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उदयपुर जैसे शहर में , जहां देखने के लिए पग पग पर खज़ाना भरा हो , आपके पास समय और अपना वाहन ( किराए पर भी ) होना बहुत जरुरी हो जाता है अन्यथा आप कम जगह देखकर ही वापस लौटने को मजबूर हो जाएंगे ! मोती मगरी और फ़तेह सागर लेक देखने के बाद अब चलते हैं सहेलियों की बाड़ी और सुखाड़िया सर्कल !
पहले राजा महाराजाओं के समय में जब किसी राजकुमारी का ब्याह होता था तो उस राजकुमारी के साथ ही उसकी सेविकाओं , सहेलियों को भी दहेज़ में उसके साथ ही भेज दिया जाता था ! सहेलियों की बाड़ी भी 48 ऐसी ही सेविकाओं या सहेलियों को समर्पित एक स्मारक है ! उदयपुर शहर के उत्तर में स्थित इस बगीचे को महाराणा भोपाल सिंह ने दहेज़ में आईं ऐसी ही 48 सेविकाओं के मनोरंजन स्थल के रूप में बनवाया था जो आज एक दर्शनीय स्थल बन चुका है ! इस बात को दोहराना चाहूंगा कि यहां भी 10 रूपये का टिकट लगता है अंदर जाने के लिए ! इस गार्डन में देखने के लिए सुन्दर से फाउंटेन और एक संग्रहालय है ! ये संग्रहालय विज्ञान और जीव विज्ञान को ज्यादा समर्पित कहा जा सकता है ! ये संग्रहालय है तो बहुत छोटा सा लेकिन इस छोटी सी जगह में उन्होंने बहुत कुछ दिखाने और इसे मनोरंजक के साथ साथ ज्ञानवर्धक बनाने की कोशिश जरूर की है ! अलग अलग तरह के मगरमच्छ , डायनासोर का विकास और पतन , लेंस के विभिन्न रूप और सबसे बड़ी बात भारत द्वारा छोड़े गए मंगलयान का एक सुन्दर मॉडल वहां रखा है जिसको लेकर उत्सुकता रहती है ! बच्चों को बहुत कुछ समझाया जा सकता है ! अंततः 10 रूपये में बुरा नहीं है !
अब आइये थोड़ा सा और आगे चलते हैं। बस पास में ही एक और जगह है देखने लायक ! ये मुफ्त है , हाहाहा ! कोई टिकट नहीं ! पहली जगह मिली है उदयपुर में , जहां टिकट नहीं लगता ! ये है सुखाड़िया सर्किल ! मोहन लाल सुखाड़िया के नाम पर बना सर्किल ! उदयपुर में या ये कहूँ कि राजस्थान में आपको ज्यादातर चौराहों के नाम ऐसे ही मिलते हैं , सुखाड़िया सर्किल , चेतक सर्किल फलां फलां और एक नजर ज़रा उत्तर प्रदेश के शहरों के चौराहों के नाम भी देखते चलें , मंदिर चौपला , हाथी पाड़ा चौराहा , गधा पाड़ा चौराहा ! अपना अपना तरीका , अपनी अपनी सोच ! सुखाड़िया सर्किल , राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री और उदयपुर के निवासी मोहन लाल सुखाड़िया के नाम पर है जिसे 1970 में बनवाया गया ! इसमें 21 फुट ऊँचा तीन स्तरीय शानदार फाउंटेन लगा हुआ है ! रात के समय अगर आप इसे देखेंगे तो एक बार लगेगा कि आप किसी भारतीय शहर के फाउंटेन को नहीं बल्कि यूरोप के किसी शहर में हैं ! बोटिंग करना चाहें तो भी ठीक है लेकिन मैंने किसी को भी बोट में बैठे हुए नहीं देखा ! शायद इस वज़ह से कि लोग फ़तेह सागर से बोटिंग का मजा लेकर आते हैं फिर इतनी छोटी सी जगह में कौन बोटिंग करना चाहेगा , दो दो बार पैसे कौन खर्च करेगा एक ही चीज के लिए ?
आइये अब भारतीय लोक कला मंदिर चलते हैं ! यहां कठपुतली डांस देखेंगे ! राजस्थान और गुजरात के कारीगरों , लोक कलाओं , नृत्यों और वहां की संस्कृति के विषय में जानेंगे ! सन 1952 में पदम भूषण देवीलाल सामर द्वारा स्थापित इस संस्थान में आप राजस्थान की ग्रामीण वेशभूषा , गहने , खेल खिलोने और उनकी संस्कृति से सम्बंधित कलाकृतियां देख सकते हैं ! टिकेट लगता है ! लेकिन 15 मिनट का कठपुतली डांस आपको ये आभास कराता है कि आपके पैसे बेकार नहीं गए ! पहले यहां के संग्रहालय में घूमिये , राजस्थान से थोड़ा परिचित होइए फिर कठपुतली डांस देखिये ! एक बात कहना चाहूंगा , अगर कोई उदयपुर से मेरा ब्लॉग पढता है तो भैया उन्हें कहिये कि संग्रहालय की दशा थोड़ी सी सुधार लें ! वर्षों से वो ही कपडे पहना रखे हैं पुतलों को और वो इतने गंदे हो चुके हैं कि अगर आप उन्हें झाड़ें तो 2-2 किलो गर्द जम पड़ी होगी उन पर ! साफ़ किया जा सकता लेकिन शायद सरकारी होने की वज़ह से कोई ध्यान नहीं देता ? मोदी जी का स्वच्छता सन्देश उधर पहुंचा नहीं है अभी शायद !
आज इतना ही , ज्यादा हो जाएगा फिर ! राम राम जी
आइये फोटो देखते हैं :
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सहेलियों की बाड़ी का प्रवेश द्वार |
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सहेलियों की बाड़ी का प्रवेश द्वार |
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सहेलियों की बाड़ी का प्रवेश द्वार |
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फाऊन्टेन में सुन्दर कलाकृति |
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दोबारा से प्रवेश द्वार की फोटो ! इस बार खाली था |
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सुखाड़िया सर्किल |
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सुखाड़िया सर्किल |
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सुखाड़िया सर्किल |
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सुखाड़िया सर्किल , रात के समय |
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सुखाड़िया सर्किल , रात के समय |
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लोक कला मंडल में कठपुतली डांस |
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लोक कला मंडल में कठपुतली डांस |
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लोक कला मंडल में कठपुतली डांस |
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लोक कला मंडल में कठपुतली डांस |
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और ये डांस प्रोग्राम के जज साब ! कभी कभी ये भी हाथ पाँव चला लेते हैं डांस के लिए | | |
यात्रा जारी है :
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