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हम वो कलम नहीं हैं जो बिक जाती हों दरबारों में
हम शब्दों की दीप- शिखा हैं अंधियारे चौबारों में
हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं
डाकू को डाकू कहने की हिम्मत करने वाले हैं
आप ये सोच रहे होंगे आज मैं यात्रा वृतांत लिख रहा हूँ या " डॉ हरिओम पंवार " की रचनाओं को उठाकर चिपका रहा हूँ ! ऐसा कुछ नहीं है !
चौबटिया
गार्डन देख लेने के बाद हमारा इरादा भालू डैम तक जाने का था ! भालू डैम का
रास्ता चौबटिया के गेट से ही शुरू हो जाता है और घने जंगलों से होकर
गुजरता है ! यहां से मतलब चौबटिया से भालू डैम करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर
होगा लेकिन मुश्किल से आधा रास्ता तय किया होगा कि पाई ने अपने हथियार डाल
दिए और बैठ गया , पापा - अब नही चल सकता ! हालाँकि बड़ा बेटा हर्षित आगे
जाने को तैयार था लेकिन ऐसे बहुत मुश्किल हो जाता तो वापस लौटना पड़ा ! और
वापस थोड़ी देर चौबटिया में इधर उधर घूमते रहे ! रानीखेत के चौबटिया गार्डन
से निकलने के बाद अब हमारा उद्देश्य "कुमाऊं रेजिमेंट " का म्यूजियम देखने
जाना था ! मैं आपको बता चुका हूँ कि मुझे और मेरे दोनों बेटों को भारतीय
सेना और भारतीय सेना की वर्दी बहुत प्रभावित करती है और उसे पहनने का सपना
मेरा तो पूरा नही हुआ लेकिन बच्चों के दिल में ये सपना अभी बना हुआ है ,
भगवान् ने चाहा तो उनका सपना जरूर पूरा होगा !
कुमाऊं रेजिमेंट का म्यूजियम तीन बजे से शाम 5 बजे तक खुलता है और इस वक्त तीन बजकर 20 मिनट हो रहे थे , और यहां से जीप मिलने में भी पता नही कितनी देर लग जाए , हम चौबटिया से निकल आये और रोड पर आकर जीप का इंतज़ार करने लगे ! कुछ ही देर में जीप आ गयी , वो असल में किसी की निजी गाडी थी जो रानीखेत जा रही थी , हम भी लटक लिए ! बस उससे एक अनुरोध किया कि भाई झूला देवी मंदिर पर थोड़ा सा रोक के चलना , बस दर्शन करके चले चलेंगे ! मंदिर बहुत खूबसूरत बना है लेकिन हमने बस बाहर से ही एक फोटो ली और माता जी के आगे सर झुकाकर नमन किया और चल दिए !
रास्ता इतना मनभावन है कि बस मन करता है यहीं घूमते रहो , लेकिन कुछ तो मजबूरियां रही होंगी , कोई यूँ ही बेवफा नही होता , वाला हाल ! जीप वाले ने हमें नर सिंह स्टेडियम के सामने उतार दिया और बस सामने ही "कुमायूं रेजिमेंट " म्यूजियम है ! एक नए से रंगरूट से हाथ मिलाया , मैंने भी और बच्चों ने भी , ये बहुत ख़ुशी वाला पल था विशेषकर मेरे छोटे बेटे "पाई " के लिए ! म्यूजियम में थोड़ा अलग हिसाब था , वो ग्रुप में एंट्री दे रहे थे तो थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा ! तीस रूपये का टिकेट है लेकिन सब कुछ , मतलब फ़ोन , कैमरा , बैग सब काउंटर पर ही जमा करना होता है ! आप अंदर फोटो खींच ही नही सकते !
अब भी रोज कहर के बादल फटते हैं झोपड़ियों पर
कोई संसद बहस नहीं करती भूखी अंतड़ियों पर
अब भी महलों के पहरे हैं पगडण्डी की साँसों पर
शोकसभाएं कहाँ हुई हैं मजदूरों की लाशों पर
जब तक बंद तिजोरी में मेहनतकश की आजादी है
तब तक हम हर सिंहासन को अपराधी बतलायेंगे
बाग़ी हैं हम इन्कलाब के गीत सुनाते जायेंगे
इस म्यूजियम में कुमायूं रेजिमेंट के रणबांकुरों की वीरगाथा दिखाई गयी है , उन महान सैनिकों का इतिहास बताया गया है जो इस रेजिमेंट से निकलकर भारतीय सेना के सर्वोच्च पदों और सर्वोच्च पुरस्कारों को पाने के हकदार बने ! कुमायूं रेजिमेंट आज़ादी से पहले की रेजिमेंट है जो अंग्रेजों ने बनाई थी और इसीलिए कुमायूं रेजिमेंट का पराक्रम द्वितीय विश्व युद्ध में भी देखने को मिला ! ये तो आपको पता ही होगा कि कुमायूं रेजिमेंट का मुख्यालय रानीखेत में ही है ! एक घण्टा आराम से लग जाएगा अगर आप इस अच्छी तरह से देखेंगे तो , बाद में वहां के केयर टेकर कम गाइड ने फिर एक राउंड लगवाया और कुछ अनजान बातों को बताया ! बाहर आकर टैंक के फोटो लेने की अनुमति मिल गयी ! पूरा कैंट इलाका है तो फोटो लेने की बिल्कुल भी इजाजत नही है ! पास
में ही मनकामेश्वर मंदिर और एक गुरुद्वारा है , लेकिन हम नही जा पाए !
पैदल पैदल चलते चलते अब हम आशियाना पार्क पहुँच रहे थे जो रानीखेत जैसे
छोटे शहर में बच्चों के लिए मस्ती करने की एक शानदार जगह है ! ये जगह
रानीखेत के निचले हिस्से में है , तो हमें यहां के बाद होटल जाने के लिए
कुछ चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी !!
फोटो देखते जाइये , कल फिर मिलेंगे !
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थोड़ा कसरत हो जाए |
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ये कौन सा फल है ? |
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whats app के मैसेज देख लूँ |
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चौबटिया वापस लौट आये |
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एप्पल नही सही , पेड़ तो है मस्ती करने को |
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पता नही क्या है ये ? |
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झूला देवी मंदिर , बस बाहर से फोटो लिया और शीश झुकाया |
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कुमायूं रेजिमेंट के बाहर |
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शाम हो रही है और त्रिशूल चोटी अपना रंग बदल रही है |
मिलते हैं जल्दी ही :
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