सोमवार, 11 मई 2015

मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली : दिल्ली


एक दिन यूँ ही एक अंग्रेजी ब्लॉग पढ़ रहा था , किसका था अब याद नही है। उसमें दिल्ली में स्थित उर्दू के विख्यात शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली के विषय में लिखा था। उन्होंने विवरण ज्यादा दिया था और फोटो एक -दो ही लगाई थी , लेकिन फिर भी आकर्षित कर गया ये स्थान। और जैसे ही समय मिला दिल्ली की तरफ निकल लिया। हालाँकि दिल्ली कुल 22 किलोमीटर है मेरे यहां से और मैं लगभग हर सप्ताह एक चक्कर तो लगा लेता हूँ लेकिन इस बार सिर्फ मकसद मिर्ज़ा ग़ालिब की हवेली ही घूमने का था। 10 अप्रैल को सुबह सुबह ही निकल गया। नॉएडा सिटी सेंटर से राजीव चौक मेट्रो स्टेशन से येलो लाइन की दूसरी मेट्रो पकड़कर सीधे चौड़ी बाज़ार। चावड़ी बाजार का स्टेशन बहुत लम्बा चौड़ा सा लगता है। गेट नंबर 2 से निकालकर सामने ही एक छोड़ी पतली सी गली है जो बल्लीमारान के लिए चली जाती है। बल्लीमारान यूँ पूरा मुस्लिम बहुल इलाका है और इस जगह आपको रोड के दोनों तरफ चश्मों की होल सेल की दुकानें मिलेंगी। चश्मों के लिए बहुत ही प्रसिद्द जगह है बल्लीमारान। इसी मार्केट में आगे चलते जाइए कई साड़ी संकरी गालियां आती रहेंगी। पुरानी दिल्ली है ये दिल्ली -6 , तो छोटी छोटी गालियां मिलनी ही हैं। इन्हीं गलियों में से एक गली है गली कासिम जान। उसमें घुसते ही आपको एक पुरानी सी हवेली दिखाई देगी जिसके बाहर बोर्ड लगा है , मिर्जा ग़ालिब की हवेली।


मिर्जा ग़ालिब की इस हवेली को भारतीय पुरातत्व विभाग ने हेरिटेज साइट में शामिल किया हुआ है। मुगलकालीन सभ्यता की स्टाइल में बने इस हवेली में आपको उनके हाथ से लिखे हुई गजलें और शेर भी देखने को मिल जाएंगे। इसमें ग़ालिब की जो प्रतिमा लगी है वो 2010 में लगाई गयी है। जिसका अनावरण प्रख्यात कवि और गीतकार गुलज़ार ने किया था और इस प्रतिमा को बनाया था प्रख्यात मूर्तिकार भगवान रामपुरे ने। कोई टिकट नही है , न घूमने का और न ही फोटोग्राफी करने का। बस 2 घंटे निकालिये और आप पूरा स्थान आराम से एक एक चीज देख लेंगे।


मिर्ज़ा ग़ालिब ने इस हवेली में अपने जीवन के बहुत से वर्ष गुजारे हैं। वो जब आगरा से दिल्ली आये तो इसी मकान में रहे और यहीं रहकर उन्होंने उर्दू और फ़ारसी भाषा में अपने "दीवान " लिखे। लेकिन उनकी मौत के बाद धीरे धीरे ये जगह भी और जगहों की तरह "कमर्शियल " बन गयी और यहां दुकानें खुल गयी। सन 1999 में बहुत प्रयासों के बाद इस जगह को मुक्त करवाया गया और आज इस रूप में लाया गया।


आइये फोटो देखते हैं :






ऊपर का कागज़ दिखाने का मतलब सिर्फ इतना है कि लोग कोई जगह नही छोड़ते गंदा करने से







ग़ालिब साब का कुर्ता


भाईसाब हुक्का का शौक भी रखते थे







पाकिस्तान ने इनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया था


और ये कनॉट प्लेस में लगा सबसे ऊँचा तिरंगा
जय हिन्द







जल्दी ही मिलेंगे एक और नयी पोस्ट लेकर

कोई टिप्पणी नहीं: