पेज

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

स्थानीश्वर मंदिर : कुरुक्षेत्र



इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये !!​
 
 
हर्ष का टीला और शेख चिल्ली का मक़बरा देखने में इतना समय गया कि अँधेरा सा होने लगा ! भूल ही गया कि बाहर ऑटो वाला भी खड़ा है और मेरा इंतज़ार कर रहा है ! पैदल पैदल घूमते हुए देर हो गयी और आसपास नजारा भी ऐसा था जिसे देखने में मन लग रहा था ! बाहर आकर तुरंत ही स्थानीश्वर मंदिर चल दिया !


स्थानीश्वर मंदिर बहुत ही सुंदर बना हुआ है ! समय की कमी के कारण पूजा पाठ और दर्शन तो नही कर पाया किन्तु बाहर से फोटो जरूर खींचे ! स्थानीश्वर महादेव मंदिर जैसा कि नाम से लग रहा है भगवान शिव को समर्पित है ! ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए पांडवों ने भगवन श्री कृष्णा के साथ यहां शिव की उपासना की थी और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था ! इसी मंदिर के पास सिखों के नौवें गुरु , गुरु तेगबहादुर जी की स्मृति में एक गुरुद्वारा भी है ! गुरु तेगबहादुर ने यहां एक रात अपना ठिकाना बनाया था ! ऐसा कहा जाता है कि जब तक आप इस मंदिर के दर्शन नही कर लेते तब तक आपकी कुरुक्षेत्र यात्रा संपन्न नही मानी जाती ! इस मंदिर के नाम से ही इस स्थान का नाम स्थानीश्वर या थानेश्वर पड़ा ! सर्वप्रथम यहां भगवान शिव ने लिंगम के रूप में आराधना करी थी ! यहीं इसी जगह पर महाभारत के नायक "कुरु " ने यमुना किनारे तपस्या करी थी और इसी ताकत के बलबूते उन्होंने यहां कई योद्धाओं के प्राण ले लिए ! 
 
 
 

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

हर्ष का टीला : कुरुक्षेत्र

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये !!​


पिछली पोस्ट शेख चिल्ली के मकबरे की थी जिसमें आपने शेख चिल्ली और उसकी पत्नी के मकबरे को देखा था ! पिछली पोस्ट में श्री हर्षवर्धन जोग साब ने अपनी टिप्पणी में एक बहुत सही बात लिखी थी कि हमारे उत्तर भारत में शेख चिल्ली का मतलब अपनी नादानियों और ऊट पटांग हरकतों से लोगों को हसाने वाले एक कॉमिक करैक्टर से होता है ! या ऐसे व्यक्ति से मतलब है जो दिन में भी सपने देखता हो , या बड़े बड़े हवाई ख्वाब बनाता हो ! कभी कभी ऐसे आदमी को हम कह भी देते हैं - अब चल भी शेख चिल्ली की औलाद ! शेख चिल्ली की औलाद मतलब उसकी तरह ही दिन में ख्वाब देखने वाला प्राणी ! धन्यवाद जोग साब !


मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

शेख चिल्ली का मक़बरा : कुरुक्षेत्र

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये !!​


ज्योतिसर देखने के बाद उसी रास्ते पर ज्योतिसर से बिलकुल पास ही पड़ने वाले गीता मंदिर जाने का कार्यक्रम था लेकिन जब वहां पहुंचा तब वो मंदिर बंद था ! अब ये शाम को चार बजे खुलेगा और अभी बजे हैं तीन ! यानि पूरा एक घण्टा इंतज़ार करना पड़ेगा , ये संभव नही क्योंकि आज ही वापस लौटना है और अभी बहुत कुछ देखना बाकी है ! इधर उधर के फोटो लिए और चलते बने ! यहां इस मंदिर प्रांगण में पीछे की तरफ गौशाला है जिसमें सौ से ज्यादा गायें बंधी हुई थीं ! मुख्य मंदिर की ईमारत बहुत ही खूबसूरत बनी हुई है और इसी से इसकी खूबसूरती का अंदाजा लगाया जा सकता है ! मुख्य दरवाज़े तक दोनों तरफ सीढ़ियां बनी हुई हैं और बीच में कुछ अलग अलग साइज के पत्थर लगे हुए हैं जिनमें लाइट लगाई हुई हैं ! कल्पना करिये कि रात के अँधेरे में ये कितनी खूबसूरत लगती होंगी ! निर्माण कार्य अभी चल रहा है !!


बुधवार, 2 दिसंबर 2015

ज्योतिसर :कुरुक्षेत्र

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये !!​


ब्रह्म सरोवर और उसके आसपास के स्थानों को देखने के बाद अब सीधा ज्योतर्सर के लिए जाना था ! और इसके लिए मुख्य सड़क तक आना था जहां से ऑटो या बस मिल सके ! कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर , कुरुक्षेत्र -पेहोवा रोड पर एक छोटी सी जगह है ज्योतिरसर ! कुरुक्षेत्र में आपको अलग अलग समाज की धर्मशालाएं दिखाई देती हैं ! जितनी भी दिखीं उनमें "जाट धर्मशाला " बहुत ही बड़ी है ! बहुत लम्बी चौड़ी ! और भी धर्मशालाएं हैं ! जाट धर्मशाला के पास में ही बिरला गीता मंदिर भी है , लेकिन जा नही पाया !

मुख्य रोड पर आकर दो चार ऑटो वालों को रोका और पूछा -ज्योतिरसर ? आगे बढ़ा ले जाते ! कोई जवाब नही ! एक बुजुर्ग बोले - बस से चले जाओ , बस भी जाती है ! अब बस भी लिस्ट में शामिल हो गयी लेकिन इसी बीच एक ऑटो आया और उससे बात हुई तो बोला इधर से तो आप पहुँच जाओगे लेकिन फिर लौटने में परेशानी होगी और देर भी होगी ! बात करते करते उससे ज्योतिरसर के अलावा "शेख चिल्ली का मक़बरा " "हर्ष का टीला "और भद्रकाली मंदिर देखने का किराया 200 रुपया तय हुआ और निकल गए ज्योतिरसर की तरफ !



 भगवद् गीता के जन्म का साक्षी वट वृक्ष

शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

सर्वेश्वर महादेव और अन्य मंदिर : कुरुक्षेत्र

 इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये !!​

ब्रह्म सरोवर को साइड साइड से देखते हुए लगभग एक पूरा चक्कर गोल गोल लगा लिया और वापस जहाँ से चला था वहीँ आ गया ! यहाँ माँ कात्यायनी का एक प्राचीन मंदिर है हालाँकि मुझे आज तक ये नही समझ में आया कि प्राचीन मंदिर कहते किसे हैं ? कहीं कल मंदिर बना और उसके बाहर बोर्ड लगा मिलेगा , प्राचीन शिव मंदिर , प्राचीन हनुमान मंदिर ! जैसा मैंने पहले कहा कि अंदर रास्ता बहुत ही साफ़ सुथरा और चौड़ा है इसलिए कोई समस्या नही आती ! यहीं एक ऐसा मंदिर है जिसे द्रौपदी का कुआँ (कूप ) कहा जाता है लेकिन कूप तो कहीं नही दिखाई दिया ! थोड़ा सा आगे पूर्वमुखी हनुमान जी का मंदिर है ! गुणी पाठकों से निवेदन करूँगा कि इस विषय में ज्ञान वर्धन करें कि पूर्व मुखी , दक्षिण मुखी क्या होता है ?



शनिवार, 21 नवंबर 2015

विश्व के 10 खतरनाक ब्रिज

जंगलों से घिरी घाटियों से लेकर आसमान की  ऊंचाइयों तक विश्व भर में एक से एक खतरनाक पुल बने हुए हैं ! कुछ इतने पुराने और कुछ इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना ! हमें उन लोगों को धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने नए विचारों को अपने तकनीकी कौशल और अपनी योग्यता के दम  पर मानवता के भले के लिए काम किया ! कुछ लोग होते हैं जो इंसानों के बीच पुल बनाते हैं उन्हें हम मानवता का पुजारी कहते हैं और कुछ लोग होते हैं जो मानवता  के भले के लिए काम करते हैं उन्हें कुछ भी नाम दे सकते हैं ! 


इन पुलों को खतरनाक कहने के लिए कुछ फैक्टर्स लिए गए हैं जैसे उनकी संकीर्णता ( Narrowness ) , पुरानी सरंचना (old construction ) , उसमें लगने वाली धातु  (Material ) ! आइये ऐसे 10 खतरनाक पुलों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं !


बुधवार, 18 नवंबर 2015

ब्रह्म सरोवर : कुरुक्षेत्र

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करिये !!​

​कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन के बाहर से ब्रह्म सरोवर के लिए ऑटो मिल जाते हैं ! लेकिन कुरुक्षेत्र में दो सरोवर हैं ब्रह्म सरोवर और सन्निहित सरोवर ! ब्रह्म सरोवर को बड़ा सरोवर और सन्निहित सरोवर को छोटा सरोवर कहते हैं ! तो ब्रह्म सरोवर यानि बड़ा सरोवर चलते हैं !

ब्रह्म सरोवर में स्नान एक पुण्य कर्म माना जाता है ! आप देखें तो पाएंगे कि हिन्दू धर्म में पवित्र सरोवर या कुण्ड में नहाने की पुरानी परंपरा रही है और इसे पवित्र माना जाता है ! जैसे हेमकुंड , रूप कुण्ड ! ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ करने के बाद कुरुक्षेत्र से ही सृष्टि बनाने की शुरूआत की थी और ब्रह्म सरोवर इस सृष्टि का उद्गम माना जाता है ! इस सरोवर का नाम अल बरुनी द्वारा 11 वीं शताब्दी में लिखी गयी गई "किताब -उल- हिन्द " में भी आता है ! जब प्रतिवर्ष नवम्बर के अंत और दिसंबर के शुरुआत में यहां "गीता जयंती " का उत्सव मनाया जाता है तब इस सरोवर को देखना और भी सुन्दर लगता है ! ​उस समय यहां दीप दान और आरती भी होती है ! लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ यहां सूर्य ग्रहण के समय होती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सूर्य ग्रहण के समय यहां स्नान करने से आपके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं !


सोमवार, 16 नवंबर 2015

कुरुक्षेत्र : जहाँ भगवद् गीता का जन्म हुआ

कभी कभी ज्यादा छुट्टियां मिलना भी अच्छा नहीं लगता ! बोरियत शुरू होने लगती है ! दीपावली की लगभग पूरे सप्ताह की छुट्टियों में यही हाल रहा ! कहीं अगर जाने का सोचता तो हर जगह मिलने वाली भीड़ के बारे में सोचकर कदम पीछे हट जाते और ऐसे करके शुक्रवार यानि 13 नवंबर तक घर में ही पड़ा रहा और बच्चों के साथ दीपावली की खुशियां मनाता रहा ! पिछला दीपावली का त्यौहार गोवर्धन , मथुरा में मनाया था ! शुक्रवार को एकदम से प्लान किया कि शनिवार को कुरुक्षेत्र निकलता हूँ ! प्लान तो ये था कि सुबह गाजियाबाद से 7 बजे की emu  पकड़ के नयी दिल्ली और फिर नयी दिल्ली से 8 बजकर 10 मिनट पर निकलने वाली कुरुक्षेत्र EMU पकड़ लूंगा !  लेकिन ऐसा कुछ भी नही हो पाया ! उस रात प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इंग्लैंड के लंदन में वेम्ब्ले स्टेडियम में स्पीच दे रहे थे और उन्हें सुनते सुनते रात के बारह बज गए फिर तो नींद ही उखड गयी ! और मुश्किल से 2 या ढाई बजे नींद आई होगी ! अब 2 ढाई बजे सोकर कोई मतलब ही नही कि 6 बजे जग जाया जाए ! नींद खुली आठ बजे और आज तो चाय भी खुद ही बनानी थी ! निकलते निकलते 9 बज गए !


बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

​ योगमाया मंदिर : महरौली , दिल्ली

माँ जब बुलाती है तभी जा पाते हैं ! 

चलो बुलावा आया है
माता ने बुलाया है !!

ये शब्द हम हमेशा माँ वैष्णो देवी के द्धार जाने के लिए बोलते हैं लेकिन ​गाजियाबाद से मात्र 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महरौली , दिल्ली में देवी योगमाया के मंदिर तक पहुँचने में पूरे 4 महीनों का समय लग गया ! कभी कुछ काम लग गया कभी कुछ ! आखिर नवरात्रों के दिन में कुछ समय मिला और योगमाया मंदिर देखने निकल गया ! दोपहर बाद साढ़े तीन बजे जापानी भाषा की क्लास ख़त्म कर मूलचंद मेट्रो स्टेशन से केंद्रीय सचिवालय,  वहां से येलो लाइन की मैट्रो से साकेत पहुंचा ! साकेत उतरने का कारण ये था कि वहाँ मैट्रो स्टेशन से बाहर निकलकर बस मिल जाती हैं ! मालवीय नगर स्टेशन पर या हौज ख़ास में बस नही मिल पाती ! मिलती भी है तो पैदल चलना पड़ता है ! साकेत मेट्रो स्टेशन से बाहर आकर 427 नंबर महरौली जाने वाली बस पकड़ी ! मंदिर की एग्जेक्ट लोकेशन मालूम नही थी इसलिए बस कंडक्टर से एक बार कह दिया - भाई योगमाया मंदिर उतार देना ! वो तुरंत बोला - ये बस योगमाया मंदिर नही जायेगी ! पीछे एक स्कूल का बच्चा बैठा था - वो बोला , अंकल आप बैठे रहो ! ये उधर होकर ही जायेगी ! रोड से बिलकुल पास ही है ! बच्चे स्मार्ट होते हैं !! थोड़ी देर बाद बस जाने पहिचाने से रास्ते पर चल रही थी ! ऐसा लगा जैसे मैंने ये जगह देखी है पहले कभी ! अरे , ये तो कुतुबमीनार की तरफ की जगह है ! सब याद आ गया ! थोड़े दिनों पहले परिवार के साथ कुतुबमीनार गया था लेकिन तब योगमाया मंदिर का नाम भी नही सुना था ! दिल्ली ऐसे खूब घूमी है लेकिन कोई कहे कि मुझे फलां जगह जाना है तो मैं नही बता सकता ! कुतुबमीनार के बिलकुल पीछे के तरफ एक गोल सा चक्कर काट के बस निकलती है ! बस बिलकुल पीछे ही है योगमाया मंदिर ! इस रास्ते में आपको देश के बड़े बड़े फैशन डिज़ाइनर जैसे , जे.जे वलैया , मनीष पॉल , मनीष मल्होत्रा , ऋतू कुमार आदि के बुटीक मिल जाएंगे देखने को ! आपकी मर्जी है खरीदना चाहें तो खरीदें , मेरी हिम्मत और औकात नही होती इतने महंगे कपडे खरीदने की !!


बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

गाँधी तेरे रूप अनेक

विदेशों की खूबसूरत वादियों, पहाड़ों और समंदर के तटों से अलग कुछ देखने का मन है, एक अलग एक्सपीरियंस के साथ ट्रैवल करना चाहते हैं तो इन जगहों पर आएं। पूरी जिंदगी देश के लिए लड़ने वाले गांधी जी के इन जगहों पर स्टैचू देखकर आश्चर्य के साथ ही गर्व भी होगा, क्योंकि इन जगहों पर गांधी जी को कई बार अपमान का सामना करना पड़ा था। आइये आपको अलग अलग देशों में ले चलते हैं जहां गांधी जी की मूर्तियां लगी हुई हैं :
1. जोहानिसबर्ग, साउथ अफ्रीका
जोहानिसबर्ग में गांधी की यह मूर्ति शहर के बीचोंबीच गांधी स्क्वेयर पर स्थित है। माना जाता है कि यह दुनिया में गांधी की एकमात्र प्रतिमा है, जिसमें उन्हें वकील के तौर पर दिखाया गया है। वह कोर्ट में पहने जाने वाले कपड़े पहने हुए हैं। उन्होंने यहां लॉ की प्रैक्टिस की थी। इस कारण जगह का नामकरण उनके नाम पर किया गया है। बताता चलूँ  कि महात्मा गांधी 1893 में साउथ अफ्रीका गए थे। वह 1903-14 तक जोहानिसबर्ग में रुके थे।


