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बुधवार, 27 नवंबर 2019

Srikhand Yatra : Jaun Village to Thachadu

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श्रीखण्ड महादेव यात्रा : जाऊं गाँव से थाचडू तक
यात्रा दिनांक : 15 जुलाई 2019

कल शाम नरकुण्डा पहुँच चुके थे और जबरदस्त मैच देखते रहे ....क्रिकेट वर्ल्ड कप का फाइनल मैच। चाय -वाय पीकर बाहर निकले तो ठण्ड का झौंका वापस अंदर धकेल रहा था। अभी रजाई में ही पड़े रहने में ही फायदा लग रहा था। होटल में रूम के बराबर में ही किचन भी बना था जिसमें स्केटिंग का सामान रखा था। स्केटिंग अभी तक जीवन में कभी नहीं की लेकिन स्केट्स बाँध के यहां प्रैक्टिस कर लेने में क्या बुराई है। पानी इतना ठण्डा है कि नहाने की सम्भावना ही खत्म हो रही है। वेस्टर्न स्टाइल के टॉयलेट्स से ठन्डे पानी की जो स्ट्रीम निकल रही थी उसी ने नहाने की सम्भावना खत्म करने का आदेश दे दिया था। उसी पानी से आगे के रुझान मिलने लगे थे और रुझान ही पक्ष में नहीं थे तो सरकार क्यों बनाना , मतलब नहाने का बारे में क्यों सोचना ? कौन सा हमें आज कहीं पूजा -पाठ में बैठना है ! और अगर अनिल जैसा आदमी यात्रा में साथ हो तो आप थोड़ा बहुत अगर नहाने के बारे में सोचोगे तो... वो भी नहीं सोच पाएंगे। ऐसे -ऐसे न नहाने के कारण बताएँगे भाईसाब कि आप इस कुकर्म से जीवनभर दूर रहने की भीष्म प्रतिज्ञा लेने को मजबूर हो जाएंगे 😃


नारकुण्डा से रामपुर बुशहर की तरफ निकलते ही खूबसूरत हिमाचल के दर्शन होने लगते हैं , पेड़ों पर लदे सेब इतना नजीदक देखकर मन बौरा जाता है। खूबसूरत , छोटे और अलग -अलग रंगों में पुते घर ऐसा वातावरण बनाते हैं जैसे किसी घर को अलग अलग रंगों के कनात से सजा दिया गया हो। कुछ अति प्राचीन लोग घरों से बाहर बैठे मिल जाएंगे । सुबह -सुबह निकले हैं तो घर के बाहर मूढ़ा डाल के चाय सुड़कते हुए अखबार पढ़ते हुए मिल जाएंगे। इन प्राचीन लोगों से बात करिये , दो मिनट बैठिये तो सही.... थोड़ी ही देर में आपसे ऐसे खुल जाएंगे जैसे खुली किताब। आसपास की जगहों के साथ -साथ अपनी जवानियों की कहानिया भी सुनाएंगे। मैं श्रीखंड एकदिन में करके लौट आया। फलां ट्रेक मैंने एक दिन में कर डाला।




सेब के पेड़ या कहें सेब के बाग़ जब सड़क किनारे दिखने लगते हैं तो मन करता है हाथ बढ़ा के तोड़ लें एकाध.... लेकिन डर भी है , कोई ठोक न दे और यहीं हमारी श्रीखण्ड की यात्रा संपन्न न कर दे ....लेकिन सेब हाथ में लेकर फोटो खिचवाने में तो कोई बुराई नहीं है ...और इजाजत लेकर पेड़ के नीचे गिरे एकाध सेब उठाकर चखने में भी शायद कोई बुराई नहीं है। मैं सेब के बाग़ जीवन में पहली बार देख रहा हूँ तो उत्साहित होना स्वाभाविक है। इससे पहले हम रानीखेत के चौबटिया गार्डन गए थे 2015 अक्टूबर-नवंबर में लेकिन वहां सेब के पेड़ तो दिखे , उन पर सेब नहीं देखने को मिल पाए। सेब के पेड़ों पर जालियां लगा रखी हैं यहाँ के सेब उत्पादकों ने। ज्यादातर सफ़ेद रंग की जालियां हैं लेकिन कुछ नीले रंग की भी हैं। प्लम , खुबानी और नाशपाती के भी पेड़ दिख रहे हैं लेकिन कम हैं और पहुँच से दूर भी हैं अभी हमारे लिए। सेब के पेड़ों पर जाली के साथ -साथ सफ़ेद रंग की चमकीली पट्टी भी लगाईं हुई है जो हवा से हिलती रहती है और चमक पैदा करती है। उनके अनुसार ये पट्टी सेब के फलों पर पक्षियों के आक्रमण से बचाने के लिए लगाईं गयी हैं। इस पट्टी की चमक से पक्षी दूर भाग जाते हैं और फल में मुंह मारकर उसे खराब नहीं कर पाते। रास्ते पर बाइक से चलते हुए गर्दन उठाकर अपने दोनों तरफ मुंह ऊपर करके चलने में आनंद आ रहा है , वातावरण सुन्दर और खुशबूदार है। हरियाली , पहाड़ , ऊँचे ऊँचे वृक्ष , सुन्दर और छोटे घर , वातावरण को और भी ज्यादा दर्शनीय बना देने में पूरा सहयोग कर रहे हैं।




                                           Nature is a recharge of life.


रामपुर पहुँच गए हैं। सतलुज नदी यहीं कहीं बहती है किताबों के हिसाब से , मुझे कोई जानकारी नहीं कहाँ से निकलती है , कहाँ को जाती है। लौटने में किसी ने बताया था कि इधर ही बहती है , देखी भी थी। उसमें भी पानी ही बहता है , इधर दिल्ली में यमुना बहती है उसमें भी पानी ही बहता है। वैसे यमुना दिल्ली में , हरियाणा में , यूपी में बहती नहीं बहता होना चाहिए। दिल्ली में यमुना बहता है ...यमुना यहाँ स्त्रीलिंग नहीं पुल्लिंग है ...क्यूंकि दिल्ली में यमुना नाम की नदी नहीं ...नाला है और पानी नहीं उसमें गंध बहती है।

रामपुर का पूरा नाम रामपुर बुशहर है जहां कभी हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनके पूर्वज राजा हुआ करते थे। राजा वो आज भी हैं। वो ही क्या , जो व्यक्ति एक बार विधायक बन गया वो फिर राजा ही बन जाता है , ये तो फिर भी राज परिवार से हैं और कई बार मुख्यमंत्री भी रहे हैं , तो राजा कहने में कुछ गलत भी नहीं है। 

रामपुर में रोड किनारे चलते हुए मेडिकल स्टोर पर नजर पड़ गई तो अपने लिए asthaline का एक पैकेट ले लिया जिससे अगर जरुरत आ पड़ी तो काम आएगी। चार पांच किलोमीटर आगे चलकर सतलुज नदी पर बने पुल को पार करके निरमण्ड का रास्ता अलग हो जाता है। अब रास्ता सिंगल वे हो गया है। बागी पुल होते हुए जाऊं गाँव पहुँच गए हैं। जाऊं गाँव से ही श्रीखण्ड की यात्रा शुरू होती है। गाँव ज्यादा बड़ा नहीं है इसलिए गाड़ियां इधर -उधर लगी हुई हैं। कुछ लोगों ने अपनी जगहों में पार्किंग की सुविधा भी की हुई है , पेड। बाइक , हेलमेट और एक्स्ट्रा बैग रखकर अब आगे बढ़कर रजिस्ट्रेशन काउंटर पहुंचना है। रजिस्ट्रेशन काउंटर से पहले ही कई भंडारे लगे हैं। चाय , हलवा , जलेबी , पूड़ी , सब्जी और भी बहुत कुछ लेकिन हमें अभी कुछ नहीं करना है। पहले रजिस्ट्रेशन करा लें फिर कुछ खाएंगे।




इस बार श्रीखण्ड की आधिकारिक यात्रा 15 जुलाई से शुरू हो थी और आज 15 जुलाई ही है। आगे -पीछे भी आप जा सकते हैं लेकिन हमारी ये पहले श्रीखण्ड यात्रा है तो हम इसी समय जा रहे हैं। आज 15 जुलाई है , 15 जुलाई 2019 ! आज मुझे विवाहित हुए 14 साल हो गए। चौदह साल का वनवास कट गया अब तो स्वतंत्रता मिल ही जानी चाहिए लेकिन भारतीय परम्परा रिश्तों से ही पहचानी जाती है इसलिए मुझे कोई शौक नहीं , कोई चाहत नहीं , कोई तमन्ना नहीं अपनी पत्नी से स्वतंत्राता लेने की। मैं आज भी उसे वही प्यार देना चाहता हूँ जो आज से ठीक चौदह वर्ष पहले दिया था।



रजिस्ट्रेशन हो गया , 150 रूपये लगे। अपना पहचान पत्र जरूर ले जाइये। हमसे पहले आज सुबह -सुबह ही हमारे एक और मित्र नरेश सहगल जी भी इसी यात्रा पर निकल चुके हैं। वो शायद पहले ही बैच में निकल गए होंगे क्यूंकि वो कल ही जाऊं गाँव पहुँच गए थे। फ़ोन नहीं लग पाया उनका तो फिर भंडारे की चाय , पकोड़ी और जलेबी उदरस्थ कर आगे बढ़ चले। आज कम से कम इस यात्रा के पहले पड़ाव थाचडू तक तो पहुँच सकें , ऐसा सोच के आगे बढ़ चले।





करीब 11 बजे निकले हैं रजिस्ट्रेशन काउंटर से और शुरुआत के घण्टे भर में ही चढ़ाई देख के यात्रा की कठिनाई का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। रास्ते में कुछ दूर तक दोनों तरफ त्रिशूल , दुपट्टा , प्रसाद , पूजा का सामन बेचने वालों की दुकानें सजी हैं। आसपास ही पोर्टर भी घूम रहे हैं जो इस यात्रा को संपन्न कराने में आपकी मदद करने और इस यात्रा से अपने लिए कुछ कमा ले जाने की आशा में हैं। 1000 रूपये प्रतिदिन का रेट है उनका , खाना रहना उनका अपना होता है। जाऊं से 3 -4 किलोमीटर आगे सिंघगाड़ नाम की जगह है जहां छोटी सी पानी की धार के कुछ इस पार और कुछ उस पार अलग अलग रंगों से पुते सुन्दर सुन्दर घर बने हैं। दोनों तरफ के पहाड़ों पर सेब के पेड़ दिखाई दे रहे हैं। अभी सिंघगाड़ पहुँचने के लिए एकदम स्वच्छ और श्वेत जलधारा के किनारे किनारे चलते जा रहे हैं। इतना निर्मल जल , हाथ लगाने को भी जी न करे कि कहीं मेरे छू लेने मात्र से ये गंदा न हो जाए !




सिंघगाड़ से लगभग निकलते ही जंगल के बीच से रास्ता ऊपर और ऊपर चलता जाता है और रास्ते के ऊपर चलते जाने के साथ ही सांसें भी ऊँची होने लगती हैं। अभी मुश्किल से चार किलोमीटर चले होंगे लेकिन सांसें कांपने लगती हैं , चढ़ाई जरूर है और लगातार चढ़ाई है लेकिन खतरनाक नहीं है। आप अगर लगातार नहीं चल सकते तो रुक -रुक कर चलिए। खड़े होकर थोड़ा आराम करिये और फिर चल दीजिये। एक बात याद रखिये , ये कोई कम्पटीशन नहीं है कि मैंने श्रीखंड यात्रा तीन दिन में कर ली , मैंने दो दिन में कर ली। आप अपने हिसाब से चलिए , किसी के साथ चलते रहने की कोशिश करेंगे तो परेशान हो जाएंगे। आपका मन कह रहा है चलो तो चलो ! आपका मन है रुकने का तो रुक जाइये। चार दिन की बजाय पांच दिन में हो जायेगी , पांच की बजाय छह दिन में हो जायेगी आपकी यात्रा , कोई आफत थोड़े ही आ जायेगी एक दिन ज्यादा लग जाएगा तो ? लेकिन हाँ , अगर आपने जल्दी की तो संभव है आफत भी आ जाए ! पैर फिसल जाए , टखना टूट जाए , शरीर थक जाए उससे बेहतर है एक दिन एक्स्ट्रा ले लिया जाए यात्रा में। चढ़ाई चढ़ते -उतरते , जंगल के बीच की पगडंडी पर चलते हुए आप ऐसी जगह पहुँचते हैं जहां लोहे की अनगिनत सीढ़ियां लगी हुई हैं। इन सीढ़यों के दूसरी तरफ जब आप उतरेंगे तो वहां कई टैण्ट लगे हैं नदी किनारे। ये जगह बराटी नाला कही जाती है। भण्डारा यहाँ भी है , चाय , पकोड़ी , हलवा ! हमें आगे जाना ​है अभी और।





बराटी नाला से मुश्किल से बीस कदम चलते ही फिर ऊपर की तरफ चढ़ना है और करीब आधा किलोमीटर चलने के बाद एक छोटे से पुल को पारकर नदी पार कर जाते हैं। अब तक नदी हमारे दाएं हाथ पर थी अब बाएं हाथ पर दिखती है और फिर थोड़ी देर बाद आँखों से ओझल होने लगती है क्यूंकि हम आगे बढ़ चुके हैं। शाम गहराने लगी है और अभी पहला पड़ाव थाचडू करीब चार किलोमीटर दूर है। आज संभव नहीं लगता वहां तक पहुँच पाना इसलिए जो टैण्ट मिलेगा अब उसी में घुस जाएंगे और आज की अपनी यात्रा को विराम देंगे। 250 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से रहना और खाना मिल गया है टैण्ट में ! और क्या चाहिए ? अनिल बाबू के पास जिओ की सिम है और जिओ के नेटवर्क आ रहे हैं। वो भाईसाब चैटिंग में व्यस्त हैं और मेरा वोडाफोन का नंबर है जिसके नेटव्रक देखने तक को तरस रहा हूँ। मुझे जलन हो रही है जिओ से भी और अनिल से भी। टुकुर टुकुर रज़ाई में से मुंह निकालकर देख रहा हूँ। कब तक देखता रहता ? भाई ज़रा अपना हॉटस्पॉट ऑन करो मुझे भी मैसेज चेक करने हैं यार। मेरी Marriage Anniversary है आज ! कई लोगों के मैसेज आये हुए पड़े होंगे। एक -एक फाइव स्टार चॉकलेट से मैंने टैण्ट में अपनी 14 वीं विवाह वर्षगाँठ मनाई , क्या बेहतरीन और शानदार Celebration था मेरी एनिवर्सरी का। आनंददायक और पूर्ण संतुष्टि वाला !

27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत़ ही सुंदर यात्रा वृत्तांत

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  2. शादी की सालगिरह यात्रा में वो ही महादेव की यात्रा में ...
    अब ये बंधन १४ साल से १४ जन्मों का होने वाला है ... ठण्ड देख कर लगता अहि कठिन है बहुत पर नज़ारे देख कर लगता है समय रहते कर लेनी चाहियें ऐसी यात्राएँ ... आनंद आ रहा है इस यात्रा का आपके साथ ....

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  3. शानदार भाई, आगे का इंतजार है।

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  4. योगी जी बस वाह वाह आपको पढ़ कर मन मचलने लगता है कि बस एक बार किमर कस के निकला जाय
    इस बार लद्दाख की तैयारी थी बाइक से निकलने की लेकिन ऐन वक्त पर मित्र मंडली बाइक से जाने में आना कानी करने लगी ������

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  5. वाह अनिल के साथ आपने विवाह वर्षगांठ मनाई...भाभी में वर्षगांठ पर आपको घुमक़्क़डी की इजाजत कैसे दे दीं.सही कहा कोई competition नही है 5 कि जगह 6 दिन लग जाये नही तो पोर्टर ले।लो...बढ़िया पोस्ट...

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  6. यात्रा काफी रोचक हो चली है। अगले भाग का इंतजार....

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  7. सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं, योगी भाई। बहुत बढ़िया यात्रा वृतांत।

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  8. Belated Wishes for your Wedding Anniversary , a great way to commemorate the milestone. I am impressed by the amount of details you always pack into your blog.

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  9. बहुत सुन्दर वर्णन किया आपने

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  10. बहुत -बहुत धन्यवाद आपका सुनील जी 

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  11. बहुत -बहुत धन्यवाद आपका मित्रवर करुणाकर जी।  आप भी तो जाने वाले थे इस यात्रा पर ? अपना अनुभव भी साझा करिये कभी 

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  12. एकदम सही कहा दिगंबर सर।  जैसे जैसे बुजुर्ग होने की तरफ अग्रसर हो रहा हूँ , चिंतित हो जाता हूँ की बहुत सी यात्राएं रह जाएंगी।  अनेक अनेक आभार आपका 

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  13. बहुत आभार उदय सिंह जी ! लिखा दिया अगला भाग भी , आइये स्वागत है आपका 

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  14. अश्विनी भाई बहुत धन्यवाद आपका।  निकल पड़िये अकेले ही , एक बार अकेले निकल जाएंगे तो डर भी खत्म होगा और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा 

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  15. बहुत धन्यवाद प्रतीक भाई।  मेरा यही मानना रहता है की ट्रैकिंग में -दुर्घटना से देर भली वाला ही तरीका सबसे बेहतर है।  आते रहिएगा 

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  16. बहुत धन्यवाद Unknown भाई....नाम लिख दिया करिये जिससे बात करने में आसानी होती है और अच्छा भी लगता है 

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  17. बहुत बहुत धन्यवाद् अमित भाई।  आपका संवाद निरंतर बनाये रखियेगा 

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  18. बहुत धन्यवाद ज्योति जी .... संवाद बनाये रखियेगा 

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  19. बहुत -बहुत धन्यवाद आपका प्रीती चौहान जी।  आपके शब्द मुझे बहुत ऊर्जा प्रदान करते हैं .....आते रहिएगा 

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  20. बहुत -बहुत धन्यवाद आपका प्रकाश मिश्रा जी .... आते रहिएगा 

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  21. बहुत -बहुत धन्यवाद आपका संजय भास्कर  जी ....आते रहिएगा 

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  22. बहुत -बहुत धन्यवाद आपका मुकेश जी .....  आते रहिएगा 

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