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पहले से तय था कि 10 जून को काठगोदाम में मिलना है सभी को लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि काठगोदाम न मिलकर सभी लोग धारचूला में मिल पाए। मुझे नासिक से आये भरत जोशी जी और जामनगर , गुजरात से आये उमेश जोशी जी और उनके दोनों बच्चों के साथ ग़ाज़ियाबाद से "रानीखेत एक्सप्रेस " से काठगोदाम जाना था 9 जून को और इस ट्रेन का ग़ाज़ियाबाद से निकलने का समय रात में 10 बजकर 40 मिनट पर है लेकिन ग़ाज़ियाबाद से निकलते ही कोई संपर्क क्रान्ति के दो डिब्बे शाम छह बजे "डिरेल " हो गए और हमारी ट्रेन सुबह पांच बजे आ पाई और पूरी रात जागकर ही निकालनी पड़ी। लेकिन जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर आई, हमने भरत जोशी जी की सीट कब्जा ली और फिर तो हल्द्वानी जाकर ही आँख खुली। जाना था काठगोदाम लेकिन हल्द्वानी ही उतर पड़े कि अब वहां और कोई तो मिलने वाला था नहीं , क्या करेंगे वहां जाकर। उमेश जोशी जी के साथ उनका भतीजा हरदेव लहरु और बेटा रुषि जोशी भी आये थे यात्रा के लिए और यात्रा में इन बच्चों का स्टेमिना देखकर हर कोई दंग रह गया। ये दोनों बच्चे श्री खण्ड और मणिमहेश की यात्रा कर चुके हैं और ये वो जगहें हैं जहां से लौटकर लोग अपने आपको ट्रैकिंग का तुर्रम खां मान बैठते हैं :) उमेश जी हमारे साथ इस यात्रा में पहले दिन से साथ जाने को तैयार हो गए थे और आखिर तक साथ निभाया।
रानीखेत एक्सप्रेस करीब 11 बजे हल्द्वानी पहुंची होगी। हल्द्वानी , छोटा लेकिन साफ़ - सुथरा और सुन्दर रेलवे स्टेशन। न कोई चाय- चाय की आवाज़ न भीड़भाड़। शांत ! बिलकुल शांत ! बस स्टैंड पहुँचते -पहुँचते बारह से ज्यादा बज चुके थे तो इतना तो पक्का था कि आज हम किसी भी कीमत पर धारचूला नहीं पहुँच पाएंगे लेकिन जितना ज्यादा पहुँच पाएंगे , जाएंगे और जीप से उस रात हम अल्मोड़ा होते हुए पिथौरागढ़ तक ही पहुँच पाए। वो भी रात को साढ़े नौ बजे। होटल में सामान रखकर कुछ खाने को निकले तो सब दुकान , सब खाने के अड्डे बंद हो चुके थे और इधर पेट और जोर से भूख से चिल्लाने लगा था। ये होता है - वैसे भूख भले न लगे लेकिन जब कुछ नहीं मिलता तो और भी ज्यादा भूख लगने लगती है। आखिर देशी शराब के ठेके के बाहर एक ब्रेड पकोड़े वाला दिखा तो कुछ उम्मीद नजर आई लेकिन उसके पास सिर्फ दो ही ब्रेड पकोड़े मिले जिनमें से एक -एक पेट में गया। पेट पर हाथ फिराया और जैसे -तैसे उसे समझाया - मत रो .......मेरे दिल (पेट )...... हुआ सो हुआ !
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आज 11 जून थी और हम जल्दी से जल्दी धारचूला पहुंचना चाहते थे जिससे मेडिकल और बाकी औपचारिकताएं समय से पूरी हो जाएँ और हमें आज ही " इनर लाइन पास " मिल जाएँ। दोपहर करीब बारह बजे हम धारचूला में थे और जबरदस्त गर्मी झेल रहे थे क्योंकि हम पिथौरागढ़ की 1514 मीटर की ऊंचाई से धारचूला की 920 मीटर ऊंचाई तक उतर आये थे। रास्ते में अस्कोट , जौलजीबी , बलुवाकोट जैसी जगहें आती गई। धारचूला से करीब 30 किलोमीटर पहले एक जगह आती है घाट , जहां गोरी और काली नदी का संगम मिलता है। काली नदी तो हमें पूरे रास्ते साथ चलती हुई मिलेगी तो उसकी बात फिर कभी कर लेंगे लेकिन गोरी की बात यहीं कर लेते हैं क्योंकि गोरी यहीं खत्म हो जायेगी ! वैसे गोरी इतनी भी गोरी नहीं है कि क्रीम -पाउडर की जरुरत ही न पड़े :) ये जो गोरी नदी है ये मिलम ग्लेशियर से निकलती है और फिर करीब 104 किलोमीटर का रास्ता तय कर अपनी हमसफ़र काली नदी की बाहों में सिमट कर अपना अस्तित्व समाप्त कर लेती है। आप कभी धारचूला जाएँ तो शहर में आपको ऐसा लगेगा ही नहीं कि आप पहाड़ों में हैं ! खैर जीप से उतरते ही हम अपने काम में लग गए और वहीँ आसपास सब साथ जाने वाले यात्री मित्रों से भी परिचय होने लगा। यहां सभी मित्रों से पहली मुलाकात थी जिनमें दिल्ली से गौरव शर्मा , लखनऊ से सुरेंद्र मणि त्रिपाठी जी , जयपुर से देवेंद्र कोठरी जी ( पहले जयपुर में मिल चुका हूँ ), झाँसी से सुनील परिहार जी ( जो दो दिन पहले ही धारचूला पहुँच गए थे ) , मानसा - पंजाब के हरजिंदर सिंह , नासिक से भरत जोशी जी , जामनगर से उमेश जोशी , हरदेव लहरु , रूशी जोशी , जालंधर -पंजाब से वरुण हांडा और राहुल चौधरी। कुल 12 लोग थे हम। SDM ऑफिस के पास ही आंबेडकर रोड है , रोड क्या है ? गली सी है और उसी में थोड़ा अंदर जाकर नोटरी का दफ्तर है। सारा काम वहीँ हो जाएगा 100 -150 रूपये में। आप यहाँ अपना आधार कार्ड , Police Clearance Certificate (PCC) , आदि कैलाश यात्रा का फॉर्म दे दो और आप चले जाओ सरकारी अस्पताल , मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने के लिए फिर वहां से वापस इधर ही आ जाओ और अपना फॉर्म , एफिडेविट वगैरह लेकर पास ही स्थित SDM ऑफिस पहुँच जाइये। शाम तक आपको "इनर लाइन पास " मिल जाएगा।
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मैं और कोठारी जी , लगभग पूरे साल से इस विचार में थे कि कैसे भी हमें सिन ला दर्रा होकर आदि कैलाश जाने की परमिशन मिल जाए। इसके लिए हमारे जितने भी संपर्क थे सब से बात की मगर कोई बात नहीं बनी और आखिर आज जब हमारा इनर लाइन पास बनने को तैयार है हमारे पास एक ही रास्ता बचता था , SDM साब से बात करने का और इस चक्कर में , मैं और कोठारी जी बहुत देर तक इंतज़ार करते रहे । आखिर में कोठारी जी ने उनसे बात की लेकिन परिणाम निराशाजनक रहा और SDM सर ने भी - सिन ला दर्रे को पार करने की परमिशन देना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता , कहकर हाथ खड़े कर दिए और हम वहीँ के वहीँ रह गए। लेकिन सिन -ला पार करने की हसरत और हिम्मत अभी भी नहीं छोड़ी है और मुझे भगवान् पर पूरा भरोसा है कि मैं एक न एक दिन सिन -ला जरूर पार करूँगा। धारचूला बड़ी मस्त जगह है , इधर हैं तो भारत में हैं और धारचूला में हैं , लेकिन काली नदी पर बने पुल को पार कर लिया तो आप नेपाल के दार्चुला में पहुँच जाते हैं लेकिन ध्यान रखिये कि शाम सात बजे तक ही ये आवाजाही रहती है , सात बजे से पहले ही आपको " अपने देश " के धारचूला में लौट कर आना होगा। हम भी पुल पार कर के विदेश की चाय पी आये और विदेशी जमीन पर पाँव रखने का रुतबा हासिल कर आये :)
नेपाल से लौटे तो रास्ते के बारे में बात करने के लिए धारचूला के SHO प्रताप सिंह नेगी जी से मिलने चले गए। नेगी जी ने बहुत सारी इनफार्मेशन तो उपलब्ध कराई ही , मस्त चाय भी पिलाई सभी लोगों को। अगर मेरा ब्लॉग आप तक पहुंचे तो धन्यवाद स्वीकार करियेगा !!
अगला दिन था 12 जून और आज आदि कैलाश यात्रा के लिए प्रस्थान करना था मगर धारचूला के दोनों ATM बंद पड़े थे जबकि कुछ लोगों को और मुझे भी कैश चाहिए था। आप अगर जाएँ तो ध्यान रखियेगा कि कैश का इंतज़ाम पहले से ही करके चलें , धारचूला जैसी सीमावर्ती जगह में वैसे भी PNB और SBI के कुल मिलाकर दो ही ATM हैं और ज्यादातर खराब रहते हैं। अगर कभी ऐसी स्थिति में फंस जाएँ कि कैश न हो और ATM भी बंद हों तो भी बहुत घबराने की जरुरत नहीं है वहां आपका कार्ड Swap करके कुछ कमीशन लेकर आपको कैश देने वाले एजेंट भी मिल जाते हैं। इस कैश के चक्कर में निकलते -निकलते हमें दोपहर के 12 बज गए लेकिन हम सब लोगों की कैश की समस्या तो दूर हुई। यहां हमने 10 बजे तक बैंक खुलने का इंतज़ार किया , बैंक तो खुल गया लेकिन ATM नहीं खुला। मैं बैंक मैनेजर के रूम में पहुँच गया और उन्हें अपनी बात बताई कि मुझे आप कैसे भी रास्ता बताओ , बोले आपका अकाउंट PNB का होता तो मैं कुछ कर देता। फिर तो मैं ही कर लेता सर , आप ATM चलवाओ !! नेटवर्क नहीं है !! तो आप मुझे 10,000 कैश दो कैसे भी !! उन्होंने मेरी बात समझी और जैसे तैसे ATM चलाया ! बाहर भीड़ सी थी तो उन्होंने मुझे अंदर वाले रास्ते से ATM में भेज दिया और मेरे काम के बाद ही शटर खोला ! थैंक यू सर !!
सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दु:खशरेण खण्डित:
शशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीरम् ॥
हे शम्भो! मेरा हृदय दु:ख रूपीबाण से पीडित है, और मैं इस दु:ख को दूर करने वाले किसी उत्तम उपाय को भी नहीं जानता हूँ अतएव चन्द्रकला व शिखण्ड मयूरपिच्छ का आभूषण बनाने वाले, शरणागत के रक्षक परमेश्वर आपकी शरण में हूँ। अर्थात् आप ही मुझे इस भयंकर संसार के दु:ख से दूर करें।बारह लोग , बारह जून को करीब बारह बजे धारचूला से लखनपुर तक जाने के लिए जीप में अपना सामान लोड कर चुके थे। कुछ सामान हमने यहीं धारचूला के होटल में छोड़ दिया था जो हमें फ़ालतू लग रहा था। हम में से बहुत सारे लोग टैण्ट और स्लीपिंग बैग भी लेकर आये थे लेकिन जब ये पक्का हो गया कि रास्ते में हमें रुकने और खाने की कोई दिक्कत नहीं होने की तो टैण्ट आगे लेकर जाने की कोई जरूरत ही नहीं थी। वो हमने यहीं छोड़ दिया। असल में किसी भी आदमी ने अपने ब्लॉग में ये लिखा ही नहीं कि टैण्ट ले जाना है या नहीं। तो नोट करिये इस बात को कि इस यात्रा में न आपको टैण्ट चाहिए और न स्लीपिंग बैग। हालाँकि हमने स्लीपिंग बैग गुंजी तक लादा था लेकिन हमने जो गलती की वो आप मत करना। अपने बैग में गर्म कपडे , रेन सूट , पानी की बोतल और कुछ खाने -पीने के सामान के अलावा और कुछ मत रखना। कोई जरुरत नहीं !!
मैं पहली पोस्ट में लिख चुका हूँ कि ये यात्रा कैलाश मानसरोवर के रास्ते से ही होती है। बस गुंजी जाकर एक रास्ता कुटी गाँव होते हुए आदि कैलाश चला जाता है और दूसरा कालापानी होते हुए ॐ पर्वत जाता है और फिर ॐ पर्वत से आगे लिपुलेख दर्रा पार कर तिब्बत में कैलाश मानसरोवर चले जाते हैं लेकिन आदि कैलाश के लिए जो "इनर लाइन पास " मिलता है उस पर ॐ पर्वत और आदि कैलाश तक ही जाने की परमिशन होती है। अप्रैल -मई 2018 तक समाचार पत्रों के माध्यम से ये खबर आ रही थी कि इस बार 2018 की कैलाश मानसरोवर यात्रा "सिन -ला " दर्रा के पास बेदांग वैली से होकर जाने की संभावना है क्यूंकि जो रास्ता था उसमें नेपाल की तरफ दो पुल टूट गए थे। लेकिन मई के शुरू में नेपाल के प्रधानमंत्री जब भारत आये तो इन पुल को फिर से बनाने पर सहमति हो गई। इस तरह कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से पुराने रास्ते से ही होना तय हुआ लेकिन ये पुराना रास्ता भी इतना पुराना नहीं है। कुछ साल पहले कैलाश मानसरोवर यात्रा और आदि कैलाश यात्रा तवाघाट से आगे नारायण आश्रम होते हुए जाया करती थी लेकिन अब लखनपुर से शुरू होती है। लखनपुर कोई गाँव नहीं है , बस कुछ दुकानें और खच्चर वालों के टैण्ट या तिरपाल डाले हुए झौंपडियां। अभी यहीं तक रोड बनी है और धारचूला से यहीं तक जीप आती है। हालाँकि काम जारी है और हो सकता है आप जब एक दो साल बाद वहां जाएँ तो परिदृश्य बदला हुआ मिले।
जहां जीप ने उतारा वहां ITBP के कुछ जवान और अधिकारी भी थे , उनकी शुभकामनाएं स्वीकार कर आगे बढ़ते गए लेकिन घण्टे भर भी नहीं चले होंगे कि बारिश होने लगी। थोड़ा आगे ही एक टिन शेड था उस में घुस गए और चाय -मैग्गी निपटा ली। आज हम न्जोंग टॉप पहुंचना चाहते थे जो यहां से दिख तो रहा था लेकिन बहुत ऊपर था , जाना तो है ही। इस रास्ते में एक लोहे का पुल आता है जिसे पार करते ही चार स्तर ( Four Levelled ) का फॉल आता है। ये फॉल आपकी यात्रा की शुभ और सुन्दर शुरुआत का संकेत है। इसे नजंग फॉल बोलते हैं और जहां से पानी बहकर काली नदी में मिल रहा है , उसे न्जोंग नाला कहते हैं।
अभी फॉल की खूबसूरती को मन भर के निहारते हैं , फिर आगे चलेंगे !!
ये विकास है ? या विनाश |
धारचूला पहुँच गए ! ये रंग (रं ) म्यूजियम के बाहर की तस्वीर है |
विदेश भी घूम आये |
टीम आदि कैलाश |
टीम आदि कैलाश |
धारचूला चाइनीज आइटम्स से भरा पड़ा है |
यात्रा शुरू ....................जय भोलेनाथ!! |
यही लखनपुर है |
Nzong Fall - It is Four layered Fall and really amazing |
आइये कोठारी सर , अभी तो शुरुआत है :) |
कोई इसकी भी परेशानी समझो यार :) |
Good Night From Nzong Top !! ( Picture taken by Harjinder Singh ) |
हमलोग २२ यात्री ओम पर्वत जाना चाहते हैं क्या छोटी गाड़ी से यह यात्रा हो सकती है।
जवाब देंहटाएंट्रैकिंग है ये , गाडी से यात्रा नहीं हो सकती। गाडी से आप धारचूला और फिर आगे नजोंग टॉप तक जा सकते हैं , वहां से ट्रैकिंग शुरू होती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन सर जी, मजा आ गया
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