मंगलवार, 9 जनवरी 2018

Bada Imambada : Lucknow

पावन नगरी चित्रकूट के दर्शन कर , रात को ही ट्रेन पकड़ी और लखनऊ के लिए निकल गए। लखनऊ पहुँचते पहुँचते सुबह हो जानी है। दिन की शरीर जलाती गर्मी से रात में कुछ राहत मिली है और ट्रेन के चलने से थोड़ी ठण्डी ठण्डी हवा भी आ रही है। इस बीच कहीं से आँखों में नींद चली आई और दो घंटे की नींद भी अगर मिल जाए तो थकान दूर हो जाती है।
 

लखनऊ का चारबाग़ स्टेशन , अब कुछ अच्छा सा लगता है। लखनऊ में दो स्टेशन हैं , एक चारबाग़ और दूसरा लखनऊ जंक्शन। दोनों ही आसपास हैं तो ज्यादा भागदौड़ नहीं रहती। पहली बार लखनऊ को 1997 में देखा था , लेकिन तब ट्रेन से नहीं बस से आये थे झाँसी से। ये उन दिनों की बात है .... जब हम युवा हुआ करते थे 👦 पॉलिटेक्निक का दूसरा साल था और जनवरी का महीना था। हम अपने कुछ और साथियों के साथ लखनऊ के GPL ( Government Polytechnic Lucknow ) पहुंचे थे , 800 मीटर की रेस में State level खेलने के लिए। केवल एक ही इवेंट नहीं था , और भी बहुत सारे थे जिनमें से मुझे केवल दो में ही पार्टिसिपेट करना था। एक 800 Meter Race और दूसरा Debate Competition। बाकी कुछ मित्र भाला फेंक , 400 मीटर रेस , 100 मीटर रेस में पहुंचे हुए थे और कुछ खाली- पीली हम लोगों का उत्साह बढ़ाने गए , या ये कहें कि रोटियां तोड़ने और लखनऊ घूमने गए थे मुफ्त में😆। किराया लगना नहीं था किसी का भी , झाँसी से रात में बहुत सारी टूरिस्ट बसें निकलती थीं लखनऊ , जयपुर , ग्वालियर , आगरा , खजुराहो के लिए , तो उनमें ही हम भी बैठ जाते थे । लेकिन एक दिक्कत थी कि हमें केबिन में बैठना पड़ता था !! मुफ्त में केबिन में बैठना क्या बुरा है ? और हाँ , नाश्ता भी बस ड्राइवर -कंडक्टर ही कराते थे। इस चक्कर में हॉस्टल का शायद ही कोई छात्र होगा जिसने जयपुर , आगरा , खजुराहो न घूमा हो , मुफ्त में ही !! ऐसा कैसे ?? सवाल तो आ रहा होगा आपके मन में ? जरुरी भी है !! तो ऐसा इसलिए कि ये सारी बस हमारे हॉस्टल के सामने से निकलती थीं और अगर ये किसी स्टूडेंट को बिठाने से मना करते थे तो इनकी बस के कांच तोड़ देते थे हम सब हॉस्टल वाले। बेहतर यही था कि स्टूडेंट को केबिन में जगह दे दी जाए.... ... लेकिन अब 20 साल बाद वो सब बदल गया है।

