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शानदार सुबह है आज ! अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार आज 16 जून 2016 का दिन है , होता रहे लेकिन मेरे लिए आज हिन्दू कैलेण्डर ज्यादा मायने रखता है ! आज एकादशी है , जी , एकादशी ! और आज के दिन त्रिदेव भगवान शिव , विष्णु और ब्रह्मा जी स्नान करने आएंगे इस पवित्र सरोवर "सतोपंथ " में ! न तो मैं दिव्यात्मा हूँ और न हमारे ग्रुप में मुझे कोई लगा , जिसे इन तीनों भगवान में से किसी एक के भी दर्शन हुए हों !
रात बीनू भाई की तबियत कुछ गड़बड़ा गयी तो उन्होंने सुबह सुबह ही वापस उतर जाने का प्लान बना लिया और बीनू भाई के साथ सुमित भी उतर जाएंगे ! आठ बजे के आसपास वो दोनों चाय नाश्ता लेकर नीचे की तरफ चल दिए ! कुछ ने स्वर्गारोहिणी की तरफ जाने की हिम्मत नही दिखाई और वहीँ आराम किया ! आखिर मैं , अमित तिवारी , जाट देवता संदीप भाई , सुशील जी और विकास नारायण , गाइड गज्जू भाई को लेकर स्वर्गारोहिणी की तरफ बढ़ चले ! सतोपंथ से मुश्किल से 500 मीटर चलने के बाद बहुत ही खतरनाक धार पर चलना पड़ा ! इतनी शार्प धार कि बाएं तरफ फिसले तो लुढकते लुढकते जान जाएंगी और दाएं तरफ कैसे भी शरीर का बैलेंस बिगड़ा तो बर्फ में बने छोटे छोटे गड्ढे अपने में दबा लेंगे ! बस जैसे तैसे उस पॉइंट तक पहुंचे जहां एक लाल रंग की झंडी लगी थी , जो ये बता रही है कि आप स्वर्गारोहिणी पहुँचने वाले हो लेकिन वास्तव में स्वर्गारोहिणी अभी यहां से 1 -1. 5 किलोमीटर दूर होगी ! अमित भाई हमेशा तेज चलते हैं तो स्वाभाविक बात है कि वो सबसे पहले वहां पहुँच गए और जब तक हम लोग पहुंचे वो स्वर्गारोहिणी की तरफ कदम बढ़ा चुके थे ! इस लाल झण्डी से लेकर स्वर्गारोहिणी तक "चन्द्र कुण्ड " " सूर्य कुण्ड " और " विष्णु कुण्ड " नाम के तीन कुण्ड देखने को मिलेंगे लेकिन हमारी हिम्मत आगे का रास्ता देखकर खत्म हो रही है ! आगे बहुत - बहुत कठिन रास्ता नजर आ रहा है जिस पर जगह जगह बड़े बड़े क्रेवास , बोल्डर दिखाई दे रहे हैं ! हम बस अमित भाई को जाते हुए देख रहे हैं और उनके पीछे गज्जू भाई को !
आपने टीवी चैनलों पर स्वर्गारोहिणी पर्वत को जरूर देखा होगा जिसमें वो स्वर्ग की सीढियां दिखाते हैं , वो मुझे नही लगता कि वहां तक जाते होंगे बल्कि इसी झण्डी पर रूककर यहीं से अपना कैमरा ज़ूम करके उन सीढ़ियों की शूटिंग कर लेते होंगे , उनके कैमरे वैसे भी बहुत बढ़िया क्वालिटी और बहुत ज्यादा ज़ूम के होते हैं ! हमारे चैनल वालों में न इतनी हिम्मत है और न इतनी फिटनेस कि वो ऐसे रास्तों को नाप भी सकें , जहां हर कदम मौत "क्रेवास " के रूप में "ट्रैप " लिए हुआ आपका इंतज़ार कर रही है ! हमारे टीवी चैनल वाले बस राजनीतिक बहस कर सकते हैं , कि केजरीवाल ने क्या कहा ? मोदी ने क्या कहा ? अब चैनल वालों को किसने क्या किया से ज्यादा इस बात की फ़िक्र रहती है कि किसने क्या कहा ? लेकिन फिर भी बेहतर है कभी कभी तो ये ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्रा करा ही देते हैं !!
स्वर्गारोहिणी वो जगह है जहां से युद्धिष्ठर अपने कुत्ते के साथ शरीर सहित स्वर्ग गए थे , और यहां उनके लिए स्वर्ग से स्वयं धर्मराज उन्हें लेने आये थे ! इस पर्वत पर जहां हमेशा बर्फ होती है , तीन - चार सीढ़ियों जैसी आकृति दिखाई देती है और उन्हें हम स्वर्ग की सीढियां मानकर नमन कर लेते हैं ! हमने भी वहीँ झण्डी वाली जगह से दूर से , हाथ जोड़कर इन सीढ़ियों को नमन कर लिया और अमित भाई को उस रास्ते पर आगे जाते हुए देखकर वापस मुड़ आये !
वापस सतोपंथ आकर कुछ खाया , दो लोग पहले ही नीचे की ओर जा चुके थे , अमित भाई स्वर्गारोहिणी की तरफ चले गए , बाकी हम जितने भी बचे , सब नाश्ता पानी लेकर सतोपंथ को अलविदा कह रहे थे ! मैंने मुड़ मुड़कर दो तीन बार उस पवित्र ताल को देखा और अपने आपको थोड़ा सा गौरवान्वित महसूस किया ! भगवान को धन्यवाद देने का मन किया तो सबसे पीछे कुछ देर रुककर , उस पवित्र ताल और उस परमपिता परमेश्वर के सम्मान के लिए अपना सिर झुकाकर नमन किया ! सुबह के साढ़े नौ या दस बजे होंगे ! वापस चलते हैं ! और वापसी में लक्ष्मी वन तक उतर जाने का मन है !
ओह ! सतोपंथ से नीचे उतरते ही पाँव फिसल गया और मुड़ गया है ! बहुत दर्द हो रहा है , चलना एकदम मुश्किल ! आयोडेक्स लगा लिया , कपड़ा भी बाँध लिया लेकिन दर्द कम नही हो रहा ! चलने की स्पीड बहुत कम है लेकिन क्योंकि हम उतर रहे हैं इसलिए ज्यादातर दबाव एड़ी पर नही , पंजों पर आ रहा है ! एक दो बुजुर्ग से लोगों को नीचे की तरफ से आते हुए देखता हूँ तो हौसला और भी बढ़ जाता है ! कुछ महिलाएं भी अपना स्टेमिना आजमा रही हैं या फिर अपनी श्रद्धा को पुनः परिभाषित कर रही हैं , वो ही जानें ! चक्रतीर्थ निकल गया है , जहां हम एक रात पहले रुके थे लेकिन आज अभी और चलना है और अभी टाइम भी बहुत है अपने पास ! मुश्किल से दोपहर के 12 बज रहे होंगे ! लेकिन जैसे ही चक्रतीर्थ वाली पहाड़ी से नीचे की तरफ उतरने लगा , बारिश होने लगी ! तुरन्त बैग में रखा पोंचू निकाला , लेकिन जल्दी जल्दी में पोंचू की बांह फट गयी ! जिस दिन यहां से गुजरे थे , मौसम बिलकुल साफ़ था , और यहां संजीव त्यागी जी ने स्नान भी किया था , लेकिन आज सब जगह पानी ही पानी था , रास्ता भी नही दिख रहा था तो फिर से ऊपर चढ़ना पड़ा , जहां बड़े बड़े पत्थर थे ! एक बार आगे चल रहे लोगों ने हाथ हिलाकर कुशल क्षेम भी पूछ ली , लेकिन फिर उसके लगभग आधा घंटे तक कोई नही दिखा , मैं इतनी भयंकर बारिश में अकेला ही चलता रहा ! अब तक का सबसे कठिन समय था ये इस यात्रा का ! पैर में भयानक दर्द , ऊपर से भयानक बारिश और रास्ते का कोई अंदाज़ा नही ! परेशानी के बादल जल्दी ही छंट गए , ऊपर बारिश बंद हो गयी और नीचे कमल भाई दूर बैठे इंतज़ार करते हुए दिखाई दे गए ! बाकी लोग आगे जा चुके हैं ! सब लक्ष्मी वन पर मिल जाएंगे ! धीरे धीरे चलते हुए , अलका पूरी पहुँच गए ! पीछे से अमित भाई भाई अपनी घोड़े वाली चाल से चले आ रहे थे ! उनका जूता खून से भरा हुआ था ! वो जब स्वर्गारोहिणी गए थे तब उन्हें भयंकर चोट लग गयी और उनका पैर फट गया था , लेकिन बंदे की चाल पर कोई फर्क नही पड़ा ! थोड़ी देर में ही हमसे आगे निकल गए !
मैं और कमल भाई आराम आराम से चलते रहे , एक जगह आकर दो तीन टेंट दिखाई दिए जिनमें शायद कपल थे , उनकी आवाज़ सुनकर ऐसा ही महसूस हो रहा था ! उसी गुफा के पास जहां बीनू भाई को गुफा में बिल्ली दिखाई दी थी ! वो लक्ष्मी वन दिखाई दे रहा है , आज भारी बारिश की वजह से छोटे छोटे झरने भी पूरी तेजी से बह रहे हैं और उन्हें पार करना मुश्किल सा हो गया है !
लक्ष्मी वन पहुँच गए हम भी , जहां पहले से और लोग भी आये हुए हैं ! हाँ , बीनू बाबा और सुमित नौटियाल यहां नही हैं , वो लोग आज ही बद्रीनाथ तक उतर गए होंगे ! शाबाश ! एक ही दिन में 28 किलोमीटर ! बढ़िया ! लक्ष्मी वन पर कल एक नए बाबा ने ठिकाना बना लिया है जिनका आश्रम अभी निर्माणाधीन है ! थका हुआ हूँ , जल्दी खा पीकर सोना चाहता हूँ !!
रात बीनू भाई की तबियत कुछ गड़बड़ा गयी तो उन्होंने सुबह सुबह ही वापस उतर जाने का प्लान बना लिया और बीनू भाई के साथ सुमित भी उतर जाएंगे ! आठ बजे के आसपास वो दोनों चाय नाश्ता लेकर नीचे की तरफ चल दिए ! कुछ ने स्वर्गारोहिणी की तरफ जाने की हिम्मत नही दिखाई और वहीँ आराम किया ! आखिर मैं , अमित तिवारी , जाट देवता संदीप भाई , सुशील जी और विकास नारायण , गाइड गज्जू भाई को लेकर स्वर्गारोहिणी की तरफ बढ़ चले ! सतोपंथ से मुश्किल से 500 मीटर चलने के बाद बहुत ही खतरनाक धार पर चलना पड़ा ! इतनी शार्प धार कि बाएं तरफ फिसले तो लुढकते लुढकते जान जाएंगी और दाएं तरफ कैसे भी शरीर का बैलेंस बिगड़ा तो बर्फ में बने छोटे छोटे गड्ढे अपने में दबा लेंगे ! बस जैसे तैसे उस पॉइंट तक पहुंचे जहां एक लाल रंग की झंडी लगी थी , जो ये बता रही है कि आप स्वर्गारोहिणी पहुँचने वाले हो लेकिन वास्तव में स्वर्गारोहिणी अभी यहां से 1 -1. 5 किलोमीटर दूर होगी ! अमित भाई हमेशा तेज चलते हैं तो स्वाभाविक बात है कि वो सबसे पहले वहां पहुँच गए और जब तक हम लोग पहुंचे वो स्वर्गारोहिणी की तरफ कदम बढ़ा चुके थे ! इस लाल झण्डी से लेकर स्वर्गारोहिणी तक "चन्द्र कुण्ड " " सूर्य कुण्ड " और " विष्णु कुण्ड " नाम के तीन कुण्ड देखने को मिलेंगे लेकिन हमारी हिम्मत आगे का रास्ता देखकर खत्म हो रही है ! आगे बहुत - बहुत कठिन रास्ता नजर आ रहा है जिस पर जगह जगह बड़े बड़े क्रेवास , बोल्डर दिखाई दे रहे हैं ! हम बस अमित भाई को जाते हुए देख रहे हैं और उनके पीछे गज्जू भाई को !
आपने टीवी चैनलों पर स्वर्गारोहिणी पर्वत को जरूर देखा होगा जिसमें वो स्वर्ग की सीढियां दिखाते हैं , वो मुझे नही लगता कि वहां तक जाते होंगे बल्कि इसी झण्डी पर रूककर यहीं से अपना कैमरा ज़ूम करके उन सीढ़ियों की शूटिंग कर लेते होंगे , उनके कैमरे वैसे भी बहुत बढ़िया क्वालिटी और बहुत ज्यादा ज़ूम के होते हैं ! हमारे चैनल वालों में न इतनी हिम्मत है और न इतनी फिटनेस कि वो ऐसे रास्तों को नाप भी सकें , जहां हर कदम मौत "क्रेवास " के रूप में "ट्रैप " लिए हुआ आपका इंतज़ार कर रही है ! हमारे टीवी चैनल वाले बस राजनीतिक बहस कर सकते हैं , कि केजरीवाल ने क्या कहा ? मोदी ने क्या कहा ? अब चैनल वालों को किसने क्या किया से ज्यादा इस बात की फ़िक्र रहती है कि किसने क्या कहा ? लेकिन फिर भी बेहतर है कभी कभी तो ये ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्रा करा ही देते हैं !!
स्वर्गारोहिणी वो जगह है जहां से युद्धिष्ठर अपने कुत्ते के साथ शरीर सहित स्वर्ग गए थे , और यहां उनके लिए स्वर्ग से स्वयं धर्मराज उन्हें लेने आये थे ! इस पर्वत पर जहां हमेशा बर्फ होती है , तीन - चार सीढ़ियों जैसी आकृति दिखाई देती है और उन्हें हम स्वर्ग की सीढियां मानकर नमन कर लेते हैं ! हमने भी वहीँ झण्डी वाली जगह से दूर से , हाथ जोड़कर इन सीढ़ियों को नमन कर लिया और अमित भाई को उस रास्ते पर आगे जाते हुए देखकर वापस मुड़ आये !
वापस सतोपंथ आकर कुछ खाया , दो लोग पहले ही नीचे की ओर जा चुके थे , अमित भाई स्वर्गारोहिणी की तरफ चले गए , बाकी हम जितने भी बचे , सब नाश्ता पानी लेकर सतोपंथ को अलविदा कह रहे थे ! मैंने मुड़ मुड़कर दो तीन बार उस पवित्र ताल को देखा और अपने आपको थोड़ा सा गौरवान्वित महसूस किया ! भगवान को धन्यवाद देने का मन किया तो सबसे पीछे कुछ देर रुककर , उस पवित्र ताल और उस परमपिता परमेश्वर के सम्मान के लिए अपना सिर झुकाकर नमन किया ! सुबह के साढ़े नौ या दस बजे होंगे ! वापस चलते हैं ! और वापसी में लक्ष्मी वन तक उतर जाने का मन है !
ओह ! सतोपंथ से नीचे उतरते ही पाँव फिसल गया और मुड़ गया है ! बहुत दर्द हो रहा है , चलना एकदम मुश्किल ! आयोडेक्स लगा लिया , कपड़ा भी बाँध लिया लेकिन दर्द कम नही हो रहा ! चलने की स्पीड बहुत कम है लेकिन क्योंकि हम उतर रहे हैं इसलिए ज्यादातर दबाव एड़ी पर नही , पंजों पर आ रहा है ! एक दो बुजुर्ग से लोगों को नीचे की तरफ से आते हुए देखता हूँ तो हौसला और भी बढ़ जाता है ! कुछ महिलाएं भी अपना स्टेमिना आजमा रही हैं या फिर अपनी श्रद्धा को पुनः परिभाषित कर रही हैं , वो ही जानें ! चक्रतीर्थ निकल गया है , जहां हम एक रात पहले रुके थे लेकिन आज अभी और चलना है और अभी टाइम भी बहुत है अपने पास ! मुश्किल से दोपहर के 12 बज रहे होंगे ! लेकिन जैसे ही चक्रतीर्थ वाली पहाड़ी से नीचे की तरफ उतरने लगा , बारिश होने लगी ! तुरन्त बैग में रखा पोंचू निकाला , लेकिन जल्दी जल्दी में पोंचू की बांह फट गयी ! जिस दिन यहां से गुजरे थे , मौसम बिलकुल साफ़ था , और यहां संजीव त्यागी जी ने स्नान भी किया था , लेकिन आज सब जगह पानी ही पानी था , रास्ता भी नही दिख रहा था तो फिर से ऊपर चढ़ना पड़ा , जहां बड़े बड़े पत्थर थे ! एक बार आगे चल रहे लोगों ने हाथ हिलाकर कुशल क्षेम भी पूछ ली , लेकिन फिर उसके लगभग आधा घंटे तक कोई नही दिखा , मैं इतनी भयंकर बारिश में अकेला ही चलता रहा ! अब तक का सबसे कठिन समय था ये इस यात्रा का ! पैर में भयानक दर्द , ऊपर से भयानक बारिश और रास्ते का कोई अंदाज़ा नही ! परेशानी के बादल जल्दी ही छंट गए , ऊपर बारिश बंद हो गयी और नीचे कमल भाई दूर बैठे इंतज़ार करते हुए दिखाई दे गए ! बाकी लोग आगे जा चुके हैं ! सब लक्ष्मी वन पर मिल जाएंगे ! धीरे धीरे चलते हुए , अलका पूरी पहुँच गए ! पीछे से अमित भाई भाई अपनी घोड़े वाली चाल से चले आ रहे थे ! उनका जूता खून से भरा हुआ था ! वो जब स्वर्गारोहिणी गए थे तब उन्हें भयंकर चोट लग गयी और उनका पैर फट गया था , लेकिन बंदे की चाल पर कोई फर्क नही पड़ा ! थोड़ी देर में ही हमसे आगे निकल गए !
मैं और कमल भाई आराम आराम से चलते रहे , एक जगह आकर दो तीन टेंट दिखाई दिए जिनमें शायद कपल थे , उनकी आवाज़ सुनकर ऐसा ही महसूस हो रहा था ! उसी गुफा के पास जहां बीनू भाई को गुफा में बिल्ली दिखाई दी थी ! वो लक्ष्मी वन दिखाई दे रहा है , आज भारी बारिश की वजह से छोटे छोटे झरने भी पूरी तेजी से बह रहे हैं और उन्हें पार करना मुश्किल सा हो गया है !
लक्ष्मी वन पहुँच गए हम भी , जहां पहले से और लोग भी आये हुए हैं ! हाँ , बीनू बाबा और सुमित नौटियाल यहां नही हैं , वो लोग आज ही बद्रीनाथ तक उतर गए होंगे ! शाबाश ! एक ही दिन में 28 किलोमीटर ! बढ़िया ! लक्ष्मी वन पर कल एक नए बाबा ने ठिकाना बना लिया है जिनका आश्रम अभी निर्माणाधीन है ! थका हुआ हूँ , जल्दी खा पीकर सोना चाहता हूँ !!
फिर मिलेंगे जल्दी ही:
स्वर्गारोहिणी |
इन रास्तों पर ऐसे चोर बहुत मिलते हैं |
इन रास्तों पर ऐसे चोर बहुत मिलते हैं |
स्वर्गारोहिणी |
रास्ता दिख रहा है कहीं ? अमित भाई इसी रास्ते से गए थे स्वर्गारोहिणी |
पीछे स्वर्गारोहिणी है |
सीढियां दिखी क्या ? |
ये फिर से सहस्त्रधारा पहुँच गए |
ये फिर से सहस्त्रधारा पहुँच गए |
हम स्वर्गारोहिणी तो नही पहुँच पाए , झंडी पकड़ के ही फोटो खिंचवा लेते हैं |
ये तसवीरें हमेशा याद रहेंगी !! |
Bahot Bahot Shandar
जवाब देंहटाएंYou have mentioned "you can see many Thieves" Thieves का मतलब चोर होता है. चित्र से वो गुफा लग रही है. सही Spelling क्या है.
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