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मंगलवार, 21 अगस्त 2018

Adi Kailsh Yatra - Fourth Day ( Gunji to OM Parvat )

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यात्रा​ तिथि :  15 June -2018 

कल रात जैसे -तैसे हमने कोठारी जी और जोशी जी को KMVN के गेस्ट हाउस में ढूंढ ही लिया था और वो हमारे पहुँचने से पहले ही हमारे लिए भी गेस्ट हाउस बुक कर चुके थे। रात को करीब साढ़े नौ बजे बढ़िया खाना मिला जिसमें पसंदीदा खीर भी शामिल थी। खाना खाने के समय में ही अपनी टीम के बाकी सदस्यों से भी मुलाकात हो गई । सब यहीं रुके हुए थे इसी गेस्ट हाउस में ही। गुंजी भले गाँव है लेकिन वहां के लिए किसी शहर से कम नहीं। यहां आपको स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की ब्रांच भी दिखती है , पोस्ट ऑफिस भी और अस्पताल भी। और हाँ , एक बड़ा सा डिपार्टमेंटल स्टोर भी जो विनीता की दुकान के नाम से आसपास के गाँवों में खूब प्रसिद्ध है। शायद जरुरत की हर चीज मिल जाती है यहाँ और दुकान चलाने वाली सभी लड़कियां हैं। विनीता ऐसे लगती है जैसे किसी कंपनी की CEO हो। उनके प्रयास को सलूट करता हूँ जिनकी वजह से शहर से इतना दूर एक "शहर" की कमी पूरी करती हैं ये सब। 


सुबह गुंजी देखने का मन था , बहुत नाम सुना था इस गाँव का यहां जाने से पहले। पढ़ा था कि यहां के घर बहुत पुराने हैं लेकिन खूबसूरत हैं मगर धंस रहे हैं। गुंजी 3825 मीटर ऊंचाई पर बसा एक भरा पूरा गाँव है जिससे पहले एक छोटा सा गाँव "नपलच्या " आता है और कुटी नदी का पुल पार करते ही आप गुंजी में होते हैं। कल रात में कुछ पता नहीं चल पाया था लेकिन अब धीरे -धीरे जानकारी होने लगी थी। गुंजी में ही नेपाल से आने वाली "काली नदी " और ज्योलिंगकांग यानि आदि कैलाश से निकलने वाली "कुटी नदी " का संगम होता है। गुंजी कैलाश मानसरोवर यात्रा का एक मुख्य पड़ाव है जहां यात्रियों का चीन में प्रवेश से पहले मेडिकल चेकअप किया जाता है और जहाँ तक यात्रियों को हेलीकाप्टर की सुविधा मिल पाती है , इससे आगे आपको या तो पैदल ही यात्रा करनी होगी या फिर खच्चर लेना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि गुंजी गाँव अभी इतना विकसित हुआ है या कैलाश यात्रा के पड़ाव की वजह से ही इसका नाम है है बल्कि ये गाँव सदियों पहले तक तिब्बत से होने वाले व्यापार का एक मुख्य बाजार हुआ करता था। यहां और आसपास के लोग तिब्बत में व्यापार करने जाते थे और वहां के लोग यहां आते थे। लेकिन 1962 की लड़ाई के बाद सब कुछ बदल सा गया है , हालाँकि दोनों तरफ से व्यापार अब भी होता है लेकिन बहुत कम स्तर पर होता है।

गुंजी देखने की चाहत धरी की धरी रह गई जब गेस्ट हाउस के कमरे से बाहर निकलकर बारिश देखी तो अरमान पिघलते गए। लेकिन अभी एक मौका था लौटकर वापसी में देखने का । सुबह करीब साढ़े सात बजे के आसपास एक जगह मजदूरों की भीड़ दिखाई देने लगी , इसका मतलब जल्दी ही कोई न कोई गाडी कहीं न कहीं जा रही होगी। कोठारी जी ने मुझे रवाना कर दिया लेकिन मेरे सामने से दो गाड़ियां मजदूरों को लेकर निकल गईं लेकिन मुझे जगह नहीं मिली। बेइज्जती बचाने की कोशिश कर रहा हूँ -असल में मुझे बिठाया ही नहीं किसी भी गाडी में। थोड़ी देर बाद कोठारी जी और लोगों के साथ वहां आ पहुंचे। एक ट्रक लगी थी "कालापानी " जाने के लिए। कोठारी जी ने पता नहीं ड्राइवर के पास जाकर उसके कान में क्या मंत्र फूंका कि उन्हें आगे की सीट मिल गई और अंततः हमें भी जगह मिल गई। कोठारी जी इस मामले में मास्टर आदमी हैं :) आज हम चारों कालापानी होते हुए "ओम पर्वत " के दर्शन के लिए निकल पड़े हैं और हमारी दूसरी टीम सुबह छह बजे ही आदि कैलाश दर्शन के लिए दूसरी दिशा में पैदल -पैदल ही प्रस्थान कर चुकी है।

गुंजी से कालापानी की दूरी नौ (9 KM ) है और इतना ही दूर कालापानी से नाभीढांग है। यानी आज कुल 18 किलोमीटर की यात्रा रहेगी जिसमें सात किलोमीटर तक तो ट्रक मिल गई है। ट्रक में खड़े होने की जगह तो मिल गई लेकिन जिस ट्रक में सामान भरा था ,  झारखण्ड के बीसियों मजदूर भरे थे उसी में हम भर गए। आप खुद अंदाज़ा लगाइये कैसा रहा होगा ये सफर ? लेकिन कमाल का अनुभव था ,परेशानी तो थोड़ी बहुत होती ही है और ऐसी छोटी -मोटी परेशानियों से डरता कौन है ? जो डरता है वो जाकर अपनी भैंस चराये :) घंटे भर के रास्ते में इन मजदूरों की हिम्मत और हौसलों की तारीफ करता रहा मन में , अपने घर -परिवार से इतना दूर !! देश के विकास में और विशेषकर पहाड़ी इलाकों में आपके ही हाथों का कमाल है जो हम इन रास्तों पर बेख़ौफ़ चले जा रहे हैं !! साधुवाद मित्रो !!

ट्रक ने हिचकोले खाते हुए और जिसको जहाँ उतारना था उसे उस जगह पर उतारकर , जो पैदल जा रहा था उसे ट्रक में बिठाते हुए आखिरकार करीब नौ बजे हम सबको एक सुन्दर जल धारा से पहले उतार दिया। अब इससे आगे ट्रक नहीं जाएगा हालाँकि रास्ता बना हुआ है और कभी कभी आर्मी के ट्रक और उनकी जिप्सी आगे नाभीढांग तक भी जाती हैं। नाभीढांग वो जगह है जहाँ से आपको "ओम पर्वत " के दर्शन होते हैं। आदि कैलाश यात्री तो यहां से ओम पर्बत के दर्शन कर के वापस आ जाते हाँ जबकि कैलाश मानसरोवर यात्री नाभीढांग से नौ किलोमीटर आगे लिपुलेख दर्रा पार कर तिब्बत में स्थित कैलाश मानसरोवर के लिए पहुँचते हैं। हमें ट्रक ने कालापानी से करीब दो किलोमीटर पहले ही उतार दिया है जो सच में हमारे लिए बहुत अच्छा रहा। हमारे साथ ही दो पहाड़ी बुजुर्ग सी महिलाएं भी ट्रक में आई थीं और उतरते ही उन्होंने अपना खाना खोल लिया। हरजिंदर की उनसे अच्छी "मित्रता " हो चुकी थी इसलिए हरजिंदर भी उनके साथ बैठ गए खाने के लिए और फिर हम सभी। फाफर की रोटी थी और शायद मट्ठा था। फाफर कुमायूं में बहुत उपयोग में लाया जाता है और इसकी खेती भी होती है। अभी इसका बीज आपको नहीं दिखा पाऊंगा लेकिन जब कुटी गाँव की तरफ चलेंगे तो पक्का दिखाऊंगा। हालाँकि मुझे ज्यादा स्वादिष्ट नहीं लगा फाफर। कुछ हरे रंग की रोटी बनी थी और मोटी भी थी। लेकिन एक नया स्वाद चखने को मिला जो जिंदगी भर याद रहेगा। उन्हीं दोनों महिलाओं ने कालापानी से करीब एक किलोमीटर पहले काली नदी के किनारे स्थित गर्म पानी के स्रोत के बारे में बताया तो मेरे जैसे ऐसी जगहों पर पानी को हाथ तक लगाने वाले लोग भी इसमें नहाने से नहीं चूके और करीब आधा घंटा तक इसके पानी में पड़े रहे।

कालापानी से आप पुल पार करके सीधे ही नाभीढांग जा सकते हैं लेकिन वहां एक खूबसूरत मंदिर है और इतनी दूर स्थित इस मंदिर के दर्शन करे बिना जाना असंभव था। मंदिर के सामने की पहाड़ी में एक बड़ा सा छेद सा दिखाई देता है जिसे व्यास गुफा कहते हैं और मान्यता ये है कि व्यास जी ने यहाँ बैठकर अपने कुछ ग्रंथों की रचना की थी। मंदिर की पूरी व्यवस्था ITBP के हाथों में है जिसे उन्होंने बहुत बेहतरीन रूप से संभाला हुआ है। आईटीबीपी के जवानों ने मस्त पुदीना चाय पिलाई और ये इतनी स्वादिष्ट थी कि वहां से लौटने के बाद मैं घर में कई बार पुदीना की चाय बना कर पी चुका हूँ। कालापानी में आपका इनर लाइन परमिट चेक होता है और फिर रजिस्टर में एंट्री कराने के बाद आप ओम पर्वत के दर्शन के लिए नाभीढांग की तरफ बढ़ने लगते हैं !

रास्ता आसान है और मनमोहक भी है जिससे आपको बोरियत नहीं होती। बताते हैं कि कालापानी वाली जगह नेपाल में आती है जिसे अब भारत ने ले लिया है और इसके बदले नेपाल को वहीँ कहीं आसपास उतनी ही जगह दी गई है। यहां से आगे निकलकर एक पुल आता है और जैसे ही इस पुल को पार करेंगे आप वापस भारत में आ जाते हैं और ये सब सैद्धांतिक रूप से होता है , असलियत में तो आपको पता भी नहीं लगता कि आप कब भारत से नेपाल में चले गए और कब नेपाल से भारत में लौट आये। यही एक चौड़ा सा क्रिकेट का मैदान बना है जो कभी -कभी हेलीकाप्टर उतारने के लिए भी काम आता होगा। क्रिकेट खेलता हुआ कोई नहीं दिखा लेकिन पिच बनी हुई थी जो खेलने के लिए आमंत्रित कर रही थी। एक बार मध्यमहेश्वर में क्रिकेट खेला था लेकिन उन्होंने बस फील्डिंग करा ली और बैटिंग नहीं दी :)

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम: शिवाय ॥


भावार्थ :
जो शिव स्वयं कल्याण स्वरूप हैं, और जो पार्वती के मुख कमलों को विकसित करने के लिए सूर्य हैं, जो दक्ष–प्रजापति के यज्ञ को नष्ट करने वाले हैं, नील वर्ण का जिनका कण्ठ है, और जो वृषभ अर्थात् धर्म की पताका वाले हैं; ऐसे उस शिकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
कालापानी से नाभीढांग यानि ओम पर्वत 9 किलोमीटर रह जाता है लेकिन रास्ता ठीक ठाक बना हुआ है। यूँ खच्चर भी चलते हैं लेकिन कम ही चलते दिखे हमें। कभी कभी आर्मी की गाड़ियां और ट्रक भी चलते हुए मिलते हैं। लेकिन पैदल चलने का मजा ही कुछ और होता है , हर चीज देख पाते हैं आप और हर नज़ारे का लुत्फ़ उठा पाते हैं। हम कालापानी करीब साढ़े ग्यारह बजे पहुँच गए होंगे और यहाँ से निकलते निकलते एक बजने को था। कोठारी जी सीधे एंट्री पॉइंट पर ही बैठे मिल गए और फिर चार यार एक साथ। कालापानी 3626 मीटर की ऊंचाई पर है जबकि गुंजी 3269 मीटर की ऊंचाई पर , इसका मतलब अब तक हम 9 किलोमीटर में 400 मीटर की ऊंचाई चढ़ चुके हैं हालाँकि ज्यादातर चढ़ाई ट्रक ने चढ़ी थी हम तो उसमें बैठे बैठे ही इतनी ऊंचाई चढ़ गए। कालापानी , गुंजी और नाभीढांग के बिल्कुल मध्य में स्थित है। गुंजी से कालापानी 9 किलोमीटर दूर और कालापानी से नाभीढांग यानी ओम पर्वत भी 9 किलोमीटर दूर। लेकिन कालापानी से नाभीढांग की 9 किलोमीटर की दूरी में आपको 3600 मीटर से 4550 मीटर तक की ऊंचाई पानी होती है यानी करीब 800 मीटर , जो आसान नहीं है। नाभीढांग 4550 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जबकि ओम पर्वत की ऊंचाई 6300 मीटर है। आपको 4550 मीटर की ऊंचाई पर से ही ओम पर्वत के दर्शन करने होते हैं लेकिन पहले बड़ी परीक्षा ये है कि आप नाभीढांग की ऊंचाई तक पहुंचें। हमने इन नौ किलोमीटर में करीब पांच -छह घण्टे लगाए क्यूंकि हमें मालुम था ट्रैकिंग का ये वाला हिस्सा कुछ कठिन रहेगा और खूबसूरत भी रहेगा। यहां हमारे ऊपर ही कहीं नाग पर्वत भी था लेकिन हमें दिख नहीं रहा था।  नाग पर्वत के दर्शन भी नाभीढांग से ही ढंग से हो पाते हैं वो भी तब जब मौसम साफ़ हो ।  नाभीढांग से ही कुछ पहले जीवन में पहली बार याक जैसे दिखने वाले जानवर "ज़िप्पू " को देखने का मौका मिला जिसे वहां के लोग "झब्बू " भी कहते हैं। ये गाय और याक की नस्ल का जानवर होता है जो सामान ढोने और खेतों में हल चलाने के लिए काम लिया जाता है । अगर आप वहां जा रहे हैं तो रास्तों पर ध्यान देते रहिएगा क्यूंकि अगर आप गाड़ियों और ट्रकों के लिए ही बनाये गए रास्तों पर ही चलते रहेंगे तो संभव है आपको कुछ और ज्यादा दूरी और कुछ और ज्यादा चढ़ाई भी चढ़नी पड़ जाए जबकि आप किसी और छोटे रास्ते से अपना समय और ऊर्जा बचा भी सकते हैं !!

तो इस वक्त करीब शाम के पांचबजे हैं और आज 15 जून -2018 है और हम नाभीढांग , ओम पर्वत के दर्शन के लिए पहुँच चुके हैं। अब आगे की बात आगे की पोस्ट में होगी -भक्तो आते रहिएगा , प्रवचन चालू है !! 

गुंजी के KMVN गेस्ट हाउस में
विकास के आधार स्तम्भ : मजदूर (मैं भी इन्हीं में शामिल हूँ )
इससे और सफ़ेद क्या होगा ? शायद रिन इतनी सफेदी दे दे

अभी गुंजी से बस यहीं तक ट्रक आते हैं , आने वाले दिनों में और भी आगे जाने लगेंगे

आ जा हरजिंदर रोटी खा ले :) फाफर की रोटी है
मेहनत की कमाई


गर्म पानी का स्रोत मिल गया है तो शरीर का वजन कुछ कम कर लें :)
ये वो ही वाला गर्म पानी का स्रोत है
सामने कालापानी दिख रहा है











कालापानी में शहीद स्मारक है और अपने देश के वीर सैनिक को श्रद्धांजलि अर्पित करना मेरा परम कर्तव्य है

वो .......सामने की पहाड़ी में जो होल दिख रहा है न , उसे व्यास गुफा बोलते हैं



   ये भाईसाब भी हमारे साथ ट्रेक करने को उतावले थे लेकिन रास्ते में इनकी गर्ल फ्रेंड मिल गई ......... तो ट्रैक -व्रैक सब भूल गए और उसके साथ निकल लिए

स्वर्ग सा सुन्दर हिंदुस्तान है मेरा

कोशिश जारी है .........चश्मे में आने की
आ  जाओ ....क्रिकेट खेलते है




इसका वीडियो जरूर देखिएगा अच्छा लगेगा

ताल से ताल मिला
कौन सा फूल है ? बताइयेगा जरूर  


ये जिप्पू है ​.....याक जैसा दिखने वाला जानवर
लो जी नाभीढांग .....यानि ओम पर्वत पहुँच गए

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