रविवार, 4 मई 2025

Amarnath Yatra 2022 : Day 3 From Sheshnag to Panchtarani

 अमरनाथ यात्रा  2022 


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मैं ये बात पहले लिख चूका हूँ कि शेषनाग झील पर देहरादून से आये दो यात्रियों राहुल और संतोष से मुलाकात हुई थी और फिर इन दोनों के साथ ही मेरी आगे की यात्रा हुई।  

Sheshnag Shelter

शेषनाग में जिस टेंट में हम सोए पड़े थे वहां कई लोगों से बहुत देर तक बात होती रही मगर सुबह देखा तो सब निकल चुके थे। राहुल और संतोष भी निकल चुके थे !  फ्रेश होकर हाथ मुंह धोने को पानी लिया था.. भयंकर ठण्डा पानी मिला मगर अच्छी बात रही कि गरम पानी भी उपलब्ध हो रहा था।  हमने भी अपना झोला उठाया और निकल पड़े आज की यात्रा पर। अभी सुबह के छह ही बजे थे और मैं अपने ठिकाने से बाहर आ चुका था, ऐसा अमूमन कम ही होता है मगर आज ऐसा हुआ था और ऐसा इसलिए हुआ था क्यूंकि रात पता चल गया था कि सुबह छह बजे आगे जाने के लिए गेट खुल जायेंगे।  

Sheshnag Shelter
     
चाय -टोस्ट का नाश्ता लेकर मैं भी गेट के बाहर निकलने का इंतज़ार करने के लिए लाइन में लग गया।  अभी 6:50 हो चुके थे मगर गेट नहीं खुले थे।  लाइन पर लाइन लगी थीं और ...भी बड़ी होती जा रही थीं।  एकदम से आदेश हुआ कि सभी लोग दो लाइन बना लो, अब मैं और पीछे चला गया ! अंततः मैं लगभग सात बजकर 20 -22 मिनट पर बाहर निकल पाया . 


आज की यात्रा पंचतरणी तक की थी और ...थोड़ी और भी खूबसूरत होने वाली थी।  मुश्किल से आधा  घण्टा भी नहीं  चले होंगे , एक अत्यंत ही सुन्दर वॉटरफॉल दिखने लगा था।  मन एकदम प्रसन्न हो गया !  वाटर बॉडीज सच में प्रकृति का वो सुन्दर उपहार हैं जो प्रकृति की शोभा को बहुत बढ़ा देती हैं और सिर्फ सुंदरता नहीं बढ़ाती , वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ाती हैं।  इनकी वजह से ही पहाड़ और भी खूबसूरत लगते हैं।  मुझे तो विशेषकर इन वॉटर बॉडीज को देखने का बहुत आकर्षण है -वो चाहे लेक हो , चाहे वॉटरफॉल हो ! मैं ट्रैक भी यही देखकर डिसाइड करता हूँ कि रास्ते में कितने वॉटरफॉल या कितनी lakes देखने को मिलेंगी . आप चाहें तो मेरे ट्रेक्स का विवरण पढ़ सकते हैं विशेष रूप से कागभुशुण्डि ट्रैक , जो मैंने 2021 के सितम्बर महीने में किया था। 

Waterfall at Warbal

चलते-चलते हम वारबल पहुँच गए थे।  यहाँ एक लंगर लगा था जो बहुत बड़ा नहीं था लेकिन जितना था बहुत अच्छा था।  ऊपर थोड़ी दूर पर ॐ का एक बहुत सुन्दर चिन्ह लगा था जो बहुत आकर्षित कर रहा था।  यहाँ कुछ हल्का -फुल्का खाया और आगे बढ़ चले।  आगे अब महागुण टॉप तक चढ़ाई भी आएगी और साथ के साथ खूबसूरत दृश्य भी इस यात्रा को मनमोहक बनाते हुए दिखेंगे।  


Langar at Poshpatri

महागुण टॉप पहुँचते -पहुँचते मुझे साढ़े दस बज गए थे।  इतना बुरा भी नहीं चल रहा था मतलब मैं।  शेषनाग से महागुण टॉप की दूरी लगभग 5 किलोमीटर की है और लगातार ठीक चढ़ाई भी है।  आप देखेंगे  तो  आपको पता चलेगा कि शेषनाग , जहाँ हम पिछली रात रुके थे वो करीब 11700 फुट की ऊंचाई पर है जबकि महागुण टॉप लगभग 14500 फुट की हाइट पर है यानी पांच किलोमीटर की दूरी में आप लगभग 3000 फुट की हाइट तय करते हैं मतलब की लगभग 930 मीटर की हाइट।  इतना चढ़ाई गेन करना न तो आसान होता है न इतनी चढ़ाई रेकमेंड किया जाता है।  मगर क्यूंकि सब साथ में चलते रहते हैं इसलिए न तो महसूस होता है न पता चलता है।  

@ Mahagun Top

@ Mahagun Top

@ Mahagun Top

यहाँ से पहले आपको बहुत सारे लंगर देखने को मिलेंगे।  एक से एक बेहतरीन और लगभग सबकुछ देखने और खाने को उपलब्ध है।  मैंने कुछ टॉफियां लीं और एक bowl खीर खाई।  गणेश टॉप नाम है इस जगह का।  

Beautiful Langar@ Ganesh Top

महागुण टॉप वो जगह है जहाँ आपको literally बर्फ देखने को , छूने को और खेलने को मिलेगी।  लोग पागल हुए जाते हैं बर्फ देखकर ! होना भी चाहिए , यात्रा में आनंदित होना भी एक कला है , एक भाव है।  आप यात्रा में जितना आनंद लेंगे आपको थकान उतनी ही कम लगेगी।  


महागुण टॉप पर मैं बहुत देर तक पड़ा रहा ! सामने की पहाड़ियों पर बर्फ थी और वो बर्फ अजीब किस्म के पैटर्न बनाते हुए नजर आ रही थी।  ये पैटर्न अत्यंत ही खूबसूरत , अत्यंत ही आकर्षक और विशिष्ट लग रहे थे।  यहाँ आंध्र प्रदेश के कुछ यात्रियों से बातचीत होती रही ! पता लगा कि उनमे से ज्यादातर लोग आठवीं -नौवीं या दसवीं बार अमरनाथ यात्रा पर आये हुए हैं और मैं ! मैं पहली बार इस यात्रा पर आया हूँ ! 
                               

थोड़ा आगे चले होंगे तो एक जगह सीढ़ियों से उतर के नीचे जाना था।  जिसे आगे जाना है वो चले गए मगर मैं रुक गया।  लगभग दोपहर के 12 बजे होंगे ! सीढ़ियों के दोनों तरफ बहुत खूबसूरत फूलों से सजे गमले रखे गए थे।  


यहाँ दो रोटी खाई और एक गिलास लस्सी पी ली।  लस्सी का गिलास उठाकर मैं बाहर की तरफ आ गया था और एक जगह बैग का सपोर्ट लेकर बैठ गया।  बैठे -बैठे कब फ़ैल गया कुछ पता ही नहीं लगा।  पता लगा तब तीन बज रहे थे ! मतलब कि मैं दो तीन घंटे की नींद खींच चुका था।  यार ! लेट हो जाऊंगा अब तो ! 


एक कप चाय पी और कदम तेज़ कर दिए।  पोषपत्री नाम की जगह पहुंच गया ,थोड़ा जल्दी पहुंचा था इस बार ! नहीं तो ये दूरी आराम से तय करता मैं।  यहाँ I LOVE MAHADEV का बड़े बड़े अच्छरों में लिखा देखा तो निश्चित ही एक फोटो तो बनता था यहाँ भी।  आगे बढ़ रहा था मैं और सोने के दौरान जो समय खर्च कर दिया था उसकी भरपाई लगभग कर ली थी।   एकदम खुला मैदान और कोई चढ़ाई नहीं थी इसलिए खूब तेज कदमों से ये दूरी नाप डाली। 


पल -पल पर हेलीकाप्टर और उनकी आवाजें गूँज रही थीं ! समय की या समय पर पहुँचने की दिक्कत अब नहीं लग रही थी मुझे।  ये रास्ता बहुत कठिन नहीं मगर संभलकर चलना ही होता है। 


पंचतरणी का मैदान सामने था।  एकदम हरा भरा मैदान इतना बड़ा कि एकाध क्रिकेट स्टेडियम और फुटबॉल स्टेडियम यहाँ आराम से बनाया जा सकता है।  मगर अभी हाल -फिलहाल यहाँ घोड़े -खच्चर घास चर रहे थे और घास चरते हुए घोड़े -खच्चर भी इस मैदान की खूबसूरती को सच में बढ़ा रहे थे।  यहाँ बैग पटक दिया।  बैग इस कॉन्फिडेंस में पटक दिया था क्यूंकि सामने ही कुछ दूरी पर पंचतरणी की टेंट सिटी दिखाई दे रही थी और वही हमारी आज की मंजिल थी।  

@ Panchatarani

यानि कि आज की मंजिल सामने ही थी इसलिए कोई जल्दी नहीं थी।  पहले पंचतरणी के इस मैदान में बैठकर प्रकृति का रसास्वादन किया जाए , आते -जाते हेलीकॉप्टरों को देखा जाए , प्रकृति की मनमोहक छवि को निहारा जाए।  


आज इस यात्रा को।,पैदल यात्रा को शुरू हुए दूसरा दिन था मेरा।  दूसरा दिन समाप्त होने को आ रहा था और अभी तक बहुत आनंद दायक यात्रा रही थी ये।  शाम के धुंधलके में पंचतरणी के मैदान से निकलकर मित्रवर अश्वनी कुमार शुक्ला जी के लखनऊ वालों का लंगर ढूंढना था।  उनसे पहले ही बात हो गई थी।  ढूंढते -ढाँढते लखनऊ वालों के लंगर पर आखिरकार जा पहुंचा।  


राहुल और संतोष जो एकबार शेषनाग से बिछड़े वो अभी तक मिले ही नहीं दोबारा।  यहाँ भी नहीं मिले !  कुछ थोड़ा बहुत खाया और अश्वनी जी से बात चीत करने के बाद अन्ततः सो गया।  ऐसे यहाँ 500 रूपये में सोने की जगह मिल जाती है किसी भी टेंट के अंदर मगर हमें बस कम्बल का 100 रुपया या शायद 80 रुपया ही देना पड़ा।  


सोने के लिए सभी को जगह उपलब्ध हो जाती है।  बाहर ही लोग मिल जाते हैं जो आपको अपने -अपने टेंट में जगह देने को 'इन्वाइट " करते हुए दीखते हैं।  आखिर उन्हें भी तो बिज़नेस करना है।  


इस तरह आज का दूसरा दिन समाप्त हुआ और समाप्त होती है दुसरे दिन की मेरी कथा -कहानी ! कल भगवान् भोलेनाथ की पवित्र गुफा में उनके दर्शन करेंगे और फिर उसका विवरण आपको सुनाएंगे ! तब तक के लिए जय भोलेनाथ !! 





मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

Amarnath Yatra 2022 : Day 2 From Pahalgam to Sheshnag

अमरनाथ यात्रा  2022 


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खन्ना जी रात में ही चंदनवाड़ी जाने के लिए गाडी बुक कर चुके थे।  सुबह -सुबह छह बजे ही निकलना था या शायद उससे भी थोड़ा पहले इसलिए 4 बजे ही जगने का सिलसिला शुरू हो गया और पहलगाम की ठण्ड में नहाना भी था, मगर अच्छी बात रही कि हमें होटल वालों ने गर्म पानी उपलब्ध करा दिया।  



