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सांवरिया मंदिर के दर्शन करने के पश्चात तय हुआ था कि मैं अकेला चित्तौड़गढ़ किला देखने जाऊँगा और बाकी सब लोग चन्देरिया स्थित घर चले जाएंगे। खाना मैंने सबके साथ सांवरिया जी पर ही खा लिया था तो अब भूख की चिंता नही रही थी। अब बस चिरपरिचित किले को जिसे मैंने कम से कम 10 बार पहले भी देखा है , फिर से देखना था ! पहले मैं ब्लॉग नही लिखता था इसलिए ज्यादा फोटो भी नही खींचता था और जो थोड़े बहुत फोटो खींचता भी था वो पुराने कैमरे के हैं , उनका नेगेटिव बनवाओ फिर कॉपी निकलवाओ ! कितना झंझट वाला काम था और अब डिजिटल कैमरे ने बहुत आसान कर दिया सब कुछ ! थोड़ा पैसा तो लगता है लेकिन संतुष्टि उस पैसे से ज्यादा है !
मुझे चित्तौड़गढ़ में कचहरी चौराहे पर उतार दिया। वहां से आपको फोर्ट के लिए टेम्पो आसानी से मिल जाते हैं , आप चाहें तो पूरा टेम्पो हायर कर लें या फिर शेयरिंग में चले जाएँ। मर्जी आपकी है। मुझे क्या जरुरत थी हायर करने की ? 20-25 रूपये में शेयरिंग में जाऊँगा , क्यों बेकार 300 रूपये खर्च किये जाएँ ? आइये चित्तौड़गढ़ के विश्व प्रसिद्द और अब विश्व धरोहरों में शामिल "विजय स्तम्भ " की तरफ चलते हैं।
चित्तौड़गढ़ का किला क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा किला माना जाता है। लगभग 280 हेक्टेयर में फैला ये किला 7 वीं शताब्दी में मौर्यंस ने बनवाया था। मेवाड़ की लगभग 834 सालों तक राजधानी रहा चित्तौड़गढ़ , पहले चित्रांगदा मोरी कहलाता था जो कालांतर में चित्तौड़गढ़ हो गया। इस किले ने तीन तीन बार आक्रमण झेले हैं और ये आक्रमण केवल लूट और सत्ता तक सीमित नही रहे बल्कि इन्होने "जौहर " के रूप में कई जिंदगियों को भी काल के गाल में पहुँचाया। पहला आक्रमण 1303 में अलाउद्दीन ख़िलजी ने किया तब राणा रतन सिंह की रानी पद्मिनी ने अपनी और साथी महिलाओं के साथ जौहर किया। ये मेवाड़ के इतिहास में पहला जौहर कहा जाता है। इसके बाद 1535 में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने इस पर आक्रमण किया जिसके परिणामस्वरूप रानी कर्णावती को जौहर करना पड़ा। ये इतिहास में दर्ज़ आखिरी जौहर माना जाता है। लेकिन इस जौहर प्रथा ने कुल मिलाकर करीब 13000 महिलाओं और बच्चों की जिंदगी लील ली थी। और फिर 1567 ईस्वी में मुग़ल शासक अकबर ने इस पर आक्रमण कर दिया। इसके करीब 48 साल बाद जहाँगीर ने राणा अमर सिंह को ये किला वापस किया।
बेडच नदी के बाएं किनारे पर स्थित , लगभग 700 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस किले को सुरक्षित बनाने के लिए इसके चारों तरफ 4. 5 किलोमीटर लम्बी दीवार इस तरह से बनवाई गयी थी कि दुश्मन अंदर तक न घुस सके। इसके मुख्य प्रवेश द्वार से लेकर पहाड़ी पर स्थित महल तक पहुँचने के लिए 7 द्वार बनवाए गए थे जिन्हें राणा कुम्भा ने बनवाया। इन द्वारों पर हथियार बंद सैनिक हमेशा तैनात रहते थे। इन सात द्वारों के नाम इस तरह से हैं - पैदल पोल , भैरों पोल , हनुमान पोल , गणेश पोल , जोरला पोल , लक्ष्मण पोल और आखिर में राम पोल।
आइये एक एक करके सभी सात पोल पार करते हैं और ऊपर पहुँचते हैं।
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पैदल पोल |
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भैरों पोल |
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हनुमान पोल |
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गणेश पोल |
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जोरला पोल |
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राम पोल |
Yogi saraswat is a best hindi blog to increase your dharmik Knowledge. and know more about - religious stories,History, sociel problem, releted. and this blog is about Kumbhalgarh ka kila in hindi.
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन लिखतें हैं आप। लिखते रहिए। यूट्यूब के चक्कर मे ब्लॉग लिखना ना छोड़ें। धन्यवाद भैया।
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