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अब बोधगया में ऐसा कुछ नही बचा था जो देखने लायक हो। दोपहर के तीन बज रहे होंगे , सोचा पहले कहीं खाना खा लिया जाए फिर गया वापस निकलता हूँ। एक जगह खाना खाने के लिए बैठ गया तो सामने वाली टेबल पर एक और भाईसाब बैठे थे। बातचीत उन्होंने ही शुरू की - आप कहाँ से आये हैं ? मैंने बताया गाज़ियाबाद से। क्या क्या देख लिया ? मैंने बता दिया ! तुरंत बोले - नेपाल मोनेस्ट्री नही गए ? नेपाल मोनेस्ट्री भी है क्या यहां ? और उन्होंने पूरा रास्ता समझा दिया वहीँ टेबल पर बैठे बैठे। अभी तो पूरा समय था मेरे पास। ट्रेन गया से करीब साढ़े सात बजे है और अभी साढ़े तीन -चार बजे हैं। गरीब रथ में एक दिन पहले ही यानि गया पहुँचते ही आरक्षण करवा लिया था , वेटिंग मिली थी। लेकिन वेटिंग सिर्फ नाम की थी , दो। वो पक्की हो ही जानी थी और अगले दिन चार बजे तक पक्की हो भी गयी थी।
एक बात लिखना भूल गया। गया में भी कुछ स्थान हैं घूमने के लायक , जैसे विष्णुपद मंदिर। विष्णुपद मंदिर में पूर्वजों के लिए श्राद्ध करते हैं और ऐसी मान्यता है कि अगर आपने गया में पिंड दान कर दिया तो फिर आपको उन पूर्वजों का पिंड दान करने की जरुरत नही होती। कई सारे पाडा वहां आपको पिंडदान कराते हुए दिखाई देंगे। सही कहूँ तो वहां ज्यादातर वो ही लोग आते हैं जिन्हे पिंड दान करना होता है। मैंने भी पिता जी से जाने से पहले पूछा था , मैं भी पिंडदान कर आऊँ ? बोले -अभी तो मैं जिन्दा हूँ , मेरा पिंडदान कर देगा क्या तू ? खैर ये तो उनका मजाक था लेकिन मैं पिंडदान नही कर सकता था। दो कारण थे। एक तो मैं अधिकृत नही हूँ ! हमारे यहां श्राद्ध या पिंडदान केवल छोटा या बड़ा बेटा ही कर सकते हैं और मैं ठहरा बिलकुल बीच में , और दूसरी बात ये कि पिंडदान के समय धर्मपत्नी का होना अनिवार्य है और धर्म पत्नी मेरे साथ गया नही जा गई थी।
विष्णुपद मंदिर मैं सुबह सुबह ही पहुँच गया था। सोचा ये था कि जल्दी जाऊँगा तो धूप से बच जाऊँगा लेकिन लौटते लौटते धूप ने जकड लिया और फिर धूप सहन करने की शक्ति भी आ गयी और बोधगया पूरा धूप ही घूमा ! विष्णुपद
मंदिर मतलब भगवान विष्णु के पद यानि पाँव। भगवान विष्णु को समर्पित ये
मंदिर फाल्गु नदी के किनारे है जहां बिहार के भूमिहार ब्राह्मण , पण्डों के
रूप में कार्यरत हैं। हालाँकि इसके निर्माण की तिथि स्पष्ट नहीं है लेकिन
ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम भी यहां सीता जी के साथ आये थे। आज जो
मंदिर हम देखते हैं उसका पुनर्निर्माण इंदौर की महारानी देवी अहिल्या बाई
होल्कर ने 1787 ईस्वी में कराया था।
मंदिर
में भगवान विष्णु की प्रतिमा है और उसके नीचे ही उनके पद यानि चरण हैं।
ऐसे बाहर फोटो लेने पर कोई रोक नही है किन्तु अंदर कैमरा ले जाना मना है।
आप चुपके से मोबाइल कैमरे से फोटो खींच सकते हैं अगर किसी का ध्यान आपकी
तरफ नही जाता है तो। वैसे बेहतर यही है कि अंदर फोटो न खींचे !
