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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

Gadhi Padhawali Fort : Morena

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जब आप बटेश्वर मंदिर समूह देखकर आगे बढ़ते हैं और मुख्य रास्ते की तरफ चलते हैं तो आपको एक सुन्दर सा विष्णु मंदिर दिखाई देता है ! करीब 25 -30 सीढ़ियों को चढ़कर इस मंदिर तक पहुँचते हैं , सीढियां भी पतली पतली सी हैं और मंदिर के मुकाबले नई लगती हैं ! पूरा मंदिर एक चबूतरे पर बना है और मुख्य मंदिर तक जाने के लिए एक खूबसूरत मंडप है ! हालाँकि ऐसा मुझे नहीं लगा कि यहां नियमित रूप से पूजा होती होगी क्योंकि कोई विशेष मूर्ति भी यहाँ स्थापित नहीं है  ! लेकिन इस मंदिर की दीवारों पर बने भित्तिचित्र और कलाकृतियां इसे अनूठा बना देती हैं ! ज्यादा इतिहास -भूगोल मुझे नहीं मालूम है इस मंदिर का,  इसलिए आपको भी क्या बताऊँ ? 


अब आगे चलते हैं , पड़ावली गांव ! ये गांव यहां से करीब एक किलोमीटर दूर तो होगा ! पैदल चलते हुए वहां बड़े बड़े पत्थरों की खुदाई देखते चले आ रहे थे और लग रहा था कि जिन के. के. मुहम्मद के अथक और भागीरथी प्रयास से इन "गुमनाम " मंदिरों को दुनियां के सामने लाया गया है , कहीं वो इस खुदाई की वजह से फिर न खो जाएँ , लगता तो यही है ! आदमी की अपनी इच्छाएं इतनी बढ़ गयी हैं कि उसे नही मालूम कि वो अपने प्रकृति के रूप को बिगाड़ कर आज भले वो अपने लिए "किले " बनवा ले लेकिन वास्तव में वो अपने बच्चों के लिए कब्र खोद रहा है ! इंसान ही सबसे ज्यादा लालची और दुष्ट प्राणी है इस दुनिया का ! अपनी ख़ुशी के लिए जानवर मार के खा जाता है , पक्षी खा जाता है , प्रकृति का रूप बिगाड़ देता है !

                                                  ए आसमां तेरे ख़ुदा का नहीं है खौफ
                                                  डरते हैं ऐ जमीं तिरे आदमी से हम !!

पहुँच गए ! पड़ावली गांव ! यहाँ क्यों आये हैं ? मंदिर तो देख लिए ! बताता हूँ ! पहले चाय तो पी लें ! असल में सुबह की "अच्छी वाली " चाय के अलावा कुछ खाया -पीया नहीं है ! दुकान दिख तो रही है एक ! दुकान क्या है !! खोखा है ! आप जानते होंगे खोखा शब्द ! मुम्बईया भाषा में खोखा शायद करोड़ को कहते हैं लेकिन इधर उत्तर प्रदेश में खोखा छोटी सी लकड़ी की दुकान को कहते हैं ! वैसे चाय की दुकान को भी क्या क्या नाम मिले हैं , खोखा , गुमटी , टपरा ! ओह ! इन भाईसाब के पास चाय बनाने का कोई इंतेज़ाम नहीं है ! इनके पास गीली सी नमकीन , क्रीम रोल , कुछ चार पांच तरह के बिस्कुट और बीड़ी सिगरेट हैं ! लेकिन घबराने की कोई बात नहीं , सामने एक और ग्रामीण दुकान है , वहां से मिल गया !
सामने ही हमारी मंजिल है ! जी , सही पहचाना आपने ! गढ़ी फोर्ट है सामने ! गढ़ी फोर्ट कह लें , गढ़ी पड़ावली कह लें या गढ़ी मंदिर कह लें ! चलते हैं इसके अंदर , लेकिन पहले एक सरकारी स्कूल में लगे नल से पानी ले आऊं ! छोटा सा स्कूल है , यूनिफार्म देखकर अपने स्कूल के दिन याद आ गए ! कितने मस्ती भरे दिन थे वो , न जीवन का कोई झंझट न रिश्तों का कोई बंधन ! 

इस फोर्ट की बाहरी दीवारें , बटेश्वर मंदिर समूह के बाहर निकलते ही दिखाई देने लग जाती हैं लेकिन अंदर जाने के लिए घूम कर आना पड़ता है ! एक ही प्रवेश द्वार है ! आज शनिवार है इसलिए ग्वालियर के पब्लिक स्कूल के बच्चे आये हुए हैं और बेचारे सरकारी स्कूल के बच्चे आज भी "पढ़ाई " कर रहे हैं ! सरकारी स्कूल में शायद शनिवार की छुट्टी नहीं होती और न इन्हें कोई घुमाने ले जाता होगा !! अंतर होता है गरीब और अमीर में ! मैं 12 साल सरकारी स्कूल में रहा , कहीं नही गया ! कोई लेकर ही नही गया :-) 
                                                घरों पे नाम थे , नामों के साथ ओहदे थे 
                                                बहुत तलाश किया , कोई आदमी न मिला !!

फोर्ट चलते हैं । रास्ते के दोनों तरफ खुदाई में निकली टूटी हुई मूर्तियों को तरीके से लगाकर सुंदर और आकर्षक रूप दिया है । सामने ही दो तगड़े शेर ( शायद एक शेर -एक शेरनी हैं ) इस फोर्ट की सुरक्षा में तैनात दिखाई पड़ते हैं ! इस फोर्ट में ज्यादातर पुराने - खुदाई में निकले पत्थरों का उपयोग किया गया है ! इस फोर्ट को मंदिर के रूप में ASI के अनुसार 10 वीं शताब्दी में बनाया गया था और 18 वीं शताब्दी में धौलपुर के राणा ने इस मंदिर के पास में ही एक छोटा किला भी बना लिया ! छोटे किले को "गढ़ी " कहा जाता है और इसीलिए इस फोर्ट का नाम "गढ़ी पड़ावली " कहा जाता है ! किला हालाँकि ऐसा नहीं है कि बहुत तारीफ करी जाए लेकिन किले की शुरुआत में ही बना मण्डप बहुत सुन्दर है ! इस मण्डप की दीवारों पर या ये कहें हर एक जगह पर कोई न कोई आकृति उकेरी गयी है ! कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहाँ भगवान की कोई न कोई लीला अंकित न हो ! इन दीवारों पर भगवान विष्णु , भगवान शिव के अलावा भगवान कृष्णा की विभिन्न लीलाओं को अत्यंत बेहतरीन रूप में दर्शाया गया है जिनमें राम लीला , कृष्ण लीला के साथ साथ माखन निकालती गोपियाँ , भगवान श्री कृष्णा का केसी के साथ युद्ध , महाभारत की कथाएं तो हैं ही , इनके अलावा भगवान विष्णु के10 अवतार , समुद्र मंथन जैसे घटनाओं को भी परिलक्षित किया गया है ! हम जो आज इतनी मशीन लेकर बैठे होते हैं , उस समय का सोचिये ? क्या था ? ये सब कैसे संभव हुआ होगा ? एक एक इंच जगह का बेहतरीन उपयोग और वो भी शानदार मूर्तियों के रूप में ! बस ये ही कहना श्रेयस्कर होगा - अद्भुत , अकल्पनीय , अविश्वसनीय !!


आइये फोटो देखते हैं : 
बटेश्वर मंदिर के पास ही है ये विष्णु मंदिर





ये मूर्तियां हमेशा आकर्षित करती हैं

क्या गज़ब कलाकारी है !!

क्या गज़ब कलाकारी है !!



क्या गज़ब कलाकारी है !!



ये देखिये



गढ़ी पड़ावली पहुँच गए

ये खुदाई एक दिन ले डूबेगी




Guards of the Fort !!


खुदाई में मिले पत्थरों को लगाया गया है


मंडप की छत देखिये


हर एक इंच जगह को कोई न कोई लीला से सजाया गया है














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