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रविवार, 9 अक्तूबर 2022

Kakbhushundi Trek Uttarakhand Blog : Day 7 From Farswan Top to Painka village

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रात जरुर बहुत मुश्किल थी लेकिन सुबह उतनी ही ठण्डी और सुहावनी थी मगर चाय के लिए न दूध बचा था न नीबू था  इसलिए चाय बस ... चाय पत्ती और चीनी मिला हुआ गरम पानी ही था।  हाँ ! मैग्गी जरूर मिल गई और गर्मागर्म मैग्गी खाकर शरीर में जान भी आ गई और .....गर्मी भी।  


इस भयंकर ट्रैक का ये आखिरी दिन था हमारा।  भयंकर दोनों तरह से -खूबसूरत भी भयंकर और रिस्क भी भयंकर ! फर्स्वाण टॉप पर थे हम 4166 मीटर की ऊंचाई पर टंगे थे और यहाँ से जोशीमठ के साथ -साथ औली और उर्गम घाटी का जबरदस्त नजारा दिखाई दे रहा था।  जोशीमठ और औली एकदम किसी हरेभरे कटोरे जैसे दिखाई दे रहे थे फर्स्वाण टॉप से। खूब फोटोग्राफी की क्योंकि जो दृश्य इस वक्त दिखाई दे रहा था उसे जीवन भर देखने और उसे महसूस करने के लिए ये फोटो और वीडियो  ही एकमात्र माध्यम रहेंगे हमारे लिए। 



फर्स्वाण टॉप से उतरते हुए एकदम लगातार उतराई ही उतराई है और ऐसी उतराई है कि आपको हमेशा ऐसा महसूस होगा कि अब गिरे कि तब गिरे ! लगभग 500 मीटर चलने के बाद slope थोड़ा कम होता है लेकिन उतराई बनी रहती है और जब आप करीब एक किलोमीटर उतरने के बाद एक ऐसे पत्थर के नीचे पहुँचते हैं जहाँ वो पहाड़ से आगे निकला हुआ है , वहां तक आप 500-600 मीटर की ऊंचाई कम कर चुके होते हैं।  यानी इस एक किलोमीटर की दूरी में आप 4166 मीटर की ऊंचाई से 3500 -3600 मीटर की ऊंचाई तक पहुँच जाते हैं और थोड़ा सा और आगे चलते ही आपको Treeline देखने को मिलने लगती है।  यहाँ आपको पगडण्डी देखने को मिल जाती है क्यूंकि पैंका गाँव के लोग फर्स्वाण टॉप तक अपनी भेड़ बकरियों और गायों को चराने के लिए लाते रहते हैं। 



ये जो पगडण्डी है उस पर चलते हुए पहाड़ के दूसरी तरफ देखने पर आपको लगातार हिमालय के सुन्दर दृश्य दिखाई देते रहते हैं।  मौसम साफ़ हो तो आपको हिमालय की अद्भुत खूबसूरत और बर्फ से लकदक चोटियां एकदम साफ़ दिखाई देती हैं।  हलकी उतराई -चढ़ाई करते हुए आप एक ऐसी जगह पहुँचते हैं जहाँ बैठने के लिए भी खूब जगह है और जहाँ से पैंका गाँव पहली बार दिखाई देता है।  यहाँ से आप वीडियो कॉल भी कर सकते हैं।  हालाँकि मोबाइल सिग्नल आपको फर्स्वाण टॉप पर भी मिल जाएंगे लेकिन वहां नेटवर्क ढूंढना पड़ता है जबकि यहाँ एकदम बढ़िया नेटवर्क मिल जाता है और लगभग हर कंपनी के नेटवर्क मिल जाते हैं।  



इस जगह के बारे में गाइड ने एक डरावनी बात बताई थी ! सच है या नहीं , मैं नहीं जानता !  गाइड के शब्दों को ही ज्यों का त्यों लिख रहा हूँ यहाँ : एक गाँव (पैंका नहीं )  की लड़की को दूसरे गाँव के लड़के से प्यार हो गया था , ये करीब 20 वर्ष पुरानी बात है ! उस लड़की के परिवार वालों को ये बात नागवार गुजर रही थी और अंततः उस लड़की के घरवालों ने उस लड़के को पकड़ लिया और उसे यहाँ ले आए।  यहाँ उन लोगों ने उस लड़के की हत्या कर दी और कई महीनों के बाद पुलिस उस लड़के के खून से सने कपडे ढूंढ पाई  और आख़िरकार  उन लोगों को सजा मिली।  


