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पिछली पोस्ट शेख चिल्ली के मकबरे की थी जिसमें आपने शेख चिल्ली और उसकी पत्नी के मकबरे को देखा था ! पिछली पोस्ट में
श्री हर्षवर्धन जोग साब ने अपनी टिप्पणी में एक बहुत सही बात लिखी थी कि हमारे उत्तर भारत में शेख चिल्ली का मतलब अपनी नादानियों और ऊट पटांग हरकतों से लोगों को हसाने वाले एक कॉमिक करैक्टर से होता है ! या ऐसे व्यक्ति से मतलब है जो दिन में भी सपने देखता हो , या बड़े बड़े हवाई ख्वाब बनाता हो ! कभी कभी ऐसे आदमी को हम कह भी देते हैं - अब चल भी शेख चिल्ली की औलाद ! शेख चिल्ली की औलाद मतलब उसकी तरह ही दिन में ख्वाब देखने वाला प्राणी ! धन्यवाद जोग साब !
ये पोस्ट लिखने के लिए मुझे आपको कुरुक्षेत्र का इतिहास संक्षेप में बताना पड़ेगा ! कुरुक्षेत्र महाभारत वाला ही कुरुक्षेत्र है लेकिन इससे आगे एक छोटा सा शहर हुआ करता था स्थानीश्वर ! अब दोनों एक ही हो गए हैं ! स्थानीश्वर यानि ईश्वर का स्थान और ये स्थानीश्वर बिगड़ते बिगड़ते थानेश्वर हो गया है ! थानेश्वर में सातवीं शताब्दी में एक राजा हुआ करता था प्रभाकर वर्धन ! उसके बाद उसके पुत्रों राज्यवर्धन और हर्षवर्धन ने सत्ता संभाली ! थानेश्वर , वर्धन या पुष्यभूति साम्राज्य की राजधानी था ! ये वो साम्राज्य था जिसने गुप्त वंश के बाद भारत के अधिकांश हिस्सों पर अपना सत्ता चलाई ! प्रभाकर वर्धन की 606 ईस्वी में मौत हो जाने के बाद उसके ज्येष्ठ पुत्र राजयवर्धन का अभिषेक हुआ लेकिन उसे उसके दुश्मन ने मार दिया जिसके बाद हर्षवर्धन राजा बने ! यहां एक बात कह दूँ कि राजा हर्ष वर्धन सिर्फ 16 वर्ष की उम्र में ही राजा बन गए थे ! राजा हर्ष वर्धन ने अपना राज्य उत्तर भारत से लेकर वर्तमान आसाम के कामरूप तक फैला दिया था और अपनी राजधानी को थानेश्वर से हटाकर उत्तर प्रदेश के कन्नौज में स्थापित किया था ! इसी थानेश्वर को गज़नी के महमूद ने सन 1011 में तहस नहस कर दिया !
ये थानेश्वर शहर एक टीले (Mound ) पर बसा हुआ है जिसे हर्ष का टीला कहते हैं ! यहीं शेख चिल्ली का मक़बरा है और इस मकबरे के पश्चिम में हर्ष का टीला के अवशेष हैं ! इन अवशेषों से पुरातत्ववेत्ताओं को ग्रे और रेड पोलिश किये हुए गुप्त वंश और कुषाण वंश के बहुत ही कीमती बर्तन प्राप्त हुए हैं ! ये पूरा स्थान लगभग 1 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है ! आप अगर एक नजर से देखना चाहेंगे तो आपको लगेगा -अरे यार ! क्यों आये हैं यहाँ ? लेकिन जब आप इसके इतिहास से परिचित होते हैं तो आपको निश्चित ही संतोष मिलता है और गर्व की अनुभूति होती है कि हमने एक सातवीं शताब्दी की स्ट्रक्चर देखी है !
इसमें बनी सीढ़ियां शायद बाद में बनायीं गयी हैं लेकिन इसमें जो कोठरी (Room ) बनी हुई हैं वो चौड़ी और ऊपर से अर्ध गोलाकार हैं ! जैसे अस्तबल में घोड़े के लिए जगह बना दी जाती है या दिल्ली के चिड़ियाघर में हाथी के लिए जो जगह बनाई हुई है ! और ज्यादा इस विषय पर लिखना मुश्किल है इसलिए आज - राम राम !!
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हर्ष का टीला के अवशेष |
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हर्ष का टीला के अवशेष |
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हर्ष का टीला के अवशेष |
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वहां हरे रंग की एक मस्जिद भी है |
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पास ही शेख चिल्ली का मक़बरा |
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पास ही शेख चिल्ली का मक़बरा |
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हर्ष का टीला के अवशेष |
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हर्ष का टीला के अवशेष |
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हर्ष का टीला के अवशेष |
1 टिप्पणी:
Superb
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