तो जी लो आ गए लखनऊ । 16 अप्रैल का दिन है और सूरज अपने पूरे जोश में है लेकिन दोपहर बाद ही घूमने निकलना है , कुछ आराम तो हो ही जाएगा धूप से। दो बजे के आसपास फ्री हो गया तो पहली मंजिल इमामबाड़ा थी। चिलचिलाती धूप में E- रिक्शा में बैठा , उन पुराने दिनों को याद करता हुआ लगभग खाली सी रोड पर अपने आपको नवाबों के शहर में ले आया था। E- रिक्शा को हमारे अलीगढ -खुर्जा -बुलंदशहर में टिर्री बोलते हैं !! है न अजीब सा और रोचक सा नाम ! E-Rickshaw is called as Tirri in our Aligarh -Khurja -Bulandshahar  !!  इमामबाड़ा पहुँच रहे हैं तो आपको एक और कहानी सुनाता जाता हूँ। झाँसी के गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक में पढ़ाई करते हुए सेकंड ईयर में दिसंबर में कॉलेज लेवल पर स्पोर्ट्स मीट में हिस्सा लिया था और स्पोर्ट्स मीट में ही कुछ और भी कम्पटीशन हुए थे जिनमें एक्सटेम्पोर , डिबेट में मैं भी शामिल हुआ था और एक्सटेम्पोर में मुझे विषय मिला था " अगर आपको 20 लाख रूपये मिल जाएँ तो क्या करोगे "? जिन्हें मालूम है उनको धन्यवाद लेकिन जिन्हें नहीं मालूम उनके लिए बता दूँ कि एक्सटेम्पोर प्रतियोगिता में हमसे एक बाउल में से पर्ची उठवाई गई थी और पर्ची पर जो टॉपिक लिखा था उस पर तुरंत ही 2 मिनट की स्पीच देनी थी ! मैंने पता नहीं क्या क्या बना दिया उन 20 लाख में , मैंने कहा - मैं अस्पताल बनवाऊंगा , बच्चों के लिए स्कूल बनवाऊंगा ..... इतने में भीड़ में से आवाज़ आई ! अबे , तुझे 20 लाख मिले हैं , 20 करोड़ नहीं मिले !! परिणाम पता था कि हार जाऊँगा --- हार ही गया लेकिन इससे एक कॉन्फिडेंस आ गया बोलने का। और फिर जब डिबेट कम्पटीशन हुआ दो -तीन दिन बाद ... तो विपक्ष में हम विजेता थे !  विषय क्या था ? थोड़ा सा याद है - " औधोगीकरण का फायदा या नुकसान​ " । उस वक्त शायद नरसिम्हाराव की सरकार थी और डॉ मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। पक्ष में मित्र प्रवेश तिवारी विजयी हुआ था और विपक्ष में हम। दोनों ही मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे। अब अगला पड़ाव जोनल था और जोनल के लिए ​कानपुर​ जाना था। जोनल प्रतियोगिता HBTI ​कानपुर में थी ! वहां प्रवेश तिवारी ने मनमोहन सिंह को मनमोहन देसाई बोल दिया और मामला गड़बड़ हो गया। तब पक्ष में कोई भावना तिवारी विजयी हुई थी और विपक्ष में योगी आदित्यनाथ नहीं बल्कि योगी सारस्वत। हालाँकि प्रवेश बहुत अच्छा वक्ता था और उसे बाद में UP के तब के CM कल्याण सिंह जी ने सम्मानित किया था लेकिन उस वक्त वो पता नहीं कैसे फिसल गया। और इस तरह हम राज्य स्तर की डिबेट में पहुँच गए। लेकिन हाल फिलहाल हम इमामबाड़ा पहुँच गए हैं ! 

अब टिकट लगने लगा है और हरियाली भी पहले के मुकाबले कम हो गई है । लेकिन बदलाव सिर्फ इतना नहीं है ! अब बिल्कुल कमर्शियल कर दिया है इस जगह को। खैर , संभव है खर्च हो रहा है तो पैसा चाहिए और इसी के लिए टिकट तय किया गया हो ! लेकिन टिकट , विंडो पर क्यों नहीं मिलता ? जहां आप इमामबाड़ा में एंटर करते हैं वहीँ कुछ खाली - नल्ले से दिखने वाले चार -पांच लोग टिकट थमा देते हैं !!  पता नहीं टिकट वास्तव में लगता है ? या इन्होने कोई अपनी ही दुकान चला रखी है ?

लखनऊ , नवाबों और कबाबों का शहर ! मीनारों और गुम्बदों का शहर !! तहज़ीब और अदा का शहर !! स्वत्रंत्रता आंदोलन की चिंगारियों से रोशन होता हुआ आज भारत के सबसे बड़े राज्य की राजधानी और बिजलियों की चमक से जगमग करती विधानसभा। कुछ तो है इस शहर में !! भले यहां के मोनुमेंट्स मुस्लिमों ने बनवाये हैं लेकिन नफ़ासत ऐसी कि दिल प्रसन्न हो जाए। आज बस इमामबाड़ा की बात करते हैं : दो इमामबाड़े हैं इधर लखनऊ में ! एक बड़ा इमामबाड़ा दूसरा छोटा इमामबाड़ा ! बड़े की बात पहले कर लेते हैं क्योंकि पहले तो यही देखा है न ? ये वाला इमामबाड़ा 1784 ईस्वी में अवध के चौथे नवाब असफ़उद्दौला ने बनवाना शुरू किया था और 1791 में जाकर पूरा हुआ । ऐसा कहते हैं कि इसे बनाने में उस वक्त करीब 10 लाख रूपये खर्च हुए थे ! ठीक है ? लेकिन ये असल में एक एक्सीडेंटल मीनार है , मतलब बिना किसी जरुरत के बनवाई हुई मीनार। हुआ यूँ था कि एक बार बहुत ज्यादा अकाल पड़ गया और लोग भूखे मरने लगे तब नवाब साहब ने एक तरीका निकाला जिससे लोगों को काम भी मिल जाए और उन्हें ऐसा भी महसूस न हो कि उन्हें खैरात मिल रही है। इसके लिए नवाब साहब ने इस मीनार का निर्माण शुरू किया। एक मजेदार बात बताता हूँ - दिन में मजदूर जितना काम करते , रात में नवाब साहब के अधिकारी लोग आकर उसे गिरा जाते। न न गलत नियत से नहीं बल्कि इसलिए कि मजदूरों को और ज्यादा दिन लग जाएँ इसे पूरा करने में और उनके घर में चूल्हा जलता रहे !! वाह ! नवाब साहब !! बड़ा वाला सलाम है आपको !!

बड़ा इमामबाड़ा , लखनऊ की सबसे बढ़िया मोनुमेंट्स में मानी जाती है। इसमें अस्फी मस्जिद और भूल भुलैया के अलावा एक बावली भी है। ऐसा कहते हैं कि यहां भूल भुलैया में आने के 1024 दरवाजे हैं लेकिन जाने का केवल एक है !! मुझे तो नहीं दिखाई दिए 1024 दरवाज़े !! वैसे कभी कभी हांकने वाले कुछ ज्यादा ही हाँक देते हैं !! इस इमामबाड़े को हाफिज किफायतुल्ला ने डिज़ाइन किया था जो उस वक्त के बड़े आर्किटेक्ट माने जाते थे। इस 50 मीटर लंबे और 16 मीटर चौड़े हॉल में एक भी बीम नहीं लगाई गई है जबकि इसकी ऊंचाई भी 15 मीटर है। ये इस तरह का दुनिया का सबसे बड़ा हॉल माना जाता है जिसमें इतनी बड़ी मीनार में एक भी बीम नहीं लगाई गई ! इसे सेंट्रल हॉल कहते हैं और यहीं नवाब आसफुद्दौला का मकबरा है।


आज और नहीं लिखता , फिर पोस्ट बड़ी हो जायेगी: 

























शनिवार, 30 दिसंबर 2017

Chasing the footprints of Bhagwan Rama : Chitrakoot (Part-3)

इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये जहां आप जानकी कुण्ड और स्फ़टिक शिला के विषय में पढ़ सकते हैं !! ​

Hanuman Dhara :
गुप्त गोदावरी गुफाओं में घूम -घाम के , चोट खा के बाहर बैठ गया पेड़ों की छाँव में। अप्रैल की तेज़ गर्मी में पेड़ ऐसी ठण्डक दे रहे थे जैसे किसी ने कूलर रख दिया हो सामने ही , AC कहता तो कुछ ज्यादा हो जाता😋 ! आराम मिला तो अपना प्रिय पेय पदार्थ पिया।  जी , चाय ! मजा आ गया ! अब अंदर की गर्मी , बाहर की गर्मी का मुकाबला करने को तैयार है ! चल बाबू आगे चल !! चलो , हनुमान धारा चलते हैं ! ज्यादा पता नहीं था कि कैसे और कहाँ से होकर गए ? लेकिन रामघाट पहुंचे थे पहले फिर वहां से ऑटो लिया था। थोड़ा अलग हटकर है हनुमान धारा , लेकिन जगह बढ़िया लगी ! ऐसा तो नहीं कहूंगा कि इससे सुन्दर जगह नहीं देखी लेकिन मन को सुकून देने वाली जगह है।


