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It was a beautiful morning at Nanu Chatti and the views of the
Himalayan peaks from this point were amazing and were providing a tender
feeling as you look straight to those. After having tea with Parantha
in breakfast, we started our next leg journey at about 8:30 AM. Our next
point was Budha Madhyamaheshwar after having a darshan of Madhyamaheshwar and offered our prayers. The distance of Madhyamheshwar
from Nanu Chatti is about 8 km and the next distance from
Madhyamaheshwar to Budha Madhyamaheshwar is about 3km, so we had to trek
about 11 km that day.
That day was 19 June -2017 and the previous
day was 18 June. It was Champions Trophy’s final match played between
India & Pakistan but unfortunately, India lost that match which made
us really sad as we are one of the biggest fans of Indian cricket team
but the Himalayan peaks views relieved us from that stress.
Nanu Chatti is at 2200 m from MSL , Madhyamaheshwar is at 3150 Mtr while Budha Madhyamaheshwar is at 3400 m,
so if you would calculate this height and distance, you would find that
we had to reach 1200 m in the distance of 11 kilometers , means almost 100 m / km which is not too tough for a trekker. There is a temporary settlement “Mokamba Chatti”
about 2 km ahead from Nanu Chatti. There were one-two shops to eat and
yes you could stay there at night at very reasonable prices. These
settlements were run by women. Another stay point was after 3 km after
this, called as “Kun Chatti”. Here was “Shikhar Prince Hotel” which
provided all the basic needs to eat and stay.
It was 11 AM when I
reached there at Kun Chatti. After having tea and 20 min rest, I started
my trekking again and after about 30 minutes, it was a deep jungle, a
thick jungle. I was alone and feeling scared. I was praying to God for a
human being to be with me as it was dark all over and you could imagine
my mental status state at that time. I was moving fast… very fast… as I
wanted to move out as earlier as possible from that thick forest.
Luckily I met 2-3 young boys who were coming from the opposite side and
when they said –You almost have reached Madhyamaheshwar, I took a sigh
of relief. It was about 1:00 PM.
Madhyamheshwar
is a temple like Kedarnath but not so much popular as Kedarnath.
Madhyamaheshwar is solely dedicated to Lord Shiva and is counted as one
of the Five Kedars of Uttarakhand. It looked very beautiful and sacred.
After having Darshan in the temple and having Prasad we moved to our
that day’s final destination “Budha Madhyamaheshwar “ which was about 3
km from here and was about 250 higher than that point. We were on the
way as the drizzling had started. We hurriedly pitched our tents but
rain was started pouring heavy. So we got stuck for about 3 hrs in our
tents but when the rain was finally over, we were able to see a clear
sky and the beautiful views of Himalayan peaks “Chaukhambha” and the “
Mandani Sisters“.
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नानू चट्टी की सुबह खुशबू दे रही थी और सामने की पहाड़ियां श्रृंगार कर अपने यौवन को और भी गहरा रंग दे रही थीं ! चाय -पराठा लेकर साढ़े आठ- नौ बजे निकल चले अगली मंजिल की ओर ! अगली मंजिल मध्यमहेश्वर मंदिर होते हुए बूढा मध्यमहेश्वर पहुँचने की थी ! नानू चट्टी से मध्यमहेश्वर करीब 8 किलोमीटर और फिर वहां से बूढ़ा मध्यमहेश्वर ढाई - तीन किलोमीटर होगा । मतलब आज लगभग 10 किलोमीटर चलना है । ठीक है , चलते हैं ।
मैं जब गाजियाबाद से निकलने को था तो अपने कैमरे को फुल चार्ज करके ले जाना चाहता था लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि कैमरा शार्ट सर्किट हो गया, मतलब खराब हो गया तो रांसी से भट्ट साब का कैमरा लिया लेकिन उनका कैमरा सोनी का पी & एस कैमरा था जो पावर बैंक से चार्ज नहीं होता । लिमिटेड यूज किया फिर भी तीन दिन में बोल गया :) इस ट्रैक में मैंने हर रोज़ शाम के समय टैण्ट में पूरे दिन की कहानी लिखी थी , आइये पहले वो पढ़ते हैं :
आज दिनांक 19 जून है और हम सुबह करीब 9 बजे नानू चट्टी से चलना शुरू हुए ! इससे पहले नाश्ता के समय एक बुरी खबर मिली कि कल चैम्पियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया है ! कल ही अंदाजा हो गया था कि हार जायेंगे ! नानू चट्टी में जहां हम रुके थे , वहां एक आदमी के पास फिलिप्स का रेडियो था , उसी पर कमेंटरी सुन रहे थे लेकिन जब भारत के 6 विकेट आउट हो गए तो हम वहां से उठकर चले आये और अपने टैण्ट में आकर घुस गए !
नानू चट्टी 2200 मीटर की ऊंचाई पर है और मद्महेश्वर 3150 मीटर तथा बूढा मध्यमहेश्वर बिल्कुल 3400 मीटर की ऊंचाई पर ! ऐसे देखें तो 1200 मीटर की ऊंचाई चढ़नी है !
सुबह जब चले तो थोड़ी दूर सबके साथ चलता रहा लेकिन , जैसा हमेशा होता है , आखिर में पहुँचते पहुँचते सबसे पीछे हो जाता हूँ ! नानू चट्टी से करीब 2 किलोमीटर आगे मोकाम्बा चट्टी है जहां चाय - खाना -रहना हो जाता है ! एक घर है वहां ! सास - बहू मिलकर सब संभाल लेती हैं ! यहीं अमित भाई और श्रीकांत ने तो दूध लिया लेकिन हम तो हमेशा अपना प्रिय पेय चाय ही पिएंगे :) मोकाम्बा चट्टी से करीब 2 किलोमीटर आगे कुन चट्टी नाम की जगह है जहां शिखर प्रिंस होटल है और यहां भी चाय -खाना -रहना हो जाता है ! अलग अलग रेट लिखे हैं सब चीज के ! चाय -10 रुपया , मैग्गी -30 रूपये और रहना 50 रुपया प्रति व्यक्ति ! कुन चट्टी से मद्महेश्वर 3 किलोमीटर और आगे है और रास्ता पूरा जंगल से है ! मैं नानू चट्टी से सुबह करीब 9 बजे शुरू करके करीब 11 बजे कुन चट्टी पहुँच गया था ! वहां से 11 : 20 बजे फिर चल दिया और करीब एक बजे तक अकेला ही चलता रहा ! न इधर से कोई आया और न उधर से ! इस घने जंगल में सच कहूं तो मुझे डर लगने लगा था लेकिन रास्ता बना हुआ है तो वन्य जीव यहां नहीं होते , होते होंगे तो दिखाई नहीं दिया ! कुछ देर बाद जब ऊपर की तरफ से चार लड़के नीचे आते हुए दिखाई दिए तो मन को हिम्मत और प्रसन्नता दोनों मिले ! उनसे पूछा - अभी मध्यमहेश्वर कितना दूर है ? बोले -बस पांच मिनट ! हालाँकि मुझे दस मिनट लग गए और ठीक एक बजकर 10 मिनट पर मैं भगवान शिव के चरणों में पहुँच चुका था ! मैं मध्यमहेश्वर मंदिर के सामने खड़े होकर , हाथ जोड़कर अपने आपको भाग्यशाली समझ रहा था ! अमित भाई और श्रीकांत 12 बजे ही वहां पहुंच गए थे ! मैंने दर्शन किये , पूजा पाठ किया और अपने पिता , परिवार और दोस्तों के लिए प्रार्थना की ! मंदिर अत्यंत ही सुन्दर है !!
