रविवार, 4 फ़रवरी 2024

Amarnath Yatra 2022: Day 1

 पांच दिन जम्मू और उधमपुर के जाने -अनजाने स्थानों को घूम लेने के बाद कल से मुझे उस यात्रा पर निकलना था जिस यात्रा को करने के लिए मैं जम्मू आया था। अमरनाथ यात्रा ! अमरनाथ यात्रा कल यानि 29 जून 2022 से शुरू हो रही थी और आज 28 जून थी। मुझे पहले ही दिन अमरनाथ यात्रा पर जाना था और ये सोच समझकर लिया गया फैसला था क्यूंकि मैंने सोचा हुआ था कि जब भी अमरनाथ यात्रा पर जाऊँगा , पहले ही दिन जाऊँगा ! इसका एकमात्र कारण था कि मैं अमरनाथ यात्रा को जम्मू से शुरू होते हुए , मंत्रोचार के बीच इसके श्री गणेश का साक्षी बनकर इस यात्रा को देखना चाहता था।  


जम्मू -कश्मीर की सिम मैं पहले ही दिन जम्मू उतरते ही ले चुका था मगर कुछ चीजें अभी लेनी शेष थीं। मैं वैष्णवी भवन के सामने ही एक बाजार से जरुरत की सब चीजें ले आया। वहीँ एक सुन्दर शिव मंदिर में दर्शन भी कर आया।  इस मंदिर में बहुत सारा कांच लगा हुआ है जिससे इस मंदिर की सुंदरता और बढ़ जाती है।  रेलवे स्टेशन के आसपास , 30 जून से शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा के होर्डिंग लगे हुए थे जो इस क्षेत्र को अद्भुत शिवमय बना रहे थे।  

वापस अपने गेस्ट हाउस में लौटा और अपने यात्रा सम्बंधित कागज़ अलग फोल्डर में रख के अमरनाथ यात्रा के बेस कैंप -भगवती सदन पहुँच गया।  गेट से अंदर तक जाने में एक घण्टे से ज्यादा लग गया।  सुरक्षा के लिहाज से तगड़ी जांच पड़ताल हो रही थी। अंततः एक हॉल में पहुंचा मगर लेटने /बैठने की तो बात ही अलग , पैर रखने तक की जगह उपलब्ध नहीं थी। रात के लगभग 9 बजने को थे। लोगों ने सलाह दी कि पहले कल के लिए बस का टिकट करा लो ! 

बस काउंटर की लाइन में लग गया ! तीन तरह के टिकट बिक रहे थे -डीलक्स , सेमी डीलक्स और सामान्य बस ! डीलक्स बस का किराया जम्मू से पहलगाम तक का किराया 850 रूपये , सेमी डीलक्स का 650 रूपये और सामान्य का किराया 450 रूपये निर्धारित था। डीलक्स बस का टिकट माँगा एक -बताया गया कि डीलक्स  टिकट खत्म हो चुके हैं अब बस सेमी डीलक्स और सामान्य बस के ही टिकट उपलब्ध हैं। सेमी डीलक्स का एक टिकट बुक करा दिया जिसमे बस नंबर (54) और सीट नंबर लिखा था।  


पीछे की तरफ से बहुत शोर सुनाई दे रहा था मगर इस शोर को इग्नोर कर के पेट पूजा करने के लिए लंगर खाने चला गया।  बैग को इधर -उधर एक हॉल में पटक दिया था ! मुझे मालुम था -इतने भारी बैग को लेकर कोई लेकर नहीं जायेगा ! लंगर हॉल से बाहर निकला तो मेरी चप्पल गायब थीं ......मैं इधर -उधर ढूंढने लगा तो किसी ने पूछ लिया -चप्पल नहीं मिल रहीं क्या ? मैंने हँसते हुए कहा -हाँ ! बोले -उधर देख लो ! उधर उठा के रख दी हैं ! मिल गईं ! 


बैग पटक ही दिया था कहीं ! अब हाथ हिलाते हुए उधर चल पड़ा जिधर से लगातार शोर सुनाई दे रहा था ! दो काउंटर पर सिम मिल रहा था -जिओ और एयरटेल का।  यहाँ सिम 250 रूपये में मिल रहा था , मैंने 450 रूपये में लिया था ! दो सौ रूपये ज्यादा ... खैर ! होता है कभी -कभी !

जहाँ से शोर सुनाई दे रहा था वहां पहुंचा। हे -हे -हो-हो ...इसके अलावा कुछ और सुनाई नहीं दे रहा था न कोई कुछ बताने को तैयार था। भयंकर धक्का -मुक्की !  कई सारे काउंटर लगे थे ..भीड़ में से सर घुसाते हुए आगे पहुंचा तो पता चला कि इस बार RFID कार्ड जरुरी कर दिया है  और यहाँ वही RFID कार्ड इशू हो रहा था मगर अब भीड़ बहुत हो जाने और कार्ड कम पड़ जाने की वजह से रोक दिया गया है ! मैं वहीँ अटका रहा और भयंकर गर्मी से पसीने -पसीने होता रहा ! फिर कुछ देर बाद वहां अनाउंसमेंट हुआ कि आप लोग अपना RFID कार्ड पहलगाम के एंट्री गेट पर भी ले सकते हैं ! अमां यार ....पहले ही बता देते ! 

गर्मी ने बुरा हाल कर दिया था। हॉल के पीछे नहाने के लिए खुले पाइप पर नहाने वालों की लाइन लगी हुई थी , हम भी पहुँच गए ! ग्यारह या साढ़े ग्यारह बजे होंगे उस समय।  बताया गया सुबह 3 बजे से यात्रा शुरू होगी ! अब हमारे पास इतना समय नहीं था कि नींद खींच ली जाए ,मगर हाँ ! पैर लबे तो कर ही सकते थे इसलिए बैग उठाया और एक पार्क में आकर लम्बे हो गए।  

दो बजते -बजते लोग सामान समेटने लगे थे।  मेरी भी नींद उखड़ गई .... एक हल्की सी झपकी आ गई थी और इससे थकान कम हो गई थी।  अब अगले दिन की यात्रा के लिए तन और मन दोनों तैयार हो चुके थे।  बैग उठाकर सरकने लगे और उधर पहुँच गए जहाँ से यात्रा को हरी झण्डी दिखाने के लिए एक मंच बनाया गया था।  अभी तैयारी चल रही थी इसलिए इतने में अपनी वाली बस को खोज के उसमे बैग पटक दिया और गर्मागर्म चाय उदरस्थ कर दी।  


चार बजते-बजते पंडितों का एक समूह, राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार और टीवी चैनलों के कैमरे चमकने लगे थे ! किसी ने मेरा भी इंटरव्यू किया , जेके न्यूज़ था शायद वो चैनल ! अब सिर्फ इंतज़ार था जम्मू -कश्मीर के उपराज्यपाल माननीय मनोज सिन्हा जी का और उनके आते ही पूरे विधि विधान से मंत्रोच्चार शुरू हुआ और आसमान हर -हर महादेव के नारों से गुंजायमान होने लगा।  इसी क्षण  के लिए , इसी समय को जीने के लिए मैं यहाँ उपस्थित हुआ था ! इसी पल को अपनी आँखों  से देखने के लिए मैंने अप्रैल में रजिस्ट्रेशन शुरू होते ही मैंने पहले दिन अपना रजिस्ट्रेशन करा दिया था।  


चार बजकर 50 मिनट पर गाड़ियां निकलनी शुरू हो गईं। हम भी पांच बजते -बजते जम्मू की बाहरी सडकों पर जम्मू के निवासियों को सुबह की शीतल हवा का आनंद लेते हुए देख पा रहे थे।  बस की खिड़की खोली तो तेज शीतल हवा का एक झौंका मन  और चित्त को प्रसन्न कर गया और इतना प्रसन्न कर गया कि आँखें बंद हो गईं।  

