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बोध गया में ज्ञान फैला पड़ा है लेकिन आजकल उस ज्ञान से ज्यादा दुनियादारी का ज्ञान ज्यादा महत्त्व का हो गया लगता है। महाबोधि मंदिर से वापस लौटते समय रास्ते मेंही एक संग्रहालय भी है। वास्तव में जैसा मैंने पहले लिखा कि बोधगया इतना छोटा सा है कि आपको हर कदम पर कुछ न कुछ देखने को घूमे को मिल ही जाएगा। अब केंद्रीय सरकार ने वहां आईआईएम खोलने का फैसला कर लिया तो शायद और कुछ महत्त्व बढ़ जाएगा।
इस संग्रहालय में 10 रूपये का टिकट लगा , फोटो देूंगा टिकेट का भी। जब मैं गया था तो अकेला था लेकिन बाद में तीन चार फैमिली और आ गयीं। ज्यादा लोगों के आने से स्टाफ ज्यादा व्यस्त हो जाता है और सब पर नजर रखने की कोशिश करता है। पहले जब मैं अकेला था तो फोटो भी खींच रहा था लेकिन जैसे ही और लोग आये उसने फोटो लेने के लिए मना कर दिया। फिर थोड़ी देर बाद ये चेक करने भी आया कि मैं फोटो तो नही ले रहा। इस म्यूजियम में दो गैलरी हैं और बिहार को देखते हुए बहुत ही साफ़ सुथरा कहा जा सकता है। 1956 में बने इस म्यूजियम में पाला समय के बौद्ध और हिन्दू धर्म के प्रतीक चिन्हों को बहुत ही शानदार ढंग से सजाया गया है। एक दो घंटे बहुत ही अच्छे गुजरते हैं मतलब 10 रूपये वसूल। भगवान बुद्ध की अलग अलग प्रतिमाएं और उनके सेज सम्बन्धियों की प्रतिमाएं दिखाई गयी हैं।
आइये अब जापानी बुद्ध मंदिर चलते हैं। जापानी बुद्ध मंदिर को इण्डो सान निप्पन मंदिर भी कहते हैं। जापानी भाषा में निप्पन का मतलब जापान होता है और सान का मतलब जी। जैसे आप मुझे जापानी भाषा में कहेंगे तो योगी जी की जगह योगी सान कहेंगे। और अगर जापानी भाषा को जापानी में कहना हो तो कहेंगे निहोंगो ! गो मतलब भाषा। वैसे गो का मतलब जापानी में पांच भी होता है। इतना क्यों लिख रहा हूँ जापानी के लिए ? वो इसलिए क्योंकि मैंने जापानी भाषा पढ़ी हुई है और इसमें सर्टिफिकेट लिया हुआ है और आजकल डिप्लोमा ले रहा हूँ।
आइये फोटो देखते जाते हैं :
संग्रहालय में कुछ फोटो तो ले ही लिए थे |
ये जापान बौद्ध मंदिर से भूटान की मॉनेस्ट्री |
ये जापान बौद्ध मंदिर |
ये जापान बौद्ध मंदिर |
ये जापान बौद्ध मंदिर |
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