अँधेरा था जब हम ममलेश्वर अर्थात मामल मंदिर के पास स्थित अपने गेस्ट हाउस से निकले थे, गाडी एकदम बाहर तक ही आ गई थी।  ड्राइवर ने गाडी पेट्रोल पंप पर लगा दी और वहां सिर्फ एक नहीं गाड़ियों की लम्बी लाइन लगी थी।  ऐसा नहीं था कि गाडी में तेल नहीं था बल्कि वो पहले ही राउंड में गाडी की टंकी फुल करा लेना चाहता था जिससे ज्यादा से ज्यादा राउंड लगा पाए और ज्यादा लोगों को पहलगाम से चंदनवाड़ी तक छोड़ सके और कुछ और..... ज्यादा कमाई कर सके.! हमें पहलगाम से चंदनवाड़ी तक की 16 किलोमीटर की यात्रा कार से तय करनी थी।  




लगभग सात बजे अच्छी -खासी सुरक्षा जांच के बाद हम उस पॉइंट पर थे जहाँ से वास्तव में हमें पैदल यात्रा शुरू करनी थी।  पहले पेट पूजा कर लेना जरूरी था और यहाँ इतने तरह के खाने -पीने के आइटम्स थे कि गिनती कर पाना, लिख पाना बहुत मुश्किल होगा ! मैंने बस एक कप चाय और दो टोस्ट खाकर अपनी यात्रा को भगवान् भोलेनाथ का नाम लेकर शुरू कर दिया।  



कुछ देर तक तो मुझे खन्ना साब और यूथिका चौधरी दीखते रहे मगर लगभग एक घण्टे के अंदर मैं उनसे पीछे छूट गया।  अभी रास्ता ठीक ही था मगर 2 या ढाई किलोमीटर ही चले होंगे कि लगातार ऊँची चढ़ाई सामने दिख रख रही थी।  चढ़ाई से उतनी परेशानी नहीं होती मुझे मगर लोग इधर-उधर से उस ऊंचाई को तय करने के चक्कर में जैसे दौड़े जा रहे थे जैसे उस पार कुछ तमाशा हो रहा है और उस पर घोड़े -खच्चर वाले ! घोड़े -खच्चर वाले अच्छा काम कर रहे हैं उधर मगर उनमें अनुशासन की बहुत कमी दिखी मुझे।  



मैं अपनी चाल से चलता चला और एक ऐसी जगह पहुंचा जहाँ बहुत सारे लोग आराम फरमा रहे थे। मैं भी उधर बैठ गया , एक ऊंची सी जगह जिसे हम टीला कह सकते हैं जैसे दिल्ली में है -मजनू का टीला मगर ये मजनू का या लैला का टीला नहीं था ये पिस्सू टॉप था जो 11500 फुट की ऊंचाई पर है जबकि चंदनवाड़ी 9500 फुट की ऊंचाई पर है।  इसका मतलब  हम चंदनवाड़ी से चलकर अब तक 2000 फुट की ऊंचाई तय कर चुके थे।  






पिस्सू टॉप आप आसानी से पहचान लेंगे, यहाँ टीले पर भारत की शान तिरंगा लहराता हुआ दिखेगा आपको।  मगर एक और बात बताऊँ आपको -यहां से नीचे की तरफ बहुत शानदार व्यू देखने को मिलता है आपको।  तो जब भी आप अमरनाथ यात्रा पर जाएँ यहाँ कुछ देर बैठ के इन नजारों का दीदार जरूर करियेगा।  अमरनाथ जैसी यात्राओं के लिए समय लेकर चलिए क्यूंकि रास्ते बहुत ही सुन्दर हैं और उनको देखना , उनका आनंद लेना आपकी ऊर्जा को बढ़ाता रहेगा ! 



मैं फिर से बैग उठके चल पड़ा।  रास्ता एकदम सपाट एकदम बढ़िया था और इसका फायदा उठाया मैंने तेज -तेज चल के।  थोड़ा आगे ही कई भण्डारे लगे थे तो कुछ खाया पिया ! लगभग आधा घण्टे का आराम भी मिल गया और खाना भी हो गया तो निकल पड़े अगली मंजिल , अगले पड़ाव की ओर ! अगला पड़ाव ज़ोजिबल था जो मुश्किल से दो या तीन किलोमीटर ही होगा।  



रास्ते में आपको इधर और उधर दोनों तरफ से घोड़े खच्चर आते जाते मिलेंगे और मिलेंगी खूबसूरत जलधाराएं जो सामने के पहाड़ों पर चांदी जैसी चमक रही होती हैं।  इन जलधाराओं को देखते हुए चलते जाइये -चलते जाइये।  कुछ देर में ही आपके रास्ते के बराबर में ही आपको बहुत सुन्दर और बड़ा वॉटरफॉल देखने को मिलेगा।  आपकी आत्मा को तृप्त कर देगा ये दृश्य।  पता नहीं क्या समस्या हुई चलते चलते कि मुझे लगा मेरा पेट गड़बड़ कर रहा है।  मैं रास्ते में एक क्लिनिक में जा पहुंचा जहाँ डॉक्टर ने कोई मेडिसिन दी और बोले -पांच मिनट आप लेट के आराम कर लो ! आराम हो जायेगा !  अब ठीक फील करने लगा था तो रास्ता तय करना शुरू कर दिया।  


लगभग 11 बजे होंगे जब मैं जोजीबल पहुंचा था।  अब मैं अकेला था हालाँकि यात्रा के शुरू में हम चार लोग थे।  जोजिबल के पास में कोई छोटी नदी बहती है जहाँ बहुत सारे लोग स्नान कर रहे थे , मैं नहाय तो नहीं मगर कुछ देर के लिए घास पर बैठ गया।  बैठा क्या -नींद भी ले ली !  पहाड़ों की धुप बड़ी अच्छी लगती है और जब आपका शरीर थका हुआ होता है तो नींद भी जल्दी आ जाती है। खैर घण्टे भर की नींद खेंचने के बाद यहाँ से उठ चले अगली मंजिल जो नागकोटि बोली जाती है।  ज़ोजिबल में भी खूब सारे भंडारे लगे हुए थे।  

यहाँ थोड़ा बहुत कुछ खाया और आगे बढ़ चला।  एक जगह तेज आवाज में भोलेबाबा के भजन बज रहे थे और जब नजदीक पहुंचा तो सिर्फ गाने ही नहीं बज रहे थे वहां शिव और पारवती का रूप धारण करे हुए नर्तक अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे , उनके साथ ही कई लड़कियां -लड़के भी नृत्य में साथ निभा रहे थे और ये लड़के -लड़कियां मेरी तरह ही यात्री थे।  अद्भुत दृश्य देखा मैंने यहाँ ! एक लगभग 50 -52 वर्षीय यात्री आया जिसके हाथ में भगवा ध्वज भी लहरा रहा था , वो आया और शिव -पारवती का रूप धारण किये हुए कलाकारों के चरण स्पर्श करने लगा।  कितना सरल हृदय होगा ये व्यक्ति , उसने इन कलाकारों में भी भगवान आशुतोष को देख लिया। यही हमारी आस्था है , यही हमारी परम्परा है ! हमारे लिए हर जीवित अंश में भगवान का निवास है ! 



नागकोटि मैं ज्यादा देर नहीं रुका और शेषनाग के रास्ते पर आगे चल पड़ा।  शेषनाग अभी थोड़ी दूर था मगर उससे पहले एक बहुत सुन्दर वॉटरफॉल हमारे ही रास्ते में दिख रहा था।  आनंद आ गया इसे देखकर।  साइड में वॉटरफॉल है जो एक पुल के नीचे से गुजरता हुआ अंततः नदी में जाकर मिल जाता है मगर नदी में मिलने से पहले अपना रौद्र रूप दिखा चुका होता है।  यहाँ से शेषनाग झील के हल्के से दर्शन होने लगे थे।  झील का हरे रंग का पानी निकलता हुआ दिखने लगा था।  


शेषनाग लेक से जुड़े रोचक तथ्य : 
शेषनाग झील करीब 250 फ़ीट से भी ज्यादा गहरी है. इस झील के विषय में मान्यता है कि शेषनाग जी स्वयं यहाँ निवास करते हैं 
स्थानीय लोग ऐसा मानते हैं की 24 घंटे में एकबार शेषनाग जी झील की सतह पर आते हैं और उनकी आकृति दिखाई पड़ती है 


पौराणिक कथाओं की मानें तो इस झील के साथ एक पौराणिक गाथा जुडी हुई है।  इस झील का इतिहास भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा है।  दरअसल भगवान शिव पारवती जी को अमरकथा सुनाने के लिए अमरनाथ जा रहे थे और उन्हें ऐसी जगह चाहिए थी जहाँ उनकी कथा को और कोई न सुन पाए।  क्योंकि जो उस अमरकथा को सुन लेता , वो अमर हो जाता।  इसी के चलते भगवान शिव ने अपने गानों में से अनंत नागों को अनंतनाग में , नंदी जी को पहलगाम में और चन्द्रमा को चंदनवाड़ी में छोड़ दिया और सिर्फ शेषनाग जी को लेकर यहाँ पहुंचे।  शेषनाग जी को यहीं छोड़कर भगवान शिव ने उन्हें निर्देश दिया कि यहाँ से आगे कोई भी नहीं जाना चाहिए।  




शेषनाग पहुँचते-पहुँचते करीब तीन बज गए थे. बैग उतार के उसी के सहारे बैठा हुआ था तभी दो लड़के मेरे सामने से निकले।  जाहिर है वो भी अमरनाथ यात्रा पर आए यात्री थे।  मैंने उनसे अपनी दो -तीन तसवीरें निकलवाईं तो फिर बाद में बातचीत भी शुरू हुई।  और ऐसी शुरू हुई कि हम अगले कुछ दिनों तक न सिर्फ अमरनाथ यात्रा में साथ रहे बल्कि श्रीनगर और आसपास भी साथ घूमते रहे।  



मैं जहाँ जाता हूँ उस पवित्र कुण्ड में स्नान भी करता हूँ और वहां का जल भी अपने साथ लेकर आता हूँ चाहे वो सतोपंथ झील हो , नंदीकुंड हो या आदि कैलाश यात्रा में पार्वती सरोवर या कागभुशुण्डि ताल हो ! सब जगह से जल लेकर आया हूँ तो ष्षनाग झील का पवित्र जल भी लेकर आना ही था मगर लेक बहुत गहरी भी है और खतरनाक भी है और वहां सुरक्षा व्यवस्था भी बहुत है इसलिए मैं खुद नहीं उतरा जल लेने । आसपास एक 30 -35 वर्षीय कश्मीरी व्यक्ति दिखाई दिया , उसे 100 रूपये दिए और वो नीची जाकर मेरे लिए शेषनाग झील का पवित्र जल भर लाया।  


अब यहाँ से आगे मैं अकेला नहीं था , मेरे साथ दो सहयात्री और जुड़ गए थे जो शेषनाग लेक के किनारे मिल गए थे।  ये दोनों वकालत के छात्र थे और देहरादून से थे -ये थे राहुल और सुशील ! जिनके साथ मेरी आगे की यात्रा तय हो रही थी।  


शाम का धुंधलका बस उतरने को ही था जब मैं शेषनाग के सुरक्षा गेट पर पहुंचा।  अपना RFID कार्ड यहाँ स्कैन किया और आग बढ़ गए।  बहुत ठण्ड लगने लगी थी जबकि शेषनाग का ये रेस्टिंग एरिया 11750 फ़ीट पर ही है मगर ठण्ड बहुत ही ज्यादा थी।  हमें 400 रूपये प्रति व्यक्ति रुकने का प्रबंध मिल गया और रात करीब 9 बजे भण्डारे में प्रसाद ग्रहण कर के आज का दिन समाप्त हो गया।  



कल फिर मिलेंगे आपको , इसी रास्ते पर इसी यात्रा पर.......