शानदार और हरे -भरे जम्मू -श्रीनगर हाईवे पर बसें दौड़ती चली जा रही थीं लाइन से।  कहीं रुकी तो पता चला कि भण्डारा लगा है।  सुबह के 9 या 10 बजे होंगे।  लोग बुला -बुला के कुछ भी खाने के लिए आमंत्रित कर रहे थे।  ये भारत की संस्कृति है जिसे लिखना मुश्किल है सिर्फ महसूस किया जा सकता है।  किसी को किसी की जाति से कोई मतलब नहीं था , सभी शिव के भक्त और सभी बाबा बर्फानी के दर्शन को व्याकुल।  


अनंतनाग से कुछ पहले हमारी बस खराब हो गई ! एक बस खराब हुई तो पूरा कॉन्वॉय रोक दिया गया।  आधा घण्टा लग गया बस ठीक होने में और तब हमने देखा कि इस कॉन्वॉय के साथ कितनी सुरक्षा चलती है ! आगे -पीछे CRPF  के साथ -साथ जम्मू कश्मीर पुलिस के कमाण्डो भी हमारी सुरक्षा में थे। थोड़ी देर के लिए वीआईपी वाली फीलिंग आने लगी थी हालाँकि ...इस सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत क्यों है ? ये सोचनीय विषय है ! अपने ही देश में बहुसंख्यक समाज की एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा को प्रतिवर्ष आयोजित करने के लिए इतनी सुरक्षा ? हमारी सहिष्णुता....क्या हमारी कमजोरी बन गई है ?


अनंतनाग शहर से निकलते हुए रास्ते के किनारे स्थानीय लोग तिरंगा झण्डा लेकर यात्रा का स्वागत करते दिखे।  अनंतनाग के आखिरी हिस्से में दो -तीन सिख लोगों को एक पेड़ के नीचे बैठे देखकर सुकून मिला कि आज भी अनंतनाग में कुछ नॉन मुस्लिम रहते हैं।  

रुकते -खाते -पीते हम लगभग दोपहर बाद तीन बजे के आसपास पहलगाम पहुंचा दिए गए थे।  जहाँ हमें उतारा गया था वहीँ बराबर में पहलगाम की जीवन रेखा -लिद्दर नदी एकदम स्वच्छ रूप में बह रही थी।  हमसे पहले पहुंचे लोगों ने इस नदी में उतर के माहौल बना  दिया था तो हम भी क्यों पीछे रहते ! बहुत ठण्डा मगर उतना ही स्वच्छ जल जैसे एकदम अभी ग्लेशियर से पिघल के आ रहा हो ! 


पांच बजे के आसपास हम उस गेट पर थे जहाँ से एंट्री लेकर दूसरी तरफ निकल जाना था।  यहीं पहले हमें RFID कार्ड भी लेना था , अपने कागज़ चेक कराने थे।  इस पूरे प्रोसेस में लगभग आधा घण्टा लग गया था और जब बाहर निकला दूसरी तरफ तो उधर कोलकाता से आये यूथिका चौधरी और उनके पतिदेव विक्रम खन्ना जी इंतज़ार करते मिले।  उनके साथ ही उनके होटल में रुकने के लिए ऊपर की ओर चल पड़ा हालाँकि 300 रूपये प्रति व्यक्ति की दर से यहाँ टैण्ट में भी रुका जा सकता है।  


होटल में उनके एक और मित्र थे , मैं उनके साथ ही उनके रूम में रुक गया।  आज रात यहाँ रुकना था और सुबह -सुबह ही यात्रा शुरू करने के लिए चंदनवाड़ी निकल जाना था।  चाय पीकर पास में ही स्थित मामल मंदिर या ममलेश्वर मंदिर  के दर्शन के लिए निकल गए।  हालाँकि मंदिर बंद हो चुका था मगर बाहर से दर्शन करना और छोटे से मंदिर की सुंदरता को तो देखा ही जा सकता था।  ये वही मंदिर माना जाता है जहाँ भगवान शिव ने गणेश जी की नाक काट के सूंड लगा दी थी।  कहते हैं कि ये मंदिर पांचवीं शताब्दी का बना हुआ है।  बहुत ही खूबसूरत और दर्शनीय मंदिर है ममलेश्वर मंदिर।  





रात नौ बजे आसपास खाना खाने के बाद  अगले दिन की यात्रा के सब पैकिंग कर के रख दिया और सो गए ! 
अगले दिन की बात अगली पोस्ट में करेंगे ......

सोमवार, 1 जनवरी 2024

Babor Temples : Manwal-Jammu

 बाबोर मंदिर: मनवाल


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यात्रा दिनांक : 29 जून 2022 

काला डेरा मंदिर घूम के निकल आया था ! लौटते हुए उसी दुकान से , जिससे थोड़ी देर पहले ही कोल्ड ड्रिंक खरीदी थी , पानी की बोतल ले ली।  गर्मी भयंकर थी और उस पर भी जून के आखिरी सप्ताह की दोपहर ! शरीर का पानी , पसीना बन के बाहर निकलता जा रहा था लगातार और इस कमी को पूरा करते जाना जरुरी हो गया था।Youtube Link : https://www.youtube.com/watch?v=gSc8HGbCjSQ&t=232s

रविवार, 24 दिसंबर 2023

Kala Dera Mandir: Manwal Jammu -Kashmir

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काला डेरा मंदिर मनवाल

Date : 28 June 2022

मानसर और सुरिंसर लेक घूमने के बाद वापस लौटने का समय हो गया था।  मानसर लेक के बराबर में एक रास्ता जम्मू से आता  हुआ दिख रहा था , ये शायद कुछ् शॉर्ट होगा मगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं दिख रहा था इस रोड पर। केवल प्राइवेट वाहन या कुछ ट्रक ही आते -जाते दिख रहे थे।  हालाँकि मुझे भी इस रास्ते से अभी जम्मू नहीं लौटना था मगर चाय -समोसा खाते हुए एक दुकान पर बैठकर आते -जाते वाहनों को देखता रहा।  


मुझे वापस मनवाल ही लौटना था।  अभी दोपहर के दो बजे थे और मनवाल से जम्मू की ट्रेन का समय लगभग साढ़े पांच बजे का था।  मानसर से मनवाल 30 -35 किलोमीटर दूर था मगर मेरी मुश्किल दूरी नहीं समय की थी।  मनवाल टाउन से कुछ पहले कुछ पुराने मंदिरों का एक बोर्ड लगा दिखाई दिया था , मुझे उन मंदिरों तक पहुंचना था और फिर ट्रेन भी पकड़नी थी।  मुझे न अभी तक उन मंदिरों का नाम पता था न उनकी मनवाल टाउन से दूरी का कोई आईडिया था। 


वापस आने में ज्यादा देर नहीं लगी।  सुरिंसर से मानसर तक के लिए एक कार से लिफ्ट मिल गई और जैसे ही उस कार से उतरा , मुश्किल से पांच मिनट के अंदर मनवाल के लिए बस भी आ गई।  टिकट लेते हुए उस भाई से बता दिया था कि भाई एक जगह मंदिरों का कुछ बोर्ड जैसा लगा है वहां उतार देना , मगर मालुम नहीं वो भूल गया या उस मेरी बात समझ नहीं आई थी , वो बस को फुल स्पीड में चलाता हुआ आगे निकल गया।  मुझे फिर से वो बोर्ड दिखा तो मैं एक तरह से चिल्लाया -रोकियो भाई ! रोकियो ..तब उसे याद आया कि मैंने उसे -कुछ बोला भी था ! 