मद्महेश्वर मंदिर से करीब 2 किलोमीटर दूर और 250 मीटर और ऊपर बूढ़ा मद्महेश्वर है , वहीँ जाना है हमें लेकिन उससे पहले एक एक हो जाए , समझ गए न क्या हो जाए ? अरे वही चाय यार !! चाय पीकर , बच्चों के साथ बैट- बॉल में हाथ आजमाए लेकिन नालायकों ने बैटिंग नहीं दी , बस फील्डिंग कराते रहे ! ऊँ हूँ , मैं नहीं खेल रहा ! मैं तो जा रहा हूँ बूढ़ा मध्यमहेश्वर ! मौसम साफ़ था लेकिन 100 मीटर चढ़ते चढ़ते बारिश शुरू हो गई जो जल्दी ही बंद हो गई लेकिन कुछ देर बाद फिर से बूंदा बांदी शुरू होने लगी ! हल्की बारिश के बीच ही बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर के सामने हाथ जोड़ गया , क्योंकि बादलों का रूप देखकर लग रहा था कि तेज़ बारिश आने की संभावना है ! बूढ़ा मध्यमहेश्वर से थोड़ा आगे जाकर बायीं तरफ मैदान है और हमें वहीँ आज अपना टैण्ट लगाना है ! यहां लोहे के दो पाइप लम्बाई में खड़े करके कुछ चिन्ह बनाया गया है , क्या है ? क्यों है ? नहीं मालूम !!
ठीक चार बजे हमने टैण्ट लगा दिए , लेकिन जैसे ही टैण्ट लगाए , झमाझम बारिश शुरू हो गई जो अब तक जारी है और अभी 5 बजकर 45 मिनट हो रहे हैं ! हम टैण्ट में ही घुसे पड़े हैं ,बाहर निकलने का कोई चांस नजर नहीं आ रहा ! भूख लगी है लेकिन पोर्टर कुछ बना ही नहीं सकता ! एक पारले - ग का बिस्कुट का पैकेट बैग में पड़ा था , मेरे नहीं श्रीकांत के :) , और उसे हम दोनों ने मिलकर उड़ा दिया !
थोड़ी देर के लिए जैसे ही बारिश रुकी तो निकल गए बाहर फोटो खींचने के लिए ! यहां से चौखम्बा और मंदानी सिस्टर्स बहुत बढ़िया तो नहीं लेकिन ठीक ठाक दिखाई दे रही थी लेकिन बुग्याल जबरदस्त लगे !! एकदम ग्रीन !! फिर से बारिश !! कब रुकेगी और कब कुछ खाने को मिलेगा !! मैं ये डायरी टैण्ट में पड़ा -पड़ा ही लिख रहा हूँ और बाहर जबरदस्त बारिश हो रही है !!
भगवान मध्यमहेश्वर की कहानी लिखना चाहता हूँ लेकिन आज की पोस्ट बड़ी होती जा रही है इसलिए मध्यमहेश्वर मंदिर की कहानी अगली पोस्ट में लिखूंगा !! रात को 9 बजे के आसपास बारिश रुक गई थी और खाना -वाना खाकर रात को 11 बजे तक आग तापते रहे ! सूखी लकड़ियां खूब मिल जाती हैं और आसपास मवेशी भी खूब चरते हुए दिखा देते हैं !!
बाकी बात अगली पोस्ट में :
मद्महेश्वर यात्रा का वर्णन दैनिक जागरण समाचार पत्र 25 सितम्बर 2017 को यात्रा एडिशन में पब्लिश हो गया ! लिंक नीचे है
http://epaper.jagran.com/ epaper/ 24-sep-2017-4-Delhi-City-Pa ge-1.html
ट्रैकिंग आगे जारी रहेगी:
आज दिनांक 19 जून है और हम सुबह करीब 9 बजे नानू चट्टी से चलना शुरू हुए ! इससे पहले नाश्ता के समय एक बुरी खबर मिली कि कल चैम्पियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया है ! कल ही अंदाजा हो गया था कि हार जायेंगे ! नानू चट्टी में जहां हम रुके थे , वहां एक आदमी के पास फिलिप्स का रेडियो था , उसी पर कमेंटरी सुन रहे थे लेकिन जब भारत के 6 विकेट आउट हो गए तो हम वहां से उठकर चले आये और अपने टैण्ट में आकर घुस गए !
