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शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

Satopanth yatra : Third Day (Chakrateerth to Satopanth)

सतोपंथ यात्रा : तीसरा दिन ( चक्रतीर्थ से सतोपंथ)



अगर आपको ये यात्रा वृतांत शुरू से पढ़ने का मन हो तो आप यहां क्लिक करिये, पहले ही पोस्ट से पढ़ पाएंगे !


चक्रतीर्थ दोपहर के तीन बजे के आसपास पहुंच गये थे हम दोनों । ​हम दोनों का मतलब मैं और कमल भाई , जो सबसे पीछे चल रहे थे , सबसे पीछे ही पहुंचे ! इतने पीछे की कि टैन्ट भी लगाये जा चुके थे और वहां पहले से पहुंचे हुए लोग जैम लगा लगा कर बन का लंच कर रहे थे ! हमें भी जाते ही चाय और जैम लगा बन खाने को मिल गया ! पहले से ही हलकी हलकी बूंदाबांदी हो रही थी जो अब और भी बढ़ गयी ! हमारा और अमित भाई का टैन्ट नीचे की तरफ लगा था जबकि बीनू भाई का टैन्ट , गुफा से थोड़ा पहले ऊपर की ओर था ! चक्रतीर्थ पर जहां हम रुके थे , वहां दो गुफाएं हैं ! एक में खाना बन रहा था तो दूसरी में जाट देवता संदीप भाई ने अपना ठिकाना बना लिया ! मैं अब अपनी चाय लेकर नीचे नही जाना चाह रहा ​था , एक तो थका हुआ था और फिर हलकी हलकी बारिश भी हो रही थी ! मैं अपना बन और चाय लेकर संदीप भाई वाली गुफा में ही घुस गया ! हालांकि जगह कम पड़ रही थी , क्योंकि वहां पहले से ही संदीप भाई के अलावा अमित तिवारी जी भी अंदर की तरफ घुसे हुए थे !


खैर थोड़ी देर बाद जब बारिश रुकी तो मैं गुफा से बाहर निकला और बीनू बाबा के टैन्ट में जा घुसा , वहां पहले से ही तीन मुस्टण्डे बीनू भाई , कमल और सुमित बैठे थे , मेरे जाने से और भीड़ हो गयी ! पत्ते निकालो यार , लाद खेलते हैं ! मैं इस बीच नीचे जाकर अपना अखरोट का पैकेट उठा लाया , अब महफ़िल मस्त जमेगी ! इस बीच खाने से पहले गर्मागर्म सूप भी मिल गया है ! आप इस पल को थोड़ा मेरे साथ जी कर देखिये ! पहाड़ों के बीच खुले मैदान में टैण्ट लगा है , बाहर हलकी हलकी बारिश हो रही है , अंदर चार लोग बैठे पत्ते खेल रहे हैं और हाथ में गरम सूप और चबाने को अखरोट ! आय हाय , क्या मस्त माहौल होगा ! मजा आया न आपको भी ? आपको और हमें तो मजा आया लेकिन नीचे के टैन्ट में बवाल हो गया गुरु !

हुआ यूँ कि बारिश रुकने पर अमित भाई , संदीप भाई की गुफा से निकालकर नीचे अपने टैन्ट में चले गए और वहां पहले से ही आराम फरमा रहे संजीव त्यागी जी के पास लेट गए ! बगल में हमारे वाले टैन्ट में विकास नारायण श्रीवास्तव जोर जोर से मोबाइल पर गाना सुनने में मस्त हैं ! सुशील जी , संदीप भाई के साथ गुफा में हैं ! संजीव जी ने विकास को बोला - भाई आवाज कम कर ले मोबाइल की या फिर हेड फोन लगा के सुन ले, मेरे सर में दर्द हो रहा है और मुझे आराम करना है ! लेकिन आवाज़ इतनी तेज थी कि न विकास को आवाज सुनाई देनी थी न ही दी और इसका परिणाम ये हुआ कि संजीव जी अपने दड़बे से निकले और विकास को उल्टा सीधा जो कहना था कह डाला ! बवाल नीचे से शुरू होकर ऊपर तक आ गया और विकास बाबू गुस्सा हो गए ! गुस्सा चरम पर पहुंचा तो विकास बाबू नाराज होकर बिना कुछ लिए वहां से निकल लिए वापसी के लिए ! शाम के छह या साढ़े छह बजे होंगे उस समय ! पहले तो सबने सोचा कि ये वापस आ जायेगा और जब उसने एक पहाड़ी पर चढ़कर वापस उतराई पकड़ी तो दिमाग में बत्ती जलने लगी सबके !! ठण्ड इतनी है और इसके पास कुछ है भी नहीं ! खिले हुए चेहरे उतरने लगे ! दर्द जब हद से गुजरता है तो दवा बन जाता है ! सबने ये सोचकर चिंता छोड़ दी कि आ ही जाएगा , जाएगा कहाँ ? फिर से लाद खेलनी शुरू कर दी और अब चार से बढ़कर पांच हो गए खेलने वाले , संजीव जी भी आ गए थे ! बारिश अभी भी लेकिन बहुत हलकी हलकी ! खिचड़ी खा के सो जाते हैं , रात के 10 बजने को हैं ! सो भी लेना चाहिए , सुबह फिर चलना है और ऐसे रास्ते पर चलना है जो अब तक का सबसे कठिन , दुर्गम और भयानक रास्ता है ! है तो केवल 6 -7 किलोमीटर ही लेकिन बहुत कठिन और जोखिम भरा है ! गुड़ नाईट !

राम राम मित्रो ! आज 15 जून है और सुबह बहुत शानदार ! रात की बारिश ने सब जगहों को गीला कर डाला है जिसके परिणामस्वरूप फ्रेश होकर आने के लिए कोई जगह नहीं दिख रही ! आखिर ऊपर की तरफ ही निकलना पड़ा ,पत्थरों को पार करते हुए ! चाय पीकर और थोड़ा सा बन लेकर आगे चलने की तैयारी शुरू कर दी ! मैं और सुशील जी अपना टैण्ट उठाने लगे तो उसमें आधा खाया हुआ बन मिला ! पता किया तो विकास बाबू का बन था वो ! हाँ , विकास बाबू का ही ! वो रात में न जाने कब लौट के आ गए थे और आकर हमारे टैन्ट में घुसकर सो गए ! लौटकर आये होंगे तो भूख लगी होगी और किसी पोर्टर से बन खाने को माँगा , जितना खाया खा लिया बाकी अपने पास रख लिया ! इस बात से अमित भाई को बड़ा गुस्सा आया जो सही भी था ! खाना बहुत सीमित होता है ऐसी जगह और आप उसे बर्बाद नहीं कर सकते ! आधा खाया हुआ बन , टैन्ट में देखकर मेरा भी दिमाग भन्ना गया और मैं बिना टैन्ट पैक किये निकल गया !

