बुधवार, 11 अप्रैल 2018

Rani ji ki Baoli : Bundi

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सुखमहल के किनारे बैठकर जो ठण्डक का एहसास हुआ उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल होगा लेकिन हर चीज का अपना एक वक़्त होता है तो हमें भी जाना ही था वहां से भी और चल दिए अपनी अगली मंजिल की तरफ। यहां पहुँच तो गया था लेकिन वापस जाने के लिए ऑटो नहीं मिल रही थी , बहुत देर तक इंतज़ार किया लेकिन कुछ नहीं मिला। बंदरों ने भी अपना पूरा रौद्र रूप दिखा रखा था। यहां एक छोटा सा गेट था जो शायद बूंदी शहर की सीमा को निर्धारित करता हुआ लग रहा था , मुझे भी लगा कि शायद इसके बाद गाँव शुरू होते होंगे। उसी गेट में से एक कोई भाईसाब स्कूटर से आये और मुझे लिफ्ट मिल गई , लेकिन लिफ्ट थोड़ी दूर के लिए ही मिल पाई। लेकिन वहां तक मिल गई जहां से बस स्टैंड तक के लिए आसानी से ऑटो / टैम्पो मिल जाएगा। अब अगली मंजिल "रानी जी की बावड़ी " ( The Queen’s Step-Well ) की तरफ चलते हैं जो बस स्टैंड के पास ही "मार्केट एरिया " में स्थित है।


राजस्थान का बूंदी शहर ऐसे ऊपर से देखने पर नीले रंग ( Blue Color ) का दीखता है तो आप जयपुर के पिंक सिटी की तरह बूंदी को आप "Blue City " भी कह सकते हैं लेकिन बूंदी को " City of Stepwalls ( बावड़ियों का शहर ) कहते हैं क्योंकि यहां एक दो नहीं पूरी 50 बावड़ी मौजूद हैं। रानी जी की बावड़ी को रानी नाथावती ने सन 1699 में बनवाया था । रानी नाथावती , बूंदी के राजा अनिरुद्ध सिंह की सबसे छोटी रानी हुआ करती थीं और शायद सबसे समझदार रानी भी , क्योंकि बूंदी में जो 50 बावली मौजूद हैं उनमें से 21 बावली तो रानी नाथावती ने ही बनवाई थीं जिससे उनके राज्य और उनके महल में रहने वाली प्रजा को पानी की परेशानी न हो। लेकिन हमें समय की कमी थी इसलिए केवल रानी जी की बावली ही देख पाए , कभी दोबारा मौका मिला तो और बावली भी जरूर देखना चाहूंगा बूंदी की। मुझे और भी बहुत सी जगहों पर बावली देखने का सुअवसर मिला है लेकिन इस बावली की बनावट और इसकी दीवारों पर बनी आकृतियां ( Carvings ) बहुत विशिष्ट हैं और आकर्षित करती हैं। बावड़ियों पर घुमक्कड़ बिरादरी के बीच बड़ी लम्बी और तगड़ी बहस चलती रहती है कि बावली बनाने का मुख्य उद्देश्य क्या था ? मैं जितना जानता हूँ उसके मुताबिक बावली बनाने का मुख्य उद्देश्य वास्तव में जरुरत के लिए पानी को इकठ्ठा करना था लेकिन राजस्थान की बावली देखकर आप इसमें ये भी जोड़ सकते हैं कि ये पूजा -पाठ के स्थान भी हुआ करते थे। रानी जी की जो बावली है , उस की दीवारें पर देवी देवताओं की मूर्तियां लगाईं गई हैं जो इस बात को और भी मजबूत करती हैं।

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तीन मंजिल की और 46 मीटर गहरी "रानी जी की बावली " के प्रवेश दवार देखकर आपको इसकी भव्यता और शाही होने का अंदाजा होने लगता है , शानदार काम किया हुआ है पत्थरों पर। प्रवेश द्वार पर चार पिलर लगे हैं जिन पर हाथी की मूर्तियां विराजमान हैं। आजकल बावली की पहली मंजिल से एन्ट्री रोक दी गई है क्योंकि वहां से कबूतर बहुत आते होंगे। इसलिए जाली लगाकर रोक दिया गया है। लेकिन जो खूबसूरती और भव्यता इसकी बनावट , इसकी दीवारों और इसकी कलाकृतियों से झलकती है उसे यहां बिखरी पड़ी गन्दगी ढक देती है।

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सुबह 9 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक खुली रहने वाली "रानी जी की बावली " का प्रवेश टिकट का पैसा उसी में शामिल था जो टिकट हमने " चौरासी खम्भे की छतरी " पर खरीदा था , लेकिन बूंदी फोर्ट देखने के लिए आपको अलग से टिकट लेना पड़ेगा।

अब बाहर निकलने का समय है , आधा घण्टा बहुत है इस जगह को देखने के लिए। बाहर कलश यात्रा निकल रही है जिसमें महिलाएं सिर पर सजे हुए कलश लिए लाइन से चलती जा रही हैं। हमारे समाज में किसी पवित्र आयोजन से पहले कलश यात्रा निकाली जाती है। आगे -पीछे खूब सारे लड़के चल रहे हैं जिन्हने भगवा गमछा गले में डाल रखा है और हाथ में डण्डे हैं। फोटो लेना चाहता हूँ लेकिन महिलाओं की फोटों लेता हुआ देखकर कोई मुझे "ठोक " न दे इसलिए अपने मन को शांत करता हूँ और कलश यात्रा को निकल जाने देने का इंतज़ार करता हुआ अपनी अगली मंजिल " बूंदी फोर्ट " जाने के लिए निकल पड़ता हूँ :













 To Be Continued .......

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