आज हमें फर्स्वाण टॉप से पैंका गाँव तक की करीब 15 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी और सिर्फ तय ही नहीं करनी थी बल्कि समय से तय करनी थी जिससे हम आगे जोशीमठ तक जा सकें और अगली सुबह अपने अपने घर के लिए प्रस्थान कर सकें।  हम उसी खुली सी ऊँची जगह पर बहुत देर तक बैठे रहे जबकि कुछ मित्र आगे जा चुके थे।  यहाँ से पैंका गाँव दिखाई तो दे रहा था लेकिन अभी बहुत दूर था। लगातार नीचे उतरते रहे और अब रास्ता खो गया।  बहुत बड़ी बड़ी घास में से निकल रहे थे और इसका नुकसान ये हुआ कि घास में छुपे पत्थरों से टकरा -टकराकर मेरे सहित कई मित्र गिरे और पटियाला से आये सुशील भाई तो बहुत बुरी तरह गिरे।  वो एक छोटे पत्थर से टकराकर बड़े पत्थर पर जाकर गिरे जिससे उनके सीने में बहुत चोट लग गई।  डॉक्टर अजय त्यागी जी साथ थे मगर हमें डर सताता रहा की कहीं कोई पसली में चोट न लग गई हो ! फिर बहुत मुश्किल हो जाता ! तो .... ऐसे होते हैं ट्रैक और ऐसी होती है ट्रैकिंग ! 



बहुत देर तक सुशील भाई के सीने पर Iodex की मालिश करते रहे लेकिन दर्द तो था ही और वो दर्द उन्हें ही झेलना था , हम केवल उनकी मदद कर सकते थे उनका दर्द नहीं ले सकते थे।  काश! हम सब उनका दर्द भी थोड़ा -थोड़ा बाँट सकते तो उनका दर्द कुछ कम होता।  



हम पांच लोग साथ थे उस वक्त तक।  मैं , डॉक्टर अजय त्यागी जी , सुशील भाई , कुलवंत जी और त्रिपाठी जी।  डॉक्टर साब आगे चल रहे थे मगर घास के खत्म होते होते एकदम घना  जंगल  शुरू हो गया।  डॉक्टर साब एक जगह मुझे अकेले बैठे मिले तो मैंने हँसते हुए पूछ लिया -डॉक्टर साब डर लग रहा है क्या ?  अरे नहीं योगी जी ! थक सा गया हूँ ! उन्हें पता नहीं डर रहा था या नहीं लेकिन मुझे तो लग रहा था लेकिन अच्छी बात ये थी कि हम सभी के फ़ोन चल रहे थे और गाइड / पॉर्टर हमें लगातार रास्ता बताये जा रहे थे। कहीं -कहीं पगडण्डी भी दिख जाती थी।  




मैं  अकेला ही चला जा रहा था , डॉक्टर त्यागी आगे निकलकर आँखों से ओझल हो चुके थे पीछे वाले तीनों लोग ज्यादा ही दूर रह गए थे।  एक जगह कई सारे लंगूर दिखाई दे गए और वो सब के सब ऐसे रास्ता रोके बैठे थे कि -बेटा पहले यहाँ की चुंगी चुका के जा तब आगे जाने देंगे तुझे !  मैं 10 -15 मिनट तक हुर्र हुर्र कर के उन्हें भगाता रहा।  



एक जगह दूर कहीं जली हुई सी लकड़ी पड़ी थी लेकिन एकदम से जब उस पर मेरी नजर पड़ी तो मैं पसीना -पसीना हो गया ! मुझे लगा ये कोई भालू है जो इस वक्त सोया पड़ा है। मैं एक पेड़ के पीछे जाकर उसका movement देखने लगा लेकिन जब कुछ देर तक उसमें कोई मूवमेंट नहीं हुआ तो हिम्मत कर के पेड़ के पीछे से निकलकर आया और उसे गौर से देखा फिर अपनी ही मूर्खता पर हंसने लगा।  ये शायद मूर्खता से ज्यादा तेज नजर थी क्यूंकि बहुत ही घना जंगल था / है वो।  



