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सोमवार, 17 जुलाई 2017

Places to visit in Jaisalmer

अगर आप राजस्थान की शाही हवेलियों के साथ साथ रेत के धौरे ( Sand Dunes ) भी देखना चाहते हैं , उसमें लोटपोट हो जाना चाहते हैं , बच्चों के साथ फिर से एक बार बच्चा बन जाने की ख्वाहिशें मन में हिलोरें मार रही हैं तो मैं कहूंगा कि जैसलमेर से बेहतर कोई स्थान नहीं ! दिल्ली से शाम पांच बजे की रेलगाड़ी पकड़िए और अगले दिन जैसलमेर पहुँच जाइये ! जबरदस्त जगह है लेकिन आपके पास कितना समय है , उस हिसाब से अपने घूमने की जगह तय करिये ! वैसे तीन दिन में बहुत कुछ घूमा जा सकता है ! तो आज की इस पोस्ट में आपको जैसलमेर की उन जगहों के बारे में बताता चलता हूँ जहां आप परिवार सहित जा सकते हैं ! हाँ , इस लिस्ट में कुछ वो जगह भी शामिल की हैं जहां मैं नहीं जा सका लेकिन आप जाने की सोच सकते हैं ! तो आइये , जैसलमेर के घूमने लायक स्थानों के विषय में पढ़ते हैं : 

 Sonar Fort : Jaisalmer 

जैसलमेर फोर्ट को सबसे पहले स्थान पर रखिये , उसका कारण ये है कि ये जैसलमेर की जान तो है ही , दूसरा आपकी ट्रेन दोपहर में जैसलमेर पहुंचेगी तो जैसलमेर से बाहर जाना मुश्किल होगा ! तो फ्रेश होकर , खाना -वाना खाकर निकल जाइये गोल्डन फोर्ट देखने ! रात 10  बजे तक खुला रहता है ! जैसलमेर फोर्ट , वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है और दुनियां के सबसे बड़े संरक्षित किलों में से एक है ! जैसलमेर फोर्ट को 1156 ईसवी में राजपूत राजा रावल जैसल ने बनवाया था और उसी से इस शहर का नाम भी जैसलमेर हुआ ! और आप ये देख सकते हैं कि पूरा जैसलमेर शहर ही इस किले के चारों तरफ में बसा हुआ है ! जैसलमेर की धरती से करीब 30 मीटर ऊंचाई पर , त्रिकुटा की पहाड़ियों पर बना ये फोर्ट और ये शहर पुराने जमाने में "सिल्क रूट " से व्यापार करने वालों के लिए एक स्टे पॉइंट हुआ करता था ! इस क़िले का पत्थर ऐसा है कि जब इस पर सूरज की किरणें पड़ती हैं तो इसका रंग सोने जैसा चमकने लगता है , इसीलिए इस किले को "सोनार क़िला " या Golden Fort कहते हैं !



Patwon ki Haveli : Jaisalmer

जैसलमेर का किला घूमने के पश्चात आप पटवा हवेली जा सकते हैं लेकिन ध्यान रहे , ये हवेली 6 बजे बंद हो जाती है तो या तो आप पहले यहां घूम आएं उसके बाद गोल्डन फोर्ट देखने जाएँ या फिर इसे अगले दिन के लिए टाल दें और जैसे ही आपको दो घंटे का समय मिले , यहां हो आइये !​जैसलमेर में "पटवों की हवेली " जैसलमेर की सबसे बड़ी हवेली मानी जाती है ! ये वास्तव में एक हवेली नहीं है बल्कि पांच हवेलियों से मिलकर बनी है जिसमें पहली "कोठारी की पटवा हवेली " सबसे ज्यादा आकर्षक और प्रसिद्ध है ! दूसरी बात ये कि ये हवेली जैसलमेर की सबसे पहली हवेली है जिसे सन 1805 में गुमान चंद पटवा ने बनवाया ! गुमान जी बड़े रईस थे और उन्होंने अपने पाँचों बेटों के लिए हवेलियां बनवाई जिन्हें पूरा होने में 50 साल लग गए ! इस हवेली में कई तरह के ताले ( Locks ) और राजस्थानी पगड़ियां देखने का मौका मिला ! इस हवेली की दीवारें राजशाही होने का सबूत देती हैं !




