पेज

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

बद्रीनाथ जी मंदिर


इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहां क्लिक करें !!


रात को भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करते समय भीड़ भाड़ थी लेकिन उतनी नहीँ थी जितनी कि 2007 में थी । तब हमें दर्शन करने में ढाई घण्टे लग गए थे और आज रात को लगभग आधा घण्टे में नंबर आ गया । बाहर भी वो वाली बात नहीं थी । कहने का मतलब ये कि भले कोई कितना भी कहे उत्तराखंड में 2013 में आई भयंकर आपदा का असर अभी भी है और लोगों के दिलों में अब भी उसका डर बैठा हुआ है । 

दर्शन करने से पहले वहां गरम कुण्ड में नहाने का रिवाज है । ठण्ड बहुत थी लेकिन फिर भी नहाना तो था ही । हालाँकि प्रदीप जी ने मना कर दिया । मैं नही नहाऊंगा । मंदिर से लौटे तो सीधे रसोई में पहुँच गए । वहां वो लोग खाना बना रहे थे लेकिन एक कप चाय के लिए कहा तो उन्होंने बना दी ! वहां उस जगह घर जैसा लगता है । बहुत सीधे साधे लोग होते हैं वो । ह्म्म्म । दो परिवार और भी थे उधर । हिसार हरयाणा से थे दोनों परिवार । कम से कम 15 लोग थे । वो 10 किलो भिन्डी उठा लाये और अपने आप ही काटने लगे । इस चक्कर में 10 बजे खाना मिल पाया । खाना खाया और कल के कार्यक्रम पर एक नजर मारी और सो लिया ।

सुबह का कार्यक्रम दोबारा भगवान बद्रीनाथ के दर्शन से ही शुरू होना था । नींद इतनी बढ़िया आई कि प्रदीप जी के साथ सुबह 8 बजे दर्शन करने का संकल्प धरा का धरा रह गया और आँख खुली 9 बजे । फ़ोन देखा तो 17 मिस कॉल पड़ी थी । कुछ घर से थीं और कुछ प्रदीप जी की । मैंने प्रदीप जी को फ़ोन किया पहले तो वो नाराज हुए फिर बताया कि मैं तो वापस गाज़ियाबाद निकल चूका हूँ । कोई बात नही । अकेले आये हैं अकेले चलेंगे । आज माना और आगे वसुधारा फॉल तक जाने का प्रोग्राम था ! खाना बनने में अभी देर लगती इसलिए ये सोचकर कि खाना माना में खा लेंगे ,  भगवान बद्रीनाथ के दर्शन को निकल गया ! एकदम से बदला बदला सा मंदिर लग रहा था ! न वो चमकती लाइट और न ज्यादा भीड़ भाड़ ! बद्रीनाथ मंदिर को बद्रीनारायण मंदिर भी  कहते हैं।  ये मंदिर भगवान नारायण यानि विष्णु जी को समर्पित है। अलकनंदा नदी के किनारे पर 3133 मीटर ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर में भगवान विष्णु शालिग्राम के रूप में विराजमान हैं और इसी वजह से आप देखेंगे कि मंदिर के बाहर बाजार में बहुत से नकली असली शालिग्राम मिल जाते हैं !

इस मंदिर के बिलकुल नीचे की तरफ अलकनंदा के किनारे ही एक तप्त कुण्ड है और ऐसा माना जाता है कि ये सल्फर युक्त पानी चर्म रोगों से मुक्ति प्रदान करता है इसलिये इसमें लोग एक बार स्नान अवश्य करते हैं ! लेकिन बहुत गर्म पानी होता है ! कहते ऐसे हैं की आप अगर एक बार कुण्ड में घुस जाओ तो फिर पानी गर्म नही लगता लेकिन मेरी तो हालत खराब हो गयी और पूरा शरीर लाल हो गया !

ऐसा कहा जाता है कि पहले आठवीं सदी तक ये बौद्ध मंदिर था लेकिन आदि शंकराचार्य जी ने इसमें भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित की और फिर ये भगवान विष्णु को समर्पित मंदिर बन गया ! कई और भी कहानियां भी प्रचलित हैं , सब को लिखना संभव नही और न ही उचित है !

भगवान के दर्शन करके माना की तरफ प्रस्थान किया ! किसी ने बताया कि आपको दूसरी तरफ से माना के लिए जीप मिल जाएंगी ! एक दो से पूछा - उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया कि अकेली सवारी नही ले जाते ! किसी ने किराया बताया 600 रुपया ! केवल 3 किलोमीटर की दूरी पर है बद्रीनाथ से माना ! इतना बूढ़ा और इतना कमजोर मैं नहीं कि तीन किलोमीटर के लिए 600 रुपया खर्च कर देता ! पैदल पैदल ही चल दिया ! एक स्नूकर पॉइंट भी है उधर ! क्या बात है !! एक  मिली , कुछ खाया जाए ! मैग्गी ? वो तो अब बंद हो गयी ! मैग्गी जैसा ही कुछ मिल गया और एक बढ़िया वाली चाय ! दो नमकीन के पैकेट और खरीद के रख लिए ! माना चल  रहे हैं वहां गणेश गुफा और व्यास गुफा देखेंगे और फिर वसुधारा फॉल चलेंगे !!


बद्रीनाथ जी की शानदार सुबह
जय बद्री विशाल !! 
अलकनंदा अठखेलियां कर रही है !!
जय बद्री विशाल !! एक सेल्फ़ी





क्या शानदार और सुन्दर बनावट है
क्या शानदार और सुन्दर बनावट है
इस कुण्ड में भगवान के दर्शन करने से पहले एक "डिप " लेने की परंपरा है
बद्रीनाथ में मुण्डन और पूर्वजों का तर्पण भी होता है


बद्रीनाथ में मुण्डन और पूर्वजों का तर्पण भी होता है

नहा लिया

ये वो गर्म कुण्ड





नारद कुण्ड ! ऐसा कहा जाता है कि जैन धर्मवलम्बियों ने भगवान बद्रीनाथ जी की मूर्ति इस कुण्ड दी थी जिसे आदि शंकराचार्य जी ने वापस निकला और पुनः स्थापित किया













ये अलकनंदा नदी के बीच में स्थित चट्टान ! इसे पीछे से देखने पर ऐसा लगता है जैसे कुत्ते का मुंह हो












                                                                                                       अब माना चलते हैं :

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें