गाँव से लेकर शहर तक
बस में , ट्रेन में
नौकरी और पढाई में
बस भीड़ भारी है |
छोटे – ऊंचे
काले -गोरे
हिन्दू -मुस्लिम
सब कतार में हैं
बस जगह मिल जाये ||
मैं भी चला आया
बढ़ चला उधर
जिधर
कतार चली |
कभी स्कूल में भरता था
या अखबार में देखता था
आज उसी रिक्त स्थान में
स्वयं को भरने
कतार में खड़ा हूँ मैं !!
कोमल भावो की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद , श्री भास्कर जी ! आपको मेरे शब्द पसंद आये , बहुत बहुत आभार ! आगे भी सहयोग देते रहे !
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय निशा जी मित्तल ! मेरे शब्दों तक आने और उत्साहित करने के लिए ! मुझे आशा थी आपका आशीर्वाद अवश्य ही मिलेगा ! धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की हकीकत
जवाब देंहटाएंजीवन का सत्य लिखा है ... इनमें उलझ के रह जाता है इन्सान ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय श्री सत्यशील अगरवाल जी ! आशीर्वाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय श्री दिगंबर जी ! आशीर्वाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंhakikat bayan ki hai aapne yogi ji saabhaar!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार श्री संजय जी आपका ! हौसलाफजाई बनाये रखियेगा ! धन्यवाद
हटाएंसुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका श्री राकेश श्रीवास्तव जी ! संवाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद
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