सोमवार, 30 दिसंबर 2013

द्रोण सिटी ............. दनकौर

महाभारत काल की कथा सबको पता है कि जब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर विद्या सिखाने के लिए मना कर दिया तब एकलव्य ने गुरु द्रोण की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसके समक्ष ही , उस प्रतिमा को साक्षात् गुरु मानकर तीर चलाने की शिक्षा ली ! पिछले दिनों मुझे उसी गुरु द्रोण की नगरी दनकौर जाने का अवसर प्राप्त हुआ ! शनिवार और रविवार दो दिन की कॉलेज की छुट्टी थी तो सोचा मौसम भी अच्छा है , देख कर आया जाए !

दनकौर बहुत छोटा सा क़स्बा है ! दिल्ली से करीब 40 किलोमीटर और ग्रेटर नॉएडा से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा ये क़स्बा आम भारतीय कस्बों जैसा ही शांत दीखता है ! ग्रेटर नॉएडा और नॉएडा उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जनपद में आते हैं और दनकौर भी इसी जनपद में है ! जाने के लिए आप ग्रेटर नॉएडा के परी चौक से कासना होते हुए जा सकते हैं या फिर अगर अपना व्हीकल है तो आगरा जाने वाले यमुना एक्सप्रेसवे से  जाना ज्यादा बेहतर है । एक्सप्रेसवे से गलगोटिया यूनिवर्सिटी के सामने से कट लीजिये और बस कुछ ही दूर दनकौर पहुँच जाइये । दनकौर ऐसा स्थान है जहां आप 2 घंटे में ही पूरा क़स्बा आराम से देख लेंगे ।

असल में ये द्रोण सिटी नहीं है , यहाँ एकलव्य ने मूर्ती की स्थापना करके गुरु द्रोण को साक्षात् मानकर धनुर विद्या सीखी थी इसलिए मुझे लगता है इसका नाम एकलव्य सिटी होना चाहिए था लेकिन द्रोण सिटी ही कहते हैं ! इस कसबे को पर्यटन स्थल बनाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे श्री  पंकज कौशिक कहते हैं कि असल में जब एकलव्य यहाँ शिक्षारत था तब एक बार गुरु द्रोण अपने शिष्यों के साथ इधर से निकल रहे थे , उनके रास्ते में एक कुत्ता उन पर भौंक रहा था ।  एकलव्य वहीँ कहीं जंगल में था ,  वो गुरु द्रोण को पहिचानता था , उसे ये देखकर बहुत गुस्सा आया कि एक कुत्ता उसके गुरु पर भौंक रहा है तो उसने अपने बाणों से उस कुत्ते का मुंह भर दिया जिससे उस कुत्ते का मुंह खुला का खुला रह गया । इसी मान्यता को सिद्ध करता हुआ एक गाँव भी है पास में जिसका नाम है मुँहफाड़ । उसी घटना के बाद गुरु द्रोण को एकलव्य और उसकी धनुर विद्द्या के विषय में पता चला ।

दनकौर में गुरु द्रोण को समर्पित एक खूबसूरत मंदिर है जहां गुरु द्रोणाचार्य की वो मूर्ति भी है जो एकलव्य ने बनाई थी लेकिन ये मूर्ति मिट्टी की नहीं पत्थर की है ! मंदिर परिसर में ही एकलव्य पार्क भी है जो रखरखाव की उपेक्षा झेल रहा है । हालाँकि उसके दरवाजे बंद रहते  हैं लेकिन फिर भी एक कोशिश करी कि कुछ फ़ोटो ले लिए जाएँ ! मेरे साथ मेरा साथी राजेश रमन भी था और मेरा स्टूडेंट कुशाग्र कौशिक भी था । कुशाग्र दनकौर का ही है इसलिए उसे पहले ही सूचित कर दिया था जिससे वो हमारी कुछ मदद कर सके और उसने सच में पूरी मदद करी । धन्यवाद कुशाग्र
दनकौर में एक पीर बाबा की मज़ार है , जैसा कि कुशाग्र ने बताया कि उर्स के समय यहाँ बाहर के देशों तक से भी जायरीन आते हैं और जो मन्नत इस पीर पर मांगी जाती है पूरी होती है । मेरी कोई मन्नत ही नहीं है तो क्या मांगता ? खैर ! अगर आप दिल्ली या आस पास से हैं तो कुछ घंटे का सफ़र तय करके यहाँ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है ! और अगर आपके पास समय है तो थोड़ी ही दूर यानि करीब 10 -12 किलोमीटर की दूरी पर रावण के पिता द्वारा स्थापित शिवलिंग भी है जहां एक मंदिर भी है ! इस गाँव का नाम बिसरख है !



आइये फोटो देखते हैं :



एकलव्य द्वारा बनाई गयी गुरु द्रोण की मूर्ति

गुरु द्रोण की मूर्ति 

गुरु द्रोण की आरती

गुरु द्रोण का मंदिर

मंदिर परिसर में लगी एकलव्य की प्रतिमा




ग्रेटर नॉएडा का पारी चौक

ग्रेटर नॉएडा का पारी चौक

ग्रेटर नॉएडा के परी चौक पर सुन्दर परी

ग्रेटर नॉएडा के परी चौक पर सुन्दर परी


बिसरख गाँव में रावण के पिता द्वारा स्थापित शिव मंदिर

बिसरख गाँव में रावण के पिता द्वारा स्थापित शिव लिंग





दनकौर में स्थित एक सुन्दर मजार

       







            

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