सोमवार, 4 मार्च 2019

Kangra Fort : Himachal Pradesh

कांगड़ा फोर्ट  
अक्टूबर 2018
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शाम हो चली थी बगुलामुखी मंदिर में ही। हमारा अगला ठिकाना कांगड़ा था और हम चाहते थे कि आज ही कांगड़ा पहुँच जाएँ और वहीँ रुकें। दो कारण थे -एक तो कांगड़ा से हम भलीभांति परिचित थे और दूसरा ये कि हमारा अगले दिन का समय बच जाता। रात आठ -साढ़े आठ बजे तक हम कांगड़ा के एक सामान्य से होटल के कमरे खाना -वाना खाकर आज की यात्रा के फोटो देख रहे थे। अक्टूबर का महीना था लेकिन मच्छर अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद लगे मुझे , इनका भी सर्जिकल स्ट्राइक जरुरी था। आल ऑउट बहुत सही तरह की मिसाइल का काम करती है मच्छरों के लिए। कांगड़ा जितना बड़ा है उतना ही जीवंत शहर है। लगता ही नहीं पहाड़ी शहर है , देर से सोता है देर से ही जागता है।


आज हमारे दो प्रोग्राम थे। सुबह - सुबह कांगड़ा मंदिर में ब्रजेश्वरी देवी के दर्शन और दूसरा कांगड़ा फोर्ट। मंदिर के दर्शन के लिए हम 2014 में एक बार कांगड़ा आ चुके हैं लेकिन क्योंकि ब्रजेश्वरी देवी हमारी कुलदेवी मानी जाती हैं इसलिए जब भी अवसर मिलता है , दर्शन के लिए पहुँच जाते हैं। ब्रजेश्वरी देवी को हमारे यहाँ नगरकोट वाली देवी भी कहा जाता है। आप कभी वहां जाएँ तो किसी श्रद्धालु से पूछियेगा कि वो कहाँ से आये हैं ? आपको बुलंदशहर , अलीगढ जिले में से ही कोई होंगे वो श्रद्धालु ! कारण ये कि बुलंदशहर और अलीगढ में नगरकोट वाली देवी को बहुत माना जाता है।

सुबह करीब साढ़े आठ बजे हम ब्रजेश्वरी देवी मंदिर के प्रवेश द्वार पर थे और प्रसाद तथा चांदी का छत्र सजाकर अंदर की तरफ जब चले तो एक तरह की आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी का एहसास हुआ। कारण ये था कि हमारे आगे दर्शन की लाइन में कोई नहीं था और मजे की बात की पीछे भी कोई नहीं था। बाहर साफ़ सफाई चल रही थी और हम मंदिर में दर्शन कर रहे थे। पिछली बार जब आये थे तब हमें एक लम्बी लाइन में इंतज़ार करना पड़ा था लेकिन आज हमें मौका मिल रहा था बहुत बेहतर और समय लेकर दर्शन करने का। जय माँ ब्रजेश्वरी !!

मंदिर से मुख्य रोड करीब आधा किलोमीटर होगा । लेकिन पहले नाश्ता वगैरह कर लें तब फिर आगे कांगड़ा फोर्ट चलेंगे । कांगड़ा फोर्ट शहर के बाहरी हिस्से में स्थित है और कोई शेयर्ड जीप , ऑटो या बस वहां नहीं जाती और आपको किराए पर ही अपना वाहन लेना होता है। मेरा मानना है कि ऑटो लेना सबसे बेहतर विकल्प है। शायद एक ये कारण हो सकता है कि जितने लोग कांगड़ा देवी मंदिर दर्शन के लिए आते हैं , उतने यहाँ कांगड़ा फोर्ट तक नहीं पहुँचते।

कांगड़ा फोर्ट को हिमालय क्षेत्र में स्थित सबसे बड़ा फोर्ट माना जाता है और ये भी कहा जाता है कि ये किला भारत के सबसे प्राचीन किलों में से एक है। इस किले को कटोच राजवंश के राजपूत राजाओं ने चौथी शताब्दी में बनवाया था। कटोच शासकों का सम्बन्ध महाभारत में वर्णित त्रिगर्त राजवंश से भी माना जाता है। इसकी दीवारें इतनी मजबूत हुआ करती थीं ( आज भी हैं ) कि 1615 ईस्वी में जब मुग़ल शासक अकबर ने इसे जीतने की कोशिश की तब उसे कई दिनों की कोशिश के बाद भी मायूसी झेलनी पड़ी और अंततः वो इसे छोड़कर वापस लौट गया हालाँकि बाद के वर्षों में अकबर के पुत्र जहांगीर ने राजा सूरजमल की मदद से हिमाचल के सबसे शक्तिशाली माने जाने इस किले पर 1620 में कब्जा कर लिया। गद्दार शुरू से ही रहे हैं इस देश में !! 