सामने बहुत सारी सीढ़ियां दिखाई दे रही हैं , इन पर ही चढ़ के जाना है और ऊपर सूरज आज ही अपनी पूरी ताकत दिखा देना चाहता है। आदमी भी कौन सा कम है , उसने भी सूरज की गर्मी से निपटने को कई सारे यंत्र और कई सारे पेय पदार्थ ईजाद कर लिए। इनमें से ही एक कोल्ड ड्रिंक भी है , हालाँकि मेरा प्रिय पेय नहीं है लेकिन पीने से नफरत भी नहीं है। तो एक बड़ा सा घर देखा और उसके बरामदे में सजी दूकान। सजी क्या , सारा सामान इधर -उधर फैला पड़ा था लेकिन उस दुकान में घुसने का मतलब दूसरा था। कोल्ड ड्रिंक तो और भी कई दुकानों में मिल जाती लेकिन एक तो यहां कूलर चल रहा था और कूलर के सामने ही खाट पड़ी थी और खाट पर अमर उजाला !! अगर यही जगह दिल्ली में होती तो करोड़ों की होती लेकिन वहां चित्रकूट में उस घर की मालकिन दुकान चला रही है।..... छोडो यार ! अभी कोल्ड ड्रिंक और ब्रेड पकोड़ों पर concentrate करते हैं। अहाहा...  आनंद आ गया और आनंद के साथ -साथ डकार भी चली आई😀 । हरिओम !! श्री राधे !!

अब चलते हैं आगे ! मैं तो खैर सीढ़ियां ही चढ़कर जाऊँगा लेकिन अगर किसी को ऊपर जाने में परेशानी होती है , सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती है तो यहीं नीचे ही , जहां से सीढ़ियां शुरू होती हैं वहां कहार (porter ) भी मिल जाते हैं और ले जाने के लिए टोकरी भी। तो बड़े -बुजुर्गों को भी वहां तक पहुँचने में कोई दिक्कत नहीं ! कहते हैं चित्रकूट में आज भी हनुमान जी वास करते हैं जहां भक्तों को दैहिक और भौतिक ताप से मुक्ति मिलती है। कारण यह है कि यहीं पर भगवान राम की कृपा से हनुमान जी को उस ताप से मुक्ति मिली थी जो लंका दहन के बाद हनुमान जी को कष्ट दे रहा था।

इस विषय में एक रोचक कथा है कि, हनुमान जी ने प्रभु राम से कहा, लंका जलाने के के बाद शरीर में तीव्र अग्नि बहुत कष्ट दे रही है। तब श्रीराम ने मुस्कराते हुए कहा कि-चिंता मत करो। चित्रकूट पर्वत पर जाओ। वहां अमृत तुल्य शीतल जलधारा बहती है। उसी से कष्ट दूर होगा। ये वही हनुमान धारा है।

धूप इतनी तेज है कि कुछ कदम चलते ही हालत खराब हो जा रही है और ऐसे में एक पेड़ के नीचे एक 30 -32 साल का व्यक्ति बच्चों के खिलोने और छोटी -मोटी चीज बेच रहा है , मुझे यहां लगभग एक घंटा हो चुका है और मैंने कोई आदमी नहीं देखा यहां आते हुए , न जाते हुए ! क्या बिका होगा इसका ? क्या बिकता होगा ? मैंने 10 रूपये का कुछ लिया , बिना जरुरत के ही। आखिर तक पहुँच गया ऊपर। ऊपर मंदिर के पास एक -दो दुकान हैं पानी- कोल्ड ड्रिंक की , उस दुकान के बाहर ही एक माँ -बेटी सूखे बेर बेच रही हैं। 10 रूपये के ले तो लिए लेकिन ज्यादा स्वादिष्ट नहीं लगे। लू के थपेड़े गाल पर चुम्मी ले रहे हैं बार -बार और गाल लाल हो रहे हैं , ऐसे ही जैसे कभी स्कूल में मास्टर जी ने किये होंगे 😁!! थोड़ा इधर -उधर घूमा , चार पांच पुजारी मंदिर के अंदर आराम फरमा रहे हैं और दूर -दूर तक और कोई नहीं दिखाई दे रहा। यहां से करीब 100 फ़ीट दूर सीता जी की रसोई है उसे देखा , फोटो खींचे और नीचे उतरने लगा तब एक परिवार जाता हुआ मिला। मतलब दो -ढाई घण्टे में कुल चार लोग ! तीन वो , एक मैं। नीचे कई सारी महिलाएं भिक्षा के इंतज़ार में हैं।

Ramghat:
चलो अब वापस चलते हैं रामघाट ! रामघाट , मंदाकिनी नदी के किनारे के जो घाट हैं , उन्हें रामघाट बोलते हैं और ये एक ऐसी जगह है चित्रकूट की,  जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध होगी जहां तक मैं समझता हूँ। किनारे पर एक से एक सुन्दर मंदिर लेकिन उनके सामने से गुजरते बिजली के तार इन मंदिरों की फोटो लेने पर शोभा बिगाड़ देते हैं। कहते हैं भगवान श्री राम यहीं माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ स्नान के लिए आया करते थे। ऐसा माना जाता है कि रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास जी भी कुछ दिन यहां रहे थे और उन्हें भगवान श्री राम ने माता सीता और लक्ष्मण सहित दर्शन दिए थे। ये तो हुई पुरानी बात लेकिन नई बात ये है कि आप यहां बढ़िया नाव में बैठकर बोटिंग का आनंद उठा सकते हैं। बाकायदा हर बोट में बिस्तर लगा है और सोफे भी रखे हुए हैं , लेकिन चद्दरों और सोफे की हालत बता रही है कि बस इन चीजों को रखा गया है सजावट के लिए , बहुत बढ़िया तरह से न तो चादर बिछाई गई हैं और न सोफे इस तरह के हैं कि किसी को आकर्षित कर सकें। मैं किसी को दोष नहीं दे रहा क्योंकि इन्हें जितनी आमदनी होती होगी उसी हिसाब से ये अपनी नाव को सजायेंगे भी। अब ये आपके ऊपर भी निर्भर करता है कि आप हमेशा मॉल में ही जाते रहेंगे घूमने के लिए या अपने ग्रामीण भारत के भी दर्शन करना चाहते हैं जिससे उन्हें भी दो पैसे की कमाई हो सके और उनके बच्चों का भी पेट भर सके। मैं धन्य हुआ अपने प्रभु श्री राम के चरणों की धूल को माथे से लगाए कामदगिरि मंदिर की तरफ बढ़ता हूँ !!

Kamadgiri :
शाम घिर आई है लेकिन अँधेरा होने में अभी कुछ वक्त है तो चित्रकूट की सबसे प्रसिद्ध जगह "कामदगिरि मंदिर " देखने का लालच मन में आ गया। हालाँकि ज्यादातर लोग इसे सबसे पहले स्थान पर रखते हैं जब वो चित्रकूट आते हैं तो लेकिन मैंने दूर की जगहों को पहले देखना उचित समझा। आज की आखिरी जगह होगी "कामदगिरि " जहां मैं जाऊँगा। कामदगिरि एक पहाड़ है और उसी के नाम पर मंदिर भी है। रामघाट से करीब चार -पांच किलोमीटर दूर होगा। कामदगिरि एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब होता है : एक ऐसा पहाड़ जहां आपकी हर इच्छा , हर मनोकामना पूर्ण होती है। The Sanskrit word ‘Kamadgiri’ means the mountain which fulfills all yur wishes and desires. The place is believed to have been the abode of Lord Ram, Mata Sita and Laxman Ji during their exile. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्री राम अपने वनवास के समय माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ चित्रकूट में रहे थे तब यहीं उनका ठिकाना हुआ करता था। कामदगिरि को 'कामतानाथ जी " के नाम से भी पुकारा जाता है और कामतानाथ जी , भगवान श्री राम का ही रूप माने जाते हैं। बहुत से श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की 5 किलोमीटर की परिक्रमा भी करते हैं और भरत कूप मंदिर इसी परिक्रमा के रास्ते में पड़ता है , हालाँकि मैं परिक्रमा नहीं कर पाया था तो सटीक जानकारी देना मुश्किल होगा।

तो भक्तो , असली वाले भक्तो हमारी आज की चित्रकूट की कथा यहीं संपन्न होती है। अब हम फिर से रात की ट्रेन से लखनऊ के लिए प्रस्थान करेंगे और फिर वहां से आपको लखनऊ की बात बताएँगे। तो भक्तो , कथा सुनने मतलब पढ़ने आना जरूर !! तो जोर से बोलिये : सियापति राम चंद्र की जय !! जय श्री राम !! 

गुप्त गोदावरी से निकलते हैं अभी.......
हनुमान धारा
हनुमान धारा.....
बड़े - बुजुर्गों के लिए दिक्कत नहीं है, इनका फायदा उठाइये
सीढ़ियां हालत खराब कर देती हैं






















मित्रो लखनऊ में मिलेंगे जल्दी ही:

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

Chasing the footprints of Bhagwan Rama : Chitrakoot (Part-2)

Sati Anusuiya Mandir & Gupt Godavari Caves


इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये जहां आप जानकी कुण्ड और स्फ़टिक शिला के विषय में पढ़ सकते हैं !! ​

..............................तो मरफा जाना कैंसिल हो गया ! कभी कभी होता है कि जो हम चाहते हैं वो नहीं हो पाता , तो क्या हुआ ? हम अनसुइया मंदिर चलते हैं , वहां के लिए तो ऑटो / टेम्पो मिल ही जाते हैं ! मैं हालाँकि स्फटिक शिला से रोड पर आ गया था लेकिन अगर सती अनसुइया आश्रम की बात करें तो ये रामघाट से करीब 16 किलोमीटर दूर होगा और वहीँ से सती अनसुइया के लिए ऑटो टेम्पो मिल जाते हैं ! कउनु चिंता की बात नहीं ! मंदिर चलने से पहले महासती अनसुइया देवी के विषय में बात कर लेते हैं : 
सती अनसुइया को सतीत्व का एक रोल मॉडल कहना ज्यादा उचित होगा ! सती , जैसा कि नाम से परिलक्षित होता है , सदैव पतिव्रता रहीं ! अनुसुइया देवी सप्त ऋषियों में से एक ऋषि अत्रि मुनि की पत्नी थीं। तीनों देवता ब्रह्मा , विष्णु और शिव अपनी पत्नियों के सामने देवी अनसुइया के पतिव्रता धर्म का बखान करते रहते थे और नारद मुनि भी उनकी तारीफ करते थे तो जैसा कि स्वाभाविक है , तीनों देवियों को ईर्ष्या होती थी। तीनों देवियों ने ब्रह्मा , विष्णु और शिव को देवी अनसुइया की परीक्षा लेने के लिए दबाव बनाया और पत्नी के दबाव के आगे कौन टिक पाया है ? जो ये भगवान टिक पाते ! वैसे बड़ी रोचक बात है कि जो पूरी दुनिया को उँगलियों के इशारे पर नचाते हैं वो त्रिदेव , अपनी पत्नियों के इशारे पर नाचते हैं तो फिर हम तो सामान्य और साधारण इंसान ठहरे :)

तो जी बात ये तय हुई कि त्रिदेव पृथ्वी पर जाएंगे और देवी अनसुइया के आश्रम के सामने भिक्षा मांगेंगे , वो उस समय वहां जाएंगे जब अत्रि मुनि आश्रम में न हों और देवी अनसुइया से निवस्त्र रूप में भिक्षा देने के लिए कहेंगे। इसे निर्वाण कहा जाता है। योजनानुसार तीनों देवता वहां पहुंचे और देवी अनसुइया से नि:वस्त्र रूप में भिक्षा देने के लिए कहा। देवी अनसुइया भिक्षा देने से मना भी नहीं कर सकती थीं और पतिव्रता होने की वजह से निः वस्त्र भी नहीं हो सकती थीं। अजीब मुश्किल थी उनके सामने , फिर उन्होंने कुछ देर सोचा और अंदर से अपने पति अत्रि ऋषि के पैर धोने का जल (चरणामृत ) लेकर बाहर आईं और उसमें से कुछ बूँदें अंजुली ( हाथ ) में लेकर उन तीनों भिक्षुओं के ऊपर छिड़क दिया। देखते ही देखते वो तीनों भिक्षु , बालक रूप में परिवर्तित हो गए और इसी बीच देवी अनसुइया के स्तनों में दूध उतर आया । देवी अनसुइया ने तीनों बच्चों को दूध पिलाया जिससे उन्हें निःवस्त्र रूप में भिक्षा भी मिल गई और देवी अनसुइया का सतीत्व भी बना रहा। कुछ देर बाद महर्षि अत्रि स्नान से वापस आये तो देवी अनसुइया ने उन्हें पूरी बात बताई । देवी अनसुइया की बातें सुनकर और तीनों बालकों को देखकर अत्रि मुनि मंद मंद मुस्कराने लगे। वो इस सबसे पहले से ही परिचित थे और वो जानते थे कि ये तीनों बच्चे वास्तव में कौन हैं !! महर्षि अत्रि ने अपने कमंडल में से जल की कुछ बूँदें लीं और उन तीनों बालकों पर छिड़क दीं , तीनों बच्चे एक में परिवर्तित हो गए और उस एक बच्चे को नाम मिला दत्तात्रेय ! भगवान दत्तात्रेय !!

माता अनसुइया के मंदिर के सामने ही मंदाकिनी नदी बहती है और जब यहाँ दिल्ली -नॉएडा में अप्रैल के महीने में यमुना भी सूखी -सूखी सी नजर आने लगती है , मंदाकिनी अपने पूरे यौवन पर थी। मैं इस किनारे था लेकिन दूसरा किनारा बहुत सुन्दर लग रहा था , जाने का मन था लेकिन न तो आसपास कोई पुल दिखा और कहीं दूर जाकर पुल ढूंढने का समय नहीं था। ये एक ऐसी जगह है जहां बैठे - बैठे आप घण्टों गुजार सकते हैं , लेकिन अपने साथ समय की समस्या थी तो चल दिए और चल कहाँ दिए ? गुप्त गोदावरी की गुफाएं देखने !! आप भी साथ ही चल रहे हो न ? तो आ जाओ चलते हैं और इस रास्ते में आपको मंदाकिनी नदी की भी कहानी सुनाता जाता हूँ : समय आराम से पास हो जाएगा। आखिर अभी लगभग 10 किलोमीटर दूर और जाना है और रोड से हटकर रास्ता भी बहुत बढ़िया नहीं हैं। सही रहेगा न ?

इधर एक बार बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई और अकाल पड़ने लगा तो महर्षि अत्रि मुनि ने अपने सभी शिष्यों को उनके घर भेज दिया और खुद तपस्या में लीन हो गए। अब देवी अनसुइया क्या करतीं ? उनकी तो दुनिया ही महर्षि अत्रि थे और महर्षि साधना में लीन हो गए तो देवी अनसुइया अपने पति यानि महर्षि अत्रि की परिक्रमा करने लगीं। ये साधना और परिक्रमा सात वर्षों तक चलती रही। इस सबको त्रिदेव देख रहे थे। अंततः एक दिन महर्षि अत्रि ने अपनी आँखें खोली और माता अनसुइया से गंगाजल माँगा। क्योंकि माता अनसुइया भी परिक्रमा में लीन थीं तो आश्रम में पानी नहीं था , इसलिए वो अपना बर्तन उठाकर बाहर दूर कहीं से पानी लाने के लिए निकल पड़ीं। भगवान शिव ये सब देख रहे थे तो वो माँ गंगा के साथ देवी अनसुइया से रास्ते में मिले और उनकी इतनी भक्ति से प्रभावित होकर वरदान मांगने के लिए कहा। देवी अनसुइया को क्या चाहिए था बस पानी , तो उन्होंने बर्तन भर पानी मांग लिया वरदान में। उनकी इस सह्रदयता को देखकर माँ गंगा ने देवी अनसुइया से कहा - देवी आपने जो महर्षि की परिक्रमा करते हुए ॐ नाम लेकर जो इतने पुण्य कमाए हैं उनमें से अगर आप मुझे एक वर्ष का पुण्य दे दें तो मुझे जिन लोगों ने दूषित किया है , मेरे सब पाप धुल जाएंगे। माता अनसुइया ने अपने सब पुण्य माँ गंगा को दे दिए और ऐसा पाकर माँ गंगा ने निश्चय किया कि वो मन्दाकिनी के रूप में यहां प्रवाहित होंगी। तो इस तरह मन्दाकिनी का उद्गम हुआ चित्रकूट में।

