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शुक्रवार, 27 मार्च 2020

Gwalior Fort : Gwalior

इस यात्रा को शुरू से पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक कर सकते हैं।

Date of Journey : 03 Dec.2019 

आसान नहीं होता किसी चीज को इतने दिनों तक संभालना और न केवल उसे संभाले रखना बल्कि उसी रूप में सजाये रखना  इसका सबसे सुन्दर और सजीव उदाहरण देखना हो तो एक बार ग्वालियर जाइये और वहां का फोर्ट देखिये। एक छोटी सी ऊंचाई की पहाड़ी पर बनाया गया ये फोर्ट यूँ तो बताया जाता है की इसे 10वीं शताब्दी में बनाया गया लेकिन कुछ ऐतिहासिक प्रमाण कहते हैं की ये यहां 6 वीं शताब्दी से मौजूद है। किले को मुख्य रूप से दो महल मिलाकर बनाकर फोर्ट बनाया गया जिसमें गूजरी महल और मान मंदिर बहुत सुन्दर बनाये गए थे । गूजरी महल को तो अब म्यूजियम में बदल दिया गया है लेकिन मान मंदिर बहुत ही शान से आज भी खड़ा है।

इसके इतिहास के साथ एक बड़ी अजीब सी बात जुडी हुई है। ग्वालियर के पहले राजा सूरज सेन एक बार लकवाग्रस्त हो गए तो उनका इलाज करने एक ग्वालपा नाम के संत आये जिन्होंने वहीँ स्थित एक सरोवर के जल से उन्हें ठीक कर दिया ...ये सरोवर अब भी है यहां फोर्ट काम्प्लेक्स में लेकिन इसके साथ ही संत ग्वालपा ने राजा सूरज सेन को अपने नाम के साथ पाल जोड़ने का आदेश दिया और ये भी ताकीद कर दिया की जब तक उनके वंशजों के साथ पाल लगा रहेगा तब तक फोर्ट उनके लिए भाग्यशाली भी होगा और उनके कब्जे में रहेगा । लेकिन ये सब 83 राजाओं तक तो सही चलता रहा मगर 84 वें राजा तेज करन ने अपने नाम के साथ 'पाल " नहीं लगाया और इसका नुकसान ये हुआ कि उन्हें अपना किला गंवाना पड़ा। शायद उन्हें लगा होगा कि कुछ अलग हट के किया जाए इसलिए नाम के साथ पाल नहीं जोड़ा होगा। 


ग्वालियर मध्य भारत का मुख्य राजवंश रहा था इसलिए ऐसा संभव ही नहीं था कि औरत खोर और दौलत खोर अफगान  की बुरी निगाहें इस जगह पर न पड़तीं। कच्छप , हुण और चन्देलों से होते हुए ये किला आखिर गज़नी के कब्जे में आया जिसे उसने 35 लाख लेकर चार दिन बाद मुक्त कर दिया। ये किला जितना बेहतरीन है उतना ही बड़ा भी है। काम्प्लेक्स इतना बड़ा है की आपको पूरा दिन लग सकता है अगर आप इसे पूरी तरह देखना चाहते हैं तो। बाकी अगर पाला छूकर भागना है और गिनती बढ़ानी है तो आप जितना चाहें उतना घूमें। 1398 ईस्वी में आखिरकार ये फोर्ट तोमर राजाओं के कण्ट्रोल में आ गया और इस वंश के सबसे विख्यात राजा -राजा मान सिंह हुए। उन्होंने किले के अंदर बहुत सारे मोनुमेंट्स बनवाये जिन्हें आज देश -दुनियां से देखने हजारों -लाखों आते हैं। लेकिन 1505 ईसवी में दिल्ली की सल्तनत के सिकंदर लोधी ने इसे कब्जाने की कोशिश की , हालांकि वो सफल नहीं हुआ मगर 1516 ईस्वी में सिकंदर लोधी के शहज़ादे इब्राहिम लोधी ने फिर से इस पर आक्रमण कर दिया और इस बार वो इस किले पर कब्जा करने में सफल हो गया। मान सिंह तोमर की मृत्यु के परिणाम स्वरुप ये फोर्ट इब्राहिम लोधी के कब्जे में आ गया। जल्दी ही मुग़ल शासक बाबर ने इस पर कब्जा कर लिया और फिर उससे शेर शाह सूरी ने इसे 1542 में बाबर से छीन लिया। हेमू , दिल्ली का शासक शायद इतिहास का वो चरित्र रहा जिसे जितनी प्रशंसा मिलनी चाहिए थी , जिस प्रशंसा का वो अधिकारी था , उतनी प्रशंसा उसे नहीं मिली ? मिलती भी कैसे ? जब भारत का इतिहास लिखने वाले दिल और दिमाग से वामपंथी रहे हों ! हेमू ने भी इस फोर्ट को अपने कब्जे में रखा और इसका उपयोग अपनी सेना को रखना के लिए किया जिसे Garrison कहा जाता है अंग्रेजी में। कुछ दिन बाद ये फोर्ट अकबर के कब्जे में भी रहा। जहां उसने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को कैदी बनाकर रखा। 