नेपाली मोनेस्ट्री का रास्ता महाबोधि मंदिर से बिलकुल पहले गया की तरफ से जाते हुए सीधे हाथ पर है। वहां एक बोर्ड भी लगा है लेकिन उस रास्ते पर जाते हुए एक बार तो लगा , यार गलत आ गया। सूअरों का झुण्ड इधर उधर घूम रहा था , झोपड़ियों में से बच्चों की आवाज़ आ रही थी , लगता था जैसे यहां देखने लायक कुछ नही हो सकता। इतने में एक झोंपड़ी से कोई निकला , अधनंगा सा। उसे पूछा भाई इधर नेपाली मंदिर कहाँ है ? बोला वो तो पीछे रह गया। पीछे ? हाँ - वो थोड़ा सा पीछे ! पीछे लौट लिए भाई। ओह तो ये है !! नेपाल बहुत गरीब देश है और उसकी गरीबी इस मोनेस्ट्री में भी झलकती है। न कोई चहल पहल , न कोई उत्सुकता। गेट बंद था , मैंने खुद ही अंदर हाथ डाल के खोल लिया। शांत सा माहौल। सामने एक भिक्षु दिखाई दिए , पास पहुंचा तो वो अपनी जैकेट सुखा रहे थे। भाई कितनी बदबू आ रही थी उनकी जैकेट से। जैसे 10 -20 साल से नहीं धोई हो। फिर एक अपाहिज लड़का एक कमरे में से निकल कर आया। हाँ जी ? मैंने कहा भाई मुझे मोनेस्ट्री देखनी थी। आ जाओ जी ! उसने मेरे लिए ही मोनेस्ट्री खोली और मैं अकेला ही उस मोनेस्ट्री में इधर उधर घूमता रहा। कभी ये ड्रम बजाया तो कभी वो ड्रम बजाया।
बार बार गया से मित्रों के फ़ोन आ रहे थे। पंडित जी आ जाओ। होटल छोड़ना है। पांच बज गए हैं। लेकिन मैंने उनसे अपना सामान भी स्टेशन मंगवा लिया और मैं सीधा स्टेशन ही पहुंचा। बोधगया से गया। इस रास्ते में कैंट भी आता है। जब इधर से गया था तो एक तोप देखी थी बाहर खड़ी हुई , सोचा कि लौटते हुए इसकी एक फोटो खींचूँगा। टेम्पो से लौटते हुए खींच भी ली , लेकिन बाहर खड़े संतरी ने इतना तेज डांटा कि अगला फोटो लेने की हिम्मत नही हुई।
तो
अब चलते हैं वापिस गाज़ियाबाद । दो दिन की इस यात्रा में गर्मी तो बहुत
झेली लेकिन आनंद भी बहुत आया। ये यात्रा वृतांत लिखते समय एक खबर आई है
गया से कि वहां के एक ही मोहल्ले के छह बच्चों ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा
में सफलता हासिल की है , बहुत बहुत बधाई उन सभी छात्रों को !
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विष्णुपद मंदिर |
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विष्णुपद मंदिर |
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पिंडदान प्रक्रिया |
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विष्णुपद मंदिर |
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ये रोग भारत से कब मिटेगा ? |
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ये फोटू इंटरनेट से ली गयी है |
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ये भगवान विष्णु का पाँव (पद ) ! इसीलिए इस मंदिर का नाम है विष्णुपद मंदिर |
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नेपाली मॉनेस्ट्री |
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नेपाली मॉनेस्ट्री |
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ये फोटू इंटरनेट से ली गयी है |
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इन ड्रम के पास एक लकड़ी सी रखी रहती है जिससे इन्हे बजाते हैं ! मैंने भी खूब हाथ आजमाए |
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ये फोटू भी इंटरनेट से ली गयी है |
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ये गया स्टेशन पर एक कलाकृति | | | |
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ये गया स्टेशन पर एक कलाकृति ! इसमें ऐसा नही है कि गांधी जी तस्वीर बुद्ध से नीचे लगी है बल्कि ये दो अलग अलग दीवारों पर हैं , फोटो में एक साथ दिख रही हैं !! |
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एक कलाकृति ये भी |
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विष्णुपद मंदिर में एक वृक्ष है जिसे पवित्र मानते हैं और उसकी परिक्रमा करते हैं !! |
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एक कलाकृति ये भी |
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ये आर्मी केंट का वो फोटो जिसे लेने पर मुझे डांट खानी पड़ी |
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और ये अपना गाज़ियाबाद स्टेशन ! |
गया और बोधगया की यात्रा का समापन हो रहा है आज ! मिलेंगे जल्दी ही कहीं और की यात्रा का वर्णन लेकर ! जय राम जी की!!
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