काकभुशुण्डि !
नाम सुनते हैं तो एकदम से रामायण में पहुँच जाते हैं। संत तुलसीदास
जी ने रामचरितमानस
के उत्तरकाण्ड
में लिखा है कि काकभुशुण्डि परमज्ञानी रामभक्त हैं।
रावण
के पुत्र मेघनाथ
ने राम
जी से युद्ध करते हुये राम
को नागपाश से बाँध दिया था। देवर्षि नारद
के कहने पर गरूड़, जो कि सर्पभक्षी थे, ने नागपाश के समस्त नागों को प्रताड़ित कर राम को नागपाश के बंधन से छुड़ाया। राम के इस तरह नागपाश में बँध जाने पर राम के परमब्रह्म होने पर गरुड़ को सन्देह हो गया। गरुड़ का सन्देह दूर करने के लिये देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्मा
जी के पास भेजा। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि तुम्हारा सन्देह भगवान शंकर दूर कर सकते हैं। भगवान शंकर ने भी गरुड़ को उनका सन्देह मिटाने के लिये काकभुशुण्डि जी के पास भेज दिया। अन्त में काकभुशुण्डि जी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुना कर गरुड़ के सन्देह को दूर किया।
एक व्यक्ति ज्ञानप्राप्ति के लिये
लोमश ऋषि के पास गया। जब
लोमश ऋषि उसे ज्ञान देते थे तो वह उनसे अनेक प्रकार के तर्क-कुतर्क करता था। उसके इस व्यवहार से कुपित होकर
लोमश ऋषि ने उसे शाप दे दिया कि जा तू कौआ हो जा। वह तत्काल कौआ बनकर उड़ गया। शाप देने के पश्चात्
लोमश ऋषि को अपने इस शाप पर पश्चाताप हुआ और उन्होंने उस कौए को वापस बुला कर राममन्त्र दिया तथा इच्छा मृत्यु का वरदान भी दिया। कौए का शरीर पाने के बाद ही राममन्त्र मिलने के कारण उस शरीर से उन्हें प्रेम हो गया और वे कौए के रूप में ही रहने लगे तथा
काकभुशुण्डि के नाम से विख्यात हुए।
अब ऐसा माना जाता है कि काकभुशुण्डि जी और गरुड़ का वार्तालाप आज भी अनवरत जारी है और जिस ताल के किनारे ये दोनों वार्तालाप में मगन रहते हैं उसे काकभुशुण्डि ताल कहा जाता है जहाँ तक पहुंचना असंभव तो नहीं किन्तु बहुत मुश्किल जरूर है। उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित ये ताल जितना पवित्र है उतना ही सुन्दर भी। इसका हरे रंग का पानी और त्रिकोण जैसी इसकी शेप बहुत आकर्षित करती है। मैंने इससे पहले सतोपंथ लेक को इस रूप में देखा है। करीब 5000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित काकभुशुण्डि लेक , शिव को समर्पित मानी जाती है और ऐसा कहा जाता है कि जो कौआ यहाँ आकर इस ताल में मरता है , उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस ट्रेक पर जाने के लिए समय का बहुत अड़ंगा लगता रहा। शायद वो साल 2018 का था और जनवरी या शायद फरवरी का महीना था -दिल्ली से राजीव कुमार जी का फ़ोन आया : योगी भाई काकभुशुण्डि ट्रेक करने का मन है ? पहले कभी जिस जगह का नाम तक न सुना हो वहां जाने के लिए एकदम से हाँ कैसे कह सकता था लेकिन राजीव जी की अगली बात ने हाँ करा दी , बोले बीनू भाई भी जा रहे हैं ! मतबल ये कि बीनू भाई अगर जा रहे हैं तो मुझे फिर सोचने की जरूरत ही नहीं ! बीनू बाबा हम उम्र और बहुत ही शानदार ट्रेक्कर हैं , उनके साथ अच्छी जमती है लेकिन अक्खड़ हैं ! मगर ये अक्खड़पन मुझे अच्छा लगता है और दूसरी बात -सतोपंथ के ट्रेक पर बीनू बाबा मुझे ताश के गेम में हरा हरा के मेरे सारे ड्राई फ्रूट्स लपेट गए थे , मुझे वो भी बदला लेना है :) बीनू बाबा नहीं गए और फिर मैं भी नहीं गया। .. फिर राजीव जी भी नहीं गए और मैं काकभुशुण्डि के बजाय आदि कैलाश ट्रेक पर निकल गया।
2019 में भी राजीव जी को फिर काकभुशुण्डि याद आया लेकिन बात नहीं बनी और मैं चला गया श्रीखण्ड यात्रा पर और वो चले गए मध्यमहेश्वर ! 2020 कोरोना के नाम रहा और 2021 का अगस्त आते ही राजीव जी ने इस बार न कुछ कहा , न पूछा और काकभुशुण्डि ट्रैक के लिए एक Whats App ग्रुप तैयार कर के मुझे जोड़ दिया। लग रहा था इस बार तो राजीव जी काकभुशुण्डि जाकर ही मानेंगे ! अभी लोचा था -बीनू बाबा नहीं जा रहे !
अंततः अपना फाइनल हुआ 3 सितम्बर की रात को गाजियाबाद से निकलेंगे और पांच सितम्बर से ट्रैक शुरू कर देंगे। हमारे साथ इस ट्रैक में होंगे -राजीव जी , सचिन सिद्धू भाई, शशि चढ्ढा जी , हरजिंदर भाई , सुशील भाई , कुलवंत जी , विजय यादव जी , गुवाहाटी से पवन जी , डॉ अजय त्यागी जी और लखनऊ निवासी 65 वर्षीय त्रिपाठी जी। लेकिन रुकिए , अभी गाजियाबाद से निकलने का दिन नहीं आया .. मतलब सितम्बर शुरू नहीं हुआ है ! कुछ विकेट गिरने लगे हैं और 2 सितम्बर की रात तक कई विकेट गिर गए। अब तक गाइड से जो बात की थी कि 11 -12 लोग होंगे ही , उसने उसी हिसाब से पॉर्टर तैयार कर लिए। कुल सात पॉर्टर और गाइड ! लेकिन लोग रह गए आठ !! जितने हम , उतने वो मतलब ट्रैक का बजट बढ़ जाएगा !
राजीव जी भी साथ नहीं जा पाए क्यूंकि उन्हें लगा ये बारिश का वीक है , वो सही थे लेकिन फिर मेरे कॉलेज में क्लासेज शुरू हो रही थीं और इतनी लम्बी छुट्टी लेना संभव नहीं होता। फाइनल लिस्ट देखिये एक बार :
1. योगी सारस्वत
2 . हरजिंदर सिंह
3. डॉ अजय त्यागी
4 . कुलवंत सिंह
5 . हनुमान जी गौतम
6 . पवन चौहान
7 . सुशील कुमार
8. मणि त्रिपाठी जी
मिलना तय हुआ जोशीमठ और गाइड एवं पॉर्टर से मिलना तय हुआ रुद्रप्रयाग ! जोशीमठ में ही सब राशन और बाकी जरूरतों का सामान खरीद लिया। 100 मैग्गी के पैकेट , दाल , चावल का बोरा , ड्राई फ्रूट्स और बहुत सारा ... दुकानदार खुश हो गया। बोला -सर इतनी बिक्री तो मेरी 15 दिन में भी नहीं होती जितनी आज आप लोगों ने करा दी ! रुला तो हर कोई सकता है .. कोशिश किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने की करते रहनी चाहिए।
काकभुशुण्डि ट्रैक ! दो रास्तों से किया जा सकता है -पहला रास्ता गोविंदघाट से भ्यूंडार होते हुए काकभुशुण्डि ताल तक जा सकते हैं और दूसरा रास्ता : विष्णुप्रयाग के पास स्थित पैंका गाँव से काकभुशुण्डि ताल तक जा सकते हैं। लेकिन क्योंकि हमें पूरा ही सर्किट करना था इसलिए हमने भ्यूंडार के रास्ते से जाकर पैंका गाँव उतरने का निर्णय लिया। हम 4 सितम्बर की गोविंदघाट की ठंडी रात को रजाई में दुबके ....आने वाले कुछ दिनों के ख्वाब मन में बसाये सो गए ! हम यानि कुल 15 लोग !!
कल की बात कल करेंगे .....
मिलेंगे जल्दी ही
वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👍👍😊
बहुत खूब..अगले भाग की प्रतीक्षा
जवाब देंहटाएंएक और रोचक यात्रा संस्मरण ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रों के साथ ...
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जवाब देंहटाएंयाने राजीव कुमार ने प्लान बनाया और वो ही नही आये....अक्सर प्लान में ऐसा ही होता है आखरी दिन विकेट खूब जाते है कई बार तो अकेले रह जाते है.....दुकान वाले कि बिक्री बहुत बढ़िया करवा दी आपने.अगले भाग की प्रतीक्षा
जवाब देंहटाएंवीडियो से ज्यादा मजा पढ़ने में आ रहा है लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाई जी.....पर मेहता जी भी तो आपके ग्रुप में गए थे..… उनका नाम नहीं है फाइनल लिस्ट में?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सुंदर विवरण है । Yogi sarswatजी जहां और जब का दाना पानी होता है इन्सान वहीं पहुंच पाता है।अगली ड़ी का इंतजार रहेगा
जवाब देंहटाएंवाह ! Next part olz
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। अगला भाग जल्दी दे।
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक विवरण।
जवाब देंहटाएंएक सुझाव - चित्रों को अंत में देने के बजाय पैराग्राफ के साथ साथ अरेंज करें तो रोचकता और बढ़ेगी।