वक़्त बीतता रहा और उधर एक राजपूत का खून लगातार खौलता रहा। वो राजपूत खून था राजा संसार चंद्र का जो लगातार अपने पूर्वजों के इस किले को वापस लेना चाहता था। संसार चंद्र ही नहीं , उनसे पहले के राजा भी मुग़ल शासकों के अधीन सल्तनतों को मौका पड़ते ही लूटते रहे और कमजोर करते रहे। आखिरकार सन 1789 में राजा संसार चंद्र ने अपने पूर्वजों की इस धरोहर को , राजपूतों की शान को वापस जीत लिया। बीच में कुछ समय के लिए ये फोर्ट गोरखाओं के कब्जे में भी रहा लेकिन फिर अंग्रेज़ों के इसमें आने तक महाराजा रणजीत सिंह ने , राजा संसार चंद की मौत के बाद इसे अपने अधीन रखा। सन 1905 में आये एक भूकंप की वजह से इसे बहुत नुकसान पहुंचा और इसी डर से अंग्रेज़ों ने इसे छोड़ भी दिया।

किले का रहस्य :
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार , कांगड़ा फोर्ट पर हमला करने वाला पहला राजा कश्मीर का राजा श्रेष्ठ था जिसने 470 AD में इस फोर्ट पर आक्रमण किया था। उसके बाद महमूद ग़ज़नवी ने भी 1000 A.D. में अपनी फौजों को इस फोर्ट पर आक्रमण करने का आदेश दिया। और ये सब ऐसे ही नहीं था ! ऐसा माना जाता है कि इस फोर्ट में 4 मीटर गहरे और 2.5 मीटर व्यास के , खजाने से भरे 21 कुँए हैं / थे जिनमें से ग़ज़नवी की फौजों ने आठ कुओं को ढूंढ भी लिया और लूट ले गए। इसके बाद 1890 के आसपास ब्रिटिश फौजों ने भी खजाने से भरे पांच कुओं को लूट लिया। ऐसा माना जाता है कि इस किले में अभी भी 8 कुएं ऐसे हैं जिनमें खजाना भरा पड़ा है और जिन्हें अभी तक खोजा नहीं जा सका है / या कह सकते हैं खोजा नहीं गया है।


फोर्ट में अलग -अलग समय पर बनवाये गए गेट हैं जैसे रणजीत सिंह द्वार , अहानी दरवाज़ा , गंगा -यमुना द्वार। अंदर लक्ष्मी नारायण मंदिर के अलावा एक जैन मंदिर भी है लेकिन इन मंदिरों के अलावा जब हम ऊपर जाते हैं तो इसके खँडहर इसके एक शानदार विरासत होने का नमूना प्रस्तुत करते दिखाई देते हैं। हालाँकि ये फोर्ट बहुत बड़ा नहीं है लेकिन इसको बनाया बहुत ही सोच -समझकर है। दीवारों में तीर -हथियार चलाने के लिए छिद्र बनाये गए हैं और सबसे ऊपर से लगभग उस समय पूरा कांगड़ा शहर दिखाई देता होगा।

लोग कांगड़ा जाते हैं तो सिर्फ उनके मन में टॉय ट्रेन की सवारी और मंदिर दर्शन की इच्छा रहती है। इस बार जाएँ तो अपनी इच्छाओं की लिस्ट को थोड़ा और बड़ा करके जाइये और कांगड़ा फोर्ट को भी एक बार देखकर आइये !! 






























मिलते हैं जल्दी ही :

6 टिप्‍पणियां:

Pratik Gandhi ने कहा…

आपकी कुलदेवी वाली बात एकदम सही है जब पिछले साल मार्च के महीने में में भी वहां गया था चैत्र नवरात्रि चल रही थी औऱ बहुत भारी भीड़ पीले वस्त्र धारण कर बुलंदशहर अलीगढ़ और up के अलग अलैह जगह से आई थी.....मेने इस किले के निचे जैन मंदिर में खाना खाया था इसके पास संग्रहालय देखा था और बहुत तेज बारिश में भी किला ऑडियो गाइड लेकर घूमा था... इस किले के ऊपरी हिस्से से घाटी के नजारे भी बहुत अच्छे लगते है....

Ritesh Gupta ने कहा…

जय माँ ब्रजेश्वरी देवी जी की.... नौ देवी मंदिर में से एक कांगड़ा देवी के दर्शन का लाभ एक बार हमे मिल चुका है और मंदिर के पास एक संग्रहालय भी जिसे हम लोग देख चुके है..... अब बात आती कांगड़ा फोर्ट की ..... जब हम गये थे इस किले तक तब तक शाम हो चुकी थी और ये किला बंद हो चुका था ...सो किला केवल बाहर से ही देखा है हमने......

बाकी लेख और चित्र आपके हमेशा से ही बढ़िया है ....

Jyotirmoy Sarkar ने कहा…

Beautiful captures, never heard about this fort, its really interesting one, enjoyed reading.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कांगड़ा फोर्ट ....
विस्तृत जानकारी और सुन्दर मोहक चीतों ने दिल जीत लिया ...
अच्छा संस्माराम यात्रा के साथ ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बेहतरीन यात्रा वृत्तांत...बहुत सुंदर सचित्र प्रस्तुति ....आप को होली की शुभकामनाएं...

sharad kumar jain ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट।