हम परिवार सहित चित्तौड़गढ़ से लौटते हुए आगरा का लाल किला घूम कर आये ! मुझे
यूँ मुगलों के बनाये महल -मकबरे बिलकुल भी पसंद नही हैं लेकिन छोटे छोटे
बच्चों की इच्छा का दमन करना भी गलत है ! इसीलिए आज मुगलों के बनाये इन
गुलामी के प्रतीकों पर मैं एक भी शब्द नही लिखूंगा !! केवल फोटो देखिये :
पापा ! कैसा लग रहा हूँ मैं ? पारितोष |
राम -लखन की जोड़ी ! न न हर्षित और पारितोष की जोड़ी |
आज ऊँगली पकड़ के तेरी मैं तुझको गिरने से बचाऊँ
कल हाथ थामना मेरा , जब मैं बूढ़ा हो जाऊं !! |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें