Bagulamukhi Mandir : Himachal Pradesh
18 Oct.2018
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मसरूर रॉक टेम्पल में अच्छा समय गुजरा था और वहीँ पास में एक झोंपड़ी सी में चाय -मैग्गी भी मिल गयी तो पेट पूजा भी हो गई।
उस झोंपड़ी में रखे बर्तन देखकर ऐसा लग रहा था जैसे हम आज उनके पहले ही
कस्टमर रहे हों। अब निकलने का समय था क्योंकि बाहर कार वाला आदमी हमारा
इंतज़ार कर रहा था और हम नहीं चाहते थे कि हमारी वजह से वो परेशान हों।
हमें भी आगे बगुलामुखी मंदिर दर्शन के लिए जाना था। आज नवमी है और हमारे
यहाँ इस अवसर पर कन्या पूजन होता है जिसमें कन्याओं को भोजन कराने के बाद
कुछ दक्षिणा भी देते हैं लेकिन आज हम यहाँ हैं , घर नहीं तो हम बगुलामुखी
मंदिर में अपना ये संस्कार पूरा करने की कोशिश करेंगे और माता जी की कृपा
से हम ये कर पाए।
मसरूर मंदिर से हम करीब बारह बजे निकले थे और कार वाले ने हमें लुंज कस्बे के बस स्टॉप पर छोड़ दिया और जैसे ही कार से उतरे , रानीताल की बस आ गई। मैं बगुलामुखी मंदिर की कहीं से कोई दूरी नहीं लिखूंगा क्यूंकि आप पता नहीं कौन से रस्ते से वहां गए हैं या जाने वाले हैं , लेकिन मैं हमेशा ही सार्वजनिक परिवहन सुविधा का उपयोग करता हूँ। ऐसा करना मुझे सुरक्षित भी लगता है और सस्ता भी , हालाँकि आप इसे मेरी मजबूरी भी कह सकते हैं क्योंकि मुझे बाइक चलानी नहीं आती और कार मेरे पास है नहीं , बस साइकिल चलानी आती है और वो मेरे पास है :)
हिमाचल में ट्रेन का नेटवर्क बहुत ज्यादा नहीं है इसलिए बस ज्यादा चलती हैं और ज्यादातर बस प्राइवेट कॉन्ट्रक्ट पर चलती हैं , लेकिन बसें क्या शानदार होती हैं , झक्कास ! साफ़ सुथरी और एकदम बढ़िया सीट। रानीताल पहुँचते -पहुँचते तीन बज गए थे जबकि बगुलामुखी मंदिर के सामने से निकलने वाली बस अभी पांच मिनट पहले ही निकल चुकी थी। मतलब अब हमें आधा घण्टा इंतज़ार करना होगा ! चाय -समोसे खा लेते हैं ! ऐसा सोचकर मैंने हाथ में ये चीजें पकड़ी ही थीं कि एक बड़ी बस आकर रुकी , उससे पूछा -बगुलामुखी जाओगे क्या ? बोला -हां ! फिर क्या समोसे वापस रखे और चल दिए बगुलामुखी मंदिर। हिमाचल जिस खूबसूरती के लिए जाना जाता है। सड़क से जाते हुए गावों को देखने से तो ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था कि हम हिमाचल में हैं , सूखे -पिंजर होते जाते गाँवों की वही तस्वीर आँखों में घुसती रही जो मेरे अपने गाँव जाते हुए दिखती है। विकास , क्या -क्या लेकर जाएगा। हरियाली गई , शुद्ध पानी गया , शुद्ध हवा गई और दिल्ली में तो बस जान जाने को है ! मैं पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं हूँ लेकिन इस देश का नागरिक हूँ तो दुःख होता है।
हिमाचल में ट्रेन का नेटवर्क बहुत ज्यादा नहीं है इसलिए बस ज्यादा चलती हैं और ज्यादातर बस प्राइवेट कॉन्ट्रक्ट पर चलती हैं , लेकिन बसें क्या शानदार होती हैं , झक्कास ! साफ़ सुथरी और एकदम बढ़िया सीट। रानीताल पहुँचते -पहुँचते तीन बज गए थे जबकि बगुलामुखी मंदिर के सामने से निकलने वाली बस अभी पांच मिनट पहले ही निकल चुकी थी। मतलब अब हमें आधा घण्टा इंतज़ार करना होगा ! चाय -समोसे खा लेते हैं ! ऐसा सोचकर मैंने हाथ में ये चीजें पकड़ी ही थीं कि एक बड़ी बस आकर रुकी , उससे पूछा -बगुलामुखी जाओगे क्या ? बोला -हां ! फिर क्या समोसे वापस रखे और चल दिए बगुलामुखी मंदिर। हिमाचल जिस खूबसूरती के लिए जाना जाता है। सड़क से जाते हुए गावों को देखने से तो ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था कि हम हिमाचल में हैं , सूखे -पिंजर होते जाते गाँवों की वही तस्वीर आँखों में घुसती रही जो मेरे अपने गाँव जाते हुए दिखती है। विकास , क्या -क्या लेकर जाएगा। हरियाली गई , शुद्ध पानी गया , शुद्ध हवा गई और दिल्ली में तो बस जान जाने को है ! मैं पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं हूँ लेकिन इस देश का नागरिक हूँ तो दुःख होता है।
पता
नहीं कहाँ -कहाँ से बस आई लेकिन पांच बजे के आसपास बगुलामुखी पहुंचा दिया
होगा , शायद उससे भी पहले। सड़क किनारे ही दो -तीन माता जी का प्रसाद और
अन्य चीजें खरीदने के खोके हैं , खोके मतलब छोटी सी दुकानें। उनसे ही सब
ले लिया और अपने बैग भी वहीँ छोड़ दिए , हालाँकि डर था कि कहीं बंदर हमारे
बैगों पर अपने हाथ न आजमा लें। बंदर बहुत हैं वहां। अच्छा हाँ , आपको
बगुलामुखी मंदिर का महत्व , इतिहास पढ़ना हो तो हमारे प्रिय मित्र और भोले
बाबा के अनन्य भक्त नरेश सहगल जी का ब्लॉग देख सकते हैं। उनके ब्लॉग का
लिंक ये है ! मैं बस अब फोटो ही दिखाता हूँ:
यहाँ ज्यादातर पीले वस्त्र पहनकर जाते हैं |
कभी ये हवं कुण्ड बिल्कुल पीला रहा होगा |
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