जब अकबर ने इस किले पर कब्जा कर लिया तो उसका शासन लम्बा चला और आखिरकार जहांगीर भी इसके कब्जेदारों में शामिल रहा। जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव जी को मृत्युदंड दिया था जिसके बाद गुरु हरगोविंद जी को सिर्फ 11 वर्ष की उम्र में ही गुरु का दर्ज़ा दिया गया। गुरु हरगोविंद जी के अंदर जहांगीर से बदला लेने की भावना आग उगल रही थी मगर वो अभी बहुत छोटे थे उम्र से। जहांगीर इतना कमजोर निकला कि उसने 1609 ईस्वी में मात्र 14 साल के गुरु हरगोविंद जी को डर के मारे यहीं ग्वालियर के किले में बंदी बना दिया। और बहाना क्या बनाया गया ? बहाना ये कि गुरु अर्जुन देव और सिखों पर जो जज़िया लगाया गया था वो नहीं चुकाया गया था। बस इसी बात के लिए जहांगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। जहांगीर शासक था या लुटेरा था ? किडनैपर था ? जहांगीर , शासक ! हाहाहा ---- जिस शासक की 14 साल के सिख युवक से फट रही हो और जिसने डर के मारे उसे जेल में डाल दिया वो शासक भी इतिहास में महान बन गया। हद्द है चाटुकारिता और इतिहासकारों कके ज्ञान की ! आखिरकार गुरु हरगोविंद को मुक्त किया गया और जिस जगह उन्हें छोड़ा गया उस जगह एक सुन्दर गुरुद्वारा बना है आज जिसे -बंदी छोड़ गुरुद्वारा कहा जाता है। जिस दिन गुरु हरगोविंद जी को छोड़ा गया था उस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। और डिटेल में बात करेंगे इस बारे में जब बंदी छोड़ गुरूद्वारे चलेंगे। 


किला बाहर से देखने पर बहुत ही खूबसूरत दिखता है। इसकी दीवारों रंग अभी तक चमक बिखेर रहे हैं और क्या बेहतरीन कलर किये गए हैं ! अद्भुत ! अप्रतिम। बाहर से देखने पर ही इसकी विशालता और सुंदरता नजर आने लगती है लेकिन जब आप मान मंदिर में जाते हैं अंदर तो सीधे Courtyard में पहुँचते हैं। कोर्टयार्ड बहुत बड़ा तो नहीं कहूंगा लेकिन सुन्दर बहुत है। सुन्दर भी और सुसज्जित भी। टिकट लगता है 40-50 रूपये का। पक्का याद नहीं आ रहा अब। Courtyard से नीचे जाने के लिए छोटी -छोटी सीढ़ियां बनी हुई हैं। कोई कहता है ये तीन मंजिल का था किला कोई कहता है कि सात मंजिल का था। खैर गौर करने वाली बात ये है की बीच में कुछ जाल जैसा लगाया गया है और ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी गहरे कुँए को ढका गया हो ! जी , बिलकुल ! इतिहास कहता है कि औरंगज़ेब ने इसी किले में अपने भाई मुराद और अपने दो भतीजों को फांसी के तख्ते पर झुलाया था। अंदाज़ा लगाना मुहकिल नहीं है कि ये वही जगह है जो बहुत गहरी है। हालाँकि नीचे अँधेरा बहुत रहता है जिससे फोटो लेना तो मुश्किल सा होता है लेकिन समझने के लिए ज्यादा कठिन नहीं है। जहांगीर का भी एक महल भी मान मंदिर से थोड़ा सा हटके बनाया गया है। लेकिन आज भी मान मंदिर यानि ग्वालियर फोर्ट जितना सुन्दर दिखता है , जहांगीर महल खँडहर सा लगता है उसके मुकाबले। तो अब आसपास के नज़ारे देख लेते हैं और फिर मिलते हैं जल्दी ही। .. असल में ग्वालियर इतना विस्तृत और ऐतिहासिक रूप से इतना समृद्ध है कि एक दिन भी कम पड़ जाए लेकिन लिखने की भी एक सीमा है इसलिए अब और नहीं......

फोर्ट की बाहरी दीवारें 
 
 



Courtyard 


ग्वालियर का विहंगम द्रश्य 

Courtyard भी बेहद कलरफुल है  


ये शायद करण महल है 



 

ये गूजरी महल है जो अब म्यूजियम बन चुका है।  ऊपर से गूजरी महल का एक दृश्य 




अच्छा ......हो गया ! अब आगे चलते हैं ...


फिर मिलेंगे जल्दी ही :

6 टिप्‍पणियां:

  1. दो बार इस फोर्ट में गया हूँ। वैसे पूरे फोर्ट को घूमने के लिए कई दिन चाहिए क्योंकि काफी महल और मंदिर,गुरुद्वारा भी है इधर। बढ़िया पोस्ट।
    Sachin3304.blogspot.in

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  2. रोचक यात्रा रही। आपकी बात सही है कि अगर इस किले को पूरी तरह से देखना हो तो दो दिन लगेंगे। ऐसा इसलिए कि इधर देखने के लिए इतना कुछ है कि कुछ देर बाद आप इन इमारतों से अभिभूत हो जाते हैं। फिर सब कुछ एक जैसा लगने लगता है। आप थक भी जाते हैं तो काफी कुछ रह भी जाता है।

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  3. खूबसूरत फोटो के साथ दिलचस्प आलेख ... रोचक ...

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  4. सुंदर और बहुत फैलाव वाला है किला. रख रखाव अच्छा है. इसका एक कारण शायद ये भी रहा हो की मुग़ल और ब्रिटिश टाइम में यहाँ के राजाओं ने जब देखा की हारने वाले हैं तो संधियाँ कर लीं.
    सुंदर फोटो लगाई हैं आपने.
    मैंने भी ब्लॉग लिखा था इस पर जिसका लिंक है -
    https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/01/blog-post_9.html

    गूगलप्लस बंद होने के कारण ब्लॉग पर आना जाना घाट गया है. चलिए indiblogger के जरिये मुलाक़ात हो गई.

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  5. बस, बहुत हो गया! अब तो जल्द से जल्द ग्वालियर जाना ही पड़ेगा! वैसे आपने वामपंथी तथाकथित इतिहासकारों के बारे में जो लिखा है, वह कटु सत्य है। जैसे आज उत्तर भारत में हर भवन के निर्माण का श्रेय लोदी / तुगलक / मुगल खानदान को दिया जाता है, ऐसे ही कुछ साल बाद देश में हर एयरपोर्ट, हर मैडिकल कॉलेज, हर सड़क, हर पार्क, हर इंजीनियरिंग कालेज के निर्माण का श्रेय नेहरू खानदान को दिया जायेगा। जब आप शासक होते हैं तो हर भवन, हर सड़क, हर सुविधा पर अपना नाम अंकित कर सकते हैं। मुझे तो ये समझ नहीं आता कि ये आक्रांता जब हिन्दुस्तान नामक सोने की चिड़िया को लूटने के लिये सेना लेकर निकलते थे तो क्या साथ में आर्किटेक्ट और मिस्त्रियों का काफ़िला भी लेकर निकलते थे? जो व्यक्ति अपने बाप को सिंहासन पर बैठे देख कर छटपटाता हो, उसकी और अपने भाइयों की हत्या करके गद्दी हथियाता हो, वह निर्माण में भला कैसे रुचि ले सकता है? ये सब निर्माण अगर मुगलों, लोदियों और तुगलकों ने किये तो उनसे पहले यहां पर क्या सिर्फ़ उजाड़ जंगल था? यदि पूरा हिन्दुस्तान उजाड़ जंगल ही था तो ये आक्रान्ता इस देश में क्या करने आये थे? खैर! बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी!

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