इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहां
क्लिक करें !!
माणा पार करने के बाद मेरा अगला लक्ष्य वसुधारा फॉल तक जाने का था ! वसुधारा फॉल यहां माणा से करीब 7 किलोमीटर दूर है और बद्रीनाथ से 10 किलोमीटर होगा ! क्योंकि वसुधारा फॉल पर रुकने का कोई ठिकाना उपलब्ध नहीं है इसलिए वापस भी लौटना ही पड़ेगा अन्यथा एक रात उधर बिताने का अपना अलग ही आनंद होता ! आज लगभग 20 किलोमीटर की ट्रैकिंग हो जाएगी ! भीम शिला पार करते ही पत्थरों से बना एक रास्ता दिखने लगता है। पैदल का ही रास्ता है यानि आप को ट्रैकिंग ही करनी पड़ेगी ! थोड़ी दूर ही पहुंचा होऊंगा दो लड़के आराम फरमाते हुए मिले ! उनके पीछे ही मैं भी चल दिया ! आगे तीन और मिले , वो इन्ही के साथी थे ! ये असल में संत लोंगोवाल इंजीनियरिंग कॉलेज(SLET ) , संगरूर पंजाब के इंजीनियरिंग के छात्र थे ! इनमें से एक वर्किंग में था जो सरदार था ! दो तीन का नाम याद आ रहा है ! सिख युवक का नाम बिलावल था और जो इस ग्रुप को लीड कर रहा था वो चमोली , उत्तराखंण्ड का ही भूपेंद्र नेगी था ! पूरा ग्रुप एकदम अच्छा ! इंजीनियरिंग के बच्चे और इंजीनियरिंग का मास्टर मिल जाएँ तो ज्यादा औपचारिकताएं नही रहती ! एक तरह से कुछ देर बाद में भी इसी ग्रुप का हिस्सा हो गया ! ये सात किलोमीटर ज्यादा से ज्यादा दो घंटे का रास्ता होना चाहिए था लेकिन हमें पूरा साढ़े तीन घंटे लग गए ! जो जब जहां होता वो बैठ जाता , कोई वहीँ रास्ते के किनारे अपनी नींद निकाल लेता ! डेढ़ दो किलोमीटर तक रास्ता दीखता है ! पत्थर तरीके से लगाकर रास्ता बनाया हुआ है फिर कहीं कहीं रास्ता दिखता है और थोड़ा और आगे जाकर रास्ता ख़त्म ! छोटी छोटी पगडंडियां बनी हुई हैं ! रास्ते में कोई लौटता हुआ मिल गया , उससे पूछने लगे अभी कितना दूर है वसुधारा ? कोई कहता अभी तीन किलोमीटर , अभी दो घंटे का रास्ता और है !
हालाँकि
मुझे बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है लेकिन फिर भी इतना आभास हो रहा था कि धूप की किरणें बर्फ से टकराकर रिफ्लेक्ट हो रही हैं ! इसी के कारण स्किन जलने
लगी थी ! हालाँकि आँखों पर चश्मा चढ़ा रखा था और मुंह पर गमछा लपेटा हुआ था
लेकिन फिर भी नाक खुली रह गयी और घर लौटकर मालुम हुआ कि नाक पर एक पपड़ी जम गयी है !
ओह ! चार पांच दिन लग गए सही होने में ! बड़ा अजीब सा मौसम होता है ! सुबह
सर्दी थी और जैकेट पहननी पड़ी थी और अब इतनी गर्मी है कि जैकेट उतार के कंधे
पर लटकानी पड़ी और कुछ कदम चलते ही पानी की जरुरत पड़ने लगी ! मेरे पास बस
पानी की एक ही बोतल थी और उसमें से भी एक बार दो लोगों को जो अलग से जा रहे
थे उन्हें पिला चुका था ! पानी की कमी होने लगी थी ! किसी से पूछा पानी
कहाँ मिल जाएगा ? बोले वसुधारा फॉल पर एक बाबा का आश्रम है वहीँ पानी मिल
पायेगा ! एक एक घूंट पानी बचाने लगे ! सब के पास लगभग खतम होने को था !
रास्ते में एक ग्लेशियर मिला ! सब उस को पार करने में डर रहे थे ! डरना
जरुरी भी था क्योंकि जब मैं घर से चला था उससे एक दिन पहले अखबार में ये
खबर आई थी कि वसुधारा फॉल जाते हुए एक महिला ग्लेशियर से फिसल गयी और उसकी
मौत हो गयी थी ! कुछ खतरे ऐसे होते हैं जिनके बारे में अगर आप अनभिज्ञ हैं
तो आपको डर नही लगेगा लेकिन जानबूझकर आप ऐसे खतरे नही ले सकते ! मैंने ही
हिम्मत दिखाई और मैं धीरे धीरे करके पार हो गया ! उन लड़कों में भी हिम्मत आ
गयी और जैसे तैसे वो भी पार कर गए ! रास्ता सिर्फ इतना था कि आप एक ही पैर
जमा सकते हैं दूसरा पैर आपको आगे ही रखना पड़ेगा ! जय बद्रीविशाल !
ग्लेशियर मैंने पहले भी पार किये हैं ! हेमकुण्ड साहिब जाते हुए इससे भी
ज्यादा बड़ा और लंबा ग्लेशियर पार किया है लेकिन उन पर रास्ता ज्यादा चौड़ा
था और लोग भी ज्यादा थे ! यहां एक दो एक दो लोग ही दीखते हैं ! आगे बढ़ते गए
! पानी बिलकुल ख़त्म हो चुका था ! गले सूखने लग गए थे ! एक जगह साफ़ सुथरी
बर्फ मिली ! उसमें से पानी नीचे की तरफ गिर रहा था , मैंने बोतल भर ली !
बच्चे कहने लगे - सर ये पानी नुकसान कर जाएगा ! भाई पहले पानी पीना जरुरी
है , नही तो जान पर बन आएगी ! नुकसान करेगा बाद में देखा जाएगा ! उन्होंने
भी अपनी अपनी बोतल भर ली ! जिंदगी मिल गयी !
|
बर्फ तो है लेकिन मैली हो चुकी है |
|
भाईसाब योगी सारस्वत |
|
ये SLET के छात्रों की मंडली |
|
इस बर्फ से धीरे धीरे कर के नीचे पानी बह रहा था उसी से अपनी बोतल भर ली |
|
ये
दूसरी तरफ की पहाड़ियां जिन पर बर्फ का नामोनिशान भी नहीं ! कोई प्लीज
बताइये ऐसे क्यों होता है की पहाड़ पर एक तरफ तो इतनी बर्फ और दूसरी तरफ बिलकुल भी नही ? |
|
ये ग्लेशियर जिसे पास करने में बड़ी दिक्कत हुई |
|
सरदार जी सबसे बाद में आये |
|
ऐसा रास्ता है ! पथरीला ! कुछ दूर चलने के बाद ये भी गायब हो जाता है |
|
इसमें एक गुफा सी थी , इस पत्थर के नीचे ! थोड़ी देर वहां बैठे रहे |
|
ये आईटीबीपी की कोई बटालियन है ! नीचे वापस आते हुए दिखे |
यात्रा जारी रहेगी :
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें