद और तेज हो गई , हो भी जानी चाहिए थी ! थोड़ी देर में जोशी जी और कोठारी जी भी पहुँच गए और ट्रक में बैठे हुए तीन बजे से भी पहले हम वापस गुंजी पहुँच चुके थे। कोठारी जी ने अपना यहाँ छोड़ा हुआ बैग उठाया और विनीता के "रेस्टॉरेंट " में चाय -मैग्गी लेकर चल पड़े अगली मंजिल "नबी " गाँव की तरफ।
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम: शिवायः ॥
वसिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि श्रेष्ठ मुनीन्द्र वृन्दों से तथा देवताओं से जिनका मस्तक हमेशा पूजित है, और जो चन्द्र–सूर्य व अग्नि रूप तीन नेत्रों वाले हैं; ऐसे उस वकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
नबी गाँव , आदि कैलाश के रूट पर गुंजी से करीब तीन किलोमीटर दूर है। कभी -कभी गुंजी से सुबह के समय में कुटी जाने वाले ट्रक मिल जाते हैं लेकिन ये दोपहर बाद का समय था इसलिए इधर से गाडी मिलने की संभावना भी नहीं थी और हम भी पैदल जाने के ही इच्छुक थे। हम ट्रेक करने आये हैं ट्रक में बैठने या उसका इंतज़ार करने नहीं। हाँ सुविधा मिल जा रही है तो उसका कभी -कभी उपयोग कर ले रहे हैं लेकिन सच मानिये अगर आपको हिमालय के सूंदर दृश्य देखने हैं तो वो केवल पैदल चलकर ही मिलेंगे। गुंजी से नबी गाँव का तीन किलोमीटर का रास्ता घने जंगल से होकर गुजरता है और बेहद खूबसूरत लगता है।

नबी गाँव , छोटा गाँव है जहां के निवासी अपने नाम के साथ "नबियाल " लगाते हैं। जैसे ही गाँव में घुसे कुछ बच्चे क्रिकेट खेलते दिखे और सामने ही एक सज्जन मिल गए। ये एस . एस। नबियाल जी हैं जो गुंजी में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की शाखा में कार्यरत हैं लेकिन आज रविवार है इसलिए छुट्टी में हैं। इनका पूरा नाम हमें आदि कैलाश यानि ज्योलिंगकांग में पता चला - सुन्दर सिंह नबियाल !! नबी गाँव में रास्ते में ही खड़ी दो जिप्सी आपका ध्यान खींचती हैं , जहां रास्ते न हों वहां इनका क्या काम ? लेकिन कुछ जुनूनी लोग करीब 15 -16 साल पहले इन जिप्सियों को Disassemble करके ले गए थे और वहां जाकर Assemble कर लिया था। हालाँकि आज की तारीख़ में ये बस दिखाने भर के लिए हैं। नबी गाँव में बढ़िया गेस्ट हाउस ले लिया है जहाँ साफ़ सुथरे गद्दे और रजाई पड़े हैं। गर्म पानी भी मिलेगा तो नहा भी लेते हैं , जब तक हम नहा रहे हैं घर वालों के यहाँ कोई पूजा चल रही है। आपको इस क्षेत्र में कहीं पेड़ की टहनियां , कहीं सूखे पेड़ घर के बाहर लगे मिलेंगे जिन पर कपड़ों की झंडियां लगी होती हैं। ये लोग इसे बहुत पवित्र मानते हैं और ऐसा विश्वास करते हैं कि इस सब से बुरी आत्माएं घर के अंदर प्रवेश नहीं कर पातीं। नाबी गाँव के दूसरी तरफ एक बहुत , मतलब सच में ही बहुत खूबसूरत गाँव हैं रेकोंग लेकिन शाम हो चली है अँधेरा भी घिर आया है इसलिए उसकी बढ़िया पिक्चर नहीं आ सकीं , कल यानी अगली पोस्ट में जरूर आएँगी क्योंकि तब तक दिन निकल चुका होगा लेकिन फिर भी इस वक्त दूसरी दिशा में "अपि पर्वत " श्रंखला शानदार नजर आ रही है और शायद नबी गाँव इस पर्वत को देखने का सबसे बढ़िया पॉइंट होगा !! 





















हम जिस दिन शाम को पहुंचे तो ॐ पर्वत पर बादल थे और अगले दो दिन तक बादल बने रहे जिससे हमें दर्शन नहीं हो  पाए लेकिन किसी ने हमें फोटो जरूर उपलब्ध करा दिए !






गुंजी गाँव जैसा और जितना देख पाए




नबी गाँव की ओर.......
नबी गाँव की ओर बढ़ते हुए दो सैलानी






नबी गाँव

ये जिप्सी .....इतनी दूर.... कौतुहल पैदा करती हैं

अपि पर्वत ? सही नाम लिया न मैंने

आज रात का ठिकाना


                                                                                    जल्दी ही मिलेंगे:

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