फिरोज शाह कोटला फोर्ट :
दिल्ली की सर्दी जितनी खुशनुमा होती है , गर्मी उतनी ही कंटीली और जानलेवा होती है। हालाँकि दिल्ली की सर्दी भी 100-150 लोगों को हर साल अपने साथ यमराज के महल में ले ही जाती है ! सर्दी हो , गर्मी हो , बारिश हो , तूफ़ान हो , बाढ़ हो , आपदा हो , दंगा हो , भुखमरी हो ... कुछ भी हो लेकिन मरना गरीब को ही पड़ेगा ! गरीब वो भैंस है जो सिर्फ पांच साल में एक बार दूध देती है बाकी समय उस पर सिर्फ डंडे पड़ते हैं। जो पुलिस वाला किसी अमीर को सर-सर कहते हुए उससे दस कदम दूर चलता है वोही पुलिस वाला गरीब से डण्डा मार के 100 रूपये ऐंठ लेने में अपनी इज्जत समझता है। ध्यान रखिये - संविधान भी एक किताब ही तो है जिसमें लिखी हुई बातें भी कभी -कभी किताबी बातें ही सिद्ध होती हैं। आप सोच रहे होंगे आज ये कैसा ज्ञान बांटने लगा मैं ? ज्ञान जरुरी था क्यूंकि आज की पोस्ट उसी दिल्ली से है जिस दिल्ली ने कई बार अपने को बिखरते और फिर निखरते देखा है।
14 वीं शताब्दी में भी दिल्ली में उथल -पुथल मची हुई थी जब फिरोज शाह तुग़लक़ को अपने चाचा मुहम्मद बिन तुग़लक़ से गद्दी मिली और गद्दी मिलते ही छोटे तुग़लक़ ने दिल्ली में त्राहिमाम मचा डाला। हिन्दू और जैन मंदिर तोड़ डाले गए और उनमें से निकली पत्थरों को ज़ामी मस्जिद और एक किला बनाने में लगा दिया। ये किला आज फ़िरोज़ शाह फोर्ट कहा जाता है। इसी किले में अम्बाला से लाकर लगाया गया अशोक स्तम्भ भी मौजूद है। यमुना किनारे एक नया शहर बसाया गया था जिसे फ़िरोज़ाबाद नाम दिया गया जिसकी सीमा पीर गायब से शुरू होकर पुराना किला तक जाती थी। फिरोज शाह तुग़लक़ को गद्दी 1351 ईस्वी में मिली और उसने 1384 तक शासन चलाया। इसी बीच में , या ये कहें कि अपने शासनकाल के शुरूआती तीन वर्षों में ही उसने इस किले का निर्माण पूरा करा दिया और अंततः 1354 में ये किला पूरी तरह बनकर दिल्ली के शहर फ़िरोज़ाबाद के शासन का केंद्र बन गया। फिरोज शाह कोटला फोर्ट को फ़ारसी में खुश्क ए फिरोज कहा जाता था जिसका मतलब था " फ़िरोज़ का महल" और इसे Irregular Polygon शेप में बनाया गया था जिसे मलिक गाज़ी और अब्दुल हक़ ने डिज़ाइन किया था। इस दुनिया में अजर-अमर कुछ नहीं और इसी बात को साबित करते हुए ये किला भी 1490 में तुग़लक़ सल्तनत खत्म होने के बाद अपनी दुर्दशा देखने लगा।
क्यों जाएँ : आप कहेंगे कि खण्डहर है तो वहां क्यों जाना ? मुझे छोड़ दें , क्यों मुझे खण्डहर ही देखना पसंद है लेकिन आपके लिए वहां जाने का एक महत्वपूर्ण कारण वहां अशोक स्तम्भ का होना है जो मौर्या काल का 273 -236 BC का बना हुआ है और 13 मीटर ऊंचा है। इस पिलर को लगाने के लिए पिरामिड के आकार की एक मीनार बनाई गयी थी। जिस वक्त ये मीनार बनाई गयी होगी , सच में शानदार रही होगी और उस पर अशोक स्तम्भ ! क्या बात रही होगी ! जबरदस्त ! उस वक्त इस अशोक स्तम्भ को मीनार ए ज़रीन कहा गया था। अरे हाँ , एक और बात बता दूँ - दिल्ली में इसके अलावा एक और अशोक स्तम्भ भी है। इसके अलावा यहाँ त्रिस्तरीय ( Three Layered ) बावली भी देखने लायक है !
कैसे जाएँ : सबसे बेहतर है आप मेट्रो से दिल्ली गेट जाएँ और वहां से बाहर निकलकर बस 50 कदम और चलें। खूनी दरवाज़ा दिखेगा और उसी के सामने है फ़िरोज़ शाह कोटला फोर्ट !
टिकट : फोर्ट के बाहर चाय -पानी की दुकान हैं और पास में ही टिकट काउंटर है। 20 रूपये का टिकट लगता है !
कैसा इतिहास है देश की इमारतों का और आज भी जीवित है ... ये सहिश्र्नु लोगों की जमीन है शायद इसी लिए ... मंदिरों को तोड़ कर बनाए किलों का क्या दर्शन ... पर ये भी सत्य है ... कडुवा सच ...
जवाब देंहटाएंAwesome post with the history mentioned and with beautiful captures, these duo makes such post more relatable.
जवाब देंहटाएंJyotirmoy Sarkar ...Thanx a lot !!
जवाब देंहटाएंसही कहा दिगंबर सर इतिहास का काला पक्ष है ये लेकिन सहना पड़ता है ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंबढ़िया ब्लॉग योगी जी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर जी
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत सुंदर फोटोज और वर्णन।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद आदरणीय ज्योति जी ! आते रहिएगा
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति।
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