सैकड़ों तरह के वृक्ष और खाली जगहों में खिलखिलाते फूल जैसे मेरे साथ इस ट्रैक के पूरा होने का जश्न मना रहे थे। मैं फूल नहीं पहचानता , शायद कोई वनस्पति विज्ञानं का जानकार ही इतने फूलों को पहचान सकेगा लेकिन एक कुकुरमुत्ता (Mushroom ) बड़ा सुन्दर लगा।  उसकी फोटो लगाऊंगा।  




एक जगह थोड़ा फंस गया मैं।  आगे एक जगह वॉटरफॉल जैसा दिख रहा था लेकिन ये Natural waterfall नहीं था बल्कि पत्थरों को जोड़ जोड़कर पानी को रोका गया था जिससे ये जगह वॉटरफॉल जैसी बन गई थी लेकिन इसे पार करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था।  आसपास दूसरा रास्ता देखने को नजर दौड़ाई तो रास्ता तो नहीं दिखा , दूर झाड़ियों में से झांकता एक छोटा मगर खूबसूरत वॉटरफॉल जरूर नजर आया।  आख़िरकार जूते उतारे और लोअर ऊपर चढ़ाया , लेके राम जी का नाम ... उस वॉटरफॉल को भी पार कर आया  ! 




गाइड और पॉर्टर फ़ोन पर बार -बार ये पूछते रहे -सर ग्रीन हट तक पहुँच गए क्या ? ग्रीन हट तक पहुँच गए क्या ? ये ग्रीन हट असल में वन विभाग की बनाई हुई है जहाँ शायद आपकी परमिशन चेक होती होगी !  ये बिलकुल जंगल के बीच में है और यहाँ मुझे कुछ जली हुई लकड़ियां , पानी का एक घड़ा और थोड़े मिटटी के बर्तन दिखाई दिए।  शायद रात में रुकने का कुछ इंतेज़ाम भी रहता हो लेकिन इसमें जो दरवाजा लगा था उसमे टाला बंद था तो अंदर नहीं देख पाया।  अगर कैसे भी हमें यहाँ कोई परमिशन चेक करने वाला मिल जाता तो हम तो पकड़े जाते :) हमारे पास परमिशन थी ही नहीं और परमिशन न ले पाने का जिक्र मैं इस ट्रेक की पहली ही पोस्ट में कर चूका हूँ जब हम गोविंदघाट से निकले थे ! खैर अगर कोई मिलता भी तो देखा जाता ! 



शाम के लगभग चार बजने को थे जब पहली बार पैंका गाँव के बाहर स्थित गाँव के मंदिर के ऊपर लगा झंडा दिखा देने  लगा था।  मंदिर के पीछे की एक पहाड़ी पर बहुत ऊंचाई से गिरता झरना शानदार समापन कर रहा था हमारी इस जबरदस्त यात्रा का।  मंदिर के आगे शीश झुका कर भगवान को सुरक्षित इस ट्रैक से वापस लाने के लिए उनका धन्यवाद किया।  मंदिर बंद था लेकिन उसके आगे बैठकर अपने आप को खोजता रहा कुछ देर तक ! क्या मैं इस लायक था ? क्या एक भयंकर रूप से अस्थमा से पीड़ित रहा यहाँ इस ट्रैक पर आने लायक था ? लेकिन जिस के सर पर भगवान शिव का हाथ होता है वो सब कर लेता है !  


जैसे ही पैंका गाँव में प्रवेश किया , हरजिंदर भाई और हनुमान गौतम जी चटाई पर थकान उतारते हुए दिखे एक घर के बाहर। वो दोनों बहुत पहले ही यहाँ आ चुके थे और स्नान करने के बाद लस्सी भी खेंच चुके थे , शायद खाना भी खा चुके थे :) मुझे और डॉक्टर साब को भी चाय मिल गई :) वैसे भी आज सुबह चाय नहीं मिल पाई थी ! बहुत देर तक उनके यहाँ बैठे रहे ! सुन्दर और संपन्न गाँव है पैंका।  पॉर्टर ने सरकारी स्कूल में खाना बना रखा था और ये आज का , इस ट्रैक का हमारा अंतिम भोजन था।  


गाँव से उतर के नीचे विष्णुप्रयाग तक पहुंचे जहाँ से कुछ लोगों को वापस गोविंदघाट जाना था और मुझे गाइड / पोर्टरों के साथ जोशीमठ पहुंचना था।  रात करीब 8 -8 :30 बजे मैं , हनुमान जी , त्रिपाठी जी और सभी पोर्टरों के साथ भरी बारिश में जोशीमठ एक होटल में पहुंचा और सुबह 5 बजे की पहली बस लेकर हरिद्वार और फिर गाजियाबाद !! 



जय हो कागभसुण्डी महाराज की !! 

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

Kakbhushundi Trek Uttarakhand Blog : Day 6 From Brahma ghat to Farswan Top

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 कल का दिन एक खराब दिन के बाद अच्छा गुजरा था और हम कागभुशुण्डि लेक तक पहुँचने के बाद ब्रह्मघाट रुक गए थे।  ब्रह्मघाट में पानी की एक चौड़ी सी स्ट्रीम बह रही थी जो कल हमारे लिए water source थी लेकिन आज उसे पार कर के आगे बढ़ना था।  रास्ता हमारे बाएं तरफ की चोटियों से होकर था तो लाजिमी था कि हमें ऊपर और ऊपर चढ़ते जाना था।  आज का ट्रैक शुरू करते ही लगभग 15 मिनट में ही चढ़ाई शुरू कर देनी पड़ी और बड़ी -बड़ी घास और झाड़ियां न हमें कोई रास्ता देखने दे रही थीं न बनाने दे रही थीं।   

                         

                       

हालाँकि करीब एक-डेढ़ घण्टा निकल जाने के बाद छोटी सी पगडण्डी नजर आने लगी थी।  ये वो पगडंडी रही होगी जो पैंका गाँव के लोग कभी कभार आते जाते रहे होंगी अपने तीज त्योहारों पर , उससे बनी होगी लेकिन आज हमारे लिए जीवन रेखा जैसा काम कर रही थी।  पंकज मेहता जी को जल्दी ही निकलना था और आगे उन्हें आसाम भी जाना था इसलिए उन्होंने आज जल्दी ही ट्रेक शुरू कर दिया था और फिर उसके बाद वो हमें कहीं नजर नहीं आए ! नजर आए तो सिर्फ उनके मैसेज -योगी भाई हम लोग एक ही दिन में बाकी का ट्रैक पूरा कर के नीचे गोपेश्वर की बस पकड़ लिए थे।  गजब जीवट है उनका , पहाड़ी हैं , वायु सेना में हैं तो फिटनेस लेवल हमसे ज्यादा होना ही होना है।  हम ठहरे मास्टर आदमी जिसकी तौंद निकल रही हो :) लेकिन तारीफ कर दीजिये मेरी भी कि तौंद निकलने और अस्थमा का मरीज होते हुए भी मैं ट्रैकिंग कर पाता हूँ।   

                         

                         

पंकज भाई के साथ उनके तीनों मित्रों ने भी उनके साथ निकलना बेहतर समझा और अब हम रह गए कुल सात ट्रेक्कर और छह पोर्टर। सुबह करीब 8 बजे हम ब्रह्मघाट से निकले थे और ब्रह्मताल पहुँचते -पहुँचते 11 बज गए।  ब्रह्मताल ऊपर से छोटा सा दिखाई दे रहा था क्यूंकि ऊपर आसमान में बादल लटके पड़े थे और जैसे ही बादल छंटे हमें ब्रह्मताल का वृहद रूप दिखाई देने लगा।  ये हमारा सौभाग्य रहा कि जहाँ बाकी लोग इस ट्रैक में सिर्फ कागभुशुण्डि ताल ही देख पाते हैं हमें तीन-तीन ताल देखने को मिल गए ! 1. मच्छी ताल 2 .कागभुशुण्डि ताल और 3. ब्रह्मताल ! हालांकि हम चौथा ताल "हाथी ताल " भी देखना चाहते थे लेकिन हमारा एक दिन बेकार चला गया था और उस तरफ बादल भी बहुत लगे हुए थे इसलिए ज्यादा रिस्क लेना ठीक नहीं लगा और जो मिला , जितना मिला उतने में संतोष कर लिया।  हिमालय में भटकना -खो जाना और फिर कभी न मिलना .. इससे बेहतर है कि एक ताल को skip ही कर दिया जाए !  

                               

                                

                               

                               

                                              

ब्रह्मताल के ऊपर से बड़े बड़े पत्थरों के बीच से निकल रहे थे हम।  पत्थरों में रास्ता नाम की कोई चीज नहीं हुआ करती , हाँ कुछ निशान जरूर कुछ भले लोग बना देते हैं लेकिन यहाँ हमारे गाइड देवेंद्र पंवार जी आगे-आगे बढ़ते चले जा रहे थे और हम उन्हें बस फॉलो कर रहे थे।  हरजिंदर भाई , हनुमान जी न जाने कब उड़कर आगे पहुँच चुके थे।  लेकिन हम चार-पांच फिसड्डी लोग आज भी हर रोज़ की तरह पीछे ही घिसट रहे थे जिनमे मैं भी शामिल था। कुलवंत भाई आगे -आगे चलते जा रहे थे मगर अब बादल आने लगे थे जो जल्दी ही बारिश  में बदल गए।  

                       

                       
  
                       

                        

                       

सामने पत्थरों वाले पहाड़ की एक लम्बी-ऊँची दीवार सी दिखाई देने लगी थी।  उसी दीवार में एक खिड़की जैसा पहाड़ कटा हुआ था जहाँ तक एक अच्छी खासी चढ़ाई तय कर के पहुंचना था।  ये अच्छी बात थी कि उस "खिड़की " तक पहुँचने की जो ऊंचाई थी उसमे slope था मगर बारिश की वजह से ये स्लोप बहुत कठिन और फिसलन भरा हो गया था।  मैं आगे-आगे कभी त्रिपाठी जी का हाथ पकड़ के ऊपर की तरफ चढ़ने में सहारा देता तो कभी अपना रेन कोट (पोंचो ) संभाल रहा होता।  अंततः हम दोनों बारिश में ही उस "खिड़की" तक पहुँच गए जहाँ हमारे गाइड पंवार जी खड़े थे सभी को इस खिड़की से पार पहुंचाने के लिए।   

 
                             

ये जो "खिड़की" थी बड़ी जानलेवा थी ! ये खिड़की ही बरमाई पास (Barmai Pass ) है जो कागभुशुण्डि वाली घाटी को फर्स्वाण वाली घाटी से जोड़ता है और इसीलिए ये पास कहा जाता है ! अभी हम लगभग 4700 मीटर की ऊंचाई पर थे लेकिन यहाँ ऊंचाई से ज्यादा उतराई खतरनाक थी।  बरमाई पास से जब नीचे की तरफ झाँक के देखा तो नीचे मौत की खाई नजर आ रही थी।  लगभग 30 -35 डिग्री का स्लोप था उतरने में और ऊपर से लगातार बारिश।  रास्ता नाम की चीज नहीं थी।  लेकिन कभी ऊपर से पानी आता रहा होगा जिससे ऊपर से नीचे की तरफ एक नाला जैसा बन गया था , हालाँकि उसमे छोटे-बड़े पत्थरों की भरमार थी मगर हमारे पास न कोई दूसरा चारा था न कोई दूसरा रास्ता ! 

                         

                          

मुझे बरमाई पास से नीचे कदम रखने में भयंकर डर लग रहा था।  महसूस हो रहा था कि अगर कैसे भी फिसल गया और पाँव न टिका पाया तो नीचे 300 मीटर तक गिरता चला जाऊँगा और तब तक मेरे शरीर की 206 की 206 हड्डियों का पाउडर बन चुका होगा।  लेकिन भगवान शिव का आशीर्वाद काम आया और हम सुरक्षित नीचे उतरने लगे।  बस एक जगह सिर्फ एक ही पाँव रखने की जगह थी करीब 5 -7 मीटर तक , उसे भी हम जैसे तैसे पार करते हुए नीचे पहुँच गए जहाँ एक बड़ा सा मैदान हमारा स्वागत करने को तैयार था और बारिश के बीच ही तैयार थे हमारे पॉर्टर जिन्होंने बारिश में भी छतरियां तानकर सबको एक-एक कप गर्मागर्म चाय पिला दी।  

                         
 मुश्किल सफर लगभग खत्म हो चुका था। बरमाई पास वाला हिस्सा इसलिए भी और कठिन हो गया था हमारे लिए क्यूंकि हमसे पहले किसी भी भाई ने इस जगह का कुछ भी विवरण सोशल मीडिया में नहीं लिखा जिससे कुछ अंदाज़ा लगाया जा सकता।  खैर कभी-कभी एकदम अनजान और अनदेखी चीजें और भी ज्यादा रोमांच देती हैं और बरमाई पास ने हमारे साथ यही किया।   

                       
रास्ता आगे भी आसान नहीं था।  हम अब भी लगभग 4600 मीटर  की ऊंचाई पर चल रहे थे लेकिन हाल फिलहाल जिंदगी का रिस्क उठाने जैसा रास्ता नहीं था।  उस मैदान में एक चबूतरा बना है सीमेंट का और उस पर सीमेंट और ईंटों से ही शिवलिंग बनाया हुआ है।  इसका मतलब  पैंका गाँव के लोग यहाँ तक आते रहते होंगे।   

                         

थोड़ी सी चढ़ाई करीब 10 -12 मीटर की सामने दिख रही थी जिसे चढ़ते ही एक और मैदान मिल गया।  ऐसा लग रहा था जैसे कोई मिटटी का पहाड़ एकदम समतल कर दिया गया हो और जब वहां से उतरे तो ब्रह्मकमल का बेहतरीन जंगल नजर आने लगा जो शायद हमारे इस ट्रेक का आखिरी ऐसा पॉइंट था जहाँ हमें ब्रह्मकमल देखने का अवसर मिला।  आखिरी बार इस ट्रेक पर ब्रह्मकमल देख रहे थे तो जीभर के देख लेने में क्या बुराई थी :) 

                       

                       

                       

                       

                     
 
                     
करीब तीन चार घण्टे शांत रहने के बाद इन्द्र देवता को फिर खुजली होने लगी और बारिश आ गई।  अभी हम लगभग समतल जमीन पर ही चल रहे थे तो दिक्क्त नहीं थी। बारिश और बादलों ने ऐसा मायाजाल फैलाया कि मैं एक जगह कई सारे पत्थरों को मंदिर की तरह लगे हुए देखकर खुश हो गया कि मैं आज की अपनी मंजिल फर्स्वाण टॉप पहुँच गया :) जब गाइड साब आए और बोले अभी फर्स्वाण टॉप तीन किलोमीटर और आगे है तो हवा निकल गई :)     

                           

                           

हम इस खूबसूरत और कठिन ट्रैक  के आखिरी पड़ाव में थे , लगातार बारिश हो रही थी मगर हम रुक नहीं सकते थे क्यूंकि पहले ही एक दिन देरी से आगे बढ़ रहे थे।  दूसरी बात कि हम सभी के पास बेहतरीन रेनकोट थे तो बारिश से शरीर को या हमें बहुत परेशानी नहीं थी लेकिन रास्तों की हालत बहुत खराब हो चुकी थी।  एक जगह हमें पहाड़ी के नीचे से होते हुए जाना था करीब 40 मीटर का फासला तय कर के लेकिन वहां बहुत गहरा गड्ढा बन चूका था जिसे किसी भी हालत में पार कर पाना संभव नहीं दिख रहा था।  अब क्या कर सकते हैं ? थोड़ी दूरी पर वापस लौटे और गाइड ने तीन पोर्टरों को आगे भेजा।  हम सभी के बैग हमारे कंधों से उतरवाए गए और पोर्टरों ने एक एक कर के उन्हें दूसरी तरफ पहुँचाया।  अब असली खतरा था -हम सभी को उसी पहाड़ी पर बाहर की तरफ निकले हुए पत्थरों पर एक-एक पाँव रखकर आगे बढ़ना था।  पहाड़ी के पत्थर गीले हुए पड़े थे और हम सिर्फ एक पैर ही रख सकते थे , हाथ छूटा तो जिंदगी छूटी ! हालाँकि बाकी पॉर्टर नीचे खड़े थे उस गड्ढे को छोड़कर ! भगवान भोलेनाथ की कृपा रही कि वो अंतिम कठिन समय भी सभी ने बेहतरीन तरीके से निकाल दिया।  ट्रैकिंग में हर कदम एक नई जंग है !!  

                       

अब बढ़िया और एकदम स्पष्ट पगडण्डी दिखने लगी थी।  रास्ते में ही एक जगह , एक पत्थर पर लिखा दिखा : फर्स्वाण टॉप 2 किलोमीटर @ 4166 मीटर height ! मन को सुकून देने वाले शब्द थे ये और मन को ये एहसास भी कि एक कठिन और बेहद खूबसूरत ट्रेक को पूरा करने का आनंद ही अलग होता है।  

                       

 हम करीब पांच बजे फर्स्वाण पास पहुँच चुके थे जहाँ से जोशीमठ शहर और औली बुग्याल दिखने लगे थे।  जोशीमठ और औली उस ऊंचाई से बड़े सुन्दर गाँव से दिख रहे थे और गाड़ियां खीलों के जैसी नजर आ रही थीं।  कुछ ही देर में अँधेरा उतर आया और बारिश भी बंद हो गई और फिर जब जोशीमठ और औली शहर की रोशनियां जगमगाने लगीं तो एक सुन्दर नजारा आँखों के सामने आने लगा।  ऊपर एकदम साफ़ -नीला आसमान और नीचे जोशीमठ और औली जैसे सुन्दर शहर ! आँखों की रौशनी को और बढ़ा दे रहे थे ! मौसम में ठण्डक बहुत भयानक थी।  आज लगभग पूरे दिन बारिश होती रही जिससे हमारे स्लीपिंग बैग भी ठण्डे हो गए थे।   




आखिरी रात थी इस ट्रैक पर।  आज हमें इस ट्रैक पर छठवां दिन था ! जिंदगी के बेहतरीन लम्हों में शुमार रहने वाले थे ये दिन।  मैग्गी खा के कुछ ऊर्जा आई तो अपने -अपने टैंट से बाहर निकल के आसपास और जोशीमठ की लाइटों को निहारते रहे।  पूरे छह दिन बाद हमें मानव सभ्यता फिर से देखने मिली थी लेकिन अभी हम गिने चुने मानवों के आलावा और कोई बाहरी मानव देखने को नहीं मिला।  शायद कल जरूर देख पाएंगे कुछ और "मानवों " को !  


रात के लगभग 10 बजे होंगे ! मैं , डॉक्टर अजय त्यागी जी और सुशील भाई एक ही टैण्ट में थे , बादल गरजने लगे और बिजलियाँ ऐसी चमक रही थीं जैसे हमारे ही टैण्ट पर आके गिरेगी ! हवा इतनी तेज कि लग रहा था हमें टैंट सहित उड़ा ले जाएगी।  सभी की घिग्घी बंधी हुई थी , अंदर से सब डरे हुए थे।  मैंने मजाक में कहा -काश ! हवा हमें अल्लादीन की चटाई की तरह उड़ाते हुए ले जाए और नीचे पहुंचा दे :) 




डर मैं भी रहा था  वो एक -डेढ़ घण्टा भगवान् भोलेनाथ की कृपा  से बस निकल गया ! बारिश पूरी रात होती रही.... मगर हवा बंद हो गई थी , बिजली के कड़कने की आवाज भी नहीं आ रही थी और हम थके मगर मन से जीते हुए लोग नींद के आगोश में पहुँच ही गए।  अगली सुबह नहाई  हुई सी , मद्धम मद्धम खुशबु लिए हुए थी .. मगर अगले दिन की बात अगली पोस्ट में होगी ! 



तब तक  के लिए राम राम सभी मित्रों को  !!