मुख्य सड़क पर कुम्भा पैलेस से रतन सिंह पैलेस की तरफ चलते हुए दोनों तरफ
आपको पुराने जमाने की छोटी छोटी दुकानों के खण्डहर दिखाई देंगे जो नगीना
बाजार और मोती बाजार के खँडहर हैं। ये बाजार और दुकानें कभी
बहुत ही भव्य रही होंगी और महल में रहने वाले ग्राहकों की भीड़ यहां जमा
होती रही होगी लेकिन आज ये खँडहर हैं। वक्त सदैव एक सा नहीं रहता।
रतन
सिंह पैलेस : चित्तौड़गढ़ किले के उत्तर में स्थित एक शानदार महल रहा
होगा। इस महल को विशेष रूप से सर्दियों के लिए राजाओं के निवास स्थान के
रूप में बनाया गया था ! इसके पास ही रत्नेश्वर नाम की झील भी है जो इसकी
खूबसूरती में चार चाँद लगा देती है।
इससे थोड़ा सा आगे चलते हैं तो
एक तोपखाना दिखाई देता है जिसमें पुराने जमाने की छोटी छोटी सी तोप रखी
हुई हैं। एक बड़ी सी रखी हुई है। इस बिल्डिंग में अब भारतीय
सर्वेक्षण वालों का दफ्तर खुल गया है लेकिन फिर भी आने जाने पर मनाही नही
है। हालाँकि मैं अकेला ही घूम रहा था और कोई उधर दिखाई नही दिया। आपको चित्तौड़गढ़ में सबसे ज्यादा भीड़ विजय स्तम्भ पर ही मिलती है अन्य जगहों पर
बहुत कम लोग ही जाते हैं शायद।
श्रृंगार चौरी : तोपखाना
बिल्डिंग और बनवीर की दीवार के बीच में एक शानदार मंदिर बना है जिसमें दो
तरफ से प्रवेश द्वार बना है। पहले तो मालुम नही था कि ये क्या है लेकिन
वहां पूछा तो पता चला कि ये एक मंदिर है जो जैन धर्म के 10 वे तीर्थंकर
शांति नाथ को समर्पित है। 15 वीं सदी में बने इस मंदिर को श्रृंगार चौरी
कहा जाता है। इसका उत्तरी दरवाज़ा भामाशाह की हवेली की तरफ है और दक्षिण
प्रवेश द्वार बनबीर की दीवार की तरफ है। मंदिर के अंदर एक मंच (स्टेज )
जैसा बना है जिसके चारों किनारे पर सात मीटर लम्बे खम्भे लगे हैं। इस मंदिर
को सन 1448 ईस्वी में महाराणा कुम्भा के खचांची कोला के पुत्र बेल्का
(भंडारी बेला ) ने बनवाया था।
बनबीर की दीवार : पूरा इतिहास नही
लिखा जा सकता इसलिए संक्षिप्त रूप में लिख रहा हूँ। उदय सिंह के दूर के
रिश्तेदार बनबीर से बहुत छोटे और अभी तक बच्चे उदय सिंह को जब राणा घोषित
कर दिया गया तो वो बौखला गया और उस वक्त बंदी रहे विक्रमादित्य पर हमला कर
दिया और वो सीधा महाराणा उदय सिंह को मारने के लिए निकल पड़ा। उस वक्त
पन्ना धाय उदय सिंह को दूध पिलाकर सुला रही थी तभी एक नौकर भागता हुआ आया
और बनबीर के बारे में बताया। पन्ना धाय ने उदय सिंह के स्थान पर अपने
पुत्र चन्दन की बलि दे दी और उदय सिंह को सुरक्षित बचा लिया। लेकिन पन्ना धाय को
किसी ने भी शरण नही और वो बच्चे उदय सिंह को लेकर महीनो तक इधर उधर फिरती
रही। आखिर में कुम्भलगढ़ में वहां के रियासतदार और जैन व्यापारी आशा देपुरा
शाह ने उन्हें शरण दी। जब महाराणा उदय सिंह बड़े हुए तो उन्हें मेवाड़ का
महाराणा घोषित कर दिया गया जिससे चिढ़कर बनबीर ने उदय सिंह के खिलाफ लड़ाई
का बिगुल बजा दिया जिसमें बनबीर हार गया। वो हार कर मार दिया गया या भाग
गया , उसके विषय में कुछ पता नही चलता लेकिन उसकी याद में एक दीवार जरूर
बनी हुई है जो उसी ने बनवाई थी !
इसी के साथ चित्तौड़गढ़ की अपनी यात्रा का समापन करता हूँ ! जल्दी ही मिलेंगे एक और नयी जगह का यात्रा वृतांत लेकर !!
आइये फोटो देखते हैं :
नगीना बाजार के खँडहर |
मोती बाजार के खँडहर |
तोप खाने में बंद पड़ी तोपें |
रतन सिंह पैलेस |
रतन सिंह पैलेस |
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उस दिन दिल्ली लौटते समय बारिश हो रही थी लेकिन ये फिर भी हमारे लिए दूध लेकर आते हैं ! एक धन्यवाद तो करिये ! ये फरीदाबाद की फोटो है |
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