Sam Sand Dunes : Jaisalmer 

​अगले दिन सुबह या शाम को सम सैंड डून्स में मजे करने का समय निर्धारित करिये  ! हालाँकि सम जाने के लिए सबसे बेहतर समय सनराइज के समय या फिर शाम को सनसेट के समय है लेकिन हमारी व्यवस्था इन दोनों समय में नहीं बन पा रही थी इसलिए लगभग दोपहर में ही जा पाए ! जैसलमेर से 42 किलोमीटर दूर सम गाँव डेजर्ट सफारी के लिए बहुत प्रसिद्द जगह है , हालाँकि अब खुड़ी और घनाना भी डेजर्ट सफारी के लिए बढ़िया और मजेदार पॉइंट बन रहे हैं , लेकिन इन जगहों तक परिवार के साथ जैसलमेर से पहुंचना मुझे थोड़ा असुविधाजनक लगा इसलिए हमने सम को ही चुना ! फिर कहूंगा कि अगर आपके पास समय और धन की दिक्कत नहीं तो आप खुड़ी जाएँ , ज्यादा अच्छा रहेगा ! सम में लेकिन आप परिवार के साथ आराम से जा सकते हैं और लौटते हुए दूसरी जगहों को भी देख के , घूम के आ सकते हैं ! सम, जैसलमेर के चारों तरफ फैले "थार रेगिस्तान " को देखने और घूमने का बढ़िया स्थान है ! हनुमान सर्किल से आपको शेयर्ड जीप या SUV मिल जाती हैं लेकिन थोड़ा इंतज़ार करना होगा , या फिर आप अपनी गाडी लें ! सम तक का किराया शेयर्ड गाडी में 100 रूपये तक लग जाता है प्रति सवारी और अगर आप रेंट पर लेकर जाना चाहते हैं तो कम से कम 600 -700 -800 तक लग सकता है ! बेहतर है रेंट पर ही गाडी ली जाए !


 Kuldhara : A Haunted Village 


जैसलमेर शहर से दक्षिण -पश्चिम दिशा में करीब 18 किलोमीटर दूर कुलधरा गाँव एक भुतहा (Haunted ) गाँव माना जाता है ! भुतहा कैसे हो गया ये गांव ! इस पर अलग अलग लोगों की अलग अलग कहानियां हैं ! कोई कहता है कि पानी की बेतहाशा कमी की वजह से ये गांव धीरे धीरे खाली होता चला गया और फिर जब ये पूरा गांव खाली हो गया तो यहाँ भूतों ने अपना डेरा जमा लिया ! उधर दूसरी कहानी भी सुनने को मिलती है जो ज्यादा सटीक बैठती है ! उस कहानी को हालाँकि सालिम सिंह के लोग , उनके वंशज ख़ारिज करते हैं ! लेकिन वो कहानी है क्या ? ये जानना भी तो जरुरी है !


Lodurva 

लोद्रवा , जैसलमेर से 15 किलोमीटर दूर बहुत छोटा सा गांव है लेकिन यही गाँव 1156 ईस्वी तक रावल की राजधानी हुआ करता था और फिर जब रावल ने जैसलमेर बसा लिया तो राजधानी भी जैसलमेर हो गई ! खैर , इसके अलावा लोद्रवा 23 वे जैन तीर्थंकर पार्शवनाथ जी के मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है ! इस मंदिर को 1152 ईस्वी में मुहम्मद गोरी ने तोड़ दिया था लेकिन फिर बाद में व्यापारी थारू शाह ने सन 1615 ईस्वी में फिर से बनवाया और फिर और भी बेहतर बनता गया ! इसके अलावा ऋषभनाथ जी और सम्भवनाथ जी के मंदिर भी देखने लायक हैं ! इसके थोड़ा पीछे की तरफ माता हिंगलाज देवी का मंदिर है ! हिंगलाज माता का असली मंदिर पाकिस्तान के कराची में है लेकिन वहां जाना लगभग असंभव है हमारे लिए , इसलिए यहीं दर्शन कर लेते हैं ! 

Heritage Walk of Gadisar Lake : Jaisalmer 

गड़ीसर लेक , एक कृत्रिम जलाशय ( Men  Made ) है जिसे 14 वीं सदी में राजा महरावल गड़सी ने बनवाया था और संभवतः वहीँ से ये नाम आया होगा , गड़ीसर लेक ! यही लेक कभी जैसलमेर के लिए पानी सप्लाई का मुख्य स्रोत थी और आज जैसलमेर का बढ़िया टूरिस्ट पॉइंट बन चुकी है ! बोटिंग के साथ साथ यहां के घाट और मंदिर भी सुन्दर लगते हैं ! लेक के आसपास बहुत सारे पक्षी देखने को मिलेंगे जो शायद "भरतपुर बर्ड सेंचुरी " जाते हुए या आते हुए यहां "स्टे " करते हैं ! जहां से गड़ीसर लेक हेरिटेज वाक  शुरू होता है वहीँ रोड के दूसरी तरफ राजस्थान सरकार का लोक संगीत केंद्र भी है जहां "पपेट शो " होता है ! इसका शो शाम 7 बजे शुरू होता है , मौका मिले तो देखिएगा जरूर , अच्छा लगेगा ! 


Jaisalmer War Memorial : Jaisalmer 

तो अब तय हुआ कि जैसलमेर से लगभग 10 किलोमीटर दूर , जैसलमेर -जोधपुर रोड पर स्थित भारतीय सेना के गर्व के क्षणों को परिभाषित और प्रदर्शित करने वाले "जैसलमेर वॉर मेमोरियल ( JWM) " को देखने और अपने सैनिकों की महान वीरगाथाओं से परिचित होने चलते हैं !  जैसलमेर वॉर मेमोरियल ( JWM ) भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास और भारतीय सैनिकों की वीरगाथाओं को प्रदर्शित करने का एक ऐसा स्थान बन गया है जहां आपका सीना गर्व से 56 " का हो जाता है ! 24 अगस्त 2015 में तैयार हुआ ये म्यूजियम 1965 के युद्ध की Golden Jubilee के रूप में भी देखा जा सकता है ! यहां इंडियन आर्मी हॉल और लोंगेवाला हॉल नाम से दो हॉल हैं जिनमें इंडियन आर्मी के जवान और अधिकारियों की वीरगाथाएं प्रदर्शित की गई हैं ! यहाँ परमवीर चक्र और महावीर चक्र विजेताओं के नाम उनकी तस्वीरों के साथ लिखे गए हैं ! पास में ही एक हॉल है जहां 20 मिनट की एक फिल्म चलती है भारतीय सेना के वीर जवानों की बहादुरी के किस्से दिखाती है ये फिल्म ! 20 रूपये का टिकट है और हाँ एक Souvenir Shop  भी है जहाँ से आप भारतीय सेना के प्रतीक चिन्ह जैसे Cap , Key Rings  , T-Shirts  , Stickers खरीद सकते हैं ! 


Salim Singh ki Haveli : Jaisalmer 

सालिम सिंह का पूरा नाम सालिम सिंह मेहता था जिन्होंने 1815 ईस्वी में इस महलनुमा हवेली का निर्माण कराया ! वो उस वक्त अपने राज्य "जैसलमेर " के दीवान मतलब प्रधानमंत्री हुआ करते थे ! आप इतिहास देखेंगे तो एक अंदाजा लगेगा कि मेहता नाम से कई लोग उस वक्त के शासक महारावल के प्रधानमंत्री रहे हैं , तो ऐसा कहा जा सकता है कि सालिम सिंह भी उसी फैमिली से आये होंगे ! सालिम सिंह का सम्बन्ध लोग कुलधरा गाँव की बर्बादी से भी जोड़ते हैं और ऐसे कहते हैं कि इन्हीं सालिम सिंह के अत्याचारों और इनकी पालीवाल ब्राह्मणों की लड़की पर बुरी नजर के चलते ही कुलधारा गाँव एक ही रात में वीरान हो गया था। हालाँकि सालिम सिंह के परिवार के लोग ( वंशज ) इस बात को स्वीकार नहीं करते ! सच क्या है -भगवान जाने !  

​अब कुछ वो जगह जहां मैं जाना चाहता था लेकिन समय अभाव के कारण नहीं जा पाया ! आगे के दो स्थान का विस्तृत विवरण और फोटो आदरणीय श्री हर्षवर्धन जोग जी के ब्लॉग से दे रहा हूँ 

 Tanot Mata Mandir :

  तनोट एक छोटा सा रेगिस्तानी गाँव है जो जैसलमेर शहर से लगभग 150 किमी दूर है. यहाँ से अंतर्राष्ट्रीय सीमा लगभग 25 किमी है. यहीं एक विख्यात मंदिर है श्री तनोट माता मंदिर. कहा जाता है कि हिंगलाज माता का ही रूप तनोट माता हैं और तनोट माता का दूसरा रूप करनी माता हैं. हिंगलाज माता का मंदिर कराची से 250 किमी दूर बलोचिस्तान में हिंगोल नदी के किनारे है और करनी माता का मंदिर बीकानेर जिले में है.


भाटी राजपूत राजा केहर के पुत्र तन्नू राव तनोट माता के भक्त थे और उन्होंने विक्रमी सम्वत 828 याने सन771 में मंदिर की स्थापना की थी. मंदिर का नाम और मान्यता 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद बहुत बढ़ गई. तब से तनोट मंदिर हर जैसलमेर आने वाले पर्यटक की लिस्ट में शामिल हो गया है.

इस मान्यता की कहानी कुछ इस प्रकार है कि 1965 में तनोट के तीन ओर से पाक सेना ने भारी आक्रमण किया. तनोट की सुरक्षा के लिए 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और BSF की दो कम्पनियाँ थी जिसके मुकाबले दुश्मन की ब्रिगेड थी ( एक कम्पनी में आम तौर पर 100 से 300 जवान हो सकते हैं और एक ब्रिगेड में 1000 से 3000 तक ). कहा जाता है कि तनोट और उसके आसपास 3000 बम गिराए गए जिनमें से 20% तो फटे ही नहीं और ज्यादातर सुनसान रेगिस्तान की रेत में फटे जिससे जान माल का कोई नुक्सान नहीं हुआ. 450 गोले मंदिर परिसर में या आसपास गिरे पर फिर भी मंदिर का कोई नुकसान नहीं हुआ. इससे सैनिकों में और जोश भर गया और मनोबल ऊँचा हो गया. तीसरे दिन पस्त दुश्मन की बैरंग वापसी हो गई. 1965 के इस युद्ध के बाद मंदिर का इंतज़ाम BSF ने ले लिया.


Bada Bagh :

शहर से 6 किमी दूर बड़ा बाग़ है जिसे महारावल जय सिंह, द्वितीय ने सोलहवीं शताब्दी में बनवाया था. कहा जाता है की आम जनता की राहत के लिए राजा ने पानी का तालाब बनवाया और आसपास बाग़ लगवाया. 21 सितम्बर 1743 को महाराजा जय सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ने पास वाली पहाड़ी पर पिता की याद में छतरी बनवा दी. उसके बाद राजघराने के कई लोगों की छतरियां या स्मारक या cenotaph यहाँ बनाए गए. गाइड द्वारा बताया गया कि इन छतरियों की कुछ विशेषताएं हैं:
-  सभी छतरियां स्थानीय पीले पत्थर की बनी हुई हैं. जो छतरियां पिरामिड-नुमा हैं वो हिन्दू कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं और गोल गुम्बद की तरह छतरियां मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं.

- हर छतरी के नीचे तीन चार फुटा एक खड़ा पत्थर लगा है जिस पर घोड़े पर बैठे हुए राजा की नक्काशी है और साथ ही संक्षिप्त जीवनी लिखी हुई है. राजा के पत्थर के साथ एक पत्थर पर पटरानियों और तीसरे पत्थर पर छोटी रानियों के बारे में लिखा हुआ है.

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