पेज

शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

Ashok Pillar : New Delhi

 अशोक स्तम्भ : दिल्ली

आज हम जो चीजें करते हैं वो सैकड़ों साल के बाद इतिहास में तब्दील हो जाती हैं और फिर उस समय के इतिहासकार अपने अपने अनुसार उसकी व्याख्या करते हैं। . सटीक या फ़र्ज़ी ये सोचनीय। . विषय हो सकता है किन्तु इतिहास होता बड़ा रोमांचक और रुचिकर है , मेरे लिए तो होता है। आपके लिए भी होता ही होगा। खैर इतिहास की बात हो और दिल्ली की बात न हो ? ऐसा संभव नहीं ! जिस तरह से उत्तराखंड के हर पत्थर में भगवान विराजते हैं उसी तरह दिल्ली के हर पत्थर में एक इतिहास मिलता है। अशोका से लेकर मुगलों तक और तोमर शासकों से लेकर आज के युग तक।


अशोक से आप बहुत अच्छी तरह से परिचित होंगे , अशोक ! राजा अशोक ! अशोक महान ! उसी अशोक के दो स्तम्भ दिल्ली में आज भी मिल जाते हैं लेकिन जब आप किसी दिल्ली के स्थाई निवासी से इस बारे में पूछेंगे ! दिल्ली में अशोक स्तम्भ कहाँ है ? वो तपाक से जवाब देगा -कुतुबमीनार में ! क़ुतुब मीनार और लाल किले के अलावा दिल्ली का आदमी और कोई जगह जानता ही नहीं ? या बताना नहीं चाहता ? लेकिन क़ुतुब मीनार में जो स्तम्भ है वो लौह स्तम्भ है मतलब आयरन पिलर ! शायद वो भी मौर्या काल का ही है लेकिन बाकी दो स्तम्भ जिनके विषय में आज बात करनी है वो पत्थर के हैं।

वर्तमान में पूरे भारत में कुल 20 अशोक स्तम्भ मौजूद हैं जिनमें से दो दिल्ली में स्थित हैं। एक फ़िरोज़शाह कोटला फोर्ट में स्थापित है जबकि दूसरा हिन्दू राव हॉस्पिटल के बिल्कुल सामने गोल चक्कर के पास स्थित है जहाँ से कमला नेहरू रिज़ शुरू होता है। ये दोनों स्तम्भ शुरू से ही दिल्ली में स्थापित नहीं किये गए थे बल्कि 14 वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ इन्हें क्रमशः अम्बाला के पास टोपरा से और मेरठ से लाया था इसीलिए कभी -कभी फोर्ट स्थित स्तम्भ को दिल्ली-टोपरा स्तम्भ और हिन्दू राव हॉस्पिटल वाले को दिल्ली -मेरठ स्तम्भ भी कहते हैं। आपने देखे भी होंगे आते -जाते लेकिन कभी रुककर फोटो नहीं लिया होगा , उसके बारे में जानने की जरुरत महसूस नहीं की होगी , पढ़ा भी नहीं होगा। आज जान लीजिये और मौका मिलते ही हो भी आइये उधर।

दिल्ली -टोपरा पिलर , हरियाणा के यमुनानगर के टोपरा कलां से दिल्ली लाया गया था और फ़िरोज़शाह फोर्ट में सबसे ऊँचे स्थान पर स्थापित किया गया था। इस स्तम्भ की ऊंचाई करीब 43 फुट यानी 13 मीटर है। हालाँकि बिल्कुल इसकी जड़ में जाने का कोई रास्ता अब नहीं है इसलिए दूर से ही फोटो लेना होता है। फोर्ट में इसके अलावा और भी जगहें हैं देखने लायक लेकिन मेरा मुख्य उद्देश्य इस स्तम्भ को देखना ही था। 
दिल्ली -मेरठ पिलर को मेरठ से लाया गया था और इसको लाने के लिए 42 पहियों वाली गाड़ी लगाईं गई थी। यहाँ लाकर इसे नॉर्थर्न रिज़ पर लगाया गया था लेकिन फर्रुखसियार के शासन में एक विस्फोट में ये पांच टुकड़ों में टूट गया। पाँचों टुकड़ों को एशियाटिक सोसाइटी कोलकाता भेजा गया जहाँ से ये 1866 में आये लेकिन वापस इन्हें फिर से स्थापित करने में 21 साल लग गए और फिर जाकर 1887 में पुनः स्थापित किया जा सका। वर्तमान में इस स्तम्भ की ऊंचाई 10 मीटर है। 

इन दोनों ही स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में अशोक के धर्म सन्देश लिखे गए हैं जिन्हें 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने डिकोड किया था। उन्होंने ही बताया कि ओरिजिनल स्तम्भ के ऊपर कुछ और मूर्तियां लगी हुई थीं जो समय के साथ टूट गयीं या उन्हें तोड़ दिया गया। 

हिन्दूराव हॉस्पिटल के सामने स्थित अशोक स्तम्भ



फ़िरोज़शाह कोटला ( फोर्ट ) के अंदर स्थित अशोक स्तम्भ



फ़िरोज़शाह कोटला फोर्ट का एक द्रश्य

फ़िरोज़शाह कोटला ( फोर्ट ) के अंदर स्थित अशोक स्तम्भ

2 टिप्‍पणियां: