पेज

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

हिमाचल यात्रा दूसरा दिन : पठानकोट से कांगड़ा

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहां क्लिक करें !!


ट्रेन क्यूंकि अपने निर्धारित समय पर ही दिल्ली जंक्शन ( पुरानी दिल्ली ) से निकल गयी थी तो लेट होने के चांस बहुत कम हो गए थे और अगर आप इस ट्रेन का रिकॉर्ड चेक करें तो पाएंगे कि ये ट्रैन ज्यादातर अपने समयानुसार ही चलती है ! मुझे इसका कारण समझ में आता है और शायद वो ये है कि इस रूट पर गाड़ियां बहुत कम हैं ! बहादुर गढ़ , रोहतक , जींद , लुधियाना , जालंधर और मुकेरियां होते हुए सुबह-सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर आपको पठानकोट फैंक देती है । धौलाधार , जिसको हमने शुरू से ही धुँआधार एक्सप्रेस नाम दे रखा था पठानकोट पर एक नंबर प्लेटफार्म पर उतारती है और उसी प्लेटफार्म पर शौचालय और नहाने की व्यवस्था भी है पांच रुपये में ! लेकिन मुश्किल ये आई कि ज्यादातर सवारी जो दिल्ली या लुधियाना से गयी होंगी वो सब उसमें घुसी पड़ी थीं इसलिए भीड़ इतनी ज्यादा हो गयी कि नहाने का विचार छोड़ ही दिया और दूसरी बात ये भी है कि कांगड़ा जाने वाली ट्रेन 10 बजे निकलती है ,प्लेटफार्म नंबर 4 से ! अगर नहाने का कार्यक्रम करते तो निश्चित ही या तो ये ट्रेन निकल जाती या फिर जगह नहीं मिल पाती ! इसलिए नहाने का विचार छोड़कर कांगड़ा का टिकट लेने चला गया , वहां पता चला की ट्रेन कांगड़ा तक नहीं बल्कि कॉपर लहड़ तक ही चल रही है ! कॉपर लहड़ से आगे कहीं स्लीपर बदले जा रहे हैं या कुछ और काम चल रहा है ! कोपर लहड़ कांगड़ा से बिलकुल पहले का स्टेशन है । 25 , 25 रुपये के दो टिकट लेकर पुल पारकर प्लेटफार्म नंबर 4 पर पहुंचे , इसी प्लेटफार्म से कांगड़ा के लिए नैरो गेज की ट्रेन ( टॉय ट्रेन भी कहते हैं इन्हें ) जाती हैं ! उस दिन अष्टमी थी , हालाँकि मैं ज्यादा व्रत नहीं रखता लेकिन माता रानी के प्रथम और अंतिम व्रत कर लेता हूँ। भुक्खड़ भी नहीं हूँ लेकिन भूखा भी नही रहा जाता ! व्रत की वजह से बस चाय ही पी सकता था , तो 10 मिनट में 2 चाय पी गया खड़े खड़े ही ! इतनी देर में प्लेटफार्म पर ट्रेन लगने लगी तो एकदम पत्ता नहीं कहाँ से इतनी भीड़ आ गयी , मैंने भी रेंगती ट्रेन में अपना बैग एक सीट पर फैंक दिया और बीवी बच्चों के लिए एक पूरी सीट कब्जा ली ! अष्टमी और नवमी की वज़ह से शायद भीड़ और भी ज्यादा हो गयी थी !


भयंकर भीड़ ! लेकिन जैसे ही 10 बजे सुबह ट्रेन चलने लगी भीड़ का खौफ , हिमाचल की तरफ बढ़ती हरियाली और सुन्दर नजारों ने धीरे धीरे ख़त्म कर दिया ! जैसे जैसे स्टेशन आते रहे भीड़ और भी काम होती रही ! अलीगढ , दिल्ली के रूट से एकदम उल्टा जहां जितने उतरते हैं उससे चार गुना चढ़ जाते हैं ! करीब 2 बजकर 30 मिनट के आसपास हम कॉपरलहड़ पहुँच गए थे ! पठानकोट से ठीक 90 किलोमीटर दूर 232 मीटर की ऊंचाई पर स्थित छोटा सा स्टेशन ! वहां से पैदल पैदल रोड तक आये और फिर रोड से 30-30 रुपये में टाटा सूमो से कांगड़ा ! 90 किलोमीटर के 25 रुपये और 7 किलोमीटर के 30 रूपये ! ये अंतर है ट्रेन और बस में !

पठानकोट से जोगिन्दर नगर तक जाने वाली इस लाइन की लम्बाई लगभग 102 किलोमीटर है । सन 1929 में शुरू होने वाली इस नैरो गेज ( 762 मिलीमीटर स्पान ) लाइन को उत्तर रेलवे का फिरोज़पुर डिवीज़न ऑपरेट करता है। हिमाचल में इसके अलावा कालका -शिमला रूट पर भी टॉय ट्रैन चलती है जिसे UNESCO ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट में स्थान दिया हुआ है लेकिन पठानकोट -जोगिन्दर नगर लाइन उनकी लिस्ट में तो है लेकिन इसे अभी उन्होंने हेरिटेज के रूप में मान्यता नहीं दी है ! अच्छी बात ये है कि भारतीय रेलवे ने इस सेक्शन को ब्रॉड गेज ( 1676 मिलीमीटर स्पान ) में परिवर्तित करने की योजना बनाई हुई है और इसे जोगिन्दर नगर से आगे मंडी तक ले जाने का विचार है और आखिर में नए बनने वाले बिलासपुर -मंडी -लेह रेल मार्ग के माध्यम से लददाख तक पहुँचने का ख्वाब है ! ख्वाब अच्छा है , लेकिन पूरा कब होता है , इसका इंतज़ार करना पड़ेगा !


करीब साढ़े तीन बजे के आसपास हम काँगड़ा पहुँच गए थे , होटल लेने के लिए बहुत घूमना पड़ा और मिला भी तो बहुत महँगा ! 700 रुपये माग रहा था होटल वाला , कम करते करते 600 पर आकर तैयार हुआ ! कारण सिर्फ एक समझ आ रहा था भीड़ ! नवमी की भीड़ होटल से लेकर मंदिर तक बनी रही लेकिन दर्शन करके साड़ी थकान और निराशा आनंद में बदल गयी ! काँगड़ा देवी को हमारे यहां अलीगढ में कोई भी कांगड़ा माई नहीं कहता , सब नगरकोट वाली मैया ही कहते हैं ! उस दिन यानी 2 अक्टूबर को माँ के दर्शन कर कुछ फलाहार किया और वापस होटल ! अगले दिन की बात अगली क़िस्त में :


कोपर लहड़ स्टेशन से पैदल पैदल रोड तक आना पड़ा
अपने मूड में पारी , मेरा छोटा बेटा
अगर लाइन ठीक होती तो हम यहां उतरते
कांगड़ा मंदिर
कांगड़ा मंदिर
​आरती के समय ये वाद्य  यंत्र बड़ी बेकार सी  आवाज़ करता है
कांगड़ा मंदिर
कांगड़ा मंदिर!!
ये फोटो नेट से ली गयी है ! फोटो ग्राफर का नाम नही है !!
कांगड़ा मंदिर !! ये फोटो नेट से ली गयी है ! फोटो ग्राफर का नाम अवनीश मौर्या है !!
कांगड़ा मंदिर



कांगड़ा मंदिर में मुख्य दरवाजे के सामने शेर की प्रतिमूर्ति


रात के समय में रौशनी से नहाया कांगड़ा मंदिर
यात्रा आगे जारी है : 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें