गूजरी महल : ग्वालियर
Date of Journey : 03 Dec.2019
मौसम भी दिलखुश हो , Leave Account में छह CL बची हों और जेब थोड़ा सा भारी हो😋 तो किसी भी यात्रा पर निकलने में बुराई नहीं है। ऐसे में बस आपको घरवाली को समझाना होता है और अगर सही तरह से समझाया जाए तो समझ भी जाती हैं। ये यात्रा कुछ अलग थी। अलग दूसरे अर्थों में - जहाँ तक संभव होगा पैसेंजर ट्रेन से यात्रा करूँगा , ऐसी जगहें देखूंगा जो बहुत ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हैं लेकिन खूबसूरत हैं , भारत की महान संस्कृति और विरासत को परिलक्षित करती हैं। ऐसी जगहें जो भले पर्यटन मानचित्र पर न हों लेकिन इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हैं।
दो दिसंबर की रात ठण्ड से कपकंपा रही थी मुझे लेकिन ये वो रात थी जिसने मुझे फिर से कई सालों बाद भारत का सही चित्र दोबारा दिखाया था। दिल्ली के हज़रत निजामुद्दीन स्टेशन से दक्षिण एक्सप्रेस पकड़कर मैं करीब ढाई -तीन बजे आगरा कैंट स्टेशन पहुँच गया था। आज की पैसेंजर यात्रा आगरा से ही शुरू करनी थी क्यूंकि दिल्ली से आगरा तक की पैसेंजर ट्रेन की यात्रा पिछले वर्ष कर चुका हूँ और अब आगे बढ़ने की तैयारी थी। आज की मंजिल ग्वालियर पहुँचने तक थी जिसके लिए आगरा -झांसी पैसेंजर ट्रेन का इंतज़ार करना था। अभी करीब तीन घंटे इंतज़ार करना था क्योंकि झांसी पैसेंजर ट्रेन का समय सुबह 6 बजे का है आगरा से खुलने का। कॉफ़ी ने थोड़ा गर्मी का एहसास कराया तो स्टेशन से बाहर निकल आया। स्टेशन के आसपास माहौल हमेशा ही जाग्रत (Live ) रहता है , चाहे रात के दस बजे हों या सुबह के दो बजे हों। हर जगह पैक , हर बेंच फुल। टिकट विण्डो के आसपास का पूरा स्पेस फुल था। सब सोये थे -कुछ अपनी ट्रेन के इंतज़ार में , कुछ का यही ठिकाना होता है रात का। पता नहीं ये तस्वीर कब बदलेगी ? बदलेगी भी या नहीं !!
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समय के साथ ट्रेन भी सरकती रही और धौलपुर , मुरैना होते हुए नौ बजते बजते मैं ग्वालियर के अपने पहले गंतव्य की धरती पर उतर चुका था। पिछले कुछ वर्षों में रेलवे में बहुत कुछ बदला है और इसी का एक हिस्सा है स्टेशन के बाहर "Deluxe Toilets" का होना। एकदम साफ़ -सुथरे और कई सुविधाओं से आपके जीवन और आपकी पॉकेट को आराम देते हैं ये टॉयलेट्स। नहाना है , फ्रेश होना है ? बैग रखना है ? सबकुछ इनके यहाँ मौजूद है - बस थोड़ा ज्यादा खर्च करना पड़ेगा आपको। कितना ज्यादा ? कुछ साल पहले आप बदबूदार टॉयलेट्स का उपयोग करने के लिए आप पांच रुपया खर्च करते थे लेकिन अब एकदम साफ़ सुथरे टॉयलेट्स को उपयोग करने के लिए 10 रुपया खर्च करते हैं ! क्या बुरा है जी ? तो जी हम भी नहाधोकर , बाबूजी बन गए और कैमरा और पावर बैंक लेकर ग्वालियर घूमने निकल चले। सुना है ग्वालियर की कचौड़ी बहुत स्वादिष्ट होती हैं ! तो कचौड़ी with चाय उदरस्थ कर ली जाए फिर अपने मित्र ग्वालियर निवासी विकास नारायण श्रीवास्तव और शरद कुमार जैन जी को सूचित किया जाएगा। आप भी कभी जब ग्वालियर जाने का मन बनाएं तो वहां कचौड़ी और पोहे का स्वाद लेना मत भूलना हालाँकि मुझे अब भी लगता है कि मेरे होम टाउन अलीगढ जैसी कचौड़ी शायद ही कहीं मिलती हो ! जबरदस्त होती है अलीगढ की कचौड़ी और पोहा ! जो पोहा मेरी बड़ी बहन के हाथ का या इंदौर में !!
