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एकलिंग जी में दर्शन तो बढ़िया हुए किन्तु उन्होंने मेरे सब फोटो डिलीट कर दिए थे इसलिए थोड़ा सा गुस्सा भी था मन में ! हालाँकि गलती मेरी थी , लेकिन कोई फोटो थोड़े ही डिलीट करता है ऐसे ? अब मन नही लग रहा था वहां बिलकुल भी ! इसलिए बाहर आ गये और सीधे चाय की दुकान पर दस्तक दे दी। बिलकुल सामने ही चाय , समोसे की दुकान हैं ! मिर्ची पकोड़ा भी बढ़िया मिलता है , खाना चाहिए। कम से कम एक बार तो खाने में कोई बुराई नहीं है अन्यथा आप राजस्थान की एक फेमस चीज से वाकिफ नहीं हो पाएंगे। पेट पूजा करने के बाद अब हमारा ध्येय , हमारी मंजिल नाथद्वारा पहुंचना था।
नाथद्वारा मंदिर उदयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है और यहां एकलिंगजी से 30 किलोमीटर। पता किया कि कैसे जाया जा सकता है , बोले बस से। सरकारी बस एक दो ही निकली होगी और पूरा एक घंटा गुजर गया। किसी ने रोकी ही नही। राजस्थान में भी ऐसा होता है ? उत्तर प्रदेश ही बहुत है ऐसे कामों के लिए। फिर वहीँ के दूकानदार ने बताया कि आप ट्रेवल्स बस को हाथ देना , जगह हुई तो वो बिठा ले जाएगा। पहली ट्रेवल्स बस आई , हाथ दिया , उसने पूछा कहाँ - मैंने कहा नाथद्वारा ! बस आगे बढ़ा ले गया। एक और आई थोड़ी ही देर बाद। बिठा लिया ! लेकिन एक ही सीट खाली थी। पत्नी को बिठा दिया। मुझे बोला -आप ऊपर बैठ जाओ। ऊपर ? कहाँ ? समझ आया। वो ट्रेवल्स की बस थी और उसमें सोने वाली सीट भी होती हैं। मैं और बड़ा बेटा उसमें ही जा घुसे। पहली बार ऐसी सीट मिली है जीवन में। असल में कभी बस में बहुत लम्बी यात्रा नहीं करी है मैंने तो स्लीपर बस का ज्ञान नहीं था। लेकिन बहुत आरामदायक लगी। दो लोगों के लिए सोने के लिए पर्याप्त जगह होती है। दो लोग अगर सामान्य हों तो , असामान्य के लिए हर जगह कम पड़ जाती है।
एकदम बढ़िया चकाचक सड़क है। मुश्किल से एक घंटा लगा होगा नाथद्वारा पहुँचने में। बस स्टैंड पर उतरकर समय देखा तो ठीक दोपहर के एक बज रहे थे। मंदिर पहुंचे , मंदिर बंद मिला। अब मंदिर 4 बजे खुलेगा। यानि तीन घंटे खराब होंगे। और नाथद्वारा में ऐसा और कुछ भी नही है कि वहां दो घंटे गुजारे जा सकें। तो अब क्या करें ? तो अब सीधा हल्दी घाटी चलते हैं। ये ठीक रहेगा। लेकिन आज कुछ बदलाव होगा। घूमा हमने पहले हल्दी घाटी था लेकिन वृतांत आपको पहले श्रीनाथजी मंदिर , नाथद्वारा का पढ़वाऊंगा।
जैसा कि मैंने पहले लिखा कि दोपहर में मंदिर बंद हो जाता है सुबह 5 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर दर्शन दोपहर में भगवान को राजभोग खिलाने तक हो सकते हैं। राजभोग का समय 12 बजकर 10 मिनट है , उसके बाद भगवान जी , अटल बिहारी वाजपेयी जी की तरह दोपहर की नींद लेते हैं। अटल जी भी दोपहर में दो घंटे जरूर सोते थे , जब प्रधानमंत्री थे तब। अब का पता नही। फिर भगवान दोपहर बाद 3 बजकर 40 मिनट पर पुनः उपस्थित होते हैं दर्शनार्थियों के लिए। सुना तो ऐसे है कि भगवान हर समय , हर जगह उपस्थित हैं फिर ऐसे लोक सभा और राज्यसभा की कार्यवाही की तरह कैसे ? भगवान ही जानें। बीच बीच में 15 मिनट के लिए "वो " लोग भगवान को दर्शन देने के लिए मुक्त करते हैं। अलग ही व्यवस्था है। पुरुषों के लिए अलग , महिलाओं के लिए अलग प्रवेश द्वार हैं लेकिन अंदर जाकर सब एक जगह मिल जाते हैं और क्या अव्यवस्था फैलती है , राम जाने। आधे लोग तो बिना दर्शन के लिए ही लौट आते होंगे। ऐसे मारामारी फैलती है। ये अव्यवस्था असल में वहां के टोपीधारी पंडितों की बनाई हुई लगती है। पहले वो बाहर भीड़ इकट्ठी होने देते हैं फिर एकदम से दरवाजा खोलते हैं जिससे भीड़ धक्का मुक्की करती हुई आगे बढ़ती है। जैसे सर्कस चालू करने वाले हैं या कोई इंटरव्यू टेस्ट लेना है। मैंने तो नही देखा लेकिन मेरी पत्नी ने शायद देखा था कि कुछ लोगों को "दक्षिणा " लेकर बैक डोर एंट्री भी मिलती है। धंधा है ? एक अलग चीज जो मैंने वहां महसूस करी , वो ये थी कि वहां प्रांगण में सीधे हाथ पर बहुत सी दुकानें हैं , जहां आप अलग अलग चीज दान कर सकते हैं ! जैसे
आप चाहें तो खाना दान करें , गायों के लिए घास दान करें या उनके खाने की
कोई और चीज जैसे चोकर वगैरह ! लेकिन दूकान कोई भी खुली हुई नही थी। संभव
है सुबह के समय में खुलती हों। श्रीनाथ जी के मंदिर में गायों की सेवा का
लगा से प्रावधान किया हुआ है ! ये अच्छा है !
हमें हल्दी घाटी से लौटकर पांच बजे के दर्शन मिल गए थे। पांच बजे यानि आरती के बाद के दर्शन। अब कुछ बात हो जाए भगवन श्रीनाथ जी के मंदिर के इतिहास विषय में। बनास नदी के किनारे बसे नाथद्वारा में भगवान श्री नाथ जी ( श्री कृष्णा जी ) को समर्पित मंदिर 17 वीं शताब्दी का बना हुआ है। नाथद्वारा मतलब नाथ +द्वार यानि भगवान का द्वार। विशेषकर गुजरात में इस मंदिर को श्रीनाथ जी की हवेली के नाम से भी पुकारा जाता है। इस मंदिर के निर्माण से जुडी एक बहुत प्रसिद्द कहानी है। भगवान श्री नाथ जी वृन्दावन में विराजमान थे लेकिन उस समय औरंगज़ेब ने जो कत्लेआम और मंदिरों को ध्वस्त करने का अभियान चलाया हुआ था उसे देखते हुए राणा राज सिंह ने 1672 ईस्वी में इसे वृन्दावन से कहीं दूर ले जाने का निश्चय किया ताकि वो अपने आराध्य देव की प्रतिमा को सुरक्षित बचा सकें। लेकिन रास्ते में सिंहद गांव में एक जगह उस रथ के पहिये कीचड़ में धंस गए , जिस रथ से भगवान को दूर ले जाया जा रहा था। ये देखकर मुख्य पुजारी ने राणा को सलाह दी कि भगवान यहीं स्थापित होना चाहते हैं और वो जगह नाथद्वारा (सिंहद) थी , और इस तरह नाथद्वारा के प्रसिद्ध श्री नाथ जी मंदिर का निर्माण हुआ। स्थापत्य के नजरिया से देखें तो इस मंदिर की बनावट बहुत साधारण है, भगवान का रूप और उनके प्रति आस्था इसे विशिष्ट बनाती है।
मुख्य मंदिर
से दर्शन करने के पश्चात बाहर निकलने का अलग से रास्ता है। ये वास्तव में
एक गैलरी है जिसके दोनों तरफ बड़े बड़े हॉल नुमा कमरे बने हैं जिनमें भगवान
के विभिन्न रूपों वाली तसवीरें और मूर्तियां लगी हुई हैं। कुछ में वहां
के पुजारी अपना निवास स्थान बनाये हुए हैं। इस गैलरी के आखिर में जाकर एक बहुत बड़ा खुला मंडप है जहां शायद व्यास जी अपनी कथा , अपने उपदेश भक्तों को सुनाते होंगे। हमारे यहां व्यास जी कथा वाचकों को कहा जाता है। मुझे यहां के पुजारी बिलकुल
अलग तरह की वेशभूषा के लगे। उनके सर पर एक अलग तरह की टोपी होती है और
अंगरखा शायद वृन्दावन और मथुरा के पुजारियों से ही मिलता जुलता है। ये शायद वैषणव संप्रदाय के पुजारियों विशिष्ट वेशभूषा है ! मैं यहां भी एकलिंगजी जैसा हाल नहीं होते देखना चाहता था इसलिए कैमरा छुपकर ले जाने की भी हिम्मत नहीं थी।
श्रीनाथ जी मुख्य रूप से वल्लभ संप्रदाय ( वैष्णव संप्रदाय या पुष्टि
मार्गी ) के आराध्य माने जाते हैं। वल्लभाचार्य जी के सुपुत्र श्री विट्ठल
नाथ जी ने नाथद्वारा में श्रीनाथ जी की पूजा शुरू करवाई और उनके चित्र भी
इस मंदिर में जगह जगह विराजमान हैं। भगवान श्री कृष्णा जी की ये मूर्ति
उनके बाल्यकाल के रूप की है जब उन्होंने गोवेर्धन पर्वत उठाया था। इसलिए
उनका यहां प्राम्भिक नाम "देवदमन " भी था क्यूंकि उन्होंने इंद्रा का दम्भ
तोडा था। लेकिन बाद में उन्हें वल्लभाचार्य जी ने गोपाला नाम दिया और इस
जगह को "गोपालपुर " कहा। उनके पुत्र श्री विट्टल नाथ जी ने भगवान का
नामकरण किया " श्रीनाथ जी " और वो ही नाम अब प्रसिद्द है।
आइये फोटो देखते हैं :
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बस की स्लीपर सीट पर हर्षित बाबू आराम फरमा रहे हैं |
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बस की स्लीपर सीट पर हर्षित बाबू आराम फरमा रहे हैं |
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कहाँ जा के कंपनी ने अपना नाम लिखा है !! लेकिन अच्छा लगा मुझे और क्लिक |
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कहाँ जा के कंपनी ने अपना नाम लिखा है !! लेकिन अच्छा लगा मुझे और क्लिक |
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श्रीनाथ जी का द्वार |
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केवल पुरुष !! |
आगे अब हल्दी घाटी चलेंगे ! यात्रा जारी रहेगी :
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