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मंगलवार, 11 नवंबर 2014

पॉन्ग डैम

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तीन दिन हो गए थे हिमाचल में घूमते घूमते ! और जब हम 3 अक्टूबर को चिंतपूर्णी में थे तो रात में बारिश भी हो गयी थी जिसके कारण ठण्ड बढ़ गयी थी ! इसका असर ये हुआ कि बच्चों की नाक चलनी शुरू हो गयी ! हमारे पास आज यानि 4 अक्टूबर का पूरा दिन था , मन था कि कुल्लू निकल चलें , कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्द है , लेकिन दूर पड़ने और बच्चों की तबियत को देखकर पांग डैम का ही तय करना पड़ा ! पांग डैम ज्यादा दूर भी नहीं है चिंतपूर्णी से केवल 32 किलोमीटर की दूरी है दोनों के बीच ! यानी लगभग एक घंटे का रास्ता !

जिस होटल में हम रुके हुए थे , उसके सामने ही चाय की दूकान भी थी ! सुबह सुबह होटल से सामन लेकर चाय पी रहे थे , वहीँ उसी चाय वाले से पांग डैम जाने के लिए पूछा कि कैसे जाय जा सकता है ! मेरे दिमाग में एक ही रास्ता था - मसरूर रॉक के रास्ते देहरा से वापस होते हुए ! लेकिन जब उसने बताया कि वो रास्ता तो हमें करीब 48 -50 किलोमीटर पड़ेगा , तो मुझे उस आदमी के बताये गये रास्ते पर गौर करना पड़ा ! बोला आप अम्ब होते हुए जाओगे तो केवल एक घंटे में ही पांग पहुँच जाओगे ! मुझे उसकी बात पसंद आई , आनी भी थी ! लगभग 20 किलोमीटर का फासला था दोनों रास्तों में ! मैंने कहा तो बस कहाँ से मिलेगी -बोला यहीं से ! अभी अभी गयी है , 10 मिनट में दूसरी आ जायेगी ! और चाय ख़त्म करते करते दूसरी बस भी आ गयी ! सवारियों के नाम पर बस 15-16 लोग ! पाँव फैलाकर बैठो ! मैं सोच रहा था कि चिंतपूर्णी छोटा सा कोई क़स्बा होगा लेकिन इसे पार करते करते 10 मिनट लग गए होंगे ! मुझे हिमाचल में एक बात थोड़ी अलग सी लगी ! वहां चाय की हर दूकान में गैस सिलिंडर की बजाय बिजली चलित चूल्हा ( इंडक्शन चूल्हा ) उपयोग में लाते हैं ! क्या वहां बिजली सस्ती है ? अगर आपको कोई कारण पता हो तो जरूर बताएं !

बस घने जंगलों में से होती हुई निकलती जाती है ! ऐसे जंगल में से रास्ता मिलता है कि कहीं चीता न निकल आये अभी ! चिंतपूर्णी से निकालकर थोड़ी दूर पर ही शीतला माता का मंदिर है , मैं केवल बस में से उसके फोटो ले पाया ! रास्ते में अब भी दशहरा के पंडाल दिखाई दे रहे थे ! बीच में जब मैंने एक बार कंडक्टर से ऐसे ही पूछा - भाई अभी और कितना टाइम लग जाएगा ! तब उसने टाइम तो बताया ही साथ में ये और कह दिया कि हम आपको तलवाड़ा उतारेंगे , वहां से पांच पांच रूपया देकर आप टेम्पो से पांग डैम चले जाना ! ये तलवाड़ा कहाँ से आ गया ? फिर उसी ने बताया कि पांग डैम , फतेहपुर -जस्सुर रोड पर पड़ता है और हमारी बस चिंतपूर्णी से तलवाड़ा तक ही है ! हम्म्म ! समझ आ गया !

तलवाड़ा , असल में पंजाब में आता है ! मुकेरियां से करीब 40 किलोमीटर दूर ! और पांग डैम हिमाचल में ! हम 10 साढ़े दस के आसपास तलवाड़ा में थे ! उतरते ही चाय पी ! पीनी होती है , मजबूरी है ! मुझे हर दूसरे तीसरे घंटे चाय पीने का मन करता है , और अगर हर घंटे मिल जाए तो और भी सोने पे सुहागा ! खैर , चाय पीकर रोड क्रॉस करी और ऑटो वाले से पांग डैम जाने के लिए पूछा तो बोला 200 रूपये लगेंगे ! अरे -बस वाला तो कह रहा था पांच पांच रूपये में पांग पहुँच जाओगे ! बढ़िया सी प्राइवेट बस भी खड़ी थी वहीँ , उससे पूछा पांग डैम जाने के लिए ! बोला 20 रूपये लगेंगे एक सवारी के ! क्या दिक्कत है , बैठ लिए ! थोड़ी दूर जाकर ही एक बोर्ड लगा है पांग डैम की दूरी बताने वाला ! वहां लिखा था पांग डैम 5 किलोमीटर ! यानी बस वाले ने मुझसे करीब आठ किलोमीटर के 20 रूपये लिए हैं लेकिन उस भले आदमी ने जब किराया माँगा तो सिर्फ 30 रूपये ही लिए ! चार लोगों के ! चार पूरे नहीं हैं , दो पूरे और दो चौथाई ! गिनती चार की , वजन सवा दो का !

पांग डैम उत्तर गए ! वीरान सा डैम ! लेकिन आये हैं तो देखेंगे ! जहां बस ने उतारा उससे थोड़ी ही दूरी पर एक पुलिस पिकेट है ! उधर ही चल दिए ! और लोग भी थे लेकिन वो सब कर्मचारी ही थे वहां के ! पुलिस वाले से घूमने के लिए पूछा तो उसने एक बार तो निराश कर ही दिया ! बोला आपको परमिशन लानी पड़ेगी ! मैंने पूछा -परमिशन कहाँ से लाऊँ ! ऐसा तो कुछ नही लिखा नेट पर ! लेकिन वो कहाँ मानने वाला था -बोला आपको तलवाड़ा से परमिशन लेकर आनी पड़ेगी , BBMB से , BBMB मतलब भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड , तभी आप यहां घूम सकते हो ! इतनी देर में और लोग भी उस पिकेट के पास आ गये थे , सब खाली ही घूम रहे थे ! मैंने उस पुलिस वाले को सारी राम कहानी सुना दी कि बच्चों का मन था देखने का , हमें पता भी नहीं था कि इसके लिए परमिशन चाहिए होती है ! आखिर में मेरे पहचानपत्र देखकर और अन्य कर्मचारियों के हस्तक्षेप के बाद उसने परमिशन दे ही दी और हमने अपना सामान भी उसकी पिकेट में ही रख दिया !

पांग डैम पर फोटो खीचना मना है लेकिन चुपके चुपके तो खींच ही सकते हैं ! ऐसा ही मैंने भी किया , इसलिए जितने फोटो मिलेंगे वो चोरी छिपे खींचे गए हैं ! मनाही बस ऐसी ही है , ज्यादा सख्त नहीं है , बस किसी की नजर न पड़े ! पांग डैम को महाराणा प्रताप सागर भी कहते हैं , ये ब्यास नदी पर 1975 में बनाया गया था ! ब्यास नदी , रोहतांग दर्रे के पास स्थित ब्यास कुण्ड से निकलती है ! जब ये डैम बनाया गया था तब ये भारत में सबसे ऊँचा डैम हुआ करता था ! जितना घूम सकते थे , उतना घूम लिया तो फिर वहां के कैफेटेरिया में घुस गए ! खाने को बिस्कुट के अलावा कुछ नहीं था और पीने को चाय के अलावा कुछ नहीं ! चाय ही पी ! मैंने उसे 20 का नोट दिया ! 10 रुपये चाय के हिसाब से , बोला खुले दे दो , मैंने कहा कितने , बोला चार रुपये ! इतनी सस्ती , चाय तो बढ़िया थी ! तब उसने बताया कि ये सरकारी कैंटीन है ! सच में सरकारी होने का अपना एक अलग मजा है ! ज्यादा सरकारी हो जाओ तो संसद की कैंटीन में 2 रूपया 50 पैसे में बढ़िया खाना मिल जाएगा !

डैम से ही पठानकोट के लिए सीधी बस मिल गयी ! एकदम बढ़िया , वीडियो कोच ! और 6 बजे शाम को पठानकोट बायपास उतार दिया ! बायपास से ही टैम्पो मिल गया , मैंने कहा स्टेशन ! बोला हाँ , बैठो ! बैठ गए ! पता नहीं कहाँ उतार गया , ये कह के कि लो जी आ गया स्टेशन ! दिख तो रहा था ! हम दूसरी साइड में थे ! चलते चलते जब स्टेशन पहुंचे तब असलियत पता चली , ये असल में पठानकोट छावनी स्टेशन था ! शायद चक्की दा बाग़ ! और हमें ट्रेन पकड़नी थी पठानकोट जंक्शन से ! फिर से टैम्पो पकड़ा और तब कहीं जाकर पठानकोट जंक्शन पहुंचे ! अभी तक पेट में चाय बिस्कुट के अलावा कुछ भी नहीं गया था ! तो पहले तय किया कि कुछ खाया जाए ! पठानकोट जंक्शन स्टेशन से बाहर रोड पर आकर बहुत से ठीक ठाक खाने के होटल हैं ! ख़ा पीकर वापस पठानकोट जंक्शन पहुंचे ! और 11 बजे रात को अपनी ट्रेन पकड़ी ! अगली सुबह गाजियाबाद !


चिंतपूर्णी से करीब 5 किलोमीटर दूर शीतला माता मंदिर ! बस में बैठे ही लिया था ये फोटो

पॉन्ग डैम

पॉन्ग डैम

पॉन्ग डैम

पॉन्ग डैम

ये सामने जो शिलापट दिखाई दे रहा है , इस पर डैम बनाने के दौरान स्वर्गवासी हुए लोगों के नाम लिखे हैं




ये सामने एक स्टेचू दिख रही है , इसे इंजन में प्रयोग में आने वाले कनेक्टिंग रोड और पिस्टन से बनाया गया है









पठानकोट छावनी स्टेशन पर खड़ी एक ट्रेन में तोप भी थीं , मेरे बेटे ने तस्वीर खेंच ली
पठानकोट जंक्शन के बाहर भारतीय रेलवे का चेहरा (मैस्कॉट ) 

काले बादलों से झाँकता चाँद

अब ये यात्रा समाप्त होती है ! जल्दी ही मिलेंगे एक और यात्रा वृतांत लेकर ! जय हिन्द 

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