मैं 50 कदम लौटा ! बोर्ड मुझे अपने राइट साइड में दिखा था और मुझे बस ने लेफ्ट साइड में उतारा था।  भारत में लेफ्ट साइड ड्राइविंग ही है तो निश्चित सी बात है कि बस लेफ्ट में ही चल रही थी।  मैं रोड क्रॉस कर के उधर जाता , उससे पहले एक कोल्डड्रिंक पीने का मन हो रहा था।  जून का महीना अपने आखिरी पड़ाव में था तो स्वाभाविक है कि भयंकर गर्मी थी।  कुछ कदम और चला दुकान की तरफ तो वहां दुकान के बराबर में ही एक धुंधला सा बॉर्ड लगा था -पढ़ने की कोशिश की तो समझ आया ! काले रंग के बोर्ड पर सफ़ेद अक्षरों में हिंदी में लिखा था -काला डेरा मंदिर ! कोल्डड्रिंक जिस दुकान से ली थी उसी आदमी से पूछा -इधर क्या है ? बहुत पुराने मंदिर हैं ! नींद में खलल डाल दिया था शायद मैंने उसकी ....वो कोल्डड्रिंक की बोतल पकड़ा के ऐसे सो गया फिर से जैसे जन्म जन्मांतर से न सोया हो ! 


तू सोता रह भाई ! मैं बराबर में ही बने एक गेट से अंदर प्रवेश कर गया।  रास्ता एक लम्बी -खाली गली जैसा था जिसके एक तरफ घर बने थे और दूसरी तरफ खाली जगह पड़ी थी जिसके चारों तरफ कंटीले तार लगे थे।  करीब 200 मीटर चलने के बाद मैं एक ऐसी जगह पहुँच चुका था जिसका मैंने पहले न कभी नाम सुना था न वो मेरे इस बार के किसी प्रोग्राम में शामिल थी।  आया तो था मानसर और सुरिंसर लेक देखने के लिए मगर ये तो आनंद आ गया ! एक और नई जगह देखने को मिल गई।  



सामने एक चारपाई पर केयरटेकर फैले पड़े थे पेड़ की छाँव मे।  उन्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि जून की भरी गर्मी में दोपहर की चिलचिलाती धूप  में कोई बांगड़बिल्ला इधर आ धमकेगा !  मुझे देखकर उन्होंने अपनी गर्दन उठाई और फिर अपनी उसी सपनीली दुनियां में खो गए / शायद सो गए ! 


मैं आज जिस जगह को आपको दिखाने और बताने जा रहा हूँ उस जगह के बारे में आपने न कभी पहले सुना होगा न शायद पढ़ा होगा।  हम में से ज्यादातर लोग ऐसी जगह जाना पसंद करते हैं जो भीड़भाड़ से भरी रहती हैं , जिनका विज्ञापन आप हर रोज़ देखते हैं या ज्यादा चमकती हैं और जिन जगहों के फोटो अच्छे आते हैं मगर मुझे पसंद हैं ऐसी भी जगहें जो बहुत पुरानी होती हैं , बहुत सुन्दर भले न हों लेकिन इतिहास समेटे हुए हों।  इनमे से ही एक जगह हैं काला डेरा के शिव मंदिर ! जम्मू -उधमपुर के बीच पड़ने वाले छोटे से टाउन मनवाल के पास स्थित ये मंदिर 10 वीं या शायद 11 वीं शताब्दी के बने हुए हैं जिन्हें डोगरा शासकों ने बनवाया था।  काला डेरा का मतलब होता है काले पत्थर के बने मंदिर।  



आसपास अच्छी तरह से मेन्टेन किया हुआ है जिससे यहाँ पहुंचकर बोरियत महसूस नहीं होती।  शुरुआत में ही आकर्षित करते स्ट्रक्चर हैं जिनके खम्भे बहुत ही सुन्दर और डिज़ाइनदार हैं। मेरा विश्वास है कि आप निराश नहीं होंगे।  थोड़ा आगे चलकर मुख्य मंदिर नजर आता है जिसको एक प्लेटफार्म पर इस तरह से बनाया गया है जिससे श्रदालुओं को आने और दर्शन कर के निकलने में परेशानी न हो।  मंडप हालाँकि छोटा है और गर्भगृह में शिवलिंग विराजमान हैं।  मंदिर के सामने विराजित नंदी को किसी ने नुकसान पहुँचाया हुआ है।  


अब यहाँ जितना घूमना था वो घूम चुका हूँ और मोबाइल की घडी चार बजते हुए दिखा रही है।  मुझे अभी यहीं पास में एक और ऐसी ही अनजानी सी जगह भी जाना है इसलिए यहाँ से निकलने का समय आ पहुंचा है।  अगली पोस्ट में आपको एक और बेहतरीन जगह लेकर जाऊँगा। .. आते रहिएगा  


शनिवार, 2 दिसंबर 2023

Mansar and Surinsar Lake : Places to visit in Jammu and Udhampur

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मानसर एवं सुरिंसर लेक : जम्मू -उधमपुर 

Date : 27 June 2022

रेमण्ड के मालिक दूसरे बुजुर्गों की तरह ही लावारिस सडकों पर घूमते देखे गए ! ये बड़ी खबर थी मगर ये एहसास भी दे रही थी कि पैसा ही हमेशा ख़ुशी नहीं देता , इसके साथ और भी चीजों की जरूरत होती है , जैसे शौक ! एक कोई ऐसा शौक बगल में दबाए रखिये जो आपको खुश भी रखे और खाली वक्त में आपके साथ -साथ समय बिता सके।  घुमक्कड़ी ऐसा ही एक शौक है ! बनाए रखिये ! 


मुझे आज तीसरा दिन था जम्मू पहुंचे हुए! अब तक जम्मू के अलग -अलग जगहों के अलावा उधमपुर के क्रिमची मंदिरों तक हो आया था।  आज भी उसी रूट पर निकलना था मतलब उधमपुर की ओर मगर आज उधमपुर तक नहीं , सिर्फ मनवाल टाउन तक ही जाना था ! ट्रेन भी वही थी कल वाली , और ट्रेन का समय भी वही था जम्मू से सुबह सात बजकर 55 मिनट का। 


मैं आज निकल रहा हूँ मानसर और सुरिंसर लेक घूमने के लिए।  हिमालय की लेक खूब घूमी हैं मैंने अपने अलग -अलग ट्रैक में , आज मैदानी लेक घूम के आते हैं।  मानसर लेक तो थोड़ी प्रसिद्ध है मगर सुरिंसर लेक तक बाहर से आये लोग कम ही पहुँचते हैं।  हालाँकि दोनों की दूरियों में बहुत अंतर् नहीं है मगर सुरिंसर लेक पर्यटकों के दिल में अपनी उतनी  जगह नहीं बना पाई जितनी मानसर लेक की है।  


मानसर लेक जम्मू से करीब 50  किलोमीटर की दूरी पर है जिसकी लम्बाई करीब 1.5 किलोमीटर और चौड़ाई 0.84 किलोमीटर है।  पहले मैं मनवाल स्टेशन पहुँच गया और स्टेशन से टेम्पो से मनवाल टाउन के बस स्टैंड पर।  यहाँ से मानसर लेक के लिए सीधे बस मिल जाती हैं और मुश्किल से 40 -45 मिनट ही लगे मानसर लेक तक पहुँचने में।  


पहले कुछ चाय-पानी कर लें फिर चलते हैं मानसर के लिए ! रोड के किनारे पर रोड से थोड़ा नीचे हटकर दुकानें हैं और दुकानों के पीछे ही है मानसर लेक ! 

मान्यता :
मानसर लेक को महाभारत के साथ जोड़ा जाता है।  ऐसा कहा जाता है कि यहाँ अर्जुन और उलूपी के पुत्र बब्रुवाहन का राज हुआ करता था और जब अर्जुन ने अश्वमेध यज्ञ के लिए अपना घोड़ा छोड़ा तो उस घोड़े को बब्रुवाहन ने पकड़ लिया।  जिस जगह पर बब्रुवाहन ने अर्जुन के घोड़े को पकड़ा था वो जगह खूं गाँव है , जो कि धार , उधमपुर के पास है।  आप लोगों को ये पता होगा कि अर्जुन और उनके पुत्र बब्रुवाहन के बीच में युद्ध हुआ और अपनी माँ से किये वायदे को पूरा करने के लिए बब्रुवाहन ने अर्जुन को मार दिया।  मगर जब बब्रुवाहन को पता चला कि अर्जुन ही उनके पिता थे  तब बब्रुवाहन ने उनको पुनः जीवित करने के लिए शेषनाग से मणि लाने के लिए अपने बाण से सुरंग बना दी जिसको -सुरंगसर नाम दिया गया और इस सुरंग के दूसरे छोर से वो मणि लेकर वापस आए।  जिस छोर से वो निकले थे उस छोर को ही मानसर लेक कहा जाता है।  


इस लेक के एक किनारे पर मंदिर हैं और बाकी में आप बोटिंग कर सकते हैं।  हालाँकि मैं जब वहां पहुंचा तो कोई भी न तो टूरिस्ट था न बोट चलाने वाला कोई था।  संभव है जून का महीना था इसलिए गर्मी की वजह से लोग न आये हों मगर हाँ , बजट कई सारी कड़ी थीं और अच्छी हालात में थीं इसलिए माना जा सकता है कि यहाँ बोटिंग होती होगी।  


मगर जितना इस लेक का नाम सुना था उस स्तर पर ये बिलकुल नहीं उतरती। किनारे एकदम गंदे पड़े हैं और लेक के चारों तरफ के रास्ते टूटे पड़े हैं।  मैं Specially इस लेक को देखने जाने के लिए आपसे बिलकुल नहीं कहूंगा मगर हाँ , अगर आप जम्मू गए हैं तो थोड़ा समय निकालकर यहाँ जा सकते हैं।  


जितना देखना था इस लेक को देख लिया और अब यहाँ से 15 किलोमीटर दूर एक और लेक के लिए निकलना था।  अब यहाँ तक आ ही गया था तो सुरिंसर लेक को भी देख लिया जाए।  वापस रोड पर आ गया और किसी बस /जीप का इंतज़ार करने लगा मगर आधा घण्टा इंतज़ार करने में गुजर गया।  यहाँ अलग -अलग जगहों की यहां से दूरियां बताने वाला एक बोर्ड लगा था जिसमें पटनीटॉप का भी नाम था। मगर पटनीटॉप का मुझे कोई अट्रैक्शन कभी नहीं रहा इसलिए उधर जाने का या सोचने का मन नहीं था।  


एक मर्सिडीज ट्रक आ गया ! हाथ दिया तो रुक गया और मैं जा बैठा उसमें। आज पहली बार मर्सिडीज के ट्रक में बैठने का मौका मिला था।  ज्यादा बड़ा और ज्यादा आरामदायक लगा ! थोड़ी देर भाई से स्टीयरिंग भी संभाली जहाँ रोड एकदम सीधा था वहीँ पर।  आधा घंटा भी नहीं लगा होगा सुरिंसर लेक पहुँचने में।  ट्रक से उतर के पहले मैंने और ड्राइवर भाई ने एक -एक कोल्डड्रिंक से गला तर किया।  उसके बाद वो भाई कहीं आगे निकल गए और मैं निकल गया सुरिंसर लेक देखने के लिए।  


सुरिंसर लेक ,मानसर की टविन लेक बताई जाती है मगर उससे छोटी , ज्यादा गन्दी और कम प्रसिद्ध है।  अगर आप जम्मू से एक शार्ट रूट पकड़ेंगे तो पहले सुरिंसर लेक आती है फिर मानसर लेक।  सुरिंसर लेक के पास से ही ये रास्ता गुजरता हुआ दिखाई देता है।  हाँ ,यहाँ मुझे बहुत सारी मछलियां जरूर दिखाई दीं और उनको  देख -देखकर ही मन लगाता रहा।  


अब वापस लौटने का समय आ पहुंचा है।  वापस उसी रास्ते से मनवाल पहुँचता हूँ जहां से आया था मगर मनवाल से आते हुए एक गजब का बोर्ड दिखा था ,मन वहीँ अटका हुआ था।  लौटते हुए इन बोर्ड को स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए मैंने खिड़की वाली सीट हथिया ली। और जैसे ही वो बॉर्ड दिखाई दिए , मैं चिल्लाया ! रोकियो भाई ...उतार दो मुझे यहीं ! अब आगे की बात अगली पोस्ट में करेंगे। ...