जितनी देर में आपने ये कहानी सुनी , हम आ पहुंचे हैं गुप्त गोदावरी की गुफाएं देखने। दो गुफाएं हैं यहां , एक बड़ी एक छोटी। जो पहली है वो बड़ी है और शायद वो ही मुख्य भी है। ऐसा माना जाता है कि गोदावरी नदी यहां से एक धारा के रूप में निकलती है और थोड़ी सी देर बहने के बाद यहीं दूसरी गुफा में गुप्त हो जाती है और फिर त्रियंबकेश्वर नासिक में निकलती है। शायद इसीलिए इसे गुप्त गोदावरी कहते हैं। पहली गुफा का रास्ता बहुत पतला सा है और सिर्फ एक ही व्यक्ति टेढ़ा -मेढ़ा होकर जैसे तैसे अंदर गुफा में जा पाता है और जब आप अंदर पहुँचते हैं तो एक खुला मैदान सा मिलता है। गुफा में प्रकाश की खूब बढ़िया व्यवस्था है हालाँकि फोटो साफ़ नहीं आते। यहीं सीता कुंड भी है और थोड़ा आगे जाकर खटखटा चोर भी लटका हुआ है। खटखटा चोर , नाम तो सुना होगा आपने ? ये वो राक्षस था जो सीता जी के कपडे चुरा ले गया था जब सीता जी स्नान कर रही थीं। लक्ष्मण जी को गुस्सा आया और उन्होंने उसे लटका दिया। वो यहीं लटका पड़ा है मूर्ति के रूप में।

दूसरी गुफा में चलते हैं जो बिल्कुल पास में ही है ! इसका लुक कुछ अलग है पहली वाली से। पहली वाली में शुरुआत में रास्ता एकदम संकरा है और गुफा एकदम खुली -फैली हुई है जबकि दूसरी गुफा का प्रवेश खूब चौड़ा है और लास्ट में जाते -जाते एकदम सिकुड़ता जाता है और अंतिम छोर पर पहुंचकर कुछ मूर्तियां रखी हैं , जहां दो तिलकधारी बैठे होते हैं , वो आपको तिलक तभी लगाएंगे जब आप दक्षिणा चढ़ाएंगे , तो स्वाभाविक बात है कि मुझे तिलक नहीं लगाया गया। यहां लगभग 10 मीटर तक अकेला ही आदमी निकल सकता है और प्रवेश द्वार से लेकर यहां अंतिम पग तक पानी भरा है। बीच में एक जगह तो घुटनों तक पानी था जिसमें से मैं धीरे -धीरे निकलने लगा लेकिन पैरों के नीचे कोई नुकीला पत्थर आ गया और पाँव बुरी तरह से जख़्मी हो गया। खून ही खून हो गया आसपास। वहां ISCKON के भी बहुत सारे लोग आये हुए थे , उनमें से ही किसी ने बाहर आकर पैरों में दवाई -पट्टी करी। अब और हिम्मत नहीं है , थोड़ा आराम कर लेता हूँ फिर आगे चलेंगे :
 































आगे अभी चित्रकूट धाम की यात्रा जारी रहेगी :