आज 18 जून है ! हम सभी चार लोग नबी गाँव से करीब 16 किलोमीटर ट्रैक करके कुटी गाँव पहुँच चुके हैं और इस गाँव के प्रवेश द्वार में घुसते ही सामने आपको बहुत ही सुन्दर पहाड़ी गाँव का नजारा मिलता है , बाएं तरफ भी देखिये उस पहाड़ी पर .. दिखा कुछ ? वो देखिये .. पांडव किला !! पाण्डव फोर्ट और कुटी गाँव के फोटो देखने हैं तो पिछली पोस्ट पर जाइये , बहुत सारे फोटो लगाए हैं उसमें। आज कुटी गाँव के अंदर की बात होगी। कुटी....कुंती का अपभ्रंश है जो कभी कुंती हुआ करता होगा। बिगड़ते बिगड़ते कुटी हो गया !! इस गाँव का संबंध पांडवकालीन है यानी द्वापर युग से ही इस गाँव की पहिचान मानी जाती है। बताते हैं कि स्वर्गारोहिणी की यात्रा पर जाते समय पाण्डवों ने यहाँ लंबा वक्त बिताया था जिसके अवशेष आज भी पांडव किले के रूप में मिलते हैं।
ये गांव इस दिशा में भारत का अंतिम गाँव है , इसके बाद कुछ नहीं करीब 25 किलोमीटर तक और फिर तिब्बत।
इस गांव के निकट अतीत में निखुर्च मंडी थी। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से पूर्व इस मंडी में भारत-तिब्बत व्यापार होता था और इसी मंडी से तिब्बत जाने का मार्ग था। फोटो दिखाऊंगा इस मंडी के लेकिन वहां मंडी के नाम पर अब कुछ भी ऐसा नहीं बचा है जिससे आप कुछ भी अंदाज़ा लगा सकें। कैलास मानसरोवर जाने वाले इस मार्ग से भी जाते थे। 1962 के युद्ध के बाद यह मंडी भी समाप्त हो गई और तिब्बत में प्रवेश वर्जित हो गया। कुटी गांव कुटी यांगती नदी के तट पर आदि कैलास मार्ग पर पड़ता ह ! पांडवों के इस किले को खर नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर पांडव निवास करते थे। खर के निकट स्थानीय नाम छका (नमक की खान) है। इसके कुछ दूर शालीमार है। शालीमार में छोटे-छोटे पत्थरों की खान है। इन पत्थरों को निकालने पर विभिन्न आकृति के पत्थर निकलते हैं। जिन पर लोग श्रद्धा रखते हैं।
जिस वक्त हम इस गाँव में पहुंचे तो लगभग दोपहर के तीन बजे थे। पहुंचे तो जाते ही चाय भी पीनी ही थी और जब तक चाय बने , आसपास के घर और गाँव का एक चक्कर लगा लेते हैं। इसी गाँव की एक बेटी हैं जिनकी बेटी Anshul Rautela का ब्लॉग पढ़कर ही पहली बार मेरे मन में यहां जाने की उत्कंठा जगी थी तो स्वाभाविक है कि हम अंशुल रौतेला की नानी का घर देखकर आते। घर तो बंद था लेकिन फोटो खूब खींचे और एक से एक घर के सुन्दर और अलबेले डिज़ाइन। दरवाज़े और खिड़कियां कितने सुन्दर डिज़ाइन में बने हैं लेकिन टूटते दरवाज़े और उखड़ती खिड़कियां दिल में रंज पैदा करती हैं और ये आभास देती हैं कि ये गाँव , ये घर कभी कितने संपन्न और भरे पूरे रहे होंगे। ऊपर आपको बता चुका हूँ कि 1962 से पहले यही गाँव तिब्बत से व्यापर का मुख्य केंद्र हुआ करता था।
अब बारी थी रात रुकने के लिए जगह तलाशने की। पान सिंह जी के यहाँ व्यवस्था मिल गयी उचित दामों में लेकिन मिटटी का बना दड़बा जिसमें लकड़ी की छत थी। कोई दिक्कत नहीं , मेरा गाँव का घर भी पहले ऐसा ही हुआ करता था लेकिन दिक्कत तब हुई जब उसमें बकरियों के मलमूत्र की भयंकर बदबू आने लगी। रात के 9 -10 बजे हों और आप एक अनजान गाँव में , पहाड़ी गाँव में 3840 मीटर की ऊंचाई पर पड़े हों तब आपको रात गुजारना ज्यादा जरुरी होता है , भले कैसे भी गुजरे। सुबह जब पता किया तो पान सिंह जी ने ही बताया था कि जिस कमरे में हम रुके थे , उसमें बकरियां बाँधी जाती हैं। कुटी गाँव के बिल्कुल पास ITBP की यूनिट भी है जहाँ आपको लैंडलाइन फ़ोन मिल जाएगा घर बात करने के लिए लेकिन शाम को बस 5 से 6 बजे तक का ही समय मिलता है सामान्य लोगों को बात करने के लिए। एक बड़ी विचित्र सी बात है -कुटी जैसे सीमावर्ती गाँव में किसी भी फ़ोन का , कोई नेटवर्क नहीं आता ( धारचूला से आगे नेटवर्क नहीं आता ) लेकिन फिर भी हर किसी के हाथ में स्मार्ट फ़ोन दीखता है। शायद फिल्म देखने के लिए , गाने सुनने के लिए रखते होंगे। सेल्फी भी चलती होगी लेकिन गाँव में बहुत गिने -चुने लोग ही हैं। लौटकर पता किया तो अंशुल रौतेला ने ही बताया कि गाँव में प्राइमरी स्कूल भी है लेकिन बच्चे गाँव में ही नहीं हैं तो स्कूल में कहाँ से आएंगे ? कुटी के पीछे जो ऊँची चोटी दिखाई देती है उसे कुंती माता कहा जाता है और यहाँ से कुछ दूर पांच चोटियां एक साथ दिखती हैं जिन्हें "पाण्डव " कहते हैं !
कुटी , कितना प्यारा और सुन्दर गाँव है लेकिन ... लेकिन टॉयलेट्स बहुत मतलब बहुत ही गंदे हैं। भयंकर बदबूदार। कोठारी जी तो शायद गए ही नहीं और मैं , मुंह पर तौलिया कसकर लपेटने के बाद गया और मैं ही जानता हूँ कि अंदर सात -आठ मिनट कैसे बीते होंगे। ये पता नहीं अच्छी आदत है या बुरी लेकिन जैसे ही मैं सुबह जागता हूँ मुझे तुरंत ही "पाकिस्तान " जाना होता है। मेरी बात अगर कुटी के किसी भी आदमी तक पहुंचे तो प्लीज भाई , इस व्यवस्था को और सुधार लीजिये , आपका गाँव बहुत ही सुन्दर है।
आज 19 जून है और आज हम कुटी गाँव से "आदि कैलाश " जाने की तैयारी कर चुके हैं। सुबह के आठ बजे होंगे जब हमने पान सिंह जी की दुकान से एक -एक कप चाय और खींचकर अगली मंजिल की तरफ प्रस्थान किया। यहां से आगे जाते हुए ITBP की यूनिट में अपना Inner Line Pass दिखाया और उन्होंने हमारी एंट्री कर ली। यहाँ से आपको हर -हालत में दोपहर 12 बजे तक आगे के लिए निकल जाना होता है , अगर आप इसके बाद जाना चाहेंगे तो ITBP वाले आपको किसी भी कीमत पर नहीं जाने देने वाले। आदि कैलाश , यानि ज्योलिंगकांग यहाँ कुटी से करीब 12 किलोमीटर दूर है। दूरी भले ज्यादा हो लेकिन रास्ता बहुत कठिन नहीं है। गाँव से करीब 100 -200 मीटर आगे ही नीचे की तरफ उतराई है और फिर कुटी नदी के किनारे -किनारे रास्ता चलता जाता है। हमारे पीछे - पीछे ही आर्मी के कुछ लोग आये और कब आगे निकल गए पता ही नहीं चला। ये सब एक महीने के लिए यहाँ से करीब 25 किलोमीटर और आदि कैलाश से 7 किलोमीटर दूर स्थित "बॉर्डर " पर जा रहे हैं अपने देश , अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए।
मुश्किल से कुटी से एक किलोमीटर ही आगे पहुंचे होंगे तो एक खूबसूरत पुल दिखा जो लकड़ी का बना है लेकिन महत्वपूर्ण बात ये नहीं बल्कि ये है कि इस पुल को पार करते ही ऊंचाई बढ़ने लगती है और वो लगातार बढ़ती जाती है कुछ दूर तक। बस एक किलोमीटर और चलिए फिर आपको ज्यादा उतराई -चढ़ाई नहीं मिलेगी और आप आराम से चलते जाएंगे। रास्ते के एक तरफ छोटी -छोटी पहाड़ियां और दूसरी तरफ गहरी खाई में तेज आवाज में बहती कुटी नदी। जहां कुछ मैदान सा मिला तो लेट गए और लेट गए तो सो गए। ऐसी जगहों पर धूप बड़ी प्यारी लगती है और नींद भी बहुत अच्छी आती है।
छोटा सा झरना मिला , साफ़ सुथरा पानी आ रहा है तो ब्रश कर लेता हूँ। बाकी लोग आगे निकल गए ! जब ब्रश करके फ्री हुआ तो पीछे से एक खच्चर पर एक सज्जन आते हुए दिखे जिनके साथ ITBP के दो लोग भी चल रहे थे। मैं असल में इन सज्जन को "ओम पर्वत " से ही देख रहा हूँ जब उधर चलने वाली एकमात्र "जिप्सी " उन्हें लेकर गुंजी से वहां लेकर आई थी और उनका स्वागत करने के लिए बड़े -बड़े ITBP के अधिकारी पहुंचे थे। वहीँ से ये तो अंदाज़ा लग गया था कि ये सज्जन कोई न कोई "बड़े आदमी " हैं। अब आज फिर से वो सामने हैं और थोड़ा रुके हुए हैं तो मैंने पूछ ही लिया - सर ! आपको ओम पर्वत से देखता आ रहा हूँ , थोड़ा बताइये प्लीज !! वो केरला पुलिस के पूर्व DGP थे जो उत्तराखण्ड के ही रहने वाले थे और अब गुरुग्राम में और अपने गाँव में रह रहे हैं। वो ॐ पर्वत के दर्शन के बाद आदि कैलाश के दर्शन के लिए जा रहे थे। परिचय हुआ तो मित्रता भी हुई और फिर आगे जाकर मोबाइल नम्बरों का आदान -प्रदान भी होना ही था !
पानी बोतल भर के लेकर चलिए क्यूंकि आगे कोई ख़ास जगह नहीं है जहाँ आपको पानी की व्यवस्था मिले। हाँ , कुटी गाँव से करीब आठ किलोमीटर दूर और आदि कैलाश से चार किलोमीटर पहले एक जगह है "हुड़क्या धार " जहाँ कुटी गाँव वाले पान सिंह के भाई पुष्प सिंह जी अपनी छान भी चलाते हैं और बकरियां भी चराते हैं। यहां आपको खाने -चाय की सुविधा मिल जाती है और दो -तीन लोगों की रुकने की व्यवस्था भी हो जाती है। लेकिन जब हम इधर से जा रहे थे तब "छान " बंद थी मगर पानी का घड़ा बाहर ही रखा था तो अपनी बोतल भर ली। रास्ते में राजस्थान के मीणा जी मिले जो ITBP में टेलीफोन की लाइन देख रहे थे। बड़े परेशान लगे , हमें पूछने लगे -आपको क्या मिलता है ऐसे पहाड़ों में पैदल चलने में ? खैर इस बात में ज्यादा डिटेल में बात नहीं करूँगा !! यहाँ से आपको आदि कैलाश पर्वत के कुछ दर्शन होने लगते हैं लेकिन शर्त ये है कि मौसम साफ़ होना चाहिए।
एक चौड़ा सा हरा -भरा मैदान है जहां कुछ पत्थर बिखरे पड़े हैं। यहाँ ही कभी निखुर्च मंडी हुआ करती थी लेकिन आज कुछ नहीं है। अब सामने एक नाला है जिस पर आधा बना हुआ पुल दिख रहा है लेकिन पार कैसे करें ? दूसरी तरफ वही मीणा साब मुझे लगातार देख रहे थे और मुझे संशय में देखते हुए इशारा करने लगे कि मैं उधर -दूसरी तरफ से पार करके आने को कहा। यही काम मैंने बाद में जोशी जी और एक महिला और उनके बच्चे के लिए किया। यहाँ बाएं दिशा में आपको गणेश पर्वत दिखेगा . सामने आदि कैलाश दिखने लगा है और समय करीब चार बजे हैं शाम के। ITBP के संतरी ने हमारे Inner Line Pass अपने पास रख लिए और लौटते में वापस देने की बात कह , जय भोले कर दिया। अब थोड़ा नीचे की तरफ उतरने लगे हैं और सामने KMVN का गेस्ट हाउस दिख रहा है , आसपास कुछ और भी तम्बू जैसे अस्थाई आवास दिख रहे हैं। ये ज्योलिंगकांग है यानि आदि कैलाश का आधार स्थान।
अब ज्योलिंगकांग पहुंचकर मान सिंह जी की छान में अपने बैग पटक दिए हैं। मान सिंह जी , कुटी गाँव में मिले "पान सिंह कुटियाल " जी के ही भाई हैं। आते ही इंद्र देवता ने हमारा स्वागत किया लेकिन इससे ठण्ड बढ़ गयी। थोड़ी देर आराम करके हम मतलब मैं और हरजिंदर निकल गए गौरी कुंड के दर्शन करके जो यहाँ से 2 किलोमीटर और आगे है तथा 4700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अँधेरा होने को था इसलिए बस टोर्च और पोंचो उठाये और चल दिए। तेज -तेज कदमों से जल्दी ही नाप दिया ये रास्ता और जब हम गौरी कुंड के नजदीक पहुंचे तो आदि कैलाश पर्वत के आसपास घने बादल छाये हुए थे , मतलब हमें आज आदि कैलाश के दर्शन नहीं होंगे। हमसे दूर एक ऊँची पहाड़ी पर चार लड़के शर्ट उतारकर -हर हर महादेव ! हर हर महादेव !! चिल्ला रहे थे , उन्हें रिप्लाई देने के लिए हम भी हर -हर महादेव चिल्लाने लगे और अजीब सा संयोग था की बादल कुछ हटने लगे थे और जितने बादल हटते , हर -हर महादेव का उद्घोष उतना ही जोर से होने लगता। 4700 से ज्यादा मीटर की ऊंचाई और भयानक ठण्ड में हमें पानी को छूना भी मुश्किल हो रहा था और वो बंदे लगातार हर -हर महादेव का उद्घोष किये जा रहे थे। अद्भुत नजारा था , हड्डी कंपकपा देने वाली ठण्ड और दो लोग कभी इधर -कभी उधर फोटो खींचते रहे।
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राम -राम अम्मा जी !! |
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कुटी की यादें और ये ब्लॉगर मित्र अंशुल रौतेला की नानी का घर है |
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खूबसूरत कुटी |
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ये कुंती माता .. |
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इन
भाईसाब को तो पहचान गए होंगे आप। .... ज़िप्पू सेठ जी हैं ये |
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ऐसे न मुझे तुम देखो....... |
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मंजिलों से सुन्दर जिनके रास्ते हों....... |
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गणेश पर्वत |
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पांच पाण्डव ................. चोटियां |
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Gauri Kund |
will remain continue :
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा योगी जी. ब्लॉग सूचनात्मक हैं, ज्ञानवर्धक हैं।
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