आज सबसे पहले निकलने वालों में कौन था , ये जानना रोचक होगा ! मैं और कमल भाई , दो फिसड्डी लोग ! आगे एक बहुत ऊँची दीवार जैसी पहाड़ी दिखाई दे रही है , वो पर करनी पड़ेगी ! उस पर एक झण्डी लगी है जो बहुत दूर से दिखाई दे रही थी कल भी ! उसे दिखा दिखा कर पोर्टर कह रहे थे बस इसे पर करते ही सतोपंथ आ गया समझो ! और इसी समझो समझो में अभी सतोपंथ कम से कम 6 -7 किलोमीटर और है ! ये एकदम से खड़ी चढ़ाई है , एक एक कदम के बाद आराम लेने के लिए रुकना पड़ रहा है ! आगे -पीछे वो लोग भी चले आ रहे हैं जो हमसे थोड़ा पीछे रुके थे रात को ! कुछ 50 वर्ष से ऊपर के भी हैं ! श्रधा -आस्था , हिम्मत सब जुटाकर यहां तक आ गए हैं तो आगे भी पहुँच ही जायेंगे ! हिम्मत और इनकी आस्था को प्रणाम करना तो बनता है ! हमसे पीछे आये बीनू भाई जाट देवता आगे निकला चुके हैं ! हम कछुआ हैं लेकिन फिर भी जीत नहीं पाये , यहां हमेशा जाट देवता , बीनू भाई और अमित भाई जैसे खरगोश ही जीते बार बार , हर बार ! कछुआ पीछे ही रहा , पिद्दी कहीं का ! खरगोश से जीतने निकला था ! मजाक था यार , यहां कोई किसी से जीतने या हारने नहीं निकला ! सब आपस में मिलकर एक पवित्र और दुर्गम जगह जाना चाहते हैं ! वो जो झण्डी दिख रही है वहां सबसे पहले जाट देवता पहुँच गए और वहीँ जाकर और लोगों का इंतज़ार करने लगे ! दुसरे नंबर पर बीनू भाई और तीसरे पर मैं फिर कमल भाई ! ये धार है ! धार का मतलब ऊपर बहुत कम जगह है बैठना भी मुश्किल है लेकिन लंबाई बहुत है ! दोनों तरफ ढलान है , इधर पहाड़ है ढलान पर तो उस तरफ बड़े बड़े पत्थर ! मैं यहां खड़े होकर इस एहसास को , इस पल को भरपूर जीना चाहता हूँ ! लेकिन हवा का दबाव खड़े तक नहीं होने दे रहा ढंग से ! बस झण्डी पकड़ के एक फोटो खिंचवाया और चलता बना ! मुझसे पहले जाट देवता और बीनू भाई उतर चुके थे और नीचे बैठे इंतज़ार कर रहे थे ! इंतज़ार इस बात का कि कौन कौन फिसलता है !

हुआ ये था कि इस ऊँची पहाड़ी के दूसरी तरफ , यानि सतोपंथ की तरफ बहुत ज्यादा ढलान है जिस पर पहले जाट देवता तो आराम से उतर गए लेकिन बीनू भाई फिसल गए , फिर हमसे पीछे आये गाइड कम पोर्टर गज्जू भाई भी बढ़िया तरह से फिसल गए ! ये दोनों जाट देवता और बीनू भाई , मुझे कहने लगे कि मैं जरूर गिरूंगा ! चुनौती स्वीकार बीनू भाई , नहीं गिरूंगा ! और भले मेरी कमर टेढ़ी हो गयी लेकिन खुद को फिसलने नहीं दिया ! हुर्रे , फिसलने से बच गया ! दो और गिरे इसके बाद और उन्हें देखकर जो आनंद आया उसे शब्दों में कह पाना मुश्किल है ! आगे चलते हैं !

आगे अब जहां तक नजर जाती है सब जगह बस पत्थर ही पत्थर नजर आ रहे हैं ! न कोई रास्ता , न कोई रास्ता जैसी चीज ! पता ही नहीं चलता कि किधर जाना है , कैसे जाना है ! लेकिन है एक चीज जो आपको बतायेगी कि कैसे , किधर को जाना है ! बताया था आपको , वो दो दो तीन तीन पत्थर रख देते हैं वहाँ के लोग ! जिससे रास्ते का थोड़ा अंदाज़ा लग जाता है ! हे भगवान, इतने बड़े बड़े पत्थर और इन्हें ही पर करते हुए रास्ता नापते जाना है ! ऊपर से कभी कभी ग्लेशियर टूटने की आवाज़ आती है तो दिल बैठ जाता है कि कहीं यहीं न जिंदगी थम जाए ! बहुत दुर्गम ! एक एक करके चले जा रहे हैं सब ! लड़की नहीं दिखाई दी कोई भी ! ये एक दोष है इस रास्ते का ! इस चढ़ाई से उतरकर एक बड़ा सा कच्चा पहाड़ है जिसे गोल गोल चलकर पर करना है ! ऊपर से लगातार मिटटी , छोटे छोटे पत्थर और बर्फ के टुकड़े टूट टूट कर नीचे आ रहे हैं जिनसे बचकर भी चलना है और देखकर भी कि कहीं हमारे ऊपर ही न आकर गिर जाएँ ! हम ज्यादातर लोग लगभग एक साथ चल रहे हैं , बस अमित भाई थोड़ा आगे हैं लेकिन विकास नारायण को पता नहीं क्या सूझी कि वो गोल गोल न आकर पहाड़ पर ऊपर की तरफ चला गया और फंस गया है ! ऊपर ग्लेशियर टूटता है तो लगता है क्या होगा इसका ? धीरे धीरे वो उतरकर आता है तब जान वापस आती है !

कुछ खाया भी नहीं सुबह , बस चाय और बन ! लेकिन बैग में बिस्कुट और एक बन रखा हुआ है , काम चल जाएगा ! कहीं से पानी बहने की आवाज़ आ रही है लेकिन दिख नहीं रहा ! ओह , ये यहां है ! बहुत गहरा गड्ढा है ये , मतलब क्रेवास ! ये क्रेवास बहुत भयानक और खतरनाक होते हैं ! बच के चलना होता है , अगर कैसे भी इसके अंदर चले गए तो भूल जाइये आपके कुछ थे , इतिहास बनाएंगे नहीं इतिहास बन जाएंगे ! कोई बचाने वाला नहीं ! इन ऊँची ऊँची चढ़ाई पर पत्थर ही टेक लगाकर खड़े होने का भी सहारा देते हैं और रास्ते को थोड़ा आसान भी कर देते हैं ! बस वो रहा सतोपंथ वाला झण्डा ! वो दिख रहा है !

इस आज की आखिरी चढ़ाई को चढ़ने में जोश वापस आ गया है ! ऊपर लगी झण्डी बार बार पुकार रही है और हौसला दे रही है , आ मेरे बच्चे आ जा ! तुझे अपनी गोद में भर लेने के लिए तेरा इंतज़ार कर रही हूँ ! मैं चढ़ाई चढ़ते हुए हांफ रहा हूँ मगर दूसरी तरफ से पता नहीं कहाँ से एक गोरी यानी अँगरेज़ लड़की आराम से बिना किसी स्टिक के छिपकली की तरह चढ़ती चली आ रही है ! सुकून मिल गया दिल को ! कुछ तो हरियाली देखने को मिली इतने दिनों का बाद ! मन ही मन सोचने लगा - चलो अब इनसे सतोपंथ पहुंचकर ही दोस्ती बनाएंगे ! हाहाहा ! हँसते रहिये , जिंदगी को मजे से जीते रहिये , मैं फिर मिलूंगा आपसे और आपको सतोपंथ पहुँचने के बाद की बात सुनाऊंगा !



ये दीवार चढ़ के आये हैं हम ! धार इसे ही कहते हैं जहां खड़ा होना मुश्किल हो गया

ये मेरा इस यात्रा का सबसे फैवरेट फोटो है ! यहां धार से उतरते हुए बीनू भाई ने चैलेंज किया कि मैं गिरूंगा जरूर , लेकिन मैं जीत गया !! हाहा



इस पहाड़ को गोल गोल चलकर पार किया
रास्ते की हालत देखिये
रास्ते की हालत देखिये







रास्ता है कहीं ? आगे जाने को
एक सुन्दर पहाड़ सूरज की किरनें पड़ने के बाद , नवजात शिशु की तरह मुंह बाहर निकाल रहा है







ये क्रेवास ! बहुत खतरनाक होते हैं ये



ये एक और क्रेवास ! बहुत खतरनाक होते हैं ये




पहुँच गए सतोपंथ ! प्रथम दर्शन कर लीजिये !
                                                                                                    
                                                                                                जारी रहेगी , साथ में रहिएगा

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