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पैदल -पैदल रानी लक्ष्मी बाई की समाधि की तरफ बढ़ चला। यहां बैठना ग्वालियर के स्थानीय लोगों का प्रिय टाइम पास फार्मूला है और लव बर्ड्स के लिए एकांत मिलने का उचित और मुफ्त ठिकाना। यहीं पास में ही गोपाचल पर्वत का बोर्ड लगा है लेकिन अंदर एक बगीचा सा ही दिखा। चौकीदार ने बताया कि आगे जाकर बगीचा है और एक जैन मंदिर है। असली गोपाचल पर्वत ग्वालियर किले के पास है। इस किले को मान मंदिर भी कहते हैं। चलेंगे वहां भी !! लो जी घूमते - घामते फूल मैदान पहुँच गए। फूल मैदान का नाम बहुत सुना करता था क्योंकि ग्वालियर की ज्यादातर रैलियां पहले इसी मैदान में हुआ करती थीं। फूल मैदान में फूल के नाम पर बस कुछ गेंदा , कुछ गुलाब के ही फूल दिखे। इतनी फूल तो हमारे आसपास के पार्कों में दिख जाते हैं , शायद इससे भी ज्यादा !! यहां से गूजरी महल के लिए ऑटो पकड़ते हैं और चलते हैं।
Rani Lakshmi Bai Samadhi |
Narrow Gauge track . Yes ! Narrow Gauge track still exist in Gwalior |
गूजरी महल , राजा मान सिंह ने 15 वीं शताब्दी में अपनी प्रिय पत्नी मृगनयनी के लिए बनवाया था जो आज एक म्यूजियम के रूप में ज्यादा प्रचलित है। शायद 25 रूपये का टिकट लगा था यहां अंदर जाने के लिए। अंदर गया तो वहां फोटो लेने लगा। फोटो लेते हुए देखकर पहले एक महिला कर्मचारी आई और फिर एक पुरुष कर्मचारी - टिकट है आपके पास ? हाँ -है न ! ये देखो !! अरे ये नहीं कैमरे का टिकट ? कैमरे का अलग से टिकट थोड़े ही लगता है यहाँ ? नहीं ! लगता है !! आप बिना टिकट के फोटो नहीं ले सकते !! मैं भड़क गया !! ऐसा है भाई ये लो अपना टिकट और मुझे मेरे पैसे वापस करो ! मुझे नहीं देखना यहां कुछ भी ! इतने में तीन चार पुलिस वाले भी पहुँच गए ! मामला रफा -दफा हुआ और खूब सारे फोटो खींचे बिना कोई अलग से टिकट लिए हुए। आप भी कैमरे का टिकट मत लेना क्योंकि कैमरे का अलग से कोई टिकट नहीं है ! ये लोग शायद अपना जुगाड़ बनाते हैं ऐसे डर दिखा के ! 25 या 30 रूपये का टिकट है और उसी में सब शामिल है !! आज बस इतना ही......
This is our art work on the tiles !! So why appraise only the art work of Tajmahal ? |
शरद कुमार जैन जी भी पहुँच गए थे जब तक गूजरी महल देखा। सर आपकी गज़क बहुत स्वादिष्ट थी !! धन्यवाद आपका
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आपने बढिया यात्रा करायी, फोटो बेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंयादों के झरोखों से पर्यटन की मीमांसा। बहुत सुन्दर। यह तो वह खजाना है जो जितना लूट लेता है उसको ही पाकर प्रफुल्लित होता है जबकि आनन्द यात्रा इससे भी कहीं ज्यादा है। पुनः आगमन के लिए शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंVery memorable
जवाब देंहटाएंबढिया यात्रा खूबसूरत फोटो
जवाब देंहटाएंग्वालियर तो मैं भी गया था, लेकिन न लक्ष्मी बाई का स्माधी स्थल देखा न गुजरी महल! लगता है दोबारा जाना पड़ेगा! :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया यात्रा वृत्तांत और सुंदर चित्र
जवाब देंहटाएंबढिया यात्रा विवरण . आपके साथ ही यात्रा की
जवाब देंहटाएंमेरी तो ज़िन्दगी ही बरबाद हो गयी! आज तक न ग्वालियर देखा और न ही गुजरी महल! तीन साल तक झांसी में पोस्टिंग मिली तो उस काल खंड में झांसी - दिल्ली ट्रेन मार्ग पर अनेक बार ग्वालियर स्टेशन भी दिखाई देता था पर बस! ट्रेन से बाहर कभी उतरा ही नहीं! उन दिनों घुमक्कड़ी का नशा जो नहीं था, वरना झांसी से विशेष रूप से भी ग्वालियर जाया जा सकता था। चलो, अब तो जो होना था हो गया ! बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय! आपसे प्रॉमिस ले रखा है कि अब जब भी आप घुमक्कड़ी पर पैसेंजर ट्रेन से निकलेंगे तो मुझे भी साथ लेंगे।
जवाब देंहटाएंआज आपकी ये पोस्ट पढ़ डाली है और कलाकृतियों के चित्र देख देख कर मस्त हो रहा हूं। आगे आगे देखिये, होता है क्या!
प्रिय योगी जी, आज न जाने कहां भटकता - भटकता पुनः इस पोस्ट पर आ टपका हूं! टिप्पणी लिखने चला तो देखा कि मेरी टिप्पणी तो पहले से ही यहां मौजूद है! कमाल है!
जवाब देंहटाएंआजकल अपनी मध्यप्रदेश यात्रा के बारे में लिख रहा हूं तो ग्वालियर का भी नंबर आयेगा!
सादर सस्नेह,
सुशान्त सिंहल