नानू चट्टी 2200 मीटर की ऊंचाई पर है और मद्महेश्वर 3150 मीटर तथा बूढा मध्यमहेश्वर बिल्कुल 3400 मीटर की ऊंचाई पर ! ऐसे देखें तो 1200 मीटर की ऊंचाई चढ़नी है !
सुबह जब चले तो थोड़ी दूर सबके साथ चलता रहा लेकिन , जैसा हमेशा होता है , आखिर में पहुँचते पहुँचते सबसे पीछे हो जाता हूँ ! नानू चट्टी से करीब 2 किलोमीटर आगे मोकाम्बा चट्टी है जहां चाय - खाना -रहना हो जाता है ! एक घर है वहां ! सास - बहू मिलकर सब संभाल लेती हैं ! यहीं अमित भाई और श्रीकांत ने तो दूध लिया लेकिन हम तो हमेशा अपना प्रिय पेय चाय ही पिएंगे :) मोकाम्बा चट्टी से करीब 2 किलोमीटर आगे कुन चट्टी नाम की जगह है जहां शिखर प्रिंस होटल है और यहां भी चाय -खाना -रहना हो जाता है ! अलग अलग रेट लिखे हैं सब चीज के ! चाय -10 रुपया , मैग्गी -30 रूपये और रहना 50 रुपया प्रति व्यक्ति ! कुन चट्टी से मद्महेश्वर 3 किलोमीटर और आगे है और रास्ता पूरा जंगल से है ! मैं नानू चट्टी से सुबह करीब 9 बजे शुरू करके करीब 11 बजे कुन चट्टी पहुँच गया था ! वहां से 11 : 20 बजे फिर चल दिया और करीब एक बजे तक अकेला ही चलता रहा ! न इधर से कोई आया और न उधर से ! इस घने जंगल में सच कहूं तो मुझे डर लगने लगा था लेकिन रास्ता बना हुआ है तो वन्य जीव यहां नहीं होते , होते होंगे तो दिखाई नहीं दिया ! कुछ देर बाद जब ऊपर की तरफ से चार लड़के नीचे आते हुए दिखाई दिए तो मन को हिम्मत और प्रसन्नता दोनों मिले ! उनसे पूछा - अभी मध्यमहेश्वर कितना दूर है ? बोले -बस पांच मिनट ! हालाँकि मुझे दस मिनट लग गए और ठीक एक बजकर 10 मिनट पर मैं भगवान शिव के चरणों में पहुँच चुका था ! मैं मध्यमहेश्वर मंदिर के सामने खड़े होकर , हाथ जोड़कर अपने आपको भाग्यशाली समझ रहा था ! अमित भाई और श्रीकांत 12 बजे ही वहां पहुंच गए थे ! मैंने दर्शन किये , पूजा पाठ किया और अपने पिता , परिवार और दोस्तों के लिए प्रार्थना की ! मंदिर अत्यंत ही सुन्दर है !!
मद्महेश्वर मंदिर से करीब 2 किलोमीटर दूर और 250 मीटर और ऊपर बूढ़ा मद्महेश्वर है , वहीँ जाना है हमें लेकिन उससे पहले एक एक हो जाए , समझ गए न क्या हो जाए ? अरे वही चाय यार !! चाय पीकर , बच्चों के साथ बैट- बॉल में हाथ आजमाए लेकिन नालायकों ने बैटिंग नहीं दी , बस फील्डिंग कराते रहे ! ऊँ हूँ , मैं नहीं खेल रहा ! मैं तो जा रहा हूँ बूढ़ा मध्यमहेश्वर ! मौसम साफ़ था लेकिन 100 मीटर चढ़ते चढ़ते बारिश शुरू हो गई जो जल्दी ही बंद हो गई लेकिन कुछ देर बाद फिर से बूंदा बांदी शुरू होने लगी ! हल्की बारिश के बीच ही बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर के सामने हाथ जोड़ गया , क्योंकि बादलों का रूप देखकर लग रहा था कि तेज़ बारिश आने की संभावना है ! बूढ़ा मध्यमहेश्वर से थोड़ा आगे जाकर बायीं तरफ मैदान है और हमें वहीँ आज अपना टैण्ट लगाना है ! यहां लोहे के दो पाइप लम्बाई में खड़े करके कुछ चिन्ह बनाया गया है , क्या है ? क्यों है ? नहीं मालूम !!
ठीक चार बजे हमने टैण्ट लगा दिए , लेकिन जैसे ही टैण्ट लगाए , झमाझम बारिश शुरू हो गई जो अब तक जारी है और अभी 5 बजकर 45 मिनट हो रहे हैं ! हम टैण्ट में ही घुसे पड़े हैं ,बाहर निकलने का कोई चांस नजर नहीं आ रहा ! भूख लगी है लेकिन पोर्टर कुछ बना ही नहीं सकता ! एक पारले - ग का बिस्कुट का पैकेट बैग में पड़ा था , मेरे नहीं श्रीकांत के :) , और उसे हम दोनों ने मिलकर उड़ा दिया !
थोड़ी देर के लिए जैसे ही बारिश रुकी तो निकल गए बाहर फोटो खींचने के लिए ! यहां से चौखम्बा और मंदानी सिस्टर्स बहुत बढ़िया तो नहीं लेकिन ठीक ठाक दिखाई दे रही थी लेकिन बुग्याल जबरदस्त लगे !! एकदम ग्रीन !! फिर से बारिश !! कब रुकेगी और कब कुछ खाने को मिलेगा !! मैं ये डायरी टैण्ट में पड़ा -पड़ा ही लिख रहा हूँ और बाहर जबरदस्त बारिश हो रही है !!
भगवान मध्यमहेश्वर की कहानी लिखना चाहता हूँ लेकिन आज की पोस्ट बड़ी होती जा रही है इसलिए मध्यमहेश्वर मंदिर की कहानी अगली पोस्ट में लिखूंगा !! रात को 9 बजे के आसपास बारिश रुक गई थी और खाना -वाना खाकर रात को 11 बजे तक आग तापते रहे ! सूखी लकड़ियां खूब मिल जाती हैं और आसपास मवेशी भी खूब चरते हुए दिखा देते हैं !!
बाकी बात अगली पोस्ट में :
यही द्रश्य मुझे बार बार आकर्षित करते हैं |
जय श्री मध्यमहेश्वर |
ये असली फूल नहीं हैं :) |
बूढ़ा मध्यमहेश्वर से नीचे की तरफ दिखाई देता मध्यमहेश्वर मंदिर |
किसी ने इसे " कोबरा लिली " बताया( Somebody says , It is Cobra Lilly ) |
बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर ( बारिश शुरू होने लगी थी ) This is Budha Madhyamaheshwar Temple , about 2.5 Km ahead to Madhyamaheshwar Mandir |
http://epaper.jagran.com/
ट्रैकिंग आगे जारी रहेगी:
छोटे छोटे मन्दिर इतनी उचाईयो पर क्यो बनाये हुए है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वर्णन सर टेंट की फ़ोटो भी लगा देते
जवाब देंहटाएंसही सवाल बुआ जी। ये छोटे छोटे मंदिर स्थानीय देवता को समर्पित होते हैं जिन्हें क्षेत्रपाल कहते हैं। ये देवता लोगों के पशुओं और उनके खेतों , मैदानों की रक्षा करते हैं !! बहुत धन्यवाद बुआ आपका
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट में टेंट का भी फोटो लगाया है मित्रवर !! देखिएगा !! मित्र , अपना नाम भी लिख दिया करिये जिससे बात करना अच्छा लगता है !! बहुत धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंजबरदस्त
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