2.पीटरमैरित्जबर्ग, साउथ अफ्रीका
महात्मा गांधी के अंदर अहिंसा की भावना तो शुरू से ही थी, पर साउथ अफ्रीका के पीटरमैरित्जबर्ग में 1983 से ज्यादा गहरी हुई। प्रिटोरिया की सैर करते वक्त गांधी जी को ट्रेन से फेंका गया था, जबकि उनके पास फर्स्ट क्लास की टिकट थी। इस घटना ने गांधी जी को पूरी तरह बदल दिया था। उन्होंने नस्लभेद के खिलाफ आवाज उठाने की ठानी। ये स्टैचू उनके इसी प्रण की निशानी है।




3.एम्सटर्डम, नीदरलैंड
एम्सटर्डम में साल 1995 में महात्मा गांधी के स्टैचू को लगाया गया था। इसके अलावा, महात्मा गांधी को अर्धनग्न फकीर कहने वाले ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल के ही देश में गांधी की मूर्ति उन्हीं की मूर्ति के बगल में लगाई गई है।




4.वॉशिंगटन, यूएसए
मेसाच्युसेट्स की इंडियन एंबेसी के पास बनी है गांधी जी की ये मूर्ति। इसे गौतम पाल नाम के एक आर्टिस्ट ने बनाया था। 8 फीट ऊंची इस स्टैटू को 16 सितंबर, 2000 को स्थापित किया गया था।




5.द हेग, नीदरलैंड
नीदरलैंड के सूरीनामी इंस्टीट्यूट द्वारा लगाए गया यह स्टैचू काफी बड़ा है। इसे कैरल गोम्ज ने बनाया था। 25 जून, 2004 को इसका अनावरण किया गया था।


6.होनोलुलू, हवाई
साल 1990 में हवाई आइलैंड के पार्क में गांधी जी की स्टैचू लगाई गई थी। होनोलुलू खासतौर से अपने जू और एक्वेरियम के लिए जाना जाता है। यहां आने पर लोग गांधी जी की स्टैचू को जरूर देखते हैं।



7.लंदन, इंग्लैंड
साल 1968 में प्रधानमंत्री हेराल्ड विल्सन ने इस स्टैचू का उद्घाटन किया था। इस स्टैचू को फ्रीडा ब्रिलिएंट ने बनाया था।



Here's Gandhiji at the Ferry Terminal in San Francisco. Pic. sent by my Blogging friend D.Nambiar.
Here's Gandhiji at the Ferry Terminal in San Francisco. Pic. sent by my Blogging friend D.Nambiar.


यहाँ कुछ फोटो ब्लॉगर मित्र D.Nambiar ने भी भेजी हैं ! मेरे ब्लॉग पोस्ट को पढ़कर उन्होंने सूचित किया था कि  अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को में भी गांधी  जी की प्रतिमा लगी हुई है लेकिन उसकी फोटो मेरे पास नहीं थी ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका !

फिर मिलते हैं जल्दी ही :

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

जोशीमठ से गाजियाबाद

 इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहां क्लिक करें !!




जोशीमठ भले एक छोटा सा क़स्बा हो लेकिन महवपूर्ण जगह मानी जाती है ! विशेषकर उन लोगों के लिए जिन्हें भगवान शंकराचार्य जी और हिन्दू धर्म के प्रति गहरी आस्था और गहन अध्ययन करने की लगन है ! जैसा मैंने पहले भाग में लिखा कि जोशीमठ को ज्योतिर्मठ भी कहते हैं ! भगवान आदि शंकराचार्य जी द्धारा 8 वीं सदी में स्थापित इस मठ को चलाने के लिए नियुक्त किये गए शंकराचार्य स्वामी रामकृष्ण तीर्थ के पश्चात करीब 1941 तक ये मठ 165 साल तक बिना शंकराचार्य के ही रहा।



भगवान शंकराचार्य की गुफा और उनका मंदिर देखने के बाद सामने ही एक प्राचीन मंदिर की तरफ चला गया। हालाँकि मंदिर तो बन्द था लेकिन बाहर से देखने में बहुत सुन्दर लग रहा था। उसके कुछ फोटो खींचने के बाद और आगे बढ़ा तो महाभारत से प्रसिद्द भीष्म पितामह की विशाल मूर्ति लेटी हुई अवस्था में दिखाई देती है ! जीवन में पहली बार भीष्म पितामह की मूर्ति देखि है और वो भी इतनी विशाल ! चलते रहने के लिए सुन्दर और साफ़ सुथरा रास्ता बना हुआ है जिसके दोनों तरफ हरियाली है ! बीच में एक हरा भरा पार्क भी है जो इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है ! भीष्म पितामह की मूर्ति के बिल्कुल ​विपरीत दिशा में संकट मोचक हनुमान जी का मंदिर है जो बहुत विशिष्ट नही लगा ! इससे आगे हाथी की एक मूर्ति है फिर सामने मुख्य मंदिर दिखाई देता है जहां लगभग  20 फुट ऊँची भगवान शिव की प्रतिमा लगी हुई है। जब वहां पहुंचा तब मुझे एक भी श्रद्धालु नही दिखा बस तीन चार लड़के दिखे जो मंदिर के ही कर्मचारी थे। इधर -उधर देखते हुए जब बिल्कुल मंदिर के पास पहुँचा तो उस दो मंजिल के मंदिर की ऊपरी मंजिल पर एक संत जैसे सज्जन सफ़ेद कपड़ों में दिखाई दिए  ! मैंने उनसे ऊपर आने की अनुमति मांगी तो उन्होंने इशारे से ऊपर का रास्ता बता दिया ! 10 -15 मिनट उनके पास बैठा और उनसे ज्ञान प्राप्त किया और ज्योतिर्मठ के विषय में और भी जानकारी प्राप्त की ! स्फटिक शिवलिंक के प्रथम बार दर्शन किये और उन्हें दक्षिणा दी ! हालाँकि मैं आसानी से किसी को भी दक्षिणा नही देता क्योंकि मैं स्वयं दक्षिणा लेने वालों में से हूँ , यानि विप्र हूँ लेकिन उन्हें दक्षिणा देने में अच्छा लगा ! 


बाहर आकर कुछ और फोटो खींचे और फिर सीधा ऋषिकेश के लिए प्रस्थान कर दिया ! ऋषिकेश से ही गाजियाबाद ही सीधी बस मिल गयी।  और सुबह पांच बजे के आसपास बस ने  मोहन नगर उतार दिया और पन्द्रह मिनट में घर !

बद्रीनाथ यात्रा का समापन !!





















मंगलवार, 15 सितंबर 2015

जोशीमठ : बद्रीनाथ यात्रा

 इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहां क्लिक करें !!


बद्रीनाथ और माणा की यात्रा और वसुधारा फॉल के रोमांच की यादें लेकर अब वापस लौटने का समय आ गया था ! बद्रीनाथ बस स्टैंड से जोशीमठ के लिए बहुत सारी जीप मिल जाती हैं ! ऐसे जोशीमठ होते हुए ही आया था लेकिन उस वक्त जोशीमठ में कुछ भी नही देखा था सिर्फ जीप स्टैंड ही देखे थे ! सुबह ठीक 7 बजकर 10 मिनट पर बद्रीविशाल की जय बोलकर वहां से निकल लिए ! 48 किलोमीटर की दूरी में जोशीमठ पहुँचते पहुँचते दो घंटे लग गए और 9 बजे जोशीमठ पहुंचे ! कुछ खा लिया जाए , बस एक कप चाय पी है अभी तक। चाय और दो समोसे से काम चल गया ! 


जोशीमठ को ज्योतिर्मठ भी कहते हैं बल्कि इसे उल्टा कहा जाए , ज्योतिर्मठ को जोशीमठ भी कहते हैं ! क्योंकि इसकी जो पहिचान है वो मठ की वजह से ही है। 6150 फुट की ऊंचाई पर बसा जोशीमठ हिमालय क्षेत्र की बड़ी बड़ी वादियों का प्रवेश द्वार कहा जा सकता है ! ये भगवान आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित चार मठों में से एक है जो उत्तर दिशा में स्थित है ! बाकी के तीन मठ - श्रंगेरी , पुरी और द्वारका हैं। और आजकल जोशीमठ , औली के लिए ज्यादा प्रसिद्ध है। वो ही औली जहां जनवरी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के गेम्स होते हैं ! उन्हें क्या कहते हैं , नाम नही मालूम !! आइये थोड़ा सा घूमते चलते हैं यहां भी , नही तो जोशीमठ और जोशीमठ के लोग कहेंगे कि यहां से निकला था और हमें मिलकर भी नही गया ! जोशीमठ के बच्चे बिलकुल अलग हैं , यहां उन्हें जून के महीने में स्कूल जाना होता है जब सब जगह छुट्टियां होती हैं और इन्हें दिसंबर में छुट्टियां मिलती हैं ! 

पहले भविष्य केदार मंदिर चलते हैं ! इस मंदिर में भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमाएं हैं और ऐसा माना जाता है कि आज के केदारनाथ मंदिर में निवास कर रहे शिव दंपत्ति भविष्य में इस जगह पर विराजमान हो जाएंगे ! लेकिन कब ? इसके लिए एक पाषाण प्रतिमा के दो अलग अलग हिस्से होने का इंतज़ार करना होगा ! असल में एक आधी अलग पाषाण प्रतिमा है और उसको ऐसा कहा जाता है कि ये एक दिन अलग लग हिस्सों में बट जायेगी तब केदारनाथ से भगवान शिव अपने परिवार सहित यहां "शिफ्ट " हो जाएंगे ! लेकिन मुझे ये कोरी धारणा ही ज्यादा लगती है ! आप का मंतव्य आप समझें ! यही धारणा भविष्य बद्री के लिए बना रखी है कि एक दिन प्राकृतिक आपदा के कारण बद्रीनाथ का रास्ता रुक जाएगा और भगवान बद्रीनाथ अपना घर यहां भविष्य बद्री में बना लेंगे जो जोशीमठ से तपोवन वाले रास्ते पर 17 किलोमीटर दूर है ! 


अगर जोशीमठ के इतिहास की बात करें तो ये बहुत पुराना स्थान है। आज के जोशीमठ का पुराना नाम भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के नाम पर कार्तिकेयपुरा हुआ करता था फिर ज्योतिर्मठ और फिर जोशीमठ।  यहां आपको 8 वीं सदी में भगवान आदि शंकराचार्य जी द्वारा प्रतिष्ठापित भारत का  पुराना वृक्ष देखने को मिलता है जिसे कल्पवृक्ष कहते हैं।   


आगे की बात बाद में करते हैं  :



​ये पाषाण जब विभक्त हो जाएगा तब भगवान शिव अपने नए "आवास " पर शिफ्ट होंगे जिसे भविष्य केदार कहा जाएगा














ये वो 2300 वर्ष पुराना कल्पवृक्ष




ये वो 2300 वर्ष पुराना कल्पवृक्ष
 ​ यहां लोगों ने भगवान आदि शंकराचार्य जी को मंदिर के नीचे एक गुफा में बंद किया हुआ है ! यहीं भगवान शंकराचार्य जी ने तपस्या करी थी !!
भगवान शंकराचार्य जी



                                                                                                                  